Rajasthan Panchayati Raj Act 1994 in Hindi [Chapter 4 – Power of the State Government etc.]
92. किसी पंचायती राज संस्था के संकल्प को रद्द या निलम्बित करने की शक्ति – (1) राज्य सरकार पंचायती राज संस्थाओं के प्रशासन सम्बन्धी समस्त विषयों के बारे में मुख्य पर्यवेक्षक एवं नियंत्रक प्राधिकारी होगी और किसी पंचायती राज संस्था या उसकी स्थायी समिति द्वारा पारित किसी संकल्प या आदेश को लिखित आदेश द्वारा रद्द कर सकेगी, यदि उसकी राय में ऐसा संकल्प, विधितः पारित नहीं किया गया हो या इस अधिनियम के द्वारा या अधीन या तत्समय प्रवृत्त किसी विधि के अधीन प्रदत्त शक्तियों के बाहर या दुरुपयोग में किया गया हो, या निष्पादन से मानव जीवन, व्यक्ति के स्वास्थ्य या सुरक्षा या सम्पत्ति को खतरा कारित होने की संभावना हो या शांति भंग होने की संभावना हो।
(2) राज्य सरकार उपधारा (1) के अधीन कार्रवाई करने से पहले, सम्बन्धित पंचायती राज संस्था को स्पष्टीकरण के लिए युक्तियुक्त अवसर देगी।
(3) यदि कलक्टर की राय में किसी पंचायती राज संस्था के संकल्प को इस आधार पर निलंबित किये जाने के लिए तत्काल कार्रवाई किया जाना आवश्यक हो कि उसके निष्पादन से मानव जीवन, व्यक्ति के स्वास्थ्य या सुरक्षा या सम्पत्ति को खतरा कारित होने की संभावना है या शांति भंग होने की संभावना है तो वह संकल्प के सम्बन्ध में किसी अन्तिम विनिश्चय के लिए राज्य सरकार को कोई रिपोर्ट करते समय, लिखित आदेश द्वारा संकल्प को निलंबित कर सकेगा यदि वह किसी पंचायत या किसी पंचायत समिति का हो।
93. पंचायती राज संस्था के व्यतिक्रम करने पर कर्त्तव्यों के पालन की व्यवस्था करने की शक्ति – (1) इस बात की शिकायत किये जाने पर या अन्यथा यदि राज्य सरकार का यह समाधान हो जाता है कि कोई पंचायती राज संस्था इस अधिनियम के द्वारा या अधीन उस पर अधिरोपित किसी कर्तव्य के अनुपालन में कोई व्यतिक्रम करने की दोषी रही है तो वह सम्यक जाँच के पश्चात् लिखित आदेश द्वारा, उस कर्तव्य के पालन की कालावधि नियत कर सकेगी, और सम्बन्धित पंचायती राज संस्था को ऐसे आदेश से तत्काल संसूचित कर दिया जायेगा।
(2) यदि उक्त कर्तव्य का पालन ऐसी नियत कालावधि के भीतर-भीतर नहीं किया जाता है तो राज्य सरकार, उसके पालन के किसी व्यक्ति को नियुक्त कर सकेगी और निदेश दे सकेगी कि ऐसे कर्तव्य के पालन में उपगत व्यय के साथ-साथ उसके पालन के लिए नियुक्त व्यक्ति को युक्तियुक्त पारिश्रमिक का संदाय सम्बन्धित पंचायती राज संस्था द्वारा तत्काल किया जायेगा।
(3) यदि व्यय और पारिश्रमिक का इस प्रकार संदाय नहीं किया जाता है तो राज्य सरकार, सम्बन्धित पंचायती राज संस्था की निधि के अतिशेष की अभिरक्षा रखने वाले व्यक्ति को, व्ययों और पारिश्रमिक या उनके ऐसे भाग के संदाय के लिए, जो उस अतिशेष से संभव हो, निदिष्ट करने के आदेश दे सकेगी।
94. किसी पंचायती राज संस्था को विघटित करने की सरकार की शक्ति – यदि किसी समय सरकार का यह समाधान हो जाये कि कोई पंचायती राज संस्था, इस अधिनियम के द्वारा या अधीन या अन्यथा, विधि द्वारा उस पर अधिरोपित कर्तव्यों के पालन में सक्षम नहीं है या उनके पालन में बार-बार व्यतिक्रम करती है. या अपनी शक्तियों से आगे बढ़ गयी है या उसने उनका दुरुपयोग किया है तो सरकार, राजपत्र में कारणों साहत प्रकाशित आदेश द्वारा, पंचायती राज संस्था को अक्षम या व्यतिक्रमी या ऐसी जो अपनी शक्तियों से आगे बढ़ गयी है या, यथास्थिति, जिसने उनका दुरुपयोग किया है, घोषित कर सकेगी, और ऐसी पंचायती राज संस्था का विघटन, विघटन के आदेश में विनिर्दिष्ट की जाने वाली तारीख से कर सकेगी परन्तु इस उपधारा के अधीन कोई कार्रवाई तब तक नहीं की जायेगी जब तक पंचायती राज संस्था को स्पष्टीकरण प्रस्तुत करने और सुने जाने का यदि पंचायती राज संस्था ऐसा चाहे, युक्तियुक्त अवसर नहीं दे दिया गया हो।
“स्पष्टीकरण-यदि किसी कारण से, किसी पंचायती राज संस्था में रिक्तियों की संख्या कुल स्थानों की संख्या के दो-तिहाई से अधिक है तो पंचायती राज संस्था, इस अधिनियम के द्वारा या अधीन उस पर अधिरोपित कर्तव्यों का पालन करने में सक्षम नहीं समझी जायेगी।
95. विघटन के परिणाम – (1) जब कोई पंचायती राज संस्था इस अधिनियम के अधीन विघटित कर दी जाये तो उसके निम्नलिखित परिणाम होंगे-
(क) पंचायती राज संस्था के अध्यक्ष सहित सभी सदस्य विघटन की तारीख को अपने-अपने पद रिक्त कर देंगे किन्तु इससे पुनर्निर्वाचन या पुनर्नियुक्ति की उनकी पात्रता पर कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ेगा;
(ख) पंचायती राज संस्था की समस्त शक्तियों का प्रयोग और समस्त कर्तव्यों का निर्वहन विघटन की कालावधि के दौरान ऐसे प्रशासक द्वारा किया जायेगा जिसे राज्य सरकार इस निमित्त नियुक्त करे; और
(ग) पंचायती राज संस्था में निहित सारी सम्पत्ति विघटन की कालावधि के दौरान सरकार में निहित होगी।
(2) यदि धारा 17 की उप-धारा (3) के खण्ड (ख) में विहित समय के भीतर किसी पंचायती राज संस्था को, सम्बन्धित पंचायती राज संस्था के किसी भी साधारण निर्वाचन और उस पर की पारिणामिक कार्यवाहियों पर किसी सक्षम न्यायालय या प्राधिकारी द्वारा कोई रोक लगा दिये जाने के कारण पुनर्गठित करना सम्भव न हो तो उसके उप-धारा (1) के खण्ड (ख) और (ग) में विनिर्दिष्ट परिणाम होंगे।
(3) धारा 94 के अधीन किया गया विघटन का कोई आदेश, उसके कारणों के कथन के साथ उसके किये जाने के पश्चात् यथाशक्य शीघ्र, राज्य विधानमण्डल के सदन के समक्ष रखा जायेगा।
95 क- प्रशासकों के बारे में अन्तःकालीन उपबन्ध:- इस अधिनियम में अन्तर्विष्ट किसी बात के होने पर भी, संविधान ( तिहत्तरवाँ संशोधन) अधिनियम, 1993 के प्रवृत्त होने की तारीख को किसी पंचायती राज संस्थाओं की शक्तियों का प्रयोग और कर्त्तव्यों का निर्वहन कर रहा कोई प्रशासक ऐसा 31 मार्च, 1995 तक या अधिनियम के उपबंधों के अधीन कराए गए प्रथम निर्वाचन के पश्चात् सम्बन्धित पंचायती राज संस्था का गठन किए जाने तक, जो भी पूर्वतर हो, करता रहेगा।]
96. अधिशेष निधियों को विनिहित करने की शक्ति किसी पंचायती राज संस्था के लिए, अपने पास की ऐसी किन्हीं भी अधिशेष निधियों को राज्य सरकार की मंजूरी से पंचायत, पंचायत समिति या, यथास्थिति, जिला परिषद् के नाम में लोक प्रतिभूतियों में विनिहित करना विधिपूर्ण होगा जो चालू प्रभारों के लिए अपेक्षित नहीं हो।
97. राज्य सरकार द्वारा पुनरीक्षण और पुनर्विलोकन की शक्ति – ( 1 ) राज्य सरकार, स्वप्रेरणा से या किसी मी हितबद्ध व्यक्ति द्वारा आवेदन किये जाने पर, किन्ही भी कार्यवाहियों के सम्बन्ध में, किसी पंचायती राज संस्था या उसकी किसी स्थायी समिति या उपसमिति का अभिलेख उनमें पारित किसी भी विनिश्चय या आदेश के सही होने, उसकी विधिकता या औचित्य के बारे में या ऐसी कार्यवाहियों की नियमितता के बारे में स्वयं का समाधान करने के लिए मंगा सकेगी और उसकी परीक्षा कर सकेगी और यदि किसी भी मामले में राज्य सरकार को यह प्रतीत हो कि ऐसे किसी भी विनिश्चय या आदेश को उपांतरित या बातिल किया, उलट दिया या पुनर्विचारार्थ विप्रेषित किया जाना चाहिए तो वह तदनुसार आदेश पारित कर सकेगी:
परन्तु राज्य सरकार किसी भी पक्षकार पर प्रतिकूल प्रभाव डालने वाला कोई भी आदेश तब तक पारित नहीं करेगी जब तक ऐसे पक्षकार को मामले में सुनवाई का युक्तियुक्त अवसर न मिल गया हो।
(2) राज्य सरकार किसी भी पक्षकार पर प्रतिकूल प्रभाव डालने वाले ऐसे किसी भी विनिश्चय या आदेश के निष्पादन पर उसके सम्बन्ध में उप-धारा (1) के अधीन की अपनी शक्तियों का प्रयोग करने तक रोक लगा सकेगी।
(3) राज्य सरकार, स्वप्रेरणा से या किसी भी हितबद्ध व्यक्ति से प्राप्त किसी आवेदन पर किसी भी समय, उपधारा (1) के अधीन आदेश पारित किये जाने के नब्बे दिन के भीतर-भीतर ऐसे किसी भी आदेश का पुनर्विलोकन कर सकेगी यदि वह उसके द्वारा किसी भूलवश जो, चाहे तथ्य की हो या विधि की, या किसी तात्विक तथ्य की अज्ञानतावश पारित किया गया हो। उप-धारा (1) के परन्तुक और उप-धारा (2) में अंतर्विष्ट इस उपधारा के अधीन कार्यवाहियों पर लागू होंगे।
परिपत्र
[ धारा 97 के अधिकार जिला कलेक्टर को नहीं राजस्थान पंचायती राज अधिनियम की धारा 97 के अन्तर्गत राज्य सरकार स्वप्रेरणा से या किसी भी हितबद्ध व्यक्ति द्वारा आवेदन किये जाने पर किन्हीं भी कार्यवाहियों के सम्बन्ध में, किसी पंचायती राज संस्था या उसकी किसी स्थायी समिति या उप समिति का अभिलेख उनमें पारित किसी विनिश्चय या आदेश के सही होनें उसकी विधिकता या औचित्य के बारे में या ऐसी कार्यवाहियों की नियमितता के बारे में स्वयं का समाधान करने के लिए मंगा सकेगी और उसकी परीक्षा कर सकेगी और यदि किसी भी मामले में, राज्य सरकार को यह प्रतीत हो कि ऐसे किसी भी विनिश्चय या आवेश को उपांतरित या बातिल किया, उलट दिया या पुनर्विचारार्थ विप्रेषित किया जाना चाहिए तो वह तदनुसार आदेश पारित करने बाबत अधिकार प्रदान किया गया है।
राज्य सरकार की अधिसूचना दिनांक 3-12-1996 के द्वारा धारा 97 की शक्तियों को जिला कलेक्टर को भी प्रत्यायोजित किया गया था। इसके पश्चात् राज्य सरकार द्वारा अधिसूचना क्रमांक एफ.139 (5) परावि / शिक्षा / 2000/294 दिनांक 1-2-2002 के द्वारा पूर्व अधिसूचना जिसके तहत जिला कलेक्टर को धारा 97 के अन्तर्गत शक्तियां प्रत्यायोजित की गई थी को अधिक्रमित कर दिया गया है, जिसके फलस्वरूप जिला कलेक्टर 1-2-2002 के पश्चात् धारा 97 के अन्तर्गत शक्तियां प्रयोग करने कि लिये अधिकृत नहीं है। अतः इस प्रकार के प्रकरणों में उक्त तिथि के बाद कोई सुनवाई नहीं की जावे और सभी प्रकरण राज्य सरकार को अग्रिम कार्यवाही के लिये प्रेषित किये जाये।]
अधिसूचना सं. एफ 139 (19) रा. डी. पी. / एल एण्ड जे/ 95/3273 दिनांक 26-10-96 द्वारा राज्य सरकार संभागीय आयुक्त को, जिला कलेक्टर द्वारा राज. पंचायत अधिनियम की धारा 97 के सिवाय किसी भी धारा एवं पारित आदेश के विरुद्ध सुनवाई का अधिकार देती है।
राजीव गांधी स्वर्ण जयन्ती पाठशालाओं में शिक्षासहयोगियों/ पैराटीचर्स के चयन से सम्बन्धित परिवेदना समिति के निर्णय का पुनरीक्षण तथा पुनर्विलोकन करने की उक्त अधिनियम को 97 में प्रदत्त शक्तियों को सम्बन्धित जिला कलेक्टर को प्रत्यायोजित करती है।]
[97क. अपीलें (1) इस अधिनियम के अधीन या तद्धीन बनाये गये किन्हीं नियमों के अधीन किये गये या जारी किये पंचायत समिति के किसी आदेश या निदेश से व्यक्ति कोई भी व्यक्ति, इस प्रकार किये गये आदेश या निदेश के विरूद्ध अधिकारिता रखने वाली जिला परिषद् को ऐसे आदेश या निदेश की तारीख से तीस दिन के भीतर अपील कर सकेगा उस कालावधि की संगणना में उसकी प्रति प्राप्त करने में समय अपवर्जित किया जायेगा।
(2) इस अधिनियम के अधीन या तीन बनाये गये किसी नियम के अधीन किये गये या जारी किये जिला परिषद के किसी आदेश या निवेश से व्यथित कोई भी व्यक्ति इस प्रकार किये गये आदेश या निदेश के विरुद्ध अधिकारिता रखने वाले खंड आयुक्त को ऐसे आदेश या निदेश की तारीख से तीस दिन के भीतर-भीतर अपील कर सकेगा और उक्त कालावधि की संगणना में उसकी प्रति प्राप्त करने में लगा समय अपवर्जित किया जाएगा।]
98. शक्तियों का प्रत्यायोजन- सरकार, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा-
(क) इस अधिनियम के अधीन की अपनी समस्त या कोई भी शक्ति अपने अधीनस्थ किसी भी अधिकारी या प्राधिकारी को, और
(ख) इस अधिनियम के अधीन की पंचायतों के प्रभारी अधिकारी की समस्त या कोई भी शक्तियाँ किसी भी अन्य अधिकारी या प्राधिकारी को – प्रत्यायोजित कर सकेगी।
“अधिसूचना”
राजस्थान पंचायती राज (निर्वाचन) नियम, 1994 के अध्याय-2 के साथ पठित राजस्थान पंचायती राज अधिनियम, 1994 (1994 का अधिनियम संख्या 13) की धारा 98 (क) द्वारा प्रदत्त शक्तियों के प्रयोग में, राज्य सरकार, एतद्द्वारा, नीचे वर्णित अधिकारियों को अपनी सम्बन्धित अधिकारिता के भीतर उनके नाम के सामने नीचे उल्लिखित शक्तियों का प्रयोग करने के लिए प्राधिकृत करती है, अर्थात्-
1. पंचायतों के वार्डों के बनाने के सम्बन्ध में –
उपखण्ड अधिकारी राजस्थान काश्तकारी अधिनियम (1955 का अधिनियम संख्या 3) के अन्तर्गत बनाए यथा परिभाषित
(क)निर्वाचन नियमों के नियम बनाने के लिए
(ख) उक्त नियमों के नियम 4(1) के उपबन्धों के अनुसार इस प्रकार बनाये गये वार्डों को अधिसूचित करने के लिए
(ग) निर्वाचन नियमों के नियम 4 (2) के उपबंधों के अनुसार वार्डों को भेजे जाने के सम्बन्ध में आक्षेप प्राप्त करने तथा समस्त ऐसे आक्षेपों को अपने सूचना पट्ट पर लगवाने तथा उसके पश्चात नियम 3 के समस्त विवरण के सहित अपने टिप्पण के साथ उन्हें कलक्टर को विचारार्थ एवं अन्तिम निर्णय करने के लिए भेजने हेतु।
कलक्टर
(घ) वार्डों के बनाए जाने के सम्बन्ध में उपखण्ड अधिकारी से प्राप्त आक्षेपों एवं अपने सामने रखी गयी उन आक्षेपों पर उपखण्ड अधिकारियों के टिप्पण सहित अन्य सामग्री पर विचार करने तथा निर्वाचन नियमों के नियम 4(3) के उपबंधों के अनुसार उस पर अपना निर्णय अभिलिखित करने के लिए।
(ङ) वार्डो के निर्माण को अन्तिम रूप से निर्णीत करने तथा उक्त नियमों के नियम 4(4) के अनुसार पंचायतों के अन्तिम रूप से निर्णीत किये वार्डों को अधिसूचित करने के लिए।
2. पंचायत समितियों एवं जिला परिषदों के निर्वाचन क्षेत्रों को बनाने के सम्बन्ध में – कलक्टर
(क) निर्वाचन नियमों के नियम 3 के उपबंधों के अनुसार ‘निर्वाचन क्षेत्र’ बनाने के लिए।
(ख) उक्त नियमों के नियम 4(1) के उपबंधों के अनुसार इस प्रकार बनाए गये ‘निर्वाचन क्षेत्रों’ को अधिसूचित करने के लिए।
(ग) निर्वाचन नियमों के नियम 4 (2) के उपबंधों के अनुसार निर्वाचन क्षेत्रों को बनाये जाने के सम्बन्ध में आक्षेप प्राप्त करने तथा समस्त ऐसे आक्षेपों को अपने सूचना पट्ट पर लगवाने तथा उसके पश्चात् नियम 3 के अधीन तैयार किए गये निर्वाचन क्षेत्रों के समस्त विवरणों के साथ उन्हें राज्य सरकार के पास विचारार्थ निर्णय एवं अन्तिम रूप से निर्णीत करने के लिए राज्य सरकार के पास भेजने तथा उक्त नियमों के नियम 4 (3) एवं नियम 4 (4) के अनुसार निर्वाचन क्षेत्रों के अन्तिम रूप से बनाए जाने को अधिसूचित करने के लिए।
3. अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों और पिछड़े वर्गों तथा महिलाओं के लिए भी आरक्षित रखे जाने वाले स्थानों एवं पदों का अवधारण करने के सम्बन्ध में उपखण्ड अधिकारी राजस्थान काश्तकारी अधिनियम, 1955 ( 1955 का अधिनियम सं. (3) के अन्तर्गत यथा परिभाषित के ‘स्थानों’ का अवधारण करने के लिए
अधिनियम की धारा 15 एवं नियमों के अध्याय-11 के उपबन्धों के अनुसार अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों, पिछड़े वर्गों व महिलाओं के लिए आरक्षित किये जाने वाले पंचों के स्थानों का अवधारण करने के लिए
कलक्टर
अधिनियम की धारा 15 एवं 16 तथा नियमों के अध्याय 2 के उपबंधों के अनुसार अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों, पिछड़े वर्गों तथा महिलाओं के लिए आरक्षित किये जाने वाले पंचायत समितियों एवं जिला परिषदों के सदस्यों के ‘स्थानों’ एवं सरपंचों एवं प्रधानों के पदों का अवधारण करने के लिए।
(अधिसूचना संख्या एक. 4(8) आर.डी.पी./94/3194 दिनांक 2-9-1994)
99. सरकार द्वारा अधिकारियों और कर्मचारिवृन्द की नियुक्ति :- पंचायतों के प्रशासन के सम्बन्ध में ऐसे कृत्यों के निर्वहन के लिए, जो इस अधिनियम द्वारा उपबंधित हैं या इसके अधीन विहित किये जायें, राज्य सरकार, पंचायतों के लिए किसी प्रभारी अधिकारी को ऐसे पदाभिधान से, जो वह समय-समय पर अधिसूचित करे और ऐसे अन्य अधीनस्थ अधिकारियों और कर्मचारिवृन्द को नियुक्त कर सकेगी, जिन्हें राज्य सरकार आवश्यक समझे।
100. राज्य सरकार द्वारा निरीक्षण और जाँच राज्य सरकार या राज्य सरकार द्वारा इस निमित्त सामान्यतः या विशिष्टतः प्राधिकृत कोई भी अन्य अधिकारी- (क) किसी पंचायती राज संस्था के स्वामित्वाधीन या उसके द्वारा उपयोग में ली जा रही या अधिमुक्त किसी भी स्थावर सम्पत्ति या ऐसी पंचायती राज संस्था के निदेशाधीन चालू कार्य का निरीक्षण कर या करवा सकेगा;
(ख) किसी पंचायती राज संस्था के कब्जे में की या उसके नियंत्रणाधीन किसी पुस्तक या दस्तावेज को किसी लिखित आदेश द्वारा मँगा सकेगा और उसका निरीक्षण कर सकेगा;
(ग) इसी प्रकार किसी पंचायती राज संस्था से ऐसी पंचायती राज संस्था की कार्यवाहियों या कर्त्तव्यों से सम्बन्धित ऐसे विवरण, रिपोर्ट या दस्तावेजों की प्रतियाँ प्रस्तुत करने की अपेक्षा कर सकेगा जो वह उचित समझे;
(घ) किसी पंचायती राज संस्था के विचार के लिए ऐसा कोई सम्प्रेक्षण लेखबद्ध कर सकेगा जिसे वह ऐसी पंचायती राज संस्था की कार्यवाहियों और कर्त्तव्यों के सम्बन्ध में समुचित है; और
(ङ) किसी पंचायती राज संस्था के किसी भी सदस्य, अध्यक्ष या उपाध्यक्ष के विरुद्ध ऐसी पंचायती राज संस्था से सम्बन्धित किसी विषय के सम्बन्ध में कोई जाँच संस्थित कर सकेगा।
101. किसी पंचायती राज संस्था की सीमाओं में परिवर्तन :- (1) राज्य सरकार या तो स्वप्रेरणा से या इस निमित्त किये गये निवेदन पर विहित रीति से प्रकाशित एक मास के नोटिस के पश्चात् किसी भी समय, और राजपत्र में अधिसूचना द्वारा-
(क) किसी भी ऐसे सम्पूर्ण स्थानीय क्षेत्र या उसके भाग को, जो किसी नगरपालिका की सीमा के भीतर सम्मिलित है, कोई पंचायत सर्किल घोषित कर सकेगी या
(ख) किसी भी ऐसे स्थानीय क्षेत्र या उसके किसी भाग को या, यथास्थिति, किसी अन्य पंचायत सर्किल की सीमाओं के भीतर सम्मिलित किसी भी स्थानीय क्षेत्र को किसी पंचायत सर्किल में सम्मिलित कर सकेगी या
(ग) किसी पंचायत सर्किल की सीमाओं को, एक पंचायत सर्किल का किसी अन्य पंचायत
सर्किल में समामेलन करके या किसी पंचायत सर्किल को दो या अधिक पंचायत सर्किलों में विभाजित करके, अन्यथा परिवर्तित कर सकेगी या
(घ) किसी पंचायत सर्किल से किसी सम्पूर्ण स्थानीय क्षेत्र या उसके भाग को, चाहे उसका कोई ग्रामीण क्षेत्र होना समाप्त होने पर या यथास्थिति, उसके किसी अन्य पंचायत सर्किल की सीमाओं के भीतर सम्मिलित किये जाने के परिणामस्वरूप, अपवर्जित कर सकेगी।
(2) उप-धारा (1) के अधीन कोई भी कार्रवाई किये जाने पर ज्य सरकार, इस अधिनियम या तत्समय प्रवृत्त किसी भी अन्य विधि में किसी बात के होने पर भी राजपत्र में प्रकाशित किसी आदेश द्वारा, निम्नलिखित के लिए उपबंध करेगी, अर्थात् :-
(क) कि, उस उप-धारा के खण्ड (क) के अधीन आने वाले किसी मामले में, किसी पंचायत सर्किल के रूप में घोषित स्थानीय क्षेत्र के लिए एक पंचायत की स्थापना या (ख) कि, उस उप-धारा के खण्ड
(ख) के अधीन आने वाले किसी मामले में, अतिरिक्त स्थानीय क्षेत्र के लिए सदस्यों का निर्वाचन; या
(ग) कि, उस उप-धारा के खण्ड (ग) के अधीन आने वाले किसी मामले में विद्यमान पंचायतों का विघटन और नयी पंचायतों का गठन, नियत दिन से छह मास की कालावधि के भीतर-भीतर इस अधिनियम के उपबंधों के अनुसार किया जायेगा; या
(घ) कि, खण्ड (घ) के अधीन आने वाले किसी मामले में, पंचायत विघटित हो जायेगी या यथास्थिति, वे सदस्य जो राज्य सरकार की राय में, पंचायत सर्किल से अपवर्जित स्थानीय क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते हैं, हटाये हुए माने जायेंगे
परन्तु जब तक खण्ड (क) या, यथास्थिति, खण्ड (ग) के अधीन कोई पंचायत या कोई नयी पंचायत स्थापित नहीं की जाती है, पंचायत की समस्त शक्तियों और कर्त्तव्यों का प्रयोग और पालन ऐसे प्रशासक द्वारा किया जायेगा जो राज्य सरकार द्वारा इस निमित्त नियुक्त किया जाये :
परन्तु यह और कि पंचायत का कोई भी कार्य खण्ड (ख) में निर्दिष्ट सदस्यों की किसी भी रिक्ति के कारण से अविधिमान्य नहीं समझा जायेगा।
(3) किसी नगरपालिका के किसी भी स्थानीय क्षेत्र का अपवर्जन हो जाने पर और उसके उप-धारा (1) के अधीन पंचायत सर्किल के रूप में घोषित कर दिये जाने पर था, यथास्थिति, उसमें सम्मिलित कर लिये जाने पर-
(क) ऐसा क्षेत्र नगरपालिका नहीं रह जायेगा;
(ख) नगरपालिका के इस प्रकार घोषित या किसी पंचायत सर्किल में सम्मिलित, क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करने वाले बोर्ड के सदस्य अपने-अपने पद रिक्त कर देंगे किन्तु इससे ऐसे क्षेत्र के लिए गठित की जाने वाली पंचायत या, यथास्थिति, उस पंचायत, जिसके क्षेत्र में ऐसा क्षेत्र सम्मिलित किया गया है, के लिए गठित की जाने वाली पंचायत के लिए निर्वाचन की उनकी पात्रता पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ेगा;
(ग) किसी पंचायत के रूप में इस प्रकार घोषित नगरपालिका में निहित समस्त आस्तियाँ और उसके विरुद्ध विद्यमान समस्त दायित्व या जहाँ नगरपालिका का केवल कोई भाग पंचायत में सम्मिलित किया गया है या पंचायत के रूप में घोषित किया गया है वहाँ ऐसी आस्तियों और दायित्वों का ऐसा भाग, जो राज्य सरकार निर्दिष्ट करे, ऐसे क्षेत्र के लिए घोषित पंचायत में या ऐसी पंचायत में जिसमें नगरपालिका का ऐसा क्षेत्र सम्मिलित किया गया है, न्यागत होगा;
(घ) जब तक इस अधिनियम के अधीन नये नियम, अधिसूचनाएँ, आदेश और उप-विधियाँ बनायी या जारी नहीं की जातीं और जब तक राज्य सरकार अन्यथा निदेश नहीं दे देती, तब तक वे समस्त नियम, अधिसूचनाएँ आदेश और उप-विधियों जो
(i) उस पंचायत पर, जिसमें ऐसा क्षेत्र सम्मिलित किया जाता है; और
(ii) जहाँ कोई सम्पूर्ण नगरपालिका या उसका कोई भाग पंचायत घोषित कर दिया जाता है वहाँ उस पंचायत समिति के क्षेत्र पर जो सम्बन्धित क्षेत्र के ऐसी पंचायत समिति के खण्ड में पड़ने के कारण पंचायत में क्षेत्र के रूप में इस प्रकार घोषित क्षेत्र पर अधिकारिता रखेगी: लागू है. इस प्रकार सम्मिलित या घोषित किये गये क्षेत्र पर लागू बनी रहेंगी
(ङ) किसी नगरपालिका के किसी भी क्षेत्र के पंचायत में सम्मिलित किये जाने से या किसी नगरपालिका के पंचायत के रूप में घोषित किये जाने से इस प्रकार स्थापित पंचायत ऐसे कर उद्गृहीत करेगी या करती रहेगी जो इस अधिनियम के अधीन विधिपूर्वक अधिरोपित किये जाते हैं;
(च) ऐसा कोई भी क्षेत्र राजस्थान नगरपालिका अधिनियम, 1959 (1959 का राजस्थान अधिनियम (38) के अधीन बनाये गये समस्त नियमों, अधिसूचनाओं, आदेशों, और उपविधियों के अध्यधीन होना बंद हो जायेगा; और
(छ) ऐसी पंचायत, जिसमें ऐसा क्षेत्र सम्मिलित किया जाता है या ऐसी पंचायत, जो ऐसे क्षेत्र के लिए घोषित की जाती है और क्रमशः ऐसे खंड और जिले की पंचायत समिति और जिला परिषद्, जिसमें इस प्रकार सम्मिलित या घोषित किया गया क्षेत्र आता है. ऐसे क्षेत्र पर अधिकारिता का प्रयोग करेगी और ऐसी नगरपालिका, जिसमें ऐसा क्षेत्र सम्मिलित था या यथास्थिति, ऐसी नगरपालिका, जो ऐसे क्षेत्र के लिए स्थापित की गयी थी. उसमें कृत्य करना बंद कर देगी।
(4) जब कोई स्थानीय क्षेत्र पंचायत नहीं रहे और किसी अन्य स्थानीय प्राधिकरण की अधिकारिता की स्थानीय सीमा में सम्मिलित कर लिया जाये तो पंचायत निधि और पंचायत में निहित अन्य सम्पत्ति और अधिकार ऐसे अन्य स्थानीय प्राधिकरण में निहित हो जायेंगे और पंचायत के दायित्व ऐसे स्थानीय प्राधिकरण के दायित्व हो जायेंगे।
(5) जब कोई स्थानीय क्षेत्र किसी एक पंचायत सर्किल से अपवर्जित कर दिया जाये और किसी अन्य पंचायत सर्किल में सम्मिलित कर दिया जाये तो प्रथमतः वर्णित सर्किल की पंचायत में निहित पंचायत निधि और अन्य सम्पत्ति अन्य पंचायत में निहित हो जायेगी और उसके दायित्वों के ऐसे प्रभाग अन्य पंचायत के दायित्व बन जायेंगे जो राज्य सरकार दोनों पंचायतों से परामर्श के पश्चात् राज-पत्र में अधिसूचना द्वारा घोषित करे : परन्तु इस उप-धारा के उपबंध ऐसे किसी भी मामले पर लागू नहीं होंगे, जिसमें राज्य सरकार की राय में, परिस्थितियाँ पंचायत निधि या सम्पत्तियों या दायित्वों के किसी भी प्रभाग के अंतरण को अनपेक्षित बना दें।
[5क उपधारा (1) के अधीन की गई कार्यवाही के परिणामस्वरूप या अन्यथा जब ऐसा करना आवश्यक समझा जाये तो राज्य सरकार किसी पंचायत समिति या किसी जिला परिषद् क्षेत्र की सीमाओं को परिवर्तित कर सकेगी और परिवर्तन के ऐसे प्रत्येक मामले में पूर्वगामी उप धाराओं में अन्तर्विष्ट उपबंध आवश्यक परिवर्तनों सहित लागू होंगे। ]
(6) राज्य सरकार, पूर्वगामी उप-धारा के प्रयोजनों के लिए ऐसे आदेश और निदेश दे सकेगी, जो वह आवश्यक समझे या
(7) इस धारा में जैसा अन्यथा उपबंधित है उसके सिवाय इसके उपबंध इस अधिनियम राजस्थान नगरपालिका अधिनियम, 1959 (1959 का राजस्थान अधिनियम 38 ) या तत्समय प्रवृत्त किसी भी अन्य विधि में अन्तर्विष्ट किसी बात के होने पर भी प्रभावी होंगे।
स्पष्टीकरण इस धारा में “नियत दिन” से वह दिन अभिप्रेत है, जिससे उप-धारा (1) में निर्दिष्ट कोई परिवर्तन होता है।
(राजस्थान राजपत्र भाग 4 (क) के पृष्ठ 321 पर अधिनियम संख्या 23 दिनांक 6-10-94 द्वारा अन्तःस्थापित तथा 26/07/1994 से प्रभावी)
102. नियम बनाने की शक्ति (1) राज्य सरकार राजपत्र अधिसूचना द्वारा इस अधिनियम त करने के लिए इस अधिनियम से संगत नियम बना सकेगी।
(2) विशिष्टत और पूर्वापर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना ऐसे नियम निम्नलिखित के लिए बनाये –
(क) सम्पूर्ण राजस्थान राज्य या उसके किसी भाग के लिए या समस्त या किसी भी पंचायती राजसंस्था के लिए (ख) सभी विषय के लिए उपबंध करने के लिए, जिसके लिए इस अधिनियम के द्वारा या अधीनस्य रूप से उपबंध करने की शक्ति राज्य सरकार को प्रदत्त की गयी है;
(ग) इस अधिनियम के उपबंधों को कार्य करने से सम्बन्धित किसी भी विषय में पंचायती राज संस्था के और राज्य सरकार के कर्मचारियों और प्राधिकारियों के मार्गदर्शन के लिए और
(घ) इस अधिनियम के अधीन जारी किये गये किसी भी दस्तावेज के या इस अधिनियम के अधीन या प्रयोजन के लिए रखे गये मी अभिलेख के निरीक्षण और तलाशी के लिए और ऐसे दस्तावेज या अभिलेख की प्रतियाँ या उनके उद्धरण देने के लिए फीस उद्गृहीत करने के लिए और ऐसी फीस के मापमान के लिए उपबंध करने के लिए।
(3) इस धारा के अधीन बनाये गये समस्त नियम उनके इस प्रकार बनाये जाने के पश्चात् यथाशक्य शीघ्र राज्य विधान मण्डल के सदन के समक्ष जब वह सत्र में हो, चौदह दिन से अन्यून की किसी कालावधि के लिए, जो एक सत्र या दो क्रमवर्ती सत्रों में समाविष्ट हो सकेगी, रखे जायेंगे और यदि उस सत्र के जिसमें इस प्रकार रखे गये है, या उसके ठीक अगले सत्र के अवसान से पूर्व सदन ऐसे नियमों में कोई उपान्तरण करता है या यह संकल्प करता है कि ऐसे कोई नियम नहीं बनाये जाने चाहिए तो ऐसे नियम उसके पश्चात् केवल ऐसे उपान्तरित रूप में प्रभावी होंगे या यथास्थिति, कोई प्रभाव नहीं रखेंगे तथापि ऐसे किसी उपान्तरण या बातिलकरण से उसके अधीन पूर्व में की गयी किसी भी बात की विधिमान्यता पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ेगा।
103. जिला परिषद् की उप विधियों बनाने की शक्ति :- (1) जिला परिषद् किसी भी पंचायत के लिए इस अधिनियम और तदधीन बनाये गये नियमों से सुसंगत उपविधियाँ, ऐसी पंचायत की अधिकारिता के भीतर निवास करने वाले व्यक्तियों के स्वास्थ्य, सुरक्षा और सुविधा को प्रोन्नत करने और बनाये रखने के प्रयोजनार्थ और इस अधिनियम के अधीन पंचायतों के प्रशासन को और आगे बढ़ाने के लिए, बना सकेगी और जब राज्य सरकार द्वारा अपेक्षा की जाये तो बनायेगी।
(2) इस धारा के अधीन बनायी गयी समस्त उप-विधियों राज पत्र में प्रकाशित की जायेंगी।
104. पंचायतों की उप-विधियों विरचित करने की शक्ति :- (1) इस अधिनियम और तदधीन बनाये गये नियमों के अध्यधीन रहते हुए कोई पंचायत धारा 103 के अधीन बनायी गयी उप-विधियों से सुसंगत कोई उप-विधियाँ-
(क) किसी भी ऐसे स्रोत से, जिससे स्वास्थ्य को खतरा होने की सम्भावना हो, जल को पीने के प्रयोजनार्थ हटाने या उपयोग में लेने को प्रतिषिद्ध करने के लिए और ऐसी कोई भी बात करने से प्रतिषिद्ध करने के लिए जिससे पेयजल के किसी भी स्रोत के दूषित होने की भावना हो;
(ख) किसी भी नाली या परिसर से किसी सार्वजनिक सड़क पर या किसी नदी, तालाब, पोखर कुएँ या किसी भी अन्य स्थान में जल के निस्तारण को प्रतिषिद्ध या विनियमित करने के लिए: (ग) सार्वजनिक सड़क और पंचायत की सम्पत्ति को होने वाली क्षति को निवारित करने के लिए;
(घ) अपने पंचायत सर्किल में स्वच्छता, मल – सफाई और नाली प्रणाली को विनियमित करने के लिए:
(ङ) दुकानदारों या अन्य व्यक्तियों द्वारा सार्वजनिक सड़क या अन्य स्थानों के उपयोग को प्रतिषिद्ध और विनियमित करने के लिए और सार्वजनिक सड़कों पर बाजार-करों के संग्रहण को विनियमित करने के लिए;
(च) उस रीति को विनियमित करने के लिए जिससे पोखर, तालाब, चह-बच्चे (सैसपूल्स), चरागाह, खेल के मैदान, खाद के गड्ढे, शवों के निर्वर्तन की भूमि और स्नान के स्थान संधारित किये और उपयोग में लिये जायेंगे:
(छ) मृत पशुओं के शवों के निर्वर्तन को विनियमित करने के लिए;
(ज) मांस या मछली और मदिरा के विक्रय के लिए उपयोग के स्थानों को विनियमित करने के लिए:
विरचित कर सकेगी।
(2) उप-धारा (1) के अधीन पंचायत द्वारा विरचित की जाने वाली उप विधियों का प्रारूप विहित रीति से प्रकाशित किया जायेगा और उस पर प्राप्त किन्हीं भी आक्षेपों पर पंचायत की बैठक में विचार किया जायेगा, जिसके पश्चात् उप-विधियों, उन पर प्राप्त आक्षेपों, यदि कोई हो, और उन पर लिये गये विनिश्चयों सहित जिला परिषद् को प्रस्तुत की जायेंगी। जिला परिषद् द्वारा मंजूर की गयी उप-विधियाँ उनका राज पत्र में प्रकाशन होने पर प्रवृत्त होंगी।
105, पंचायत समिति और जिला परिषद् की उप-विधियों बनाने की शक्ति :- (1) कोई पंचायत समिति या जिला परिषद् समय-समय पर उन प्रयोजनों को क्रियान्वित करने के लिए, जिनके लिए यह गठित की गयी है, ऐसी उपविधियाँ बना सकेगी जो इस अधिनियम और तदधीन बनाये गये नियमों के उपबन्धों से असंगत न हो।
(2) किसी पंचायत समिति या जिला परिषद् द्वारा बनायी गयी कोई भी उप-विधियों तब तक प्रभावी नहीं होंगी जब तक वे राज्य सरकार द्वारा गंजूर न कर दी जायें।
(3) राज्य सरकार द्वारा मंजूर की गयी उपविधियाँ उनका राज पत्र में प्रकाशन होने पर प्रवृत्त होंगी।
106. नियमों और उप-विधियों का अतिलंघन :- इस अधिनियम के अधीन कोई नियम या उप-विधि बनाते समय नियम या उप-विधि बनाने वाला प्राधिकारी यह भी उपबंध कर सकेगा कि उसका कोई भंग ऐसे जुर्माने से, जो दो सौ रुपये तक का हो सकेगा और जब भंग जारी रहने वाला हो तो ऐसे और जुर्माने से, जो प्रथम दोषसिद्धि की तारीख के पश्चात् के उस प्रत्येक दिन के लिए, जिसके दौरान अपराधी को अपराध किया हुआ साबित किया जाता है, दस रुपये तक का हो सकेगा, दण्डनीय होगा।
107. विवाद- (1) यदि दो पंचायती राज संस्थाओं के बीच या किसी एक पंचायती राज संस्था और किसी भी स्थानीय प्राधिकरण के बीच कोई विवाद खड़ा हो तो उसे राज्य सरकार को निर्देशित किया जायेगा।
(2) ऐसे विवाद पर राज्य सरकार का विनिश्चय अन्तिम होगा और उसे किसी भी सिविल न्यायालय में किसी भी वाद या अन्य कार्यवाहियों के जरिये प्रश्नगत नहीं किया जायेगा।