Rajasthan Panchayati Raj Rules 1996 in Hindi (Updated)
राज्य सरकार राजस्थान पंचायती राज अधिनियम, 1994 (1994 का राजस्थान अधिनियम सं. 13) की धारा 3(5), 7(छ), 8, 25(1), 31, 32(1), 33(ग), 35(1), 37(3), 38(1), 39(2), 44, 45(3), 53(1), 60, 65(1)(2), 67(2), 68(2), 69, 74(1)(4), 75(1)(2)(3), 77, 78(1)(2), 79(2), 80(1)(3), 81(1), 82(1), 84(1), 89(4)(8), 90(2)ण् 91(1), 121 (3(5),122 के साथ पठित धारा 102 प्रदत्त शक्तियों और इस निमित्त उसे समर्थ बनाने वाली समस्त अन्य शक्तियों का प्रयोग करते हुए, इसके द्वारा निम्नलिखित नियम बनाती है, अर्थात्-
प्रारम्भिक
1. संक्षिप्त नाम और प्रारम्भ – (1) इन नियमों का नाम राजस्थान पंचायती राज नियम, 1996 है । ये राजपत्र में इनके प्रकाशन की तारीख से प्रवृत्त होंगे।
2. निर्वचन – (1) इन नियमों में, जब तक कि विषय या संदर्भ से अन्यथा अपेक्षित न हो,-
(I) ‘‘अधिनियम‘‘ से राजस्थान पंचायती राज अधिनियम, 1994 (1994 का राजस्थान अधिनियम सं. 13) अभिप्रेत है,
(II) ‘‘महालेखाकार‘‘ से महालेखाकार, राजस्थान अभिप्रेत है,
(IIक) ‘‘प्राधिकृत अधिकरण‘‘ से प्राथमिक और उच्च प्राथमिक विद्यालय अध्यापक के पद के चयन के लिए, राज्य सरकार द्वारा समय-समय पर प्राधिकृत अभिकरण अभिप्रेत है;
(III) ‘‘पूर्ण दिन‘‘ के अन्तर्गत रविवार और अवकाश सम्मिलित हैं किन्तु बैठक का दिन और नोटिस की प्राप्ति का दिन उसके अन्तर्गत नहीं है,
(IV) ‘‘दिन‘‘ के मध्यरात्रि को शुरू होने वाला और समाप्त होने वाला कलैण्डर दिन अभिप्रेत है किन्तु मुख्यालय से ऐसी अनुपस्थिति को, जो 24 घण्टों से अधिक नहीं है, एक दिन गिना जायेगा चाहे अनुपस्थिति किसी भी समय शुरू या समाप्त होती हो,
(V) ‘‘विकास आयुक्त‘‘ से राज्य सरकार द्वारा उस पदाभिधान से नियुक्त अधिकारी अभिप्रेत है,
(VI) ‘‘निदेशक , स्थानीय निधि लेखा परीक्षा विभाग‘‘ से राज्य सरकार द्वारा उस पदाभिधान से नियुक्त अधिकारी अभिप्रेत है,
(VII) ‘‘प्रपत्र‘‘ से इन नियमों से संलग्न प्रपत्र अभिप्रेत है,
(VIII) ‘‘कार्यालय प्रधान‘‘ से किसी पंचायत के मामले में सरपंच, किसी पंचायत समिति के मामले में विकास अधिकारी और किसी जिला परिषद् के मामले में मुख्य कार्यपालक अधिकारी अभिप्रेत है,
(IX) ‘‘भू–राजस्व‘‘ से भूमि या भूमि में किसी भी हित या भूमि के उपयोग के संबंध में किसी भी प्रकार से किसी भी मद्धे राज्य सरकार को प्रत्यक्षः संदेय वार्षिक मांग अभिप्रेत है और समनुदेशित भू–राजस्व उसके अन्तर्गत है,
(X) ‘‘बैठक‘‘ से संबंधित पंचायती राज संस्था या उसकी स्थायी समिति, यदि कोई हो, की बैठक अभिप्रेत है,
(XI) ‘‘सदस्य‘‘ से किसी पंचायती राज संस्था का कोई सदस्य अभिप्रेत है और कोई सरपंच उसके अन्तर्गत है,
(XII) ‘‘प्रस्ताव‘‘ से पंचायती राज संस्था या उसकी स्थायी समिति, यदि कोई हो, की बैठक में विचार के लिए किसी सदस्य द्वारा किया गया कोई प्रस्ताव अभिप्रेत है,
(XIII) ‘‘पंचायत‘‘, ‘‘पंचायत समिति‘‘ और ‘‘जिला परिषद्‘‘ से ग्रामीण क्षेत्रों के लिए इस अधिनियम के अधीन, क्रमश: किसी गांव, किसी खण्ड और जिले के स्तर पर स्थापित स्वायत्त शासन की संस्थाए अभिप्रेत है,
(XIV) ‘‘पंचायत निधि‘‘ से प्रत्येक पंचायती राज संस्था के लिए अधिनियम की धारा 64 के अधीन उसके नाम से गठित निधि अभिप्रेत हैं,
(XV) पटवारी से उस पदाभिधान से नियुक्त कोई पदधारी अभिप्रेत है,
(XVI) ‘‘अनुसूची‘‘ से इन नियमों से संलग्न कोई अनुसूची अभिप्रेत है,
(XVII) ‘‘सचिव‘‘, ‘‘विकास अधिकारी‘‘ या ‘‘मुख्य कार्यपालक अधिकारी‘‘ से क्रमश: किसी पंचायत, पंचायत समिति या, यथास्थिति, जिला परिषद् के लिए राज्य सरकार द्वारा या ऐसे प्राधिकारी द्वारा, जिसे इन निमित्त सरकार द्वारा प्राधिकृत किया जाये, ऐसे पदाभिधान से नियुक्त अधिकारी अभिप्रेत है,
(XVIII) ‘‘धारा‘‘ से अधिनियम की कोई धारा अभिप्रेत है,
(XIX) ‘‘तहसीलदार‘‘ से राजस्थान भू–राजस्व अधिनियम, 1956 (1956 का अधिनियम सं. 15) के उपबंधों के अधीन उस पदाभिधान से नियुक्त अधिकारी अभिप्रेत है,
(XX) ‘‘कोषागार‘‘ के अन्तर्गत उप कोषागार होगा और जहां कोई पंचायत अपनी निधियां किसी डाकघर या किसी राष्ट्रीयकृत बैंक/अनुसूचित बैंक/ग्रामीण विकास बैंक की किसी शाखा में रखे वहॉं उसके अन्तर्गत ऐसा डाकघर या बैंक की शाखा भी होगी,
(XXI) ‘‘वर्ष‘‘ से 1 अप्रेल से शुरू होने वाला और अगली 31 मार्च को समाप्त होने वाला वित्तीय वर्ष अभिप्रेत है।
(2) इन नियमों में प्रयुक्त किये गये किन्तु परिभाषित नहीं किये गये समस्त शब्दों और अभिव्यक्तियों का वही अर्थ हैं जो अधिनियम में क्रमशः उन्हें दिये गये हैं।
ग्राम सभा और सतर्कता समिति
3. ग्राम सभा और उसकी बैठकें – किसी पंचायत का सरपंच या उसकी अनुपस्थिति में उप सरपंच अधिनियम की धारा 7 में वर्णित कृत्यों का पालन करने के लिए प्रति वर्ष कम से कम दो ग्राम सभाएं बुलायेगा।
4. बैठक का स्थान – (I) ग्राम सभा की बैठक उस गांव में होगी जिसमें पंचायत का कार्यालय स्थित है। वह गांव में पंचायत भवन या किसी अन्य सुविधाजनक सार्वजनिक स्थान पर होगी। यह किसी भी प्राइवेट मकान या स्थान पर नहीं होगी।
(II) ऐसे मामले में, जिसमें पंचायत सर्किल के किसी भी अन्य गांव की जनसंख्या 1000 से अधिक है, सरपंच या उसकी अनुपस्थिति में उप सरपंच दो या अधिक समूहों में ग्राम सभा बुला सकेगा। ऐसी ग्राम सभा अधिनियम की धारा 7 के अनुसार पंचायत मुख्यालय पर आयोजित ग्राम सभा के अतिरिक्त हो सकेगी, किन्तु पंचायत मुख्यालय पर ग्राम सभा में किये गये विनिश्चयों के उल्लंघन में कोई विनिश्चय कार्यान्वित नहीं किया जायेगा।
5. बैठक के नोटिस का प्रकाशन – (1) ग्राम सभा की बैठक की तारीख और समय का नोटिस, उसमें संव्यवहार किये जाने वाले कारबार का विवरण देते हुए बैठक के दिन से कम से कम 15 दिन पूर्व, –
(I) पंचायत सर्किल के प्रत्येक गांव में एक या अधिक सहजदृश्य स्थान पर उसे चस्पा करके,
(II) पंचायत सर्किल के प्रत्येक गांव में डोंडी पिटवाकर या किसी ध्वनि विस्तारक यंत्र से ऐसी बैठक की घोषणा करके, प्रकाशित किया जायेगा:
परन्तु विशेष या आपात बैठकों या विशेष प्रयोजनों के लिए साधारण बैठकें लघुतर कालावधि का नोटिस देकर बुलायी जा सकेंगी किन्तु किसी भी दशा में ऐसी कालावधि 3 दिन से कम की नहीं होगी।
(2) नोटिस की एक-एक प्रति विधान सभा सदस्य, प्रधान और पंचायत समिति, और जिला परिषद् के निर्वाचित सदस्य के साथ-साथ विकास अधिकारी को भी भेजी जायेगी।
(3) पंचायत समिति संबंधित ग्राम सभा बैठक के लिए विहित कालावधि के कम से कम एक मास पूर्व ऐसी बैठकें आयोजित करने के लिए सुविधाजनक तारीखों का सुझाव अग्रिम तौर पर दे सकेगी जिससे ग्राम सभा में प्रसार अधिकारियों की उपस्थिति सुनिश्चित की जा सके। तद्नुसार सरपंच या उसकी अनुपस्थिति में उप सरपंच सामान्यतः ग्राम सभा बैठक का नोटिस जारी करेगा।
(4) ग्राम सभा का नोटिस तहसील स्तर के समस्त कृत्यकारियों जैसे तहसीलदार, चिकित्सा प्रभारी, प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र, सहायक अभियंता, जन स्वास्थ्य अभियांत्रिकी विभाग, सहायक अभियंता, राज्य विद्युत बोर्ड, सहायक अभियंता, सिंचाई, पशु चिकित्सालय इत्यादि को भी उन्हें उसमें भाग लेने का अनुरोध करते हुए भेजा जायेगा।
(5) विकास अधिकारी एक प्रसार अधिकारी को प्रतिनियुक्त करेगा जो ऐसी बैठक के लिए नियत तारीख से एक दिन पूर्व पंचायत मुख्यालय पहुंचेगा। वह यह सुनिश्चित करेगा कि ऐसी बैठक के लिए समुचित प्रचार किया गया है और वयस्क निवासियों के दशांश की विहित गणपूर्ति उपस्थित है। तद्नुसार सरपंच या उसकी अनुपस्थिति में उप सरपंच प्रचार के लिए सम्यक इंतजाम करेगा।
6. गणपूर्ति के अभाव में स्थगन – (I) यदि अपेक्षित गणपूर्ति नहीं होती है और बैठक गणपूर्ति के अभाव में स्थगित की जाती है तो वह किसी भी दशा में उसी तारीख को आयेाजित नहीं होगी। जब ग्राम सभा की स्थगित बैठक नियत की जाये, तब तक कम से कम एक सप्ताह की कालावधि बीत जानी चाहिए।
(II) ऊपर नियम 5 में यथा-उपबंधित समुचित प्रचार लोगों की अधिक से अधिक भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए पुनः किया जायेगा।
7. ग्राम सभा बैठकों के लिए कार्यसूची – वित्तीय वर्ष के प्रथम त्रिमास अर्थात् अप्रेल से जून में आयोजित की जाने वाली ग्राम सभा बैठक के लिए धारा 3 की उप-धारा (3) और वित्तीय वर्ष के अंतिम त्रिमास अर्थात् जनवरी से मार्च में आयोजित की जाने वाली ग्राम सभा बैठक के लिए धारा 3 की उप-धारा (4) में वर्णित मदों के सिवाय नीचे वर्णित मदें भी ग्राम सभा बैठकों की कार्यसूची में सम्मिलित की जायेगी –
(I) गत ग्राम सभा बैठक का अनुपालन,
(II) मृत कृषकों के नामांतरणों का अनुप्रमाणन,
(III) आवास स्थलों के आवंटन के लिए परिवारों की पहचान,
(IV) एकीकृत ग्रामीण विकास कार्यक्रम के अन्तर्गत ऋण और सहायता के लिए गरीबी रेखा के नीचे के परिवार,
(V) विकास संकर्मो की प्राप्तियां, व्यय और भौतिक प्रगति,
(VI) आगामी वर्ष में प्रस्तावित योजना संकर्मो की प्राथमिकताओं का नियतन,
(VII) ग्रामीण स्वच्छता कार्यक्रम, पेयजल और जल-निकास,
(VIII) स्वास्थ्य कार्यक्रम- टीकाकरण और परिवार कल्याण,
(IX) स्वयं की आय बढाने की रीतियां,
(X) आबादी भूमि और चरागाह का विकास,
(XI) संपरीक्षा (आडिट) की आपत्तियां और उनका उत्तर,
(XII) सतर्कता समिति की रिपोर्ट पर टिप्पणियां,
(XIII) सतर्कता समिति का पुनर्गठन (केवल प्रथम त्रिमास बैठक)
8. कार्यवाहियों का अभिलेखन – (1) विकास अधिकारी या उसकी ओर से ग्राम सभा में उपस्थित होने वाले प्रसार अधिकारी का कर्त्तव्य यह सुनिश्चित करने का होगा कि सचिव बैठक की कार्यवाहियां उसी तारीख को सही-सही तौर पर अभिलिखित करता है।
(2) वह यह भी सुनिश्चित करेगा कि अधिनियम की धारा 8 और उपर्युक्त नियम 7 में विहित समस्त मदों पर ग्राम सभा में पूर्ण रूप से चर्चा की जाती है और तद्नुसार कार्यवाहियां अभिलिखित की जाती हैं। विकास अधिकारी या बैठक में उपस्थित होने वाला प्रसार अधिकारी प्रस्थान से पूर्व कार्यवाहियों पर हस्ताक्षर करेगा।
(3) ऐसी कार्यवाहियों की प्रतियां 15 दिन के भीतर-भीतर पंचायत समिति को अग्रेषित की जायेंगी और यदि ऐसी बैठक जिला परिषद् या राज्य सरकार की अपेक्षा से आयोजित की जाये तो एक प्रति ऐसे अधिकारी को भी भेजी जायेगी।
9. विनिश्चयों का अनुपालन – (1ं) पंचायत के साथ-साथ पंचायत समिति का ग्राम सभा बैठकों में लिये गये विनिश्चयों के अनुपालन को सुनिश्चित करने का कर्तव्य होगा।
(2) अनुपालन रिपोर्ट आगामी ग्राम सभा बैठक के समक्ष रखी जायेगी।
(3) संबंधित पंचायत समिति का विकास अधिकारी महत्वपूर्ण विनिश्चयों को उल्लेखित करते हुए पंचायतवार नियंत्रण रजिस्टर भी रखेगा।
(4) पंचायत प्रसार अधिकारी और विकास अधिकारी पंचायतों के अपने निरीक्षण के दौरान, ऐसे अनुपालन की प्रगति का पुनर्विलोकन करेगा।
10. ग्राम सभा बैठकों को मॉनीटर करना – (1) प्रतिवर्ष अप्रेल और जनवरी मास के दौरान विकास अधिकारी पंचायत समिति की बैठकों में ग्राम सभा बैठकों की प्रगति रखेगा। वह ऐसी रिपोर्ट आगे आवश्यक कार्यवाही करने के लिए मुख्य कार्यपालक अधिकारी को भी अग्रेषित करेगा।
(2) धारा 3 में यथा-उल्लिखित ग्राम सभा की विहित बैठक आयोजित करने में किसी भी सरपंच, यथास्थिति, उप सरपंच के विफल होने की दशा में पंचायत समिति मामले की रिपोर्ट अधिनियम की धारा 38 के अधीन कार्यवाही के लिए राज्य सरकार को करेगी।
11. सतर्कता समितियों को बनाया जाना – (1) सरपंच कार्यसूची में एक मद वित्तीय वर्ष के प्रथम त्रिमास में आयोजित होने वाली ग्राम सभा बैठक में सतर्कता समिति/समितियों गठन के लिए रखेगा।
(2) सतर्कता समिति पंचायत के साथ निकट समन्वय रखते हुए कार्य करेगी।
(3) पंचायत का सचिव सतर्कता समिति बैठकों के लिए सचिव के रूप में भी कार्य करेगा और उसकी कार्यवाहियां अभिलिखित करेगा।
( टिप्पणी – दिनांक 6.1.2000 से संशोधन कर पंचायत स्तर की सतर्कता समिति समाप्त कर दी गई है। धारा 56 में संशोधन कर पंचायत समिति एवं ज़िला परिषद स्तर की सतर्कता समितियां गठित कर दी गई है। )
12. सदस्यता – (1) सतर्कता समिति में ऐसे सात सदस्य होंगे जो मान्यता प्राप्त समुदाय के नेता हों और साधारणतः निर्वाचन में भाग नहीं लेते हों।
(2) ऐसे पंचायत क्षेत्र में निवास करने वाला पंचायत समिति या जिला परिषद् का सदस्य भी ग्राम सभा के अनुमोदन से ऐसी सतर्कता समिति में सदस्य हो सकेगा।
(3) सदस्य विकास संकर्मो, आबादी, भूमि, चरागाह पर अतिचार, स्वच्छता और पेयजल इत्यादि के पर्यवेक्षण के लिए समूह बनाने का विनिश्चय कर सकेंगे।
(4) सदस्य बैठकें आयोजित करने की तारीखें विनिश्चित करने के लिए और बैठकों की अध्यक्षता के लिए एक व्यक्ति को अध्यक्ष के रूप में निर्वाचित करेंगे।
13. सतर्कता समिति की भूमिका – (1) सतर्कता समिति की भूमिका केवल त्रुटियां खोजना और पंचायत की आलोचना करना नहीं है।
(2) इसकी भूमिका यद्यपि पर्यवेक्षी है फिर भी वह रचनात्मक, सहयोगी और सलाहकारी होगी। मुख्य उद्देश्य विकास क्रिया-कलापों का त्वरित कार्यान्वयन, संकर्मो की गुणवत्ता (क्वालिटी) बनाये रखना, निधियों का दुरुपयोग रोकना और जनता से प्राप्त शिकायतों का वस्तुनिष्ठ आंकलन है।
14. बैठकें – (1) सतर्कता समिति की प्रथम बैठक समिति के गठन के ठीक पश्चात्, सचिव द्वारा सदस्यों के लिए सुविधाजनक, किसी तारीख को नियत की जायेगी।
(2) बैठक के लिए पश्चात्वर्ती तारीखें सतर्कता समिति के अध्यक्ष द्वारा नियत की जायेंगी। बैठक का नोटिस सचिव द्वारा तामील करवाया जायेगा।
(3) सर्तकता समिति एक मास में कम से कम एक बार बैठक करेगी।
(4) पंचायत का सचिव समस्त ऐसी बैठकों में सदैव उपस्थित होगा।
15. कार्यसूची की मदें – सतर्कता समिति निम्नलिखित मदों का पुनर्विलोकन करेगी-
(I) जनता से विनिर्दिष्ट बिंदुओं पर शिकायतें,
(II) निष्पादनाधीन सन्निर्माण संकर्मो की गुणवत्ता (क्वालिटी),
(III) पंचायत निधि का उपयोग,
(IV) आबादी भूमि और चरागाह पर अतिचार,
(V) संकर्मो के लिए मंजूरी और व्यय उपदर्शित करने वाला सूचना-पट्ट,
(VI) अन्य सुसंगत विषय जैसे स्वच्छता, जल-निकास, पेयजल, स्वास्थ्य, टीकाकरण इत्यादि।
16.सतर्कता समिति की रिपोर्ट ग्राम सभा की कार्यवाहियों का एक भाग होना – सतर्कता समिति की रिपोर्ट पर ग्राम सभा में चर्चा कराना सरपंच या उसकी अनुपस्थिति में उप सरपंच का कर्तव्य होगा। वह ग्राम सभा की कार्यवाहियों का एक भाग होंगी।
17. सरपंच/पंचों की टिप्पणियां – सरपंच/उप सरपंच या पंच या, यथास्थिति, सचिव अपनी टिप्पणियां ग्राम सभा के लिए रखेगा। ऐसी टिप्पणियां ग्राम सभा की कार्यवाहियों में सम्मिलित की जायेंगी।
18. सतर्कता समिति का पुनर्गठन – ग्राम सभा उसी समिति को बनाये रख सकेगी या वित्तीय वर्ष के प्रथम त्रिमास में होने वाली अपनी बैठक में प्रतिवर्ष उसे पुनर्गठित कर सकेगी।
अध्याय 3
19. कार्यभार का अंतरण – (1) जब अधिनियम की धारा 25 (1) के अधीन कार्यभार सौंपा जाना अपेक्षित हो तब ऐसा सदस्य, अध्यक्ष या उपाध्यक्ष, वस्तुतः अपने भौतिक कब्जे के अधीन रजिस्टरों और वस्तुओं की सूची तैयार करवायेगा और उन्हें धारा 25 (1) में उल्लिखित व्यक्ति को सौंप देगा। पंचायत के मामले में सरपंच पंचायत की बैठकों की कार्यवृत्त पुस्तक अपने उत्तरवर्ती को सौंप देगा और यह भी सत्यापित करेगा कि रोकड बही, पास-बुक, चैक बुक, नगद अतिशेष, पट्टा रजिस्टर, ग्राम सभा बैठक रजिस्टर पंचायत कार्यालय में उपलब्ध है। यद्यपि समस्त ऐसे अभिलेख धारा 78 (2) के अनुसार सचिव की अभिरक्षा में रहते हैं किन्तु सरपंच भी ऐसे अभिलेख की सुरक्षित अभिरक्षा के लिए उत्तरदायी है।
(2) कार्यभार सौंपने वाले और लेने वाले दोनों ही व्यक्ति कार्यभार के अंतरण के प्रमाणस्वरूप ऐसी सूची के नीचे अपने-अपने हस्ताक्षर करेंगे और तारीख लगायेंगे।
(3) कार्यभार सूची चार प्रतियों में तैयार की जायेगी। एक प्रति पंचायत समिति को भेजी जायेगी, एक कार्यालय प्रति के रूप में प्रतिधारित की जानी है और दो सौंपने वाले और लेने वाले व्यक्तियों को दी जायेगी।
20. कार्यभार सौंपने में विफल होने की दशा में मुख्य कार्यपालक अधिकारी की सहायता का लिया जाना – धारा 25 (1) के अधीन किसी भी व्यक्ति के कार्यभार सौंपने में विफल होने पर अधिनियम की धारा 88(2) के अधीन कार्यवाही करने के लिए मुख्य कार्यपालक अधिकारी को लिखित निवेदन किया जा सकेगा और मुख्य कार्यपालक अधिकारी नव निर्वाचित व्यक्ति को कार्यभार दिलवायेगा।
21. अविश्वास प्रस्ताव का नोटिस – (1) धारा 37 के अधीन किसी पंचायती राज संस्था के अध्यक्ष या उपाध्यक्ष में विश्वास का अभाव अभिव्यक्त करने वाला प्रस्ताव करने के आशय का लिखित नोटिस प्रपत्र 1 में होगा और *सक्षम प्राधिकारी को परिदत्त किया जायेगा।
(2) बैठक और उसके लिए नियत तारीख और समय का नोटिस सक्षम प्राधिकारी द्वारा बैठक की तारीख से कम से कम 15 पूर्ण दिन पूर्व डाक में डाले जाने के प्रमाण-पत्र के अधीन डाक से, प्रत्यक्षतः निर्वाचित प्रत्येक पंच/सदस्य को उसके सामान्य निवास स्थान पर प्रपत्र 2 में भेजा जायेगा। ऐसे नोटिस की प्रति ऐसी पंचायती राज संस्था के सूचना-पट्ट पर भी लगायी जायेगी:
परन्तु ऐसे किसी स्थान की दशा में जहां कोई डाकघर नहीं हो या जहां नोटिस की तामील शीघ्रता से नहीं की जा सकती हो ऐसा नोटिस संबंधित तहसीलदार के माध्यम से तामील किया जायेगा।
22. जाँच की प्रक्रिया – (1) धारा 38 की उप-धारा (1) के अधीन कोई भी कार्यवाही करने के पूर्व राज्य सरकार स्वप्रेरणा से या किसी भी शिकायत पर मुख्य कार्यपालक अधिकारी से प्रारम्भिक जाँंच करवा सकेगी और उससे राज्य सरकार को एक मास के भीतर-भीतर रिपोर्ट भेजने की अपेक्षा कर सकेगी।
(2) यदि, पूर्वोक्तानुसार प्राप्त रिपोर्ट पर विचार करने के पश्चात या अन्यथा राज्य सरकार की यह राय हो कि धारा 38 की उप-धारा (1) के अधीन कार्यवाही आवश्यक है तो राज्य सरकार निश्चित आरोप विरचित करेगी और उनकी संसूचना ऐसे ब्यौरों के साथ जो आवश्यक समझे जायें, पंचायती राज संस्था के अध्यक्ष, उपाध्यक्ष या सदस्य को लिखित में देगी। उससे एक मास के भीतर-भीतर अभिकथनों को स्वीकार करते हुए प्रतिवाद, यदि कोई हो, करके इन्कार करते हुए एक लिखित कथन प्रस्तुत करने की और यदि वह चाहे तो व्यक्तिशः सुने जाने की अपेक्षा की जायेगी।
(3) राज्य सरकार विहित कालावधि की समाप्ति और ऐसे लिखित कथन पर विचार करने के पश्चात अधिकारी नियुक्त कर सकेगी और राज्य सरकार की ओर से जाँच अधिकारी के समक्ष मामला प्रस्तुत करने के लिए किसी व्यक्ति को नामनिर्दिष्ट भी कर सकेगी।
(4) जाँच अधिकारी ऐसे दस्तावेजी साक्ष्य पर विचार करेगा और ऐसा मौखिक साक्ष्य लेगा जो आरोपों के संबंध में सुसंगत या तात्विक हो। साक्षियों की प्रतिपरीक्षा (जिरह) का अवसर विरोधी पक्ष को दिया जायेगा।
(5) जाँच अधिकारी जाँंच की समाप्ति पर साबित या असाबित या अंशतः साबित के रूप में प्रत्येक आरोप पर कारणों सहित अपने निष्कर्ष अभिलिखित करते हुए रिपोर्ट तैयार करेगा और उसे अंतिम विनिश्चय के लिए राज्य सरकार को प्रस्तुत करेगा।
(6) राजस्थान अनुशासनिक कार्यवाही (साक्षियों को समन किया जानाए दस्तावेजों का पेश किया जाना) अधिनियम, 1959 (1959 का अधिनियम, सं. 28) के उपबंध और तद्धीन बनाये गये नियम इन नियमों के अधीन पंचायती राज संस्था के अध्यक्ष, उपाध्यक्ष या, यथास्थिति, सदस्य के विरूद्ध की जाने वाली जाँच पर यथावश्यक परिवर्तनों सहित लागू होंगे।
(7) राज्य सरकार जाँच अधिकारी के निष्कर्षो पर विचार करेगी और उसे सुने जाने का अवसर देने के पश्चात ऐसे अध्यक्ष, उपाध्यक्ष या सदस्य को या तो माफ कर सकेगी या पद से हटा सकेगी या समुचित आदेश पारित कर सकेगी। हटाये जाने की दशा में, वह राजपत्र में भी प्रकाशित किया जायेगा: परन्तु यदि ऐसी पंचायती राज संस्था के निर्वाचन की अवधि पहले ही समाप्त हो गयी हो तो उनके विरुद्ध निष्कर्ष अभिलिखित किये जायेंगे।
23. निरर्हता की दशा में हटाये जाने के लिए प्रक्रिया – (1) जब कभी पंच/सरपंच के मामले में मुख्य कार्यपालक अधिकारी को और प्रधान/उप-प्रधान, प्रमुख/ उप प्रमुख या किसी पंचायती राज संस्था के सदस्य के मामले में, जिसे इस रूप में सम्यक् रूप में निर्वाचित घोषित किया गया है या जिसे अधिनियम के किसी भी उपबंध के अधीन इस रूप में नियुक्त किया गया है, राज्य सरकार को यह अभ्यावेदन किया जाये या अन्यथा उसके नोटिस में यह लाया जाये कि वह उस समय जब वह इस प्रकार निर्वाचित या नियुक्त किया गया था, ऐसे निर्वाचन या नियुक्ति के लिए अर्हित नहीं था या निरर्हित था या तत्पश्चात ऐसे सदस्य के रूप में बने रहने के लिए निरर्हित हो गया है तब सक्षम प्राधिकारी उसे किये गये अभ्यावेदन या अन्यथा उसके नोटिस में लाये गये विषय की भागरूप अभिकथित निरर्हता या निरर्हताओं को स्पष्टतः और लेखबद्ध करेगा और ऐसे सदस्य को तत्काल नोटिस जारी करेगा और –
(I) उसके विरुद्ध अभिकथनों का सार तैयार करेगा,
(II) नोटिस के जारी होने की तारीख के कम से कम पन्द्रह दिन पश्चात की कोई तारीख नियत करेगा जिसकी जाँच की जायेगी,
(III) उससे स्वीय उपस्थिति के द्वारा या लिखित में यह कारण (हेतुक) दर्शित करने की अपेक्षा करेगा कि उसके अर्हित नहीं होने या निरर्हित होने के अभिकथित आधार पर उसका स्थान राज्य सरकार द्वारा रिक्त या रिक्त हुआ घोषित क्यों नहीं किया जाना चाहिए,
(IV) उससे अभिकथन का प्रत्याख्यान करने में ऐसा दस्तावेजी या अन्य साक्ष्य जो उसके कब्जे में हो, पेश करने की अपेक्षा करेगा, और
(V) यदि वह ऐसी वांछा करे तो उसे नोटिस द्वारा नियत तारीख को वैयक्तिक रूप से उपस्थित होने के लिए कहेगा और नोटिस की प्रति इत्तिला देने वाले, यदि कोई हो, को भी भेजी जायेगी।
(2) नोटिस द्वारा नियत तारीख को मुख्य कार्यपालक अधिकारी या, यथास्थिति, राज्य सरकार, इत्तिला देने वाले, यदि कोई हो, के साथ-साथ अपचारी सदस्य, यदि वह उसके समक्ष उपसंजात हो और वैयक्तिक सुनवाई के लिए निवेदन करे, को सुनेगी, अभिकथन या अभिकथनों को साबित या नासाबित करने में उनके द्वारा पेश किये गये दस्तावेज और अन्य साक्ष्य पर विचार करेगी, ऐसी और जाँंच करेगी जो वह आवश्यक समझे, अभिकथित निरर्हता या निरर्हताओं के बारे में निष्कर्ष अभिलिखित करेगी और या तो कार्यवाहियों को समाप्त करने का आदेश करेगी या ऐसे सदस्य के स्थान को रिक्त हुआ घोषित करेगी या ऐसा अन्य आदेश करेगी जो अधिनियम की धारा 39 के अधीन मामले की परिस्थितियों में उचित हो।
24. बैठकों से अनुपस्थित रहने के कारण रिक्ति – (1) यदि कोई सदस्य पंचायती राज संस्था की तीन क्रमवर्ती बैठकों से अनुपस्थित रहा है तो मामला पंचायती राज संस्था के समक्ष रखा जायेगा और ऐसी पंचायती राज संस्था, यदि उसका यह समाधान हो जाता है कि वह सदस्य लिखित में सूचना दिये बिना तीन क्रमवर्ती बैठको से अनुपस्थित रहता है, इस आशय का कोई संकल्प पारित करेगी कि अनुपस्थित सदस्य तीन क्रमवर्ती बैठकों में अनुपस्थित रहा है और बैठक के अभिलेख और ऐसे किन्हीं भी अन्य कागजों, जो सुसंगत हो, के साथ संकल्प की एक प्रति पंच/सरपंच के मामले में मुख्य कार्यपालक अधिकारी को और अन्यों के मामले में राज्य सरकार को अपनी सिफारिश सहित अग्रेषित करेगी।
(2) खण्ड (1) में निर्दिष्ट अभिलेख की प्राप्ति पर मुख्य कार्यपालक अधिकारी या, यथास्थिति, राज्य सरकार अभिलेख का परिशीलन करने और पंचायती राज संस्था की सिफारिश पर विचार करने पर तथा ऐसी और जाँंच करने के पश्चात जो वह आवश्यक समझे और अनुपस्थित सदस्य को सुने जाने का अवसर देने के पश्चात ऐसे स्थान को रिक्त हुआ घोषित कर सकेगी।
(3) अंतिम आदेशों की प्रतियां संबंधित जिला परिषद् और पंचायती राज संस्था को भेजी जायेंगी।
(4) राज्य सरकार मुख्य कार्यपालक अधिकारी द्वारा पारित किसी आदेश की सत्यता, वैधता और औचित्य के बारे में स्वयं का समाधन करने के प्रयोजन के लिए संबंधित अभिलेख की परीक्षा कर सकेगी और ऐसे आदेश को पुष्ट, फेरफारित या विखण्डित कर सकेगी।
25. शपथ न लेने के कारण स्थान की रिक्ति – (1) यदि किसी पंचायती राज संस्था के किसी सदस्य के बारे में पंच सरपंच के मामले में मुख्य कार्यपालक अधिकारी और अन्य मामलों में राज्य सरकार यह पाये कि ऐसे सदस्य ने धारा 23 के अधीन अधिसूचना की तारीख से तीन मास के भीतर-भीतर विहित शपथ नहीं ली या प्रतिज्ञान नहीं किया है तो वह राजस्थान पंचायती राज (निर्वाचन) नियम, 1994 के नियम 76 के उप-नियम (2) में उल्लेखित संबंधित अधिकारियों से मामले की आवश्यक सूचना इस प्रकार मंगायेगा कि उसकी अध्यापेक्षा की तारीख के एक पखवाडे के भीतर-भीतर वह उसके पास पहुँच जाये।
(2) यदि ऐसी सूचना से यह पाया जाये कि ऐसे सदस्य ने उस समय तक अपेक्षित शपथ नहीं ली है या प्रतिज्ञान नहीं किया है तो पंच सरपंच के मामले में मुख्य कार्यपालक अधिकारी और प्रधान/उप प्रधान, प्रमुख/उप प्रमुख या सदस्य के मामले में राज्य सरकार ऐसी और जाँंच के पश्चात, जो वह आवश्यक समझे और संबंधित सदस्य को सुने जाने का अवसर देने के पश्चात ऐसे स्थान को रिक्त घोषित कर सकेगी या ऐसा अन्य आदेश कर सकेगी, जो वह मामले की परिस्थितियों में उचित समझे।
26. स्थानों या पदों की रिक्ति का प्रकाशित किया जाना – अध्यक्ष, उपाध्यक्ष या सदस्य, जिसका स्थान अधिनियम की धारा 39 या 41 के अधीन रिक्त हो गया है, का नाम और पदाभिधान मुख्य कार्यपालक अधिकारी द्वारा अपनी ओर से या, यथास्थिति, राज्य सरकार की ओर से संबंधित पंचायती राज संस्था के सूचना-पट्ट पर प्रकाशित किया जायेगा। उसकी रिपोर्ट राज्य सरकार और राज्य निर्वाचन आयेाग को भी की जायेगी।
अध्याय 4
27. सदस्यों इत्यादि को भत्तों का संदाय – समस्त भत्ते संबंधित पंचायती राज संस्था की निजी आय में से संदत्त किये जायेंगे।
28. भत्तों की दरें – पंचायती राज संस्था के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष को सम्मिलित करते हुए ऐसी संस्था के सदस्य को मानदेय और बैठक भत्ता ऐसी दरों पर देय होगा जो सरकार द्वारा समय-समय पर निर्धारित की जाये।
मानदेय दरें
राजस्थान पंचायतीराज नियम 1996 के नियम 27 से 30 के अनुसार प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करते हुए पूर्व में जारी अधिसूचना क्रमांकः एफ.951 (19) (41) परावि/ लेखा/ नि.आ./ जिला परिषद/ सुविधा/ 7204 दिनांक 11.10.2017 द्वारा पंचायतीराज संस्थाओं के प्रतिनिधियों को देय-मानदेय एवं पूर्व में जारी अधिसूचना क्रमांकः एफ.951 (19) (41) परावि/ लेखा/ नि.आ./ बजट घोषणा / 2012-13/ 2494 दिनांक 01.04.2013 द्वारा पंचायतीराज संस्थाओं के प्रतिनिधियों को देय-मानदेय की दरों में माननीय मुख्यमंत्री की बजट घोषणा वर्ष 2022-23 के अनुसार निम्न संशोधन किया जाता है-
मानदेय दरें
जन प्रतिनिधि
का पद नाम वर्तमान में देय मानदेय दर रू. प्रतिमाह संशोधित मानदेय दर रू. प्रतिमाह
1 2 3
जिला प्रमुख, जिला परिषद 10000 12000
प्रधान, पंचायत समिति 7000 8400
सरपंच, ग्राम पंचायत 4000 4800
बैठकों भत्तों कीे दरें‘‘
जनप्रतिनिधि का पद नाम वर्तमान देय राशि संशोधित बैठक भत्ता की दर रू. प्रतिमाह
1 2 3
सदस्य, जिला परिषद 500 600
सदस्य, पंचायत समिति 350 420
सदस्य, ग्राम पंचायत 200 240
जनप्रतिनिधियों को देय मानदय एवं बैठक भत्तों का भुगतान राज्य वित्त आयोग के तहत मिलने वाले राशि से किया जायेगा
29. दैनिक भत्ता – किसी पंचायती राज संस्था के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष को सम्मिलित करते हुए ऐसी संस्था का सदस्य जब कभी वह किसी बैठक या पदीय कार्य में ऐसी पंचायती राज संस्था जिसका कि वह सदस्य या अध्यक्ष या उपाध्यक्ष हो, उसके क्षेत्र के बाहर भाग लें, ऐसी दरों पर दैनिक भत्ते का हकदार होगा, जो सरकार द्वारा समय-समय पर निर्धारित की जाये।
1(1) पंचायत समिति/ जिला परिषद का सदस्य मय उनके अध्यक्ष या उपाध्यक्ष निम्न दरों पर दैनिक भत्ता प्राप्त करने के हकदार होंगे जब-जब वे बैठक में भाग लेेंवे अथवा अन्य शासकीय कार्य में हिस्सा लें-
परन्तु जब वे अपनी पंचायत समिति/ जिला परिषद क्षेत्र से बाहर जायेंगे-
(अ) ऐसे दिन के लिए कोई दैनिक भत्ता देय नहीं होगा जब उस स्थान पर ठहराव आठ घण्टे से कम हो। यदि यात्रा पंचायत समिति / जिला परिषद के वाहन से की जाये तो आठ घंटे से अधिक समय की यात्रा हेतु पूरी दर पर दैनिक भत्ता और 4 घण्टे से अधिक समय की यात्रा हेतु आधी दर पर दैनिक भत्ता प्राप्त करने का हकदार होगा।
(ब) प्रधान/प्रमुख को पंचायत समिति/ जिला परिषद मुख्यालय पर तथा उसके सामान्य आवास के स्थान पर कोई दैनिक भत्ता देय नहीं होगा।
(स) पंच/ सरपंच को पंचायत सर्किल के अन्दर कोई दैनिक भत्ता देय नहीं होगा।
क्र.सं. पद राजस्थान में जयपुर के जयपुर एवं अन्य राज्यों की दिल्ली, मुम्बई, चैन्नई, अलावा एवं राजस्थान राजधानियों के लिए (रू.) कलकत्ता एवं अन्य महानगरों के बाहर (रू.) के लिए(रू.) के लिए(रू.)
1. सरपंच 32 40 55
2. उप-सरपंच 32 40 55
3. प्रधान 65 80 100
4. उप-प्रधान 65 70 100
5. सदस्य, पंचायत समिति 55 60 80
6. प्रमुख 75 85 106
7. उप-प्रमुख 75 85 106
8. सदस्य, जिला परिषद 70 80 85
(2) राज्य सरकार या जिला परिषद द्वारा आयोजित प्रशिक्षण, या विमर्श गोष्ठी या सम्मेलन में उपस्थित होने के लिए भी दैनिक भत्ता देय होगा परन्तु यदि निशुल्क भोजन एवं आवास व्यवस्था हो तो दैनिक भत्ता एक चौथाई दर पर ही होगा।
[आदेश एफ 4(1) एल, एण्ड, जे. /आर डी.पी./95/3478 दिनांक 3.10.95]
30. यात्रा भत्ता – यदि नियम 28 में यथा-उल्लिखित कोई भी व्यक्ति उस नियम में विनिर्दिष्ट किन्हीं भी प्रयोजनों के लिए कोई यात्रा करता है तो वह तद्धीन उसे अनुज्ञेय दैनिक भत्ते के अतिरिक्त निधियों में से दोनों ओर की यात्रा के लिए यात्रा भत्ता प्राप्त करने का हकदार भी होगा, जो सरकार द्वारा समय-समय पर निर्धारित की जावे।
31. भत्तों के दावे – (1) नियम 28 और 30 के अधीन अनुज्ञेय दैनिक और यात्रा भत्तों के लिए कोई दावा प्रपत्र सं.3 में लिखित में किया जायेगा।
(2) यात्रा और दैनिक भत्ते का दावा करने वाला कोई व्यक्ति इसके लिए अपने दावे पर निम्नलिखित प्रमाण-पत्र अभिलिखित करेगाः-
(क) प्रमाणित किया जाता है कि मुझे कोई निःशुल्क वाहन उपलब्ध नहीं करवाया गया था,
(ख) प्रमाणित किया जाता है कि दावाकृत यात्रा भत्ता नियमों के अनुसार है और उसमें दावाकृत रकम सही है,
(ग) प्रमाणित किया जाता है कि मैंने इस दावे के बारे में किसी भी स्रोत से पूर्व में कोई रकम दावाकृत प्राप्त नहीं की है,
(घ) प्रमाणित किया जाता है कि मैंने वास्तव में यात्रा की है।
32. यात्रा भत्ता बिलों पर प्रतिहस्ताक्षर – सदस्यों के यात्रा भत्ता बिल संबंधित पंचायत राज संस्था के अध्यक्षों द्वारा प्रतिहस्ताक्षरित किये जायेंगे। अध्यक्षों के यात्रा भत्ता बिलों पर प्रतिहस्ताक्षरों की आवश्यकता नहीं होगी।
ये भी पढ़ें
जन प्रतिनिधियों को देय मानदेय भत्ता अधिसूचना | 2494/ 04-01-2013 |
जन प्रतिनिधियों के मानदेय में वृद्धि के संबंध में अधिसूचना | 7204/ 10-10-2017 |
पंचायती राज संस्थाओं के अध्यक्षों और सदस्यों की शक्तियाँ, कृत्य और कर्त्तव्य
33. सरपंच के कर्तव्य और कृत्य – अधिनियम की धारा 3 के अनुसार ग्राम सभा बैठकें और धारा 45 में यथा-उपबंधित प्रत्येक पखवाडे पंचायत बैठकें आयोजित करने के अलावा सरपंच अधिनियम की धारा 32 में अधिकथित कृत्यों के अतिरिक्त निम्नलिखित कर्त्तव्यों का भी निर्वहन सुनिश्चित करने में सहायता करेगा:-
(1) नियमित कृत्य जैसे-
(क) स्वच्छता,
(ख) मार्ग में प्रकाश व्यवस्था,
(ग) सुरक्षित पेयजल,
(घ) जल-निकास,
(ड) सार्वजनिक वितरण प्रणाली,
(च) ग्रामीण सडकों का अनुरक्षण,
(छ) जन्म और मृत्यु रजिस्ट्रीकरण,
(ज) सरपंच बाढ, अग्नि, महामारी और सरकारी सम्पत्तियों, भवनों, पाइप लाइनों, हैण्डपम्पों, विद्युत लाइनों के नुकसान के बारे में आवश्यक कार्यवाही इत्यादि करने के लिए कलेक्टर/ विकास अधिकारी को सूचना देगा।
(2) प्रशासनिक कृत्य जैसेः-
(क) आबादी क्षेत्र का विकास,
(ख) चरागाहों में, बाड़े बंदी और नियंत्रित चराई के माध्यम से घास और वृक्षों का विकास,
(ग) आबादी और गोचर भूमियों में अप्राधिकृत अतिक्रमणों को रोकना,
(घ) जलाशयों, नालों, प्राकृतिक उपज, मृत पशुओं की खाल और चर्म, भूमि के अस्थाई उपयोग, भूमि इत्यादि के विक्रय से स्वयं के आय के अधिकतम स्रोत जुटाना।
(3) पंचायत के निवासियों के कल्याण को सुनिश्चित करने हेतु स्थानीय भौतिक संसाधनों का विकास एवं समुचित उपयोग करना।
(4) मानव एवं पशु स्वास्थ्य, पोषण एवं परिवार कल्याण कार्यक्रमों में सहायता करना।
(5) ग्रामीण स्वच्छता कार्यक्रम का संचालन।
(6) राष्ट्रीय और राज्य राजमार्गो पर सेवा सुविधाओं का विकास करना जिससे दुकानों, ढ़ाबों, एस.टी.डी. बूथ, पेट्रोल पम्प, मरम्मत और सर्विस केन्द्रों इत्यादि के लिए स्थलों के नीलाम के माध्यम से स्त्रोत जुटाये जा सके।
(7) सामुदायिक संकर्मो के लिए लोक अभिदाय जुटाने हेतु प्रयत्न करना।
(8) सम्पूर्ण साक्षरता, महिला शिक्षा हेतु विशेष प्रयास करना, मृत्यु-भोज रोकना, बाल विवाह रोकना, अस्पृष्यता एवं महिलाओं के विरुद्ध उत्पीड़न रोकना!
(9) सामाजिक सुरक्षा दावे दिलाने में सहायता करना।
(10) वृद्धों, विधवाओं और विकलांग व्यक्तियों के लिये पेंशन स्वीकृति में सहायता करना।
(11) पंचायत निधियों के दुरुपयोग को रोकना और रोकड़ बही में हस्ताक्षर करने के पूर्व प्रत्येक पंचायत बैठक में आय-व्यय ब्यौरे रखकर पंचायत के कृत्यकरण में पारदर्शिता लाना।
यदि सरपंच द्वारा आवंटित निधि का उपयेाग नहीं किया जावे तो ऐसी दशा में जिला कलेक्टर ऐसी निधि के उपयोग हेतु, इस उद्देश्य से एक समिति गठित करने के लिए प्राधिकृत होगा।
(12) संनिर्माण संकर्मो की क्वालिटी का संधारण ओर संकर्म के पूरा होने के एक मास के भीतर-भीतर समापन प्रमाण-पत्र प्राप्त करना।
(13) पंचायत शोध्यों की समय पर वसूली के लिए माँग नोटिस और कुर्की वारण्ट जारी करने की व्यवस्था करना और पंचों की समिति के माध्यम से सचिव की सहायता से समुचित निष्पादन सुनिश्चित करना।
(14) प्रतिवर्ष संपरीक्षा करवाने की व्यवस्था करना और अपने निर्वाचन की अवधि के पश्चात भी अपनी पदावधि के संपरीक्षा आक्षेपों का अनुपालन करना।
(15) मंजूर किये गये संकर्मो और खर्च की गई रकम का ब्यौरा पंचायत मुख्यालय के पट्ट के साथ-साथ संकर्म स्थानों पर प्रदर्शित करना।
(16) जनता के कल्याण के लिए ऐसे ही अन्य समस्त कृत्य करना जो आवश्यक प्रतीत हो।
34. पंचायत के स्त्रोत जुटाने का कर्तव्य – (1) कर राजस्व जुटाने के अतिरिक्त सरपंच अन्य, पंचों के परामर्श से दरों, फीसों, प्रभारों और शास्तियों में वृद्धि करके, हवेलियों और बड़े पक्के गृहों पर अभिहित मात्र कर, राष्ट्रीय और राज्यमार्गो पर के ढाबों, होटलों, ओटोमोबाइल सर्विस स्टेशनों और मरम्मत की दुकानों, पेट्रोल/ डीजल पम्पों पर कर/ फीस उद्गृहीत करके भी गैर-कर राजस्व में वृद्धि करेगा। स्वयं की आय के विद्यमान रूप के अतिरिक्त प्रतिवर्ष 5 प्रतिशत अधिक आय जुटाने का प्रयास किया जायेगा।
(2) इस हेतु पंचायत का प्रस्ताव पारित किया जायेगा।
35. प्रधान के कर्तव्य और कृत्य – अधिनियम की धारा 33 में प्रमाणित कर्तव्यों के अतिरिक्त प्रधान निम्नलिखित कृत्यों का भी निर्वहन सुनिश्चित करेगाः-
(1) पर्यवेक्षण कृत्यः-
(क) पंचायतों के कृत्याकरण का पुनर्विलोकन और मॉनिटरिंग करना,
(ख) नव निर्वाचित, विशेष रूप से महिला अनुसूचित जाति, अनुसूचित जन जाति सरपंचों और पंचों को प्रशिक्षण देना और उनका मार्गदर्शन करना,
(ग ) सरपंचों और पंचायत समिति और जिला परिषद् के सदस्यों में समन्वय,
(घ) सरपंचों की ऐसी बैठकें बुलाना जो आवश्यक हों!
(ङ) राजस्थान पंचायती राज अधिनियम, 1994 के उपबंधों का अनुपालन सुनिश्चित करने के लिए नियंत्रण रजिस्टर रखना,
(च) पंचायत समिति बैठकों और स्थानीय समितियों के विनिश्चयों के अनुपालन को नियंत्रण रजिस्टर के माध्यम से सुनिश्चित करना,
(छ) प्रतिवर्ष निर्वाचन ओर पुनर्गठन के तीन मास के भीतर-भीतर स्थायी समितियों के बनाये जाने को इस बात को ध्यान में रखते हुए सुनिश्चित करना कि किसी स्थाई समिति का कोई भी सदस्य कम से कम एक ऐसी स्थाई समिति में निर्वाचित हो गये हों,
(ज) कार्यस्थल एवं पंचायत मुख्यालय पर वास्तविक व्यय के दर्शाने वाले बोर्ड लगवाना।
(2) संधारण कृत्य-पेयजल, विद्युत, सिंचाई, सार्वजनिक वितरण प्रणाली, राजस्व भूमियों, मानव और पशु रोगों, फसल रोगों आदि से संबंधित स्थानीय समस्याओं की पहचान और संबंधित जिला स्तरीय अधिकारियों को चर्चा हेतु और सार्वजनिक शिकायतों को दूर करने के लिए अगली पंचायत समिति बैठक में बुलाना,
(3) विकास कृत्य-स्थानीय जनता की सुस्पष्ट आवश्यकता की पहचान करना तथा अपना गांव अपना काम योजना में जनता की भागीदारी के लिए स्थानीय जनता और स्वैच्छिक संगठनों को प्रोत्साहित करना,
(4) स्वयं के स्त्रोतों का जुटाया जाना- प्रधान अन्य सदस्यों के परामर्श से-
(क) अभियान के आधार पर शिक्षा उपकर के समय पर संग्रहण,
(ख) पंचायत समिति के स्वामित्व की दुकानों को नीलाम करना या उन्हें किराये देना,
(ग) पंचायत समिति के स्वामित्व के कृषि फार्मो का विकास,
(घ) हड्डी ठेकों इत्यादि में प्रतियोगी नीलामी बोलियों,
(ड़) पशु मेलों के उचित आयेाजन,
(च) तालाब तल खेती से आय और पंचायत समिति के प्रभाराधीन तालाबों के सिंचाई प्रभारों के संग्रहण
(छ) बेकार मदें और पुराने अभिलेखों आदि के निपटारें, के माध्यम से कर-राजस्व और गैर-कर राजस्व जुटाने के सभी प्रयास करेगा।
36. प्रमुख के कर्त्तव्य और कृत्य – अधिनियम की धारा 35 में प्रगणित कर्तव्यों के अतिरिक्त प्रमुख निम्नलिखित कर्तव्यों का भी निर्वहन सुनिश्चित करेगाः-
(1) योजना-स्थानीय आवश्यकताओं और स्त्रोतों के अनुसार प्रतिवर्ष दिसम्बर मास में पंचायत समितियों और नगरपालिकाओं की क्षेत्रीय योजनाओं को समेकित करने की व्यवस्था करना और सदस्यों तथा जिले के ग्रामीण क्षेत्रों के लिए कार्य करने वाले संबंधित विभागों के जिला स्तरीय अधिकारियों के परामर्श से सम्पूर्ण जिले के लिए अंतिम योजना तैयार करवाना जैसा कि अधिनियम की धारा 121 द्वारा अपेक्षित है,
(2) पर्यवेक्षण भूमिका-जिले के लिए पंचायतों के भारसाधक अधिकारी के रूप में मुख्य कार्यपालक अधिकारी के माध्यम से यह सुनिश्चित करना किः-
(क) पंचायतों की ग्राम सभाएं अधिनियम और नियमों के उपबंधों के अनुसार नियमित रूप में आयोजित की जाती है,
(ख) पंचायतों की बैठकें प्रत्येक पखवाडे़ आयोजित की जाती हैं और अधिनियम तथा नियमों के माध्यम से पंचायतों पर डाले गये कर्तव्यों की उपेक्षा का कोई मामला नहीं है,
(ग) पंचायती राज संस्थाओं के माध्यम से संचालित कार्यक्रमों में जिला स्तरीय विभागों के साथ कठिनाईयों का निराकरण करना,
(घ) राज्य सरकार द्वारा विहित मानकों के अनुसार जिला परिषद् से संबंधित पंचायत समितियों और पंचायतों को निधियों का समय पर अंतरण करना,
(ड़) पर्यावरण सुधार के लिए जिले में ग्रामीण स्वच्छता और ग्रामीण आवासन कार्यक्रम चलाना,
(च) प्राथमिक शिक्षा की गुणवत्ता का कालिक पुनर्विलोकन करना,
(छ) जिले के ग्रामीण क्षेत्रों में जनता की शिकायतें दूर करना,
(ज) लेखों का समुचित संधारण करके पंचायती राज संस्थाओं के कृत्यकरण में पारदर्शिता लाना, निधियों के दुरूपयोग को रोकना तथा प्रतिवर्ष समय पर संपरीक्षा कराना।
37. पंचायत समिति और जिला परिषद् के सदस्यों की भूमिका – (1) पंचायत समिति और जिला परिषद् का सदस्य पंचायतों की बैठकों में भाग ले सकते है, जिसमें वह साधारणतया निवास करता है।
(2) सदस्य ऐसी किसी पंचायत की, जिसमें ऐसा सदस्य निवास करता है, ग्राम सभा द्वारा सतर्कता समिति में नाम निर्देशित किये जा सकेंगे।
(3) ऐसा सदस्य पंचायती राज संस्था के सदस्य या स्थाई समिति के सदस्य के रूप में प्रदत्त कार्यो को सम्पन्न करेगा।
38. प्राकृतिक आपदाओं में सहायता – (1) बजट प्रावधानों के अध्यधीन रहते हुये प्रधान या प्रमुख क्रमशः अधिनियम की धारा 33 और 35 में अन्तर्विष्ट शक्तियों के अनुसार पीडितों को भोजन और आश्रय इत्यादि के लिये तुरन्त सहायता मंजूर कर सकेगा किन्तु वह प्रभावित परिवारों को राज्य सरकार की मार्फत सहायता पहुंचाने के लिये कलेक्टर को तुरन्त सूचित करेगा।
(2) वह इस हेतु स्वैच्छिक अंशदान जुटा सकेगा।
बैठकों में कारबार का संचालन
39. पंचायती राज संस्थाओं की बैठकें – कोई पंचायत एक पखवाड़े में कम से कम एक, कोई पंचायत समिति एक मास में कम से कम एक और कोई जिला परिषद् एक त्रिमास में कम से कम एक बैठक करेगी, तथापि, जिला परिषद् की किन्हीं दो बैठकों के बीच में चार मास से अधिक की कालावधि का अन्तर नहीं होगा।
परन्तु राज्य सरकार ऐसी तारीख को, जो उसके द्वारा नियत की जाये, बैठक आयोजित करने का निर्देश दे सकेगी।,
40 बैठकों का नोटिस – (1) बैठक का स्थान, तारीख और समय साथ ही उसमें संव्यवहृत किया जाने वाला कारबार विनिर्दिष्ट करते हुए कोई नोटिस किसी पंचायत की बैठक के कम से कम सात दिन पूर्व और किसी पंचायत समिति या किसी जिला परिषद् की बैठक के कम से कम दस दिन पूर्व क्रमश: सचिव, विकास अधिकारी, मुख्य कार्यपालक अधिकारी द्वारा संबंधित पंचायती राज संस्था के सभी सदस्यों को दिया जायेगा।
(2) पंचायत की दशा में सरपंच उप–नियम (1) में विनिर्दिष्ट से लघुतर नोटिस देकर कोई विशेष बैठक बुला सकेगा किन्तु किसी दशा में नोटिस की कालावधि तीन दिन से कम नहीं होगी।
(3) संबंधित पंचायती राज संस्था के प्रत्येक सदस्य को नोटिस उसके सामान्य निवास स्थान पर डाक द्वारा या ऐसी रीति से भेजा जायेगा जो सचिव/ विकास अधिकारी/ मुख्य कार्यपालक अधिकारी समीचीन समझे । नोटिस पंचायत की किसी बैठक की दशा में विकास अधिकारी, पटवारी और राज्य सरकार के या किसी पंचायती राज संस्था के किसी भी अन्य तहसील स्तर के कृत्यकारी का, जिसकी ऐसी बैठक के विचार-विमर्श में उपस्थिति और भाग लेना बैठक के संयोजक को वांछनीय प्रतीत हो और पंचायत समिति या जिला परिषद् की किसी बैठक की दशा में ऐसे जिला और तहसील स्तर के अधिकारियों को, जिनकी ऐसी बैठक में उपस्थिति धारा 48 की उप-धारा (7) के अधीन वांछनीय समझी जाये, भी भेजी जायेगी।
(4) प्रत्येक बैठक के नोटिस की एक प्रति संबंधित पंचायती राज संस्था के कार्यालय के सूचना–पट्ट पर भी चस्पा की जायेगी।
41. बैठक की कार्यसूची – (1) किसी बैठक के लिए कार्य सूची सचिव/ विकास अधिकारी/ मुख्य कार्यपालक अधिकारी द्वारा सरपंच/ प्रधान/ प्रमुख के परामर्श से तैयार की जायेगी और उसके अन्तर्गत ऐसा कोई भी विषय हो सकेगा जिस पर उसकी राय में पंचायत/ पंचायत समिति/ जिला परिषद् द्वारा विचार किया जाना चाहिए और उसके अन्तर्गत सरपंच/ प्रधान/ प्रमुख द्वारा विनिर्दिष्ट कोई भी विषय होगा।
(2) सदस्यों द्वारा किये जाने के लिए ईप्सित प्रस्ताव भी कार्यसूची में सम्मिलित किया जायेगा परन्तु संबंधित पंचायती राज संस्था का अध्यक्ष ऐसे किसी प्रस्ताव को अनुज्ञात कर सकेगा जिससे उसकी राय में अधिनियम या तद्धीन बनाये गये नियमों के उपबंधों का उल्लंघन होता हो और उसका विनिश्चय अंतिम होगा।
(3) पंचायत की कार्य सूची के मामलें में निम्नलिखित मदें सदैव सम्मिलित की जायेंगी–
(I) गत बैठक का पालन,
(II) रोकड़ बही के अनुसार आय और व्यय का विवरण,
(III) मृत कृषकों का नामान्तरण,
(IV) आबादी भूमि और चरागाहों में अधिक्रमण का हटाया जाना,
(V) विभिन्न योजनाओं की निधियों का उपयोग,
(VI) सनिर्माण संकर्मो की निधियों का उपयोग,
(VII) ग्राम स्वच्छता, सड़कों पर प्रकाष व्यवस्था, ग्रामीण सड़कों, पेयजल, आंगनबाड़ी, उचित मूल्य की दुकानों, विद्यालय भवनों के संधारण का पुनर्विलोकन,
(VIII) टीकाकारण और परिवार कल्याण।
42. विशेष बैठक – पंचायती राज संस्था का अध्यक्ष, जब कभी वह उचित समझे, किसी पंचायती राज संस्था की कोई विशेष बैठक बुला सकेगा और ऐसी पंचायती राज संस्था के सदस्यों का कुल संख्या के एक–तिहाई के अन्यून के निवेदन पर, निवेदन की प्राप्ति की तारीख से पन्द्रह दिन के भीतर–भीतर, बुलायेगा। यदि अध्यक्ष ऐसा करने में विफल रहे तो पंचायत की दशा में उपाध्यक्ष या विकास अधिकारी, पंचायत समिति की दशा में मुख्य कार्यपालक अधिकारी और जिला परिषद् की दशा में खण्ड आयुक्त पंचायती राज संस्था के सभी सदस्यों को किसी पंचायत की दशा मंे तीन पूर्ण दिन का नोटिस और पंचायत समिति या जिला परिषद् की दशा में सात पूर्ण दिन का नोटिस देने के पश्चात ऐसी बैठक बुला सकेगा।
43. मतदान के लिए प्रश्न रखने की रीति – जब कोई प्रश्न मतदान के लिए रखा जाये तो अध्यक्षता करने वाला प्राधिकारी हाथ उठाने के लिए कहेगा और वह पक्ष या विपक्ष में उठाये गये हाथों की गिनती करेगा और परिणाम घोषित करेगा। मत बराबर होने की दशा में अध्यक्ष का निर्णायक मत होगा।
44. बैठक की कार्यवाहियों का कार्यवृत्त – (1) किसी पंचायती राज संस्था की कार्यवाहियां हिन्दी में होंगी और कार्यवृत्त पुस्तक में किसी पंचायत की दशा में सचिव द्वारा, किसी पंचायत समिति की दशा में विकास अधिकारी द्वारा और किसी जिला परिषद् की दशा में मुख्य कार्यपालक अधिकारी द्वारा अभिलिखित की जायेंगी।
(2) कार्यवाहियों में उपस्थित सदस्यों की उपस्थिति के साथ–साथ उनके हस्ताक्षर और किया गया विनिश्चय सम्मिलित हेागा। यद्यपि, बैठक में प्रस्तावित विभिन्न संकल्पों के संबंध हुए विचार–विमर्श या चर्चा का ब्यौरा देना आवश्यक नहीं होगा फिर भी कार्यवाही अभिलिखित करने वाले पदधारी का यह कर्तव्य होगा कि वह प्रत्येक ऐसे संकल्प का कारणो सहित ब्यौरा दे जो उसकी राय में अधिनियम या किसी भी अन्य विधि या तद्धीन बनाये गये नियमों के उपबंध या राज्य सरकार द्वारा जारी किये गये अनुदेशों से असंगत है।
(3) कार्यवाहियों की एक–एक प्रति पंचायत की दशा में पंचायत समिति को, पंचायत समिति की दशा में जिला परिषद् को, साथ ही पंचायत समिति के सभी सदस्यों को और जिला परिषद् की दशा में जिला परिषद् के सभी सदस्यों को भेजी जायेगी। ऐसी प्रतियां पन्द्रह दिन के भीतर–भीतर भेजी जायेंगी। उप–नियम (2) में यथानिर्दिष्ट अधिनियम या नियमों के उल्लंघन में (पारित) किसी भी संकल्प की दशा में, सचिव और विकास अधिकारी चौबीस घण्टे के भीतर–भीतर मुख्य कार्यपालक अधिकारी को रिपोर्ट करेगा तथा यदि ऐसा संकल्प जिला परिषद् द्वारा किया गया हो तो मुख्य कार्यपालक अधिकारी निदेशक, ग्रामीण विकास को रिपोर्ट करेगा। सचिव/ विकास अधिकारी/ मुख्य कार्यपालक अधिकारी बैठक के कार्यवृत्त के सुसंगत उद्धरण संबंधित विभागों के जिला/तहसील स्तर के अधिकारियों को भी उनका स्तर पर आवश्यक कार्यवाही के लिए भेजेगा।
45. बोलने पर कतिपय निर्बन्धन – (1) कोई सदस्य भाषण बोलते समयः–
(क) ऐसे किसी विषय पर टिप्पणी नहीं करेगा जिस पर कोई न्यायिक विनिश्चय लम्बित है,
(ख) किसी पंचायत राज संस्था के किसी सदस्य या अध्यक्ष या उपाध्यक्ष या सरकार के किसी भी अधिकारी के विरूद्ध कोई व्यक्तिगत आरोप नहीं लगायेगा,
(ग) संसद की या किसी भी राज्य या किसी भी अन्य पंचायती राज संस्था के विघान की कार्यवाहियों के संचालन के बारे में संतापकारी अभिव्यक्ति का उपयोग नहीं करेगा,
(घ) मानहानिकारक शब्द नहीं कहेगा,
(ड़) पंचायती राज संस्था के कारबार में बाधा डालने के प्रयोजन के लिए अपने भाषण के अधिकार का उपयोग नहीं करेगा, या
(च) विचार–विमर्श में अपने स्वयं के तर्को की या अन्य सदस्यों द्वारा दिये गये तर्को की असंगतता पर या उबाऊ पुनरावृत्ति पर डटा नहीं रहेगा।
(2) प्रस्थापक, जिसे उत्तर देने का अधिकार है, के सिवाय कोई सदस्य एक बार से अधिक नहीं बोलेगा।
46. भाषणों की अवधि – अध्यक्षता करने वाला प्राधिकारी अपने विवेक से भाषणों की अवधि विनियमित करेगा।
47. बैठक के विचाराधीन विषय में जब किसी सदस्य का धनीय हित हो तब प्रक्रिया – (1) अध्यक्षता करने वाला प्राधिकारी किसी भी सदस्य को ऐसे किसी विषय की चर्चा में मतदान करने का भाग लेने से प्रतिषिद्ध कर सकेगा जिसमें उसे यह विश्वास है कि जनता पर उसके साधारण लागूकरण के अलावा ऐसे सदस्य का स्वयं का या भागीदार के रूप में कोई भी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष धनीय हित है।
(2) ऐसा सदस्य अध्यक्षता करने वाला प्राधिकारी के विनिश्चय को चुनौती दे सकेगा जो तत्पश्चात उस प्रश्न को बैठक में रखेगा और बैठक का विनिश्चय अंतिम होगा। तथापि, संबंधित सदस्य उस समय मतदान करने का हकदार नहीं होगा जब ऐसा प्रश्न बैठक में रखा जाये।
48. पंचायत समिति और जिला परिषद् की बैठकों के लिए कारबार की व्यवस्था – (1) किसी बैठक में संव्यवह्नत किये जाने वाले कारबार की व्यवस्था सामान्यतः निम्नलिखित रूप में होगीः–
(क) शपथ या अभिज्ञान, यदि आवश्यक हो,
(ख) पूर्ववर्ती बैठक की कार्यवाहियों का पुष्टिकरण,
(ग) पूर्ववर्ती बैठक के विनिश्चयों पर की गई कार्यवाही का एक विवरण,
(घ) स्थायी समितियों की कार्यवाहियों का परिषीलन,
(ड़) महत्वपूर्ण कागजपत्रों (संपरीक्षा रिपोर्ट, निरीक्षण रिपोर्ट, परिपत्र, अनुदेश आदि) से संबंधित सूचना,
(च) पूर्ववर्ती तीन मास के लिए चालू स्कीमों की भौतिक और वित्तीय प्रगति रिपोर्ट,
(छ) वार्षिक योजना प्रस्तावों का क्रियान्वयन,
(ज) रोजगार पैदा करने और गरीबी उन्मूलन कार्यक्रमों का पुनर्विलोकन,
(झ) ग्रामीण स्वच्छता और ग्रामीण आवासन कार्यक्रम,
(ण) स्वयं की आय में वृद्धि के लिए उठाये गये कदम और राजस्व संग्रहण की प्रगति,
(ट) कोई भी अन्य कारबार जिसका लिया जाना अध्यक्षता करने वाले प्राधिकारी द्वारा अनुज्ञात किया जाये।
(2) अध्यक्षता करने वाला प्राधिकारी, अपने विवेक से या किसी भी सदस्य के प्रस्ताव पर उप–नियम (1) में प्रगणित कारबार की विभिन्न मदों की आपेक्षिक प्रक्रिया में ऐसे फेरफार कर सकेगा जिन्हें वह किसी मामले की विशेष परिस्थितियों को देखते हुए आवश्यक समझे।
49. किसी सदस्य का निकाला जाना – अध्यक्षता करने वाला प्राधिकारी ऐसे किसी भी सदस्य को, जिसका आचरण उसकी राय में घोर रूप से विच्छृंखल है, बैठक से तुरन्त निकल जाने का निदेश दे सकेगा और निकल जाने के लिए इस प्रकार आदिष्ट कोई भी सदस्य तुरन्त ऐसा करेगा और उस दिन की बैठक की शेष अवधि के दौरान अपने को अनुपस्थित रख्ेागा।
50. किसी बैठक का निलम्बन – अध्यक्षता करने वाला प्राधिकारी किसी पंचायती राज संस्था की बैठक में उद्भुत गंभीर अव्यवस्था की दशा में किसी भी बैठक को अपने द्वारा विनिश्चित किये जाने वाले समय के लिए निलम्बित कर सकेगा।
51. स्थायी समिति की बैठकों के संचालन के लिए प्रक्रिया – (1) जब पर्याप्त कार्यसूची मदों पर चर्चा की जानी हो तो स्थायी समिति का अध्यक्ष किसी भी समय बैठक बुला सकेगा । प्रत्येक त्रिमास में एक बैठक आयोजित की जायेगी। प्रत्येकमास में कम से कम एक बैठक आयोजित की जाएगी।
परन्तु राज्य सरकार ऐसी तारीख को, जो उसके द्वारा नियत की जाये, बैठक आयोजित करने का निदेश दे सकेगी।
(2) बैठक के नोटिस, कार्यवृत्त अभिलिखित करने, विनिश्चयों पर मतदान करने, बोलने पर निर्बन्धन करने और बैठकों के संचालन के लिए प्रक्रिया वही होगी जो पंचायत समिति या जिला परिषद् की विशेष बैठक के लिए हो।
(3) स्थायी समिति के लिए गणपूर्ति ऐसी समिति के अध्यक्ष को सम्मिलित करते हुए तीन की होगी।
52. स्थायी समितियों के परस्पर विरोधी सकल्प – किसी भी ऐसे मामले में जिसमें दो या अधिक स्थायी समितियों ने परस्पर विरोधी सकल्प पारित किये हों, विकास अधिकारी मामले को पंचायत समिति के और मुख्य कार्यपालक अधिकारी, जिला परिषद् के समक्ष रखेगा और पंचायत समिति/ जिला परिषद् के अंतिम विनिश्चय के लंबित रहते विकास अधिकारी/ मुख्य कार्यपालक अधिकारी विवादग्रस्त मामले के विषय में सारी कार्यवाही को रोके रखेगा।
53. अधिकारियों की उपस्थिति – (1) विकास अधिकारी या मुख्य कार्यपालक अधिकारी स्थायी समितियों की *बैठकों के लिए सचिव होगा और सभी बैठकों में उपस्थित रहेगा* जब तक कि वह बीमारी, छुट्टी या पंचायत समिति/जिला परिषद् के मुख्यालय से बाहर अत्यावश्यक पदीय कार्य के कारण निवारित न हो।
(2) ऐसे मामले मे *विकास अधिकारी या, यथास्थिति, मुख्य कार्यपालक अधिकारी द्वारा नियुक्त कोई अधिकारी सचिव के कृत्यों का पालन करेगा और ऐसी बैठकों में उपस्थित होगा*, और विकास अधिकारी या, यथास्थिति, मुख्य कार्यपालक अधिकारी के लौटने पर किये गये विनिश्चयों के बारे में सूचित करेगा।
*(3) यदि स्थायी समिति को यह प्रतीत हो कि सम्बन्धित पंचायती राज संस्था की अधिकारिता में पदस्थापित सरकार के किसी अधिकारी की उपस्थिति उसकी बैठकों में वांछनीय है, तो विकास अधिकारी या मुख्य कार्यकारी अधिकारी, बैठक की तारीख से कम से कम तीन दिन पूर्व ऐसे अधिकारी को सूचित करेगा और ऐसा अधिकारी जब तक कि बीमारी या किसी अन्य युक्ति युक्त कारण से निवारित न हो बैठक में उपस्थित होगा।*
54. विनिश्चयों का अनुपालन – स्थायी समितियों द्वारा किये गये विनिश्चयों और उन पर की गई कार्यवाही के बारे में क्रमश: पंचायत समिति/ जिला परिषद् की आगामी बैठक के पूर्व प्रधान/ प्रमुख को सूचित करने का विकास अधिकारी/ मुख्य कार्यपालक अधिकारी का कर्तव्य होगा।
55. प्रशासन और वित्त के लिए स्थायी समिति द्वारा रोक आदेश – अप्राधिकृत अधिक्रमण या अप्राधिकृत सन्निर्माण के संबंध में पंचायत समिति द्वारा पंचायतों के विनिश्चयों के विरूद्ध अपीलों पर विचार करते समय रोक आवेदन पर–
(क) पंचायत को सुनवाई का अवसर दिये बिना,
(ख) भूमि के प्रति हक का सत्यापन किये बिना,
(ग) पंचायत द्वारा दी गई सन्निर्माण अनुज्ञा के बिना, विनिश्चय नहीं किया जायेगा।
56. सदस्य का सूचना अभिप्राप्त करने का और अभिलेखों के प्रति पहुँच का अधिकारी – किसी पंचायती राज संस्था को सदस्य को, सचिव/ विकास अधिकारी/ मुख्य कार्यपालक अधिकारी को सम्यक् नोटिस देने के पश्चात कार्यालय समय के दौरान पंचायती राज संस्था या उसकी किसी स्थाई समिति, यदि कोई हो, के प्रशासन से सबंधित किसी भी विषय पर सूचना अभिप्राप्त करने का और उसके अभिलेखों के प्रति पहुँच का अधिकार होगा। तथापि, वे संबंधित पंचायती राज संस्था के अध्यक्ष के अनुमोदन से और, लेखबद्ध किये जाने वाले कारणों से कोई भी सूचना विशेष देने से या किसी भी अभिलेख विशेष के प्रति पहुँच अनुज्ञात करने से इन्कार कर सकेंगे।
करों और फीसों का अधिरोपण, निर्धारण और संग्रहण
57. कर / फीस के अधिरोपण के लिए पंचायती राज संस्था द्वारा संकल्प – धारा 65 66,67,68 और 69 के अधीन कोई भी कर या फीस या अधिभार उद्गृहीत करने का या किन्हीं भी दरों में वृद्धि करने का विनिश्चय करने वाली प्रत्येक पंचायती राज संस्था इस आशय का संकल्प साधारण बैठक में पारित करेगी और उसके सार को उससे संभाव्यतः प्रभावित होने वाले व्यक्तियों की सूचना के लिए प्रकाशित करेगी।
58. आक्षेप आमंत्रित करने के नोटिस का प्रकाशन – (1) संबंधित पंचायती राज संस्था ऐसे कर या फीस या अधिभार के अधिरोपण के प्रति आक्षेप आमंत्रित करने को ऐसी साधारण सूचना के लिए उक्त संकल्प का एक नोटिस जारी करेगी।
(2) उपर्युक्त नोटिस की एक प्रति संबंधित पंचायत, पंचायत समिति और जिला परिषद् के नोटिस बोर्ड पर लगायी जायेगी और एक प्रति सूचना के लिए तहसीलदार और कलेक्टर को अग्रेषित की जायेगी।
(3) पंचायती राज संस्था साधारण प्रचार के लिए स्थानीय समाचार पत्रों को प्रेस नोट भी जारी कर सकेगी।
(4) जिला परिषद् स्टाम्प शुल्क पर अधिभार अधिरोपित करने का प्रस्ताव करते समय नोटिस की प्रति जिला रजिस्ट्रार को तथा कृषि उपज पर अधिभार के मामले में निदेशक , कृषि, विपणन और जिले में कृषि उपज मण्डी समितियों के सचिव को भी भेजेगी।
59. आक्षेपों के लिए कालावधि – आक्षेप फाइल करने के लिए ऐसे नोटिस की तारीख से कम से कम एक मास की कालावधि अनुज्ञात की जायेगी।
60. आक्षेपों पर विचार – (1) नोटिस की कालावधि की समाप्ति के पश्चात पंचायती राज संस्था द्वारा प्रस्तावित अधिरोपण या वृद्धि से संभाव्यतः प्रभावित होने वाले व्यक्तियों से प्राप्त आक्षेपों पर उसकी साधारण बैठक में विचार किया जायेगा।
(2) पंचायती राज संस्था प्रस्ताव का अनुमोदन उपान्तरणों सहित या रहित कर सकेगी या उन्हें अस्वीकृत कर सकेगी और उक्त कर या करों या फीसों के उद्गृहण के लिए पुनः संकल्प पारित करेगीः परन्तु यदि संकल्प धारा 65 की उप–धारा (1) के खण्ड (घ) तथा (छ) या धारा 68 की उप–धारा (2) के अधीन अधिरोपित किये जाने के लिए प्रस्तावित किसी कर से संबंधित हो तो राज्य सरकार की पूर्व मंजूरी भी अभिप्राप्त की जायेगी।
[टिप्प्णी – अधिनियम की धारा 65(1)(घ), 65(1)(छ) तथा 68(2) के तहत कर एवं चुंगी लगाने के प्रस्ताव संबंधित विकास अधिकारी के माध्यम से विभाग को भेजने होंगे। शेष धाराओं के तहत प्रस्ताव सरकार को नहीं भेजने होंगे]
61. सरकार की पूर्व मंजूरी – राज्य सरकार की पूर्व मंजूरी की अपेक्षा वाले करों के अधिरोपण के मामले में, संबंधित पंचायती राज संस्था अपने द्वारा प्राप्त किये गये आक्षेपों के सारांश के साथ–साथ उन पर अपनी टिप्पणियों सहित अपने संकल्प की एक प्रति और एक अनुरोध पत्र राज्य सरकार की पूर्व मंजूरी के लिए निदेशक , ग्रामीण विकास को भेजेगी।
62. संकल्प का प्रकाशन और प्रवर्तन – (1) नियम 60 के उप–नियम (2) के अधीन संकल्प पारित करने और राज्य सरकार का अनुमोदन, यदि अपेक्षित हो, प्राप्त करने के पश्चात पंचायती राज संस्था निम्नलिखित को विनिर्दिष्ट करते हुए अंतिम रूप से एक नोटिस जारी करेगीः
(क) इस प्रकार मंजूर किये गये कर के ब्यौरे,
(ख) वह दर जिस पर उसे उद्गृहीत किया जायेगा,
(X) वह तारीख जिससे उसे निर्धारित और उद्गृहीत किया जायेगा,
(घ) कोई भी अन्य विषिष्टियां जो प्रभावित व्यक्तियों की सूचना के लिए आवश्यक हों।
(2) ऐसा नोटिस नियम 58 में विनिर्दिष्ट रीति से प्रकाशित भी किया जायेगा।
63. माँग की तैयारी और निर्धारित की गणना – (1) कर नियम 62 के अधीन जारी नोटिस में विनिर्दिष्ट तारीख से निर्धारित और उद्गृहीत किया जायेगा।
(2) तहसीलदार नियम 62 के अधीन संकल्प की प्राप्ति के पश्चात संबंधित पटवारी के माध्यम से माँग को तैयार और गणना को संचालित करवायेगा।
(3) पटवारी निर्धारणों की गणना करने के कार्यक्रम की सूचना विकास अधिकारी और पंचायत को देगा जो ऐसी गणना और माँग की तैयारी में सहायता करने के लिए पंचायत प्रसार अधिकारी, पंचों और सचिव को सहयोजित कर सकेंगे।
(4) माँग पटवारी द्वारा प्रपत्र 4 में तैयार की जायेगी।
64. तहसीलदार द्वारा निर्धारण का अनुमोदन – (1) तहसीलदार, पटवारी द्वारा करों की माँग, निर्धारण तैयार कर लिये जाने के पश्चात, उसकी जाँच करवायेगा और शुद्धियां, यदि कोई हों, करेगा, उनका अनुमोदन करेगा और एक प्रति संबंधित पटवारी को अग्रेषित करेगा।
(2) पटवारी अनुमोदित माँग अनुसार माँग पर्चियां संबंधित निर्धारिती का प्रपत्र 5 में जारी करेगा।
65. करों की नियत तारीखें – (1) नियम 64 के अनुसार निर्धारित कर, अप्रेल मास में पटवारी द्वारा जारी की जाने वाली माँग पर्चियों के अनुसार संगृहीत किये जायेंगे, कर की रकम मई मास में वार्षिक किस्त के रूप में जमा की जायेगी।
(2) विलंबित संदाय के लिए ब्याज जून की पहली तारीख से 12 प्रतिशत की दर से उद्गृहीत किया जायेगा।
66. निर्धारण के विरूद्ध अपील – ऐसे निर्धारण के प्रति कोई भी आक्षेप रखने वाला कोई भी निर्धारिती, यदि कर किसी पंचायत द्वारा उद्गृहीत किया गया है, तो उप–खण्ड अधिकारी को और यदि कर पंचायत समिति द्वारा उद्गृहीत किया गया है, तो कलेक्टर को और यदि कर जिला परिषद् द्वारा उद्गृहीत किया गया है, तो खण्ड आयुक्त को अधिनियम की धारा 71 में अन्तर्विष्ट उपबन्धों के अनुसार अपील कर सकेगा।
67. करों की वसूली – (1) कर, पटवारी द्वारा वसूल किये जायेंगे जिसे संग्रहण प्रभार के रूप में 5 प्रतिशत का संदाय संबंधित पंचायत समिति के पी.डी. लेखे में या पंचायत लेखे में जमा की गई सकल कर प्राप्तियों में से ऐसी रकम की कटौती करके किया जायेगा।
(2) ऐसे निक्षेपों के ब्यौरे चालान रसीद नम्बर , संख्या. और तारीख को उपदर्शित करते हुए प्रति मास संबंधित तहसीलदार, विकास अधिकारी और पंचायत को अग्रेषित किये जायेंगे।
(3) पटवारी, प्रत्येक पंचायत या, यथास्थिति, पंचायत समिति के लिए प्रपत्र 6 में माँग संग्रहण रजिस्टर भी रखेगा। प्रत्येक वर्ष के लिए एक अलग रजिस्टर या एक पृथक् प्रभाग काम में लिया जायेगा।
(4) संबंधित पंचायती राज संस्था ऐसे करों की वसूली के लिए आवश्यक प्रपत्रों और रजिस्टरों का खर्च वहन करेगी।
(5) यदि पटवारी द्वारा उपर्युक्त उपनियम (1) (2) (3) में यथोपबंधित करों की वसूली नहीं की जाये तो वे अधिनियम की धारा 70 में उपबन्धतानुसार भू–राजस्व के बकाया के रूप में वसूल किये जायेंगे।
(6) स्टाम्प शुल्क पर अधिभार जिले में ग्रामीण क्षेत्रांे में अन्तरित और जिला परिषद् के पी.डी. लेखे में अन्तरित संपत्तियों के लिए उप–रजिस्ट्रार द्वारा वित्त विभाग द्वारा अधिकथित प्रक्रिया के अनुसार संगृहीत किया जायेगा।
(7) कषि उपज पर अधिभार जिले में सचिव, मडी समिति द्वारा संगृहीत किया जायेगा और जिले की जिला–परिषद् के पी.डी. लेखे में प्रति मास जमा किया जायेगा।
68. फीस का उद्ग्रहण – *(1) पंचायत जनता के प्रति की गई सेवाओं के लिए निम्नलिखित अधिकतम दरों के अध्यधीन फीस उदगृहीत कर सकेगी–
(I) आवेदन की फीस – 10/- रुपये
(II)निवास, जाति, आय आदि के लिए प्रमाण–पत्र के लिए – 20/-रुपये (अजा/ जजा के लिए 50%)
(III) नामान्तरण आदि के लिए उत्तराधिकारियों के प्रमाण–पत्र – 40/-रुपये (अजा/जजा के लिये 50%)
(IV) विद्युत के लिए या पाइप द्वारा जल प्रदाय के अनापत्ति प्रमाण–पत्र – 40/-रुपये(अजा/जजा के लिये 50%)
(V) आबादी भूमि के क्रय के लिए आवेदन – 20/- रुपये
(VI) स्थल रेखांक तैयार करने और स्थल निरीक्षण करने के लिए व्यय – 50/- रुपये
(VII) आवेदन और मुद्रण को सम्मिलित करते हुये राशन कार्ड – 10/- रुपये
(VIII) 30 दिन के पश्चात जन्म और मृत्यु का रजिस्ट्रीकरण – 20/- रुपये
(IX) भवन निर्माण के लिए अनुज्ञा (पक्के निर्माण के लिये प्रति वर्ग मीटर)
(X) पंचायत द्वारा पूर्व में ही अनुमोदित स्थल रेखांक में परिवर्धन/परिवर्तन
(XI)पंचायत की अनुज्ञा के बिना अप्राधिकृत निर्माण का नियमितिकरण यदि स्पष्ट हक हो मार्ग के अधिकार में रुकावट ना हो – 10/- रुपये (प्रतिवर्ग मीटर) (अधिकतम 1000/-)
(XII) पेटोल/डीजल पम्प – 2500/-रुपये (प्रतिवर्ष)
(XIII) होटल/ढाबों/मोटर गाडी मरम्मत – 1000/-रुपये (प्रतिवर्ष)
(XIV) कोई भी अन्य कारोबार इकाई – 200/-रुपये (प्रतिवर्ष)
(XV) खनन के अनापत्ति प्रमाण पत्र के लिए संकल्प – 5000/-रुपये (प्रतिवर्ष)
(XVI) मोबाईल टावर – 10000/-रुपये (प्रतिवर्ष)
(XVII) अतिथि गृह/ होटल/ मोटल/ विश्रामगृह गृह के लिए फीस
(i) 5 कमरों तक – 1000/- रुपये (प्रतिवर्ष)
(ii) 6 से 10 कमरों के लिए – 2500/- रुपये (प्रतिवर्ष)
(iii) 11 से 15 कमरों तक – 4000/-रुपये (प्रतिवर्ष)
(iv) 16 और अधिक कमरों के लिए – 5000/-रुपये (प्रतिवर्ष)*
(2) ऐसी फीसें उदगृहत करने का निश्चय करने वाली पंचायत साधारण बैठक में संकल्प पारित करेगी और पंचायत सर्किल के निवासियों से तीस दिन के भीतर आक्षेप/ सुझाव आमन्त्रित करते हुये सूचना पट्ट पर नोटिस प्रकाशित करेगी।
(3) नोटिस की तारीख से तीस दिन की समाप्ति के पश्चात पंचायत, उपान्तरणों सहित या रहित संकल्प पुनः पारित कर सकेगी और आगामी मास की पहली तारीख से ऐसी फीसें प्रभारित करने का विनिश्चय कर सकेगी।
69. मेलों पर कर और फीसें – (1) पंचायत समिति/जिला परिषद् अपनी अधिकारिता के भीतर अपने द्वारा आयोजित और विनियमित किये जाने वाले मेलों तथा उत्सवों को विनियमित करने के लिए करों/फीसों के उद्ग्रहण का विनिश्चय कर सकेगी।
(2) ऐसी पंचायती राज संस्था किसी भी अधिकारी को मेला अधिकारी के रूप में पदाभिहित कर सकेगी।
(3) यदि कोई पशुमेला आयोजित किया जाये, तो रवन्ना फीस की दर संबंधित पंचायती राज संस्था द्वारा विनिश्चित की जायेगी।
(4) क्रेता अपने पशु का े तब तक मेला क्षेत्र के बाहर नहीं ले जायेगा जब तक कि उसने विहित फीस के संदाय के पश्चात प्रपत्र 8 में रवन्ना अभिप्राप्य न कर लिया हो।
(4) यदि कोई भी क्रेता रवन्ना के बिना अपने पशु को मेला क्षेत्र के बाहर ले जाते हुए पाया जाये, तो वह मेला अधिकारी के विवेकाधिकार पर ऐसी शास्ति, जो 200 रुपये प्रति पशुसे अधिक नहीं होगी, देने का दायी होगा।
(6) पशुओं के प्रवेश और निकासी के लिए जाँच चौकियां स्थपित की जायेंगी। मेला परिसर में प्रवेश करने वाले समस्त पशुओं के लिए मेला अधिकारी/जाँंच चौकी के प्रभारी द्वारा प्रपत्र 7 मंे प्रवेश पत्र जारी किया जायेगा।
(7) मेले में किये गये प्रत्येक विक्रय को प्रपत्र 9 में रजिस्टर किया जायेगा और क्रेता को सम्बन्धित पंचायती राज संस्था द्वारा नियत किये गये प्रभार के संदाय करने पर उसकी प्रति जारी जायेगी।
(8) कोई भी रवन्ना तब तक जारी नहीं किया जायेगा जब तक कि उप–नियम (7) में निर्दिष्ट रजिस्टार की एक प्रति प्रस्तुत न कर दी जाये।
70. देशी शराब पर चुंगी – *विलोपित*
*[राज. पंचायती राज (तृतीय संशोधन) नियम, 2011संख्या एफ.4(7) संशों / नियम/ विधि / पंरा./ 2010/ 1348
दिनांक 12.08.2011 द्वारा नियम हटाया गया , राजपत्र भाग 4(ग) दिनांक 18.8.2011 को प्रकाशित]
71. सिनेमा/थियेटर/विडियो शॉप पर मनोरंजन कर – (1) पंचायत समिति अधिसूचना संख्या एफ.8(76) एफडी/जीआर-4/73 दिनांक 9.3.1976 के अनुसार प्रति व्यक्ति टिकट की कीमत/ प्रभारांे क़े एक रुपया से अधिक न होने पर 100% की दर से मनोरंजन कर वसूल करेगी। यदि नियमित टिकट जारी नहीं किये जायें तो टिकटों की रकम प्रतिमास निर्धारित की जाये और तद्नुसार 100% कर वसूल किया जाये।
(2) यदि शोध्य रकम माँग पर जमा नहीं कराई जाये तो यह जिला कलेक्टर की मार्फ़त भू–राजस्व के बकाया के रूप में वसूल की जायेगी।
72. व्यापारी, आजीविकाओं, व्यवसायों और उद्योगों पर कर की अधिकतम दरें – (1) पंचायत समिति निम्नलिखितानुसार अधिकतम के अध्यधीन रहते हुए कर उद्गृहीत कर सकेगीः–
(I) अधिवक्ता – 300/- प्रतिवर्ष
(II) आइल प्रेस, कॉटन प्रेस, मुद्रण प्रेस, भाण्डागार और अन्य उद्योग (कुटीर उद्योगों के सिवाय) –
1000/- प्रतिवर्ष
(III) साहूकार – 1000/- प्रतिवर्ष
(IV) थोक और खुदरा व्यापारी, नीलामी कर्ता, ठेकेदार, कमीशन अभिकर्ता, आढतिये, कर्मषालायें –
500/- प्रतिवर्ष
(V) क्लिनिक, नर्सिंग होम, निजी अस्पताल – 300/- प्रतिवर्ष
(VI) निजी व्यवसायी, वैद्य, होम्योपैथ, दन्त चिकित्सक, पशु शल्य चिकित्सक – 150/- प्रतिवर्ष
(VII) वास्तुकार/अभियन्ता – 300/- प्रतिवर्ष
(VIII) होटल, लीजिंग हाऊस चलाने वाले – 500/- प्रतिवर्ष
(IX) अखबारों के सम्पादक/स्वामी – 250/- प्रतिवर्ष
(X) व्यवसायिक कलाकार, फोटो ग्राफर, अभिनेता, नर्तक, संगीतज्ञ – 120/- प्रतिवर्ष
(XI) सरकस/सिनेमा/विडियो शॉपों के स्वामी – 100/- प्रतिवर्ष (टिकटों के विक्रय पर 100%
मनोरंजन कर के अतिरिक्त)
(XII) पशुओं, यानों, डेयरी के व्यवहारी – 250/- प्रतिवर्ष
(2) नियम 58 से 60 तक में उपबंधित करों के अधिरोपण की प्रक्रिया का अनुसरण किया जायेगा
सिवाय इसके कि इसमें सरकार की पूर्व मंजूरी अपेक्षित नहीं होगी।
भवन कर
73. भवन कर – धारा 165 की उप–धारा (1) के खण्ड (क) के अधीन भवनों पर कर पंचायत सर्किल के भीतर के भवनों पर उद्गृहणीय होगा और निम्नलिखित सीमाओं से अधिक नहीं होगा, अर्थात्–
प्रतिवर्ष कर की अधिकतम रकम
(I) जहॉं निर्मित पक्की छत का क्षेत्र 500 वर्ग फुट तक का हो – 100/- रु.
(II) जब क्षेत्र 501 से 1000 वर्ग फुट तक का हो – *300/-रु.*
(III) जब क्षेत्र 1001 से 2000 वर्ग फुट तक का हो – *500/-रु.*
(IV) जब क्षेत्र 2000 वर्ग फुट से अधिक का हो – *1000/-रु.*
परन्तु ऐसे घरों के लिए कोई भी कर संदेय नहीं होगा जो पत्थर/ईंटों से संनिर्मित्त नहीं है या जिनकी छत पत्थर की पट्टियों/आर.सी.सी. की नहीं है।
74. कर से छूट – (1) अधिनियम में या इन नियमों में अन्तर्विष्ट किसी बात के होते हुए भी सरायों, धर्मषालाओं, पुस्तकालयों, विद्यालयों, औषधालयों, वाचनालयों और धार्मिक तथा पूर्त प्रयोजन के लिए प्रयुक्त भवनों पर कोई भी कर उद्गृहीत नहीं किया जायेगा, तथापि यह इस उपबंध के अध्यधीन होगा कि उनसे या उनके किसी भी भाग से कोई भी किराया अर्जित न किया जाये।
(2) किसी पंचायत सर्किल के भीतर केन्द्रीय सरकार या राज्य सरकार के सभी भवनों को तथा ऐसे सभी भवनों को, जो किसी पंचायत या किसी पंचायत समिति या किसी जिला परिषद् या किसी नगरपालिकाओं बोर्ड के हों, या उनमें निहित हों, नियम 73 के अधीन भवन कर के भुगतान से छूट दी जायेगी।
(3) कच्चे घरो, एकीकृत गा्रमीण विकास कार्यक्रम के चयनित परिवारों, इन्दिरा आवास और ऐसे पक्के घरों पर जिनका फर्ष क्षेत्र 200 वर्ग फुट से कम का हो कोई भी भवन कर उद्गृहीत नहीं किया जायेगा।
75. निर्धारण सूची तैयार किया जाना – (1) पंचायत, भवन कर के प्रयोजनार्थ, पंचायत सर्किल के भीतर अवस्थित भवनों पर कब्जा या,
यथास्थिति, स्वामित्व रखने वाले अधिभोगियों/स्वामियों की एक सूची तैयार करवायेगी।
(2) सूची में पक्के निर्माण और कच्चे निर्माण का क्षेत्र पृथक्–पृथक् अन्तर्विष्ट होगा।
(3) किराये की आय, यदि कोई हो, भी उपदर्शित की जा सकेगी।
(4) यदि भवन नियम 74 के अनुसार छूट प्राप्त प्रवर्ग का है तो इस तथ्य का उल्लेख निर्धारण सूची में किया जाना चाहिए।
(5) कर नियम 73 में विनिर्दिष्ट अधिकतम दरों के भीतर–भीतर पक्के घरों के क्षेत्र के अनुसार निर्धारित किया जायेगा
76. निर्धारण सूची का प्रकाशन – (1) नियम 75 के अधीन तैयार की गई निर्धारण सूची को उसकी एक प्रति निर्धारण सूची के प्रकाशन की तारीख से 15 दिन के भीतर–भीतर उसके प्रति आक्षेप आमन्त्रित करने के एक नोटिस के साथ पंचायत के नोटिस बोर्ड पर लगाकर प्रकाशित की जायेगी।
(2) इस आशय की एक घोषणा सम्पूर्ण पंचायत सर्किल में डोंडी पिटवाकर की जायेगी कि सूची इस प्रकार प्रकाशित कर दी गई है और पंचायत कार्यालय में उसका निरीक्षण किया जा सकता है और निर्धारण सूची के प्रकाशन की तारीख से 15 दिन के भीतर–भीतर पंचायत में उसके प्रति आक्षेप फाइल किये जा सकते हैं।
(3) पंचायत ऐसे किन्हीं भी आक्षेपों की सुनवाई करेगी जो उक्त कालावधि के भीतर–भीतर किये जायें और सरपंच द्वारा निर्धारण सूची का संषोधन यदि आवश्यकहो तो किया जायेगा और वह हस्ताक्षरित की जायेगी।
(4) इस प्रकार अन्तिम रूप प्रदत्त निर्धारण सूची की एक प्रति पंचायत के नोटिस बोर्ड पर चिपकायी जायेगी।
77. भवन कर की वसूली – भवनकर 1 अप्रेल से प्रारम्भ होने वाले सम्पूर्ण वर्ष के लिए अग्रिम तौर पर वसूल किया जायेगा।
चुंगी
78. चुंगी चौकियां और चुंगी सीमाएं – यदि कोई पंचायत धारा 65 की उप–धारा (1) के खण्ड (ख) के अधीन कोई चुंगी अधिरोपित करने का विनिश्चय करे तो चुंगी सीमाएं पंचायत सर्किल की बाह्य सीमाएं होंगी और पंचायत–
(क) वे मार्ग वर्णित कर सकेंगी जिनसे चुंगी के दायित्वाधीन माल और पशुचुंगी सीमाओं के भीतर लाये जावेंगे, और
(,ख) ऐसी चुंगी चौकियॉं, जो वह आवश्यकसमझे, प्रत्येक ऐसी चौकी को पंचायत के प्रभाराधीन रखते हुए स्थापित कर सकेगी और उनके लिए ऐसा अन्य स्थापन, जो वह ठीक समझे, कर सकेगी।
(ग) चुगी की दर वस्तुओं की कीमत के आधे प्रतिशतसे अधिक दर से अधिरोपित नहीं की जावेगी। आधे प्रतिशत से अधिक दर पर चुंगी अधिरोपित करने हेतु राज्य सरकार की पूर्व स्वीकृति प्राप्त की जावेगी।
(घ) पांच लाख से अधिक स्थायी पंूजी निवेश वाले उपायों पर चुंगी लगाने से पहले राज्य सरकार की पूर्व अनुमति प्राप्त करना आवश्यकहोगा।
[टिप्पणी – राज्य सरकार के आदेश अनुसार चुंगी समाप्त की जा चुकी है।]
79. माल और पशु लाने वाले व्यक्तियों के कर्तव्य – (1) चुंगी सीमाओं के भीतरचुंगीसंदाय करने के दायित्वाधीन माल या पशुओं को लाने वाले या प्राप्त करने वाले सभी व्यक्ति चुंगी कर्मचारी को उद्गृहीण चुंगी शुल्क की रकम अभिनिष्चत, निर्धारित और संगृहीत करने में समर्थ बनाने के लिए माल या पशुओं से सम्बंधित ऐसे समस्त बिल, बीजक, रसीदें या ऐसी ही प्रकृति के अन्य दस्तावेज, जो उनके कब्जे में हो, प्रदर्षित या प्रस्तुत करेंगे और ऐसे व्यक्ति अपने माल का मूल्यांकन कराने के प्रयोजनार्थ चुंगी कर्मचारी को हर सुविधाएं उपलब्ध करायेंगे और जब अपेक्षा की जाये तो उन्हें उन पर चुंगी शुल्क के निर्धारण या संग्रहण के, ऐसे शुल्क के संदाय की जाँच या इन नियमों के किसी भी अन्य उपबंधों के क्रियान्वयन के प्रयोजनार्थ सम्पूर्ण माल या पशुओं या उनके किसी भी प्रभाग का निरीक्षण, वजन, परीक्षा, मापन या अन्यथा मूल्यांकन अथवा व्यवहार करने देंगे।
(2) शुल्क्य माल या पशुओं को लाने वाले व्यक्ति के कब्जे में कोई भी बीजक या बिल या अन्य सुसंगत दस्तावेज के न होने या उनमें दर्शाये गये मूल्य को चुंगी कर्मचारी द्वारा स्वीकार नहीं किये जाने की स्थिति में ऐसे व्यक्ति स्वयं द्वारा एक घोषणा कर और हस्ताक्षरित की जायेगी और माल या पशुओं को बाजार कीमत के अनुसार उन का बाजारो में मूल्याकन कराने के पश्चात चुंगी उद्गृहीत की जायेगी।
80. माल का निरीक्षण – प्रत्येक व्यक्ति, माँग किये जाने पर, किसी भी चुंगी कर्मचारी को अपने कब्जे के माल का निरीक्षण करने देगा।
81. चुंगी का निर्धारण – जहाँ कोई मूल्यानुसार चुंगी उद्गृहणीय हो वहाँ उसकी रकम की गणना, माल या पशुओं के मूल बिल या बीजक अन्य दस्तावेजां में दिये गये पूर्ण मूल्य के अनसु ार या, यथास्थिति, उनकी बाजार कीमत पर की जायेगी: परन्तु पंचायत किसी सहकारी सोसाइटी द्वारा परिवहित कराये गये माल पर प्रतिमास तयषुदा दरों पर चुंगी अधिरोपित कर सकेगी: परन्तु यह और कि पंचायत, पंचायत सर्किल में स्थित किसी भी उद्योग द्वारा प्रसंस्करण के प्रयोजनार्थ आयात किये गये माल पर चुंगी शुल्क मासिक रूप से तयषुदा दरों पर अधिरोपित और वसूल कर सकेगी तथापि, इस शर्त के अध्यधीन की आयात के प्रयोजन को सम्बन्धित जिला उद्योग केन्द्र के महाप्रबंधक द्वारा सत्यापित किया जाये।
स्पष्टीकरण-‘‘पूर्ण मूल्य‘‘ में रेल भाडा, कमीशन या अन्य आनुषंगिक प्रभार सम्मिलित नहंी हैं।
82. चुंगी का संदाय – (1) चुंगी किसी चुंगी चौकी के प्रभारी अधिकारी द्वारा माँंगे जाने पर संदेय होगी।
(2) चुंगी के दायित्वाधीन माल या पशुओ पर चुंगी शुल्क किसी चुंगी चौकी या पंचायत कार्यालय पर संदत्त की जावेगी।
(3) जहाँ कोई भी चुंगी न हो वहाँं आयातकर्ता आयातित माल के मूल्य की एक घोषणा फाईल करेगा और वास्तविक वाउचरों के आधार पर सरपंच या सचिव का समाधान करेगा।
(4) किसी चुंगी चौकी का प्रभारी कर्मचारी या सचिव संदाय किये जाने पर प्रपत्र 10 में दो प्रतियों में एक रसीद लिखेगा जिसकी एक प्रति आयातकर्ता को दी जायेगी और दूसरी रसीद पुस्तिका में प्रतिपर्ण के रूप में रहेगी।
(5) पंचायत क्षेत्र में नियमित कारबार करने वाले व्यापारी भी मासिक आधार पर आयात किये जाने के लिए संभावित माल के मूल्य को घोषित कर सकेंगे और अग्रिम रूप से चुंगी जमा करा सकेंगे। पंचायत ऐसे माल के वास्तविक मूल्य को वाउचरांे में/व्यापारी द्वारा किये गये विक्रय के आधार पर निर्धारित करने के लिए स्वतन्त्र होगी।
83. रेल या मोटर परिवहन अभिकरण द्वारा लाया गया माल – (1) रेल से लाया गया माल या पशुजैसे ही रेल्वे के माल या सामान
यार्ड से बाहर जायें, चुगी की सीमाओं में प्रविष्ट हुये समझे जायेंगे और तब वे उसी रीति से चुंगी शुल्क के दायित्वाधीन होंगे जिससे सड़क द्वारा लाये जाने वाले माल या पशु होते हैं।
(2) मोटर परिवहन अभिकरणों या परिवहन के अन्य साधनों द्वारा लाया गया माल या पशु, चुंगी शुल्क के दायित्वाधीन होंगे, यदि वे चुंगी चौकी पर इस प्रकार दायित्वाधीन हैं, या जहाँ ऐसी कोई भी चौकी नहीं हैं वहाँं चुंगी शुल्क पंचायत कार्यालय में संदत्त किया जायेगा।
84. डाक से प्राप्त माल – (1) डाक–पार्सलों से प्राप्त माल, यदि वह चुंगी के दायित्वाधीन है, पंचायत कार्यालय में पेश किया जायेगा और उस पर चुंगी की रकम नियम 82 के उप–नियम (4) के अनुसार निर्धारित, वसूल और संदत्त की जायेगी।
(2) पंचायत डाक प्राधिकारियों के साथ ऐसी व्यवस्थाएं कर सकेगी जिनके द्वारा डाक–पार्सलों से प्राप्त समस्त माल की सूची, प्रेषितियों के नामों के साथ, पंचायत कार्यालय पर अभिप्राप्त की जा सकेगी और यदि ऐसा कोई भी पार्सल उस पार्सल की प्राप्ति के एक मास के भीतर–भीतर पंचायत कार्यालय में पेश नहीं किया जायें, तो पंचायत प्रेषिती के विरूद्ध ऐसे कदम उठा सकेगी जो उप–विधियों में उपबंधित किये जायें।
85. तुरंत परिवहन के लिए माल – (1) यदि चुंगी चौकी के प्रभारी व्यक्ति को यान के डाइवर के पास की माल रसीद के आधार पर यह समाधान हो जाय कि माल पंचायत की सीमाओं के बाहर तत्काल परिवहन किये जाने के लिए है, तो वह माल के पंचायत सीमाओं के बाहर सुरक्षित परिवहन के लिए प्रपत्र 11 में ऐसी रकम प्रभारित करेगा जो पंचायत द्वारा नियत की जाये।
(2) अभिवहन की कालावधि साधारणतया चार घण्टे से अध्ािक की नहीं होगी किन्तु यान के ठप्प हो जाने आदि की दशा में सरपंच उसमें 24 घण्टे तक की यथोचित छूट दे सकेगा।
(3) यदि कोई यात्रा अभिकर्ता कोई माल विक्रय या प्रदर्षन के लिए लाये, तो वह देय चुंगी शुल्क जमा करायेगा किन्तु अविक्रीत और न पंचायत सीमा के बाहर परिकृष्त माल के लिए प्रतिदाय का दावा 7 दिन के भीतर–भीतर कर सकेगा।
(4) यदि पंचायत सर्किल में निवास करने वाला कोई यात्रा अभिकर्ता विक्रय के लिए माल ले जाये, तो वह चुंगी चौकी पर दो प्रतियों में वस्तुओं की एक पूर्ण सूची देगा। एक प्रति अभिकर्ता को सम्यक् रूप से सत्यापित करके लौटा दी जायेगी। यदि वह 15 दिन की कालावधि के भीतर–भीतर सम्पूर्ण माल या उसका कोई भाग वापस लाये, तो यदि माल वहीं हो जो उस सूची में उल्लिखित किया गया था तो कोई भी चुंगी प्रभारित नहीं की जायेगी।
86. चुंगी में छूट – इन नियमों में अन्तर्विष्ट किसी बात के होते हुए भी, चुंगी निम्नलिखित माल पर उद्गृहित नहीं की जायेगी, अर्थात्ः–
(1) गोबरर्, इंधन, घास, चारा और शाखा काष्ठ के सिर पर ले जाये गये भार,
(2) ऐसा माल जिस पर संदेय चुंगी एक रुपये से कम हो,
(3) सेना के, या राज्य या केन्द्र सरकार के पुलिस या किन्हीं भी अन्य विभागों के उपयोगार्थ आयुध,
(4) पंचायत सर्किल में विनिर्मित या उत्पादित वस्तुएँ,
(5) किसी व्यक्ति द्वारा पंचायत सर्किल के भीतर अपने निवास पर रहने के लिए आने के अवसर पर आयात किया गया सद्भाविक वैयक्तिक और घरेलू माल,
(6) किसी बारात के फीते सहित या रहित पहनने के वस्त्र, बर्तन, उपस्कार और खाने की वस्तुएॅं,
(7) किसी पंचायत सर्किल के नये उद्योग स्थापित करने या उनके विस्तार के प्रयोजनार्थ या विद्यमान उद्योगों में की मषीनरी के नवीनीकरण या मरम्मत के लिए आयात की गयी मषीनरी, यदि आयातकर्ता राज्य के उद्योग विभाग से ऐसे आयात के प्रयोजन को सत्यापित करने का कोई प्रमाण–पत्र प्रस्तुत कर दे,
(8) पंचायत सर्किल में आयात किया गया उर्वरक,
(9) नये उद्योगों को स्थापित करने या विद्यमान उद्योगांे के विस्तार के प्रयोजनार्थ किसी भी पंचायत सर्किल में लायी गयी समस्त संरचना सामग्री, कच्ची सामग्री और संनिर्माण सामग्री निदेशक , उद्योग राजस्थान, जयपुर या उनके सम्यक् रूप से प्राधिकृत प्रतिनिधि से यह प्रमाण–पत्र पेश करने के अध्यधीन रहते हुए कि ये मदें पूर्वोक्त प्रयोजनों के लिए आवश्यकहै: परन्तु छूट निदेशक उद्योग विभाग द्वारा दिये जाने वाले प्रमाण–पत्र के अध्यधीन रहते हुए, उद्योग की स्थापना/विस्तार की तारीख से 7 वर्ष की कालावधि के लिए उपलभ्य होगी,
(10) राज्य सरकार के विशेष आदेश द्वारा किसी अन्य वस्तु के लिये दी गई छूट।
स्पष्टीकरणः– (1) संनिर्माण सामग्री पर छूट कारखाना शैड, कार्यालय भवन और चौकीदारी के क्वार्टरों के संनिर्माण में प्रयुक्त सामग्री पर लागू होगी। यह अन्य प्रवर्गो पर लागू नहीं होगी।
(2) कच्चे माल में पैकिंग सामग्री, उपस्कर, फिक्स्चर, पैट्रोल, तेल, स्नेहक, कोयला, इमारती लकड़ी, वातानुकूलन और प्रषीतन संयंत्र तथा विद्युतीकरण के लिए प्रयुक्त अन्य वस्तुएॅं सम्मिलित नहीं होंगी।
87. चुंगी के संदाय के उपवंचन के लिए शास्ति – यदि किसी पंचायत सर्किल में होकर गुजरने वाला माल या पशु चुंगी शुल्क के संदाय के दायित्वाधीन हो तो प्रत्येक ऐसा व्यक्ति जो पंचायत को धोखा देने के आशय से चुंगी सीमाओं के भीतर ऐसे किसी माल या पशुओं का प्रवेश करवाता है या दुष्प्रेरित करता है, या स्वयं प्रविष्ठ करने का प्रयास करता हैं, जिनके संबंध में ऐसे प्रवेश पर देय चुंगी न तो संदत्त और न ही निविदत्त की गयी हैं, ऐसे जुर्माने से दण्डनीय होगा जो ऐसीचुंगीकी रकम का दस गुना तक हो सकेगा।
88. उप–विधियाँ – इन नियमों के अधीन देय चुंगी के विनियमन, निर्धारण, वसूली और संदाय के संबंध में इनकी अनुपूर्ति के लिए पंचायत द्वारा अधिनियम के अधीन ऐसी उप–विधियां बनायी जा सकेंगी जो इन नियमों से असंगत न हो।
यान कर
89. कर के दायित्वाधीन यानों का रजिस्टर – (1) जब किसी पंचायत ने धारा 65 की उप–धारा (1) के एक्ट (X) के अधीन यान पर कर उद्गृहित करने का विनिश्चय किया हो और इसके संबंध में नियम 59 से 62 तक में अधिकथित प्रक्रिया का पालन कर लिया हो तो पंचायत ऐसे कर के दायित्वाधीन यानों का एक रजिस्टर, प्रत्येक ऐसे यान के स्वामी का नाम और पता तथा उसके संबंध में देय कर की रकम विनिर्दिष्ट करते हुए, तैयार करवायेगी।
(2) कोई भी व्यक्ति, जो किसी यान को रखता है या भाड़े पर बनाता है चाहे वह ऐसे यान का स्वामी हो या उसका कब्जा रखने वाला कोई व्यक्ति हो या उसका उधारगृहिता हो या किसी भी अन्य हैसियत में उसका प्रभार रखता हो, उस यान पर का कर देने का दायी व्यक्ति समझा जायेगा।
(3) प्रत्येक ऐसा व्यक्ति जो किसी यान का कब्जा लेता है जिसके लिए वह कर देने का दायी है उसका कब्जा लेने के 15 दिन के भीतर–भीतर ऐसे यान का कब्जा लेने के तथ्य की लिखित सूचना देने के लिए बाध्य होगा।
(4) किसी भी ऐसे व्यक्ति की, जिसका नाम उप–नियम (1) में निर्दिष्ट रजिस्टर में दर्ज किया जाये या ऐसे किसी भी व्यक्ति के अभिकर्ता को उक्त रजिस्टर का निःषुल्क निरीक्षण करने दिया जायेगा और उसके किसी भी प्रयास से ऐसे उद्धरण जो उस व्यक्ति से संबंधित हो, लेने दिये जायेंगे।
(5) जब जब भी आवश्यकहो, पंचायत ऐसे रजिस्टर को सही करवायेगी।
90. यान कर में छूट – कोई भी यान कर किसी यान के संबंध में तब उद्ग्रहणीय नहीं होगा–
(क) यदि वह मोटर यान अधिनियम, 1988 (1988 का केन्द्रीय अधिनियम 59) के अन्तर्गत कोई मोटर यान हो, या
(ख) यदि वह खेती के प्रयोजनार्थ प्रयुक्त होता है, या
(ग) यदि वह केन्द्र या राज्य सरकार का कोई यान हो, और सार्वजनिक प्रयोजनों के लिए प्रयुक्त हो, या
(घ) यदि वह पंचायत समिति या जिला परिषद का हो।
91. कर की अग्रिम वसूली और अनुज्ञप्ति का जारी किया जाना – (1) यान कर प्रतिवर्ष अग्रिम रूप में संदेय होगा।
(2) जब कोई भी व्यक्ति किसी भी यान के संबंध में देय कर की रकम का संदाय करे, तो पंचायत उसे, ऐसे यान को उस कालावधि के लिए, जिससे संदाय संबंधित है, रखने या उपयोग करने के लिए प्रपत्र संख्या नम्बर 12 में अनुज्ञप्ति मंजूर करेगी।
92. कर की वसूली जब संदाय नहीं किया जाये – (1) यदि किसी यान के संबंध में कर नियम 91 के उप–नियम (1) के अनुसार संदत्त नहीं किया जाये तो सरपंच या पंचायत द्वारा इस निमित्त प्राधिकृत कोई भी कर्मचारी किसी भी समय यान को तब तक अधिगृहित कर सकेगा और विरूद्ध रख सकेगा जब तक ऐसा व्यक्ति समाधान के लिए यह साबित न कर दे कि उसने यान कर संदत्त कर दिया है।
(2) यदि अधिगृहित यान का दावा और उस पर देय कर का संदाय ऐसे अभिग्रहण की तारीख के पन्द्रह दिन के भीतर–भीतर न किया जाये तो पंचायत यह निर्देश दे सकेगी कि यान को लोक नीलाम द्वारा बेच दिया जाये और विक्रय के आगमों को यान पर देय कर के संदाय में उपायोजित कर लिया जाये।
(3) कर के रूप में शोध्य रकम के साथ–साथ कर की रकम की दुगुनी से अनधिक ऐसी शास्ति जिसका पंचायत निर्देश दे और अभिगृहण निरोध और विक्रय के संबंध में उपगत प्रभारी के मद्दे 200 रु. (दौ सौ रुपये) की राशि भी संदेय होगी और विक्रय आगमों में से वसूलीय होगी।
(4) यदि यान का स्वामी या उसका हकदार अन्य व्यक्ति अभिगृहण की तारीख से एक सप्ताह के भीतर–भीतर या विक्रय के पूर्व किसी भी समय उसके लिए दावा करें, तो वह उसे उस पर शोध्य कर और 200 रु. (दो सौ रुपये) के अनधिक ऐसी शस्ति जिसके लिए पंचायत निर्देश दे, संदाय पर लौटा दिया जायेगा।
वाणिज्यिक फसलों पर कर
93. विवरणियों का प्रस्तुत किया जाना – धारा 65 की उप–धारा (1) के खण्ड के अधीन वाणिज्यिक फसलों पर कर के अधिरोपण के लिए नियम 58 से 62 तक में अधिकथित प्रारम्भिक प्रक्रिया का पालन कर लिये जाने के पश्चात पंचायत सर्किल के भीतर अपने द्वारा अधिग्रहण भूमि पर धारा 65 के स्पष्टीकरण में पारिभाषित कोई भी वाणिज्यिक फसल उगाने वाले प्रत्येक व्यक्ति का यह कर्तव्य होगा कि वह ऐसी फसल काटने के कम से कम एक मास पूर्व पंचायत के सरपंच को उसकी रिपोर्ट प्रस्तुत करे और निम्नलिखित उपविषिष्टयां अन्तर्विष्ट करने वाली विवरणी दें,
(क) उस गांव का नाम जिसमें वे भूमियॉं स्थित हैं जिन पर इस प्रकार फसल उगायी गयी है,
(ख) इन भूमियों का हेक्टेयर की दृष्टि से क्षेत्रफल जिनमें ऐसी वाणिज्यिक फसल उगायी गयी है,
(ग) उगायी गयी वाणिज्यिक फसल की प्रवृत्ति, और
(घ) ऐसे उगाने वाले का नाम, पिता का नाम और निवास स्थान।
94. जॉंच और कर का निर्धारण – (1) सरपंच विवरणी को सत्यापित करने के प्रयोजनार्थ ऐसी जाँच कर या करवा सकेगा जो आवश्यकसमझे और यदि वह ठीक समझे तो खेती के अधीन क्षेत्र को वास्तविक मापमान द्वारा या पटवारी के द्वारा रखे गये गिरदावरी अभिलेख से अभिनिश्चित करवा सकेगा।
(2) ऐसी जाँच के पूर्ण होने पर, तीन पंचों और सचिव से गठित एक समिति उस क्षेत्र का, जिसमें कोई वाणिज्यिक फसल उगायी गयी है, उसकी सम्भावित कुल उपज का और उस पर उद्गृहणीय कर की रकम का निर्धारण करेगी।
(3) उप–नियम (2) के अधीन निर्धारण कर लिये जाने के पश्चात सरपंच ऐसे निर्धारण का एक नोटिस व्यक्ति को दिलायेगा जिसने विवरणी दी थी।
(4) वाणिज्यिक फसलों पर कर की दर भू–राजस्व की दरों के बराबर की राशि होगी।
95. विवरणी प्रस्तुत करने में विफलता – यदि कोई्र व्यक्ति नियम 93 द्वारा उपेक्षित कोई विवरणी प्रस्तुत करने में विफल रहे तो सरपंच नियम 94 के उप–नियम (2) में निर्दिष्ट समिति के अनुमोदित से, पटवारी से या अन्यथा प्राप्त सूचना पर किसी भी समय अपनी सर्वोत्तम विवेक बुद्धि से नियम 94 द्वारा अनुध्यात निर्धारण कर सकेगा और ऐसे प्रत्येक मामले में नोटिस द्वारा पंचायत सर्किल के भीतर–भीतर की किसी भूमि पर वाणिज्यिक फसल उगाने वाले व्यक्ति को ऐसी निर्धारण की सूचना देगा।
96. निर्धारण में कमी करना – किसी निर्धारिती से या औेर से यह सूचना प्राप्त होने पर कि किसी कृषिक विपत्ति के कारण वाणिज्यिक फसल को किसी प्रकार से क्षति या नुकसान हुआ है, सरपंच जाँच करेगा और यदि उसकी राय में फसल को सारवान् नुकसान होना साबित होता है तो वह नियम 94 के उप–नियम (2) में निर्दिष्ट समिति के अनुमोदन से निर्धारित में यथोचित कमी कर सकेगा।
जल कर
97. जल कर अधिरोपित करने के लिए संकल्प – यदि कोई पंचायत, पंचायत सर्किल के भीतर सुरक्षित पेय–जल प्रदाय की व्यवस्था करने और उसे बनाये रखने के लिए धारा 65 की उप–धारा (1) के खण्ड (ड़) के अधीन जल कर अधिरोपित करने का विनिश्चय करे, तो वह ऐसा करने के अपने आशय का एक संकल्प पारित करेगाी।
98. जल कर और अन्य प्रभार – (1) किसी गांव में जहाँं पेयजल का प्रदाय किसी सार्वजनिक नल, पम्प और टंकी स्कीम या हैण्ड पम्पों के जरिये किया जाता है जिसे पंचायत चलाती है या जिसका संचालन और संधारण राज्य सरकार द्वारा पंचायत को सौंपा गया हो या पेयजल आपूर्ति के लिए पंचायत द्वारा सरकार को कोई राशि दी जाती है। उस गांव का प्रत्येक निवासी पाईप द्वारा जल प्रदाय के मामलो ंमें 1 रुपये ( एक रुपया) प्रति व्यक्ति प्रति मास और अन्य मामलों मंे इस तथ्य को विचार में लाये बिना कि वह सार्वजनिक नल/हैण्ड पम्प का प्रयोग करता है या नहीं 0.50 मासिक जल कर संदत्त करेगा। जहाँ जल का प्रदाय किसी उपभोक्ता के परिसर में बिना किसी मीटर के किया जाता हो, वहाँ 20 रुपये प्रति नल प्रति परिवार प्रभारित किया जायेगा।
(2) यदि कोई मीटर, उपभोक्ता को संबंधित पंचायत द्वारा उपलब्ध कराया गया हो, तो 5 रुपये प्रतिमास की दर से जल प्रभार और मीटर किराया जन स्वास्थ्य अभियान्त्रिकी विभाग समय–समय पर निर्धारित दरों के अनुसार संगणित और वसूल किया जायेगा। उपभोक्ता को अपना स्वयं का मीटर लगाने के लिए भी अनुज्ञात किया जायेगा। ऐसे मामले में 5 रुपये मीटर किराया प्रभारित नहीं किया जायेगा।
(3) कोई भी व्यक्ति या तो स्वयं या अपने सेवकों या अभिकर्ताओं के जरिये संनिर्माण के प्रयोजनों के लिए सार्वजनिक नल से जल तब तक अभिप्राप्त करेगा जब तक कि विनिर्दिष्ट प्रभारों के अग्रिम संदाय के पश्चात संबंधित पंचायत से अनुज्ञा अभिप्राप्त न कर ली गयी हो। यदि कोई व्यक्ति संनिर्माण प्रयोजनों के लिए इन नियमों का उल्लंघन करते हुए सार्वजनिक नल से जल का उपयोग करता हुआ पाया जाये, तो वह जल कर की रकम के अतिरिक्त 200 रुपये तक का जुर्माना और 10 रुपये प्रतिदिन की ऐसी शास्ति, जो पंचायत विनष्चिय करे, देने का दायी होगा।
99. जल कर की वसूली – जल कर की वसूली निम्नलिखित रीति से की जायेगी–
(क) संबंधित पंचायत सार्वजनिक नल के लिए तथा निजी कनेक्षनों के लिए पृथक्–पृथक् बिल तैयार करेगी और उन्हें संबंधित व्यक्ति के पास संदाय की वास्तविक तारीख से कम से कम 7 दिन पर्वू पहुंचाने की व्यवस्था करेगी।
(ख) ऐसे प्रत्येक बिल में रकम, उसकी प्रकृति वह व्यक्ति जिससे वह शोध्य है और वह कालावधि जिसके लिए वह शोध्य है, और देय होने की तारीख के भीतर–भीतर जमा कराने पर 20% की रिबेट, विनिर्दिष्ट होगी।
(ग) यदि उस व्यक्ति द्वारा जल कर का संदाय 7 दिन के भीतर–भीतर न किया जाये, तो रिबेट अनुज्ञात नहीं की जायेगी और बिल की पूरी रकम, 15 दिन का नोटिस देने क पश्चात कुर्की वारण्ट की प्रक्रिया द्वारा वसूल की जायेगी।
(घ) उपभोक्ता के परिसर पर के निजी कनेक्षनों के मामले में, प्रभारी का समय पर संदाय करने में व्यतिक्रम करने पर, उपभोक्ता को 15 दिन का नोटिस देने के पश्चात कनेक्शन काट दिया जायेगा। उक्त कनेक्शन पंचायत द्वारा उद्गृहित शोध्यों का दुगुनी के बराबर शास्ति के साथ देयों का संदाय करने पर नवीकृत किया जायेगा।
100. जल कर के लिए उप – विधियों का बनाया जाना–संबंधित पंचायत अपने पंचायत सर्किल में जल प्रदाय को विनियमित करने के लिए विस्तृत उप–विधियां बना सकेगी।
तीर्थ यात्री कर
101. तीर्थ यात्री कर का अधिरोपण – कोई पंचायत, नियम 58 से 62 तक में अधिकथित प्रक्रिया का अनुसरण करने के पश्चात अधिनियम की धारा 65 की उप–धारा (1) के खण्ड (घ) के अधीन कोई तीर्थ यात्री कर लगाने का विनिश्चय कर सकेगी।
102. कर की कालावधि – स्थायी तीर्थ यात्रा के किसी स्थान के मामले में कर, वर्ष पर्यन्त अधिरोपित किया जा सकेगा या धार्मिक मेलों के मामले में ऐसी कालावधियों तक निर्बन्धित भी किया जा सकेगा।
103. तीर्थयात्री यानों पर कर – ऐसी कालावधि के दौरान यानों को खड़ा करने के लिए, बसों, कारों, टैक्सियों इत्यादि के लिए विभिन्न दरों पर कर उद्गृहित किया जा सकेगा।
104. संग्रहण के लिए प्रक्रिया – पंचायत कर को या तो जाँंच चौकी के माध्यम से संगृहित कर सकेगी या कर के ऐसे संग्रहण के लिए ठेका लोक नीलाम के जरिये आवंटित कर सकेगी।
[टिप्पणीः– पंचायत द्वारा तीर्थ यात्री कर लगाने से पूर्व राज्य सरकार की मंजूरी लेना अनिवार्य है जबकि अन्य कर पंचायत अपने स्तर पर लगा सकती है ।]
फीसों और करों की वसूली
105. शोध्यों के लिए बिल – (1) पंचायत को संदेय किसी भी कर फीस या अन्य शोध्यों की रकम के लिए, एक माँग पर्ची प्रपत्र 5 में तैयार की जायेगी और उसी दायित्वाधीन व्यक्ति को भेजी जायेगी।
(2) ऐसे प्रत्येक बिल में शोध्य रकम, उसकी प्रकृति वह व्यक्ति जिससे वह शोध्य है और वह कालावधि जिसके लिए वह शोध्य हैं, विनिर्दिष्ट होगी।
106. माँग का नोटिस – यदि इस प्रकार शोध्य राशि, उसके लिए बिल के प्रस्तुत किये जान के पन्द्रह दिन के भीतर–भीतर पंचायत कार्यालय में संदत्त न की जाये, तो पंचायत ऐसे व्यक्ति पर, जिसको कि ऐसा बिल प्रस्तुत किया गया है, प्रपत्र संख्या 13 में माँग का एक नोटिस तामील करवा सकेगी।
107. कुर्की और विक्रय का वारण्ट – (1) यदि वह व्यक्ति, जिस पर माँग का कोई नोटिस तामील किया गया है माँग के ऐसे नोटिस की तामील के पन्द्रह दिन के भीतर–भीतर नोटिस में मागी गयी राशि संदत्त नहीं करें या पंचायत के समाधान के लिए वह कारण दर्षित नहंी करे कि उसे क्यों नहीं वसूल किया जाना चाहिए तो वसूली के सभी खर्चो के साथ ऐसी राशि, व्यतिक्रमी की जंगम सम्पत्ति की कुर्की और विक्रय के लिए पंचायत द्वारा प्रपत्र 14 में जारी किये गये किसी वारण्ट के जरिये वसूल की जा सकेगी जो सचिव या अन्य लिपिक को संबोधित किया जायेगा।
(3) जहाँ कुर्की और विक्रय के लिए प्रस्तावित सम्पत्ति, कुर्की और विक्रय का वारण्ट जारी करने वाली पंचायत की अधिकारिता के बाहर हो, वहाँ ऐसा वारण्ट उस पंचायत के सरपंच को संबोधित किया जायेगा जिसकी अधिकारिता में ऐसी सम्पत्ति तत्समय है, और जहाँं वह ऐसे क्षेत्र में हो जिसके लिए कोई भी पंचायत नही है वहां वह अधिकारिता रखने वाले तहसीलदार को संबोधित किया जायेगा।
(4) उप–नियम (3) के अधीन वारण्ट प्राप्त करने वाली पंचायत का सरपंच या तहसीलदार उसे किसी भी अधीनस्थ अधिकारी को पृष्ठांकित कर सकेगा।
(5) इस नियम के अधीन जारी किया गया कोई वारण्ट व्यतिक्रमी की इतनी ही, जंगम सम्पत्ति की कुर्की और विक्रय के लिए देगा जो पंचायत की मॉंग और कुर्की तथा विक्रय के खर्चो की पूर्ति के लिए पर्याप्त हो।
108. कुर्की से छूट – निम्नलिखित सम्पत्ति नियम 107 के अधीन कुर्की और विक्रय के दायित्वाधीन नहीं होगी, अर्थातः–
(क) व्यतिक्रमी, उसकी पत्नी और बच्चों के आवश्यकपहनने के वस्त्र और बिस्तर,
(ख) औजार और कारीगर,
(ग) जहाँ व्यतिक्रमी कोई कृषक हो वहॉं उसके ख्ेाती के उपकरण, बीज, आगामी आठ मास तक के लिए उसके परिवार के लिए खाने–पीने की वस्तुएँं और उसकी गाय का बछड़ा, बछिया और अष्विका,
(घ) ऐसे आभूषण जिन्हें किसी स्त्री द्वारा छोडना रीति–रिवाज द्वारा प्रतिषिद्ध हो,
(ड़) श्रमिकों और घरेलू सेवकों की मजदूरियां चाहे वे धन के रूप में संदेय हो या जिन्स के रूप में,
(च) निर्वाह भत्ते के 50 प्रतिशतसीमा तक का वेतन!
स्पष्टीकरण–खण्ड (ड़) और (च) में ‘‘वेतन’’ से अभिप्रेत हैं किसी व्यक्ति द्वारा अपने नियोजन से छुट्टी पर या ड्यूटी पर प्राप्त की गयी कुल मासिक परिलब्धियां जिसमें राज्य या केन्द्र सरकार के किसी भी कानूनी आदेश के अधीन कुर्की से छूट पर पा्रप्त घोषित किया गया कोई भी भत्ता सम्मिलित नहीं है।
109. कुर्की के लिए प्रवेश – किसी भी अधिकारी के लिए जिसे नियम 107 के अधीन कुर्की और विक्रय का कोई वारण्ट सम्बोधित या पृष्ठांकित किया गया है, वारण्ट में निर्दिष्ट कुर्की करने के लिए सूर्योंदय और सूर्यास्त के बीच किसी भवन के किसी भी बाहरी या भीतरी दरवाजे को तोड़कर खोलना विधिपूर्ण होगा यदि उसके पास यह विश्वास करने के युक्तियुक्त आधार हो कि ऐसे भवन में ऐसी सम्पति है जो वारण्ट अधीन अभियोजन है और यदि वह अपने प्राधिकार और प्रयोजन को अधिसूचित करने तथा प्रवेश के लिए सम्यक रूप से माँग करने के पश्चात अथवा प्रवेश नहीं कर सकता हो:
परंतु ऐसा अधिकारी किसी महिला के लिए नियत किसी भी खण्ड में तब तक प्रवेश नहीं करेगा या उसके दरवाजे को तोडकर नहीं खोलेगा जहां तक कि उसने अपने आशय की युक्तियुक्त सूचना न दे दी हो और ऐसी महिला को हटने का अवसर न दे दिया हो।
110. कुर्की – (1) नियम 107 के उप–नियम (5) में अंतर्विष्ट उपबन्धों के अध्यधीन और नियम 108 में विनिर्दिष्ट अपवादों के भी अध्यधीन रखते हुए, वह अधिकारी जिसे कुर्की और विक्रय का वारण्ट सम्बोधित या पृष्ठांकित किया गया है जहाँ कहीं भी वह पायी जाये, कुर्क करने के लिए सक्षम होगा।
(2) ऐसा अधिकारी, सम्पति को कुर्क करने पर उसे हटाने या उसके समाधान के लिए पर्याप्त प्रतिभूति देने पर किसी भी अन्य व्यक्ति को संभलाने से पूर्व उस सम्पति की एक तालिका तत्काल बनायेगा और इस उप–नियम के अधीन तैयार की गयी प्रत्येक तालिका उस परिक्षेत्र के दो प्रतिष्ठित व्यक्तियों द्वारा अनुप्रमाणित की जायेगी जिनकी उपस्थिति में वह तैयार की गयी थी।
111. क्षयशील सम्पति का विक्रय – जब कुर्क की गई सम्पति शीघ्रतया और प्रकृत्या क्षयशील हो तो जब तक माँग की रकम निविदत न की जाये, उसका तत्काल विक्रय किया जा सकेगा और विक्रय के आगम जमा की जा सकेगी।
112. कुर्की के प्रति आक्षेप – (1) कुर्की के अधीन की सम्पति के लिए कोई दावा करने वाला कोई व्यक्ति उसी तारीख के पन्द्रह दिन के भीतर – भीतर ऐसी कुर्की के विरूद्ध आक्षेप फाईल कर सकेगा।
(2) ऐसे आक्षेप के संबंध में वारण्ट जारी करने वाली पंचायत के सरपंच द्वारा या यदि ऐसा वारण्ट नियम 107 के उप – नियम (3) के अधीन किसी अन्य पंचायत के सरपंच को या, यथास्थिति, अधिकारिता रखने वाले तहसीलदार को संबोधित किया गया हो तो ऐसे सरपंच या तहसीलदार द्वारा अन्वेषण और निर्वर्तन किया जायेगा।
(3) यदि आक्षेप अकर दिया जाये तो कुर्क की गयी सम्पति कुर्की से मुक्त कर दी जायेगी या यदि नियम 111 के अधीन उसका विक्रय कर दिया गया हो तो उसके विक्रय आगम आक्षेपकर्ता को संदाय किये जायेंगे।
(4) आक्षेप का अंतिम निपटारा होने तक कुर्क की गयी सम्पति के विक्रय का आदेश नहीं दिया गया हो तो वह स्थगित हो जायेगा।
(5) उप–नियम (4) में की कोई भी बात नियम 111 के अधीन किये गये किसी विक्रय से संबंधित नहीं होगी या उसे किसी भी प्रकार प्रभावित नहीं करेगी।
113. कुर्क की गयी सम्पति का विक्रय – (1) निम्नलिखित मामलों में, अर्थात्ः–
(1) जब नियम 112 के अधीन कुर्की के प्रति कोई आक्षेप फाईल नहीं किया हो या यदि फाईल किया गया हो, तो अनुज्ञात कर दिया गया हो और
(2) जब व्यतिक्रमी अपनी सम्पति की कुर्की के पश्चात ऐसी कुर्की से पन्द्रह दिन के भीतर – भीतर मॉग की रकम संदत करने में विफल रहा हो ओर कुर्क की गयी सम्पति का नियम 111 के अधीन विक्रय नहीं किया गया हो तब ऐसी सम्पति का विक्रय उसके विक्रय के लिए नियत की जाने वाली किसी तारीख पर लोक नीलाम द्वारा किये जाने का आदेश दिया जायेगा जो कुर्की की तारीख के पश्चात के बीसवें दिन के पूर्व की नहीं होगी।
(2) लोक नीलाम द्वारा ऐसे विक्रय का नोटिस उस स्थान के आस–पास और उस गांव या कस्बे में जहाँ सम्पति का विक्रय तत्समय किया जाना हो, किसी केन्द्रीय स्थान पर डोंडी पिटवा कर उद्घोषित किया जायेगाः बशर्ते नोटिस के जारी होने की तारीख से उस तारीख तक जिसको नीलाम प्रारम्भ किया जाये, कम से कम पन्द्रह दिन का समय व्यतीत हो चुका हो।
(3) ऐसे नीलाम में बोली लगायी जायेगी और सबसे ऊँची बोली लगाने वाले व्यक्ति को इस प्रकार नीलाम की गयी सम्पति का क्रेता घोषित किया जायेगा।
(4) बोली की सम्पूर्ण रकम क्रेता द्वारा उस स्थान पर ही संदत की जायेगी।
(5) नियम 107 के अधीन कुर्की और विक्रय का वारण्ट जारी करने वाली पंचायत का सरपंच या कोई पंच, सरपंच या कोई भी अधिकारी जिसे वह संबोधित या पृष्ठांकित किया जाये और कुर्क की गयी सम्पति के विक्रय में लगा या नियोजन कोई भी अधिकारी उसके इस नियम के अधीन उसके किसी भी विक्रय में भाग नहीं लेगा।
114. विक्रय आगमों का विनियोजन – (1) नियम 111 या नियम 113 के अधीन किसी भी सम्पति के विक्रय के आगमों में से इसमें आगे उल्लिखित मदों का पूर्वोक्त क्रम में संदाय किया जायेगा।
(1) ऐसे विक्रय में उपगत खर्चो और उनके लेखे के शोध्य, यदि कोई हो
(2) किन्हीं भी कुर्क किये गये पशुओं का अनुरक्षण किसी पंचायत कांजी हाउस में उनके अनुरक्षण की दरों पर करने के खर्वे को सम्मिलित करते हुए कुर्की का खर्चा और
(3) पंचायत की माँग जिसको वसूली के लिए कुर्की और विक्रय का आदेश दिया गया था।
(2) उप–नियम (1) के खण्ड (3) में निर्दिष्ट संदाय कर दिये जाने और पंचायत के लेखे में जमा कर दिये जाने पर उसके लिए एक रसीद व्यतिक्रमी को दी जायेगी।
अध्याय 8
कांजी हाउस
115. कांजी हाउस कीपर की नियुक्ति और कर्तव्य – (1) कांजी हाउस कीपर पंचायत द्वारा पृथक से नियुक्त किया जा सकेगा या उसके कर्तव्य खुले नीलाम के माध्यम से नियुक्त किसी ठेकेदार को साैंपे जा सकेंगे। कांजी हाउस कीपर का यह कर्तव्य होगा कि वहः (क) कांजी हाउसों से संबंध रखने वाले निम्नलिखित अभिलेख रखेगाः–
(1) प्रपत्र संख्या 15 में कांजी हाउस रजिस्टर
(2) प्रपत्र संख्या 16 परिबद्व पशुओं की विशिष्टियां दर्शित करने वाली पास बुक
(3) प्रपत्र संख्या 17 और 18 में परिबद्व पशुओं का परिदान दर्शित करने वाली पास बुक और
(4) प्रपत्र संख्या 19 में पशुओं के स्वामी द्वारा संदत किये जाने वाले प्रभारी और विक्रय आगमों का लेखा
(ख) ऐसे विवरण तैयार करना जो पंचायत द्वारा समय समय पर निर्देश किये जायें, और
(ग) परिबद्व पशुओं को सुरक्षित रखना और गर्मी, सर्दी ओर वर्षा से बचाने की और उन्हे खिलाने की भी व्यवस्था करना ।
(2) कांजी हाउस से और परिबद्व पशुओं को खिलाने–पिलाने से संबंधित सभी व्यय पंचायत निधि पर प्रभरित किये जायेंगे और उनसे होने वाली सभी आय उस निधि में जमा की जायेंगी।
116. पशुओं को अभिगृहित कर रखने वाले व्यक्ति – निम्नलिखित व्यक्तियों में से कोई भी किसी भी पशु का े अभिगृहीत कर या करवा सकेगा और उस पशु का े इस प्रयोजन के लिए स्थापित कांजी हाउस में चौबीस घण्टे के भीतर–भीतर ला या लिवा सकेगा।
(क) किसी भी ऐसी भूमिका का कृषक या अधिभोगी जिस पर उस पशु नेे अतिचार किया है और उसमें किसी भी फसल या उपज को नुकसान पहुंचाया है।
(ख) वह व्यक्ति जिसने किसी भी ऐसी भूमि पर जिस पर उस पशु नेे अतिचार किवा है और नुकसान पहुचाया हैं फसल या उपज को खेती के लिए अग्रिम खर्चा दिया है।
(ग) ऐसी फसल या उपज या उसके किसी भी भाग या उस भूमि का, जिस पर पशुओं ने अतिचार किया है या नुकसान पहुंचाया है, खरीददार या बंधकदार।
(घ) ऐसी फसल या उपज या उसके किसी भी भाग या उस भूमि का क्रेता जिस पर उस पशु नेे अतिचार किया है और नुकसान पहुंचाया है।
(ड़) सार्वजनिक सड़कों, खेल के मैदानों, बागानों, नहरों, जल–निकास संकर्मो, तटबंधों और इसी प्रकार के स्थानों का प्रभारी व्यक्ति या कोई भी लोक सेवक जो पशुओं को ऐसी सड़कों, मैदानों, बागानों, नहरों, तटबंधों और इसी प्रकार के स्थानों या ऐसी सड़कों,नहरों, जल विकास संकर्मो तटबंधों के पार्ष्वो या ढ़लानों को नुकसान पहुंचाते हुए या उन पर भटकते हुए पाये।
(च) खण्ड (क) से (घ) में उल्लिखित व्यक्तियों को और ऐसी भूमि की निगरानी के लिए नियुक्त कोई व्यक्ति, और (छ) चौकीदार और कोई भी लोक सेवक जो पशुओं को भटकते पाये।
117. चराई आदि और जुर्मानों की दरों का संप्रदर्शित किया जाना – जुर्मानों और खिलाने–पिलाने के प्रभारों की दरों की एक सूची कांजी हाउस पर या उसके निकट किसी सहजदृष्य स्थान पर लगायी जायेगी।
118. रजिस्टर में पशुओं की प्रविष्टि – जब पशु किसी कांजी हाउस में लाये जावें तो कांजी हाउस कीपर प्रपत्र 15 में एक रजिस्टर में प्रविष्टि करेगाः–
(क) पशुओं की संख्या और विवरण,
(ख) वह दिन और समय जिसको और जिस पर वे लाये गये थे,
(ग) अभिग्रहण करने वाले का नाम और निवास,
(घ) यदि ज्ञात हो तो पशुओं के स्वामी का नाम और निवास, और
(ड़) पशुओं की पहचान के चिह्न–रंग, सींग पूंछ बाल आदि।
119. पशुओं के लिए रसीद का दिया जाना – (1) इस प्रकार लाये गये पशुओं को परिबद्ध करने के पश्चात् कंाजी हाउस कीपर दो प्रतियों में एक रसीद तैयार करेगा और अभिग्रहण करने वाले या उसके अभिकर्ता को ऐसी रसीद की एक प्रति देगा और उसकी पावती के प्रमाण के रूप में रसीद बुक के प्रतिपर्ण पर उसके हस्ताक्षर या, यथास्थिति अंगूठे का निषान, अभिप्राप्त करेगा। प्रत्येक पशु का विवरण इस प्रयोजन के लिए रखे गये रजिस्टर में लिखा जायेगा।
(2) यदि पशुओं के स्वामी का नाम ज्ञात हो तो कांजी हाउस कीपर सुविधाजनक हा तो उसे सूचित करने की व्यवस्था करेगा।
120. वह समय जिसके दौरान पशु परिबद्व किये जा सकेंगे – पशु दिन और रात्रि के 10 बजे तक किसी भी समय इस शर्ते के अध्यधीन रखते हुए परिबद्ध किये जा सकेंगे कि पशु का अभिगृहिती उन्हें परिबद्ध करने पर कांजी हाउस कीपर से अपनी उपस्थिति में ऐसे पशु केी एक रसीद अभिप्राप्त करेगा।
121. पशुओं को खिलाने और जल पिलाने के समय का पंचायत द्वारा नियत किया जाना – पंचायत पशुओं को खिलाने और जल पिलाने का समय नियत करेगी और जिन पशुओं को न तो खिलाया गया है न ही जल पिलाया गया है उनके मामले में जुर्माना ही वसूलीय होगा।
122. पशुओं को जल पिलाने की व्यवस्था – पंचायत परिबद्ध को जल पिलाने के लिए पात्रों की समुचित व्यवस्था करेगी।
स्पष्टीकरण–यह व्यवस्था उस व्यवस्था के अतिरिक्त होगी जो पंचायत नियत किये गये समय पर पशुओं को जल पिलाने हेतु ले जाने के लिए करे।
123. स्वामी को पशु का परिदान – यदि पशु का स्वामी या उसका अभिकर्ता 3 दिन के भीतर–भीतर उपस्थित हो जाये और पशु केे लिए दावा करे, तो कांजी हाउस कीपर ऐसे पशुओं के संबंध में पंचायत द्वारा नियत किये गये जुर्मानों और प्रभारी के संदाय पर, उस पशु का े उसे परिदत्त कर देगा।
(2) पशु का स्वामी या उसका अभिकर्ता उस पशु का े वापस लेने पर रसीद के प्रमाण स्वरूप इस प्रयोजन के लिए विहित रजिस्टर में हस्ताक्षर करेगा।
124. सदोष अभिग्रहण के आधार पर पशुओं की नियुक्ति – यदि स्वामी या उसका अभिकर्ता उपस्थित हो और उक्त जुर्माना और व्यय संदत्त करने से इस आधार पर इन्कार करे कि अभिग्रहण अवैध था और स्वामी परिवाद प्रस्तुत करने वाला है तो जुर्माने और उस पशु केे संबंध में उपगत प्रभार यदि कोई हो जमा कराने पर पशु उसे परिदत्त कर दिया जायेगा।
125. जुर्माने आदि संदत्त करने में विफल होने पर विक्रय – यदि स्वामी या उसका अभिकर्ता उपस्थित हो और उक्त जुर्माने तौर प्रभार संदत्त या जमा करने से इन्कार करे या उसमें विफल रहे तो पंचायत द्वारा पांच दिन का नोटिस देने के पश्चात् पशु का लोक नीलाम द्वारा विक्रय किया जा सकेगा। देय जुर्माने और खिलाने तथा जल पिलाने के व्ययों के साथ–साथ विक्रय के व्यय यदि कोई हों, विक्रय के आगमों में से काट लिए जायेंगे। शेश पशुऔर विक्रय धन का अतिशेष यदि कोई हो, स्वामी या उसके अभिकर्ता को निम्नलिखित दर्शित करने वाले लेखे के साथ परिदत्त कर दिया जायेगाः–
(i ) अभिगृहित पशुओं की संख्या,
(ii ) वह समय जिसके दौरान वे परिबद्ध किये गये हैं,
(iii ) उपगत जुर्मानों और प्रभारौं की रकम,
(iv) वह रीति जिससे आगामों का व्ययन किया गया है।
[टिप्पणी – स्वामी या उसका अभिकर्ता उसे परिदत्त किये गये पशु केे लिए और ऐसे लेखे के अनुसार उसे संदत्त किये गये क्रय धन के अतिशेष के लिए रसीद देगा। यदि पशु का स्वामी या उसका अभिकर्ता जुर्माने या पशु केे संबंध में उपगत संदत्त करने या जमा कराने से इन्कार करें, तो उससे यदि संभव हो, एक लिखित रिपोर्ट अभिप्राप्त की जाये]
126. जुर्माने आदि की वसूली के लिए रसीद – यदि पशु का े छोड़ा जाये तो पशु केे स्वामी या उसके अभिकर्ता को प्रपत्र संख्या 17 में रसीद की दो प्रतियों में से एक दी जायेगी और उसके द्वारा जुर्मानों या पशुओं पर उपगत प्रभारों, यदि कोई हो, के संदत्त किये जाने के प्रमाणस्वरूप उसके हस्ताक्षर रजिस्टर में रसीद के पीछे अभिप्राप्त किये जावेंगे। रसीद की रकम की पिछली रसीदों की रकम में जोड़ने के पष्चात़् योग का प्राप्त हुये कुल धन के स्थान में लिखा जावेगा। यह योग प्रगामी रूप में बढ़ेगा जो केवल तब ही लिखा जायेगा जब रसीद के दोनों पर्ण तैयार कर दिये जायें।
127. क्रेता को रसीद का दिया जाना – यदि पशु नेीलाम किये जायें तो क्र्रेता को प्रपत्र संख्या 19 में पंचायत के सरपंच द्वारा सम्यक् रूप से हस्ताक्षरित रसीद दी जायेगी।
128. अदावाकृत पशु – यदि पशुओं के लिए, उनके परिबद्ध किये जाने की तारीख से तीन दिन के भीतर–भीतर दावा न किया जाये तो कांजी हाउस कीपर रजिस्टर में प्रपत्र संख्या 15 में इस तथ्य की प्रविष्टि करेगा और उसकी रिपोर्ट पंचायत को करेगा।
129. अदावाकृत पशुओं के संबंध में कांजी हाउस की रिपोर्ट – जो रिपोर्ट कांजी हाउस कीपर नियम 128 के अनुसार करेगा उसमें वह खिलाने के व्ययों और अन्य व्यय यदि कोई हो, ब्यौरो की प्रविष्टि करेगा।
130. 3 दिन के भीतर–भीतर न छोडे़ गये पशुओं का निर्वर्तन – 3 दिन के भीतर–भीतर न छोड़े गये पशुओं के बारे में कोई रिपोर्ट प्राप्त होने पर उसकी पत्रावली खोलने के पश्चात् निम्नलिखित कार्यवाही की जायेगी,
(क) पंचायत इस आश य का एक नोटिस देगी की किसी भी व्यक्ति को जो संबंधित पशुओं के नीलामी के प्रति आक्षेप रखता हो, उसे सही साबित करना चाहिए, और कोई भी आक्षेप ऐसे नोटिस में विनिर्दिष्ट कालाविधि (जो 30 दिन से कम की नहीं होगी) की समाप्ति के पश्चात् ग्रहण नहीं किया जायेगा। नोटिस में निम्नलिखित विषिष्टियां अवष्य लिखी जायेंः–
(1) पशुओं की संख्या और वर्णन,
(2) वे स्थान जहाँ वे अभिगृहित किये गये थे, और
(3) वे स्थान जहाँ वे परिबद्व हैं। टिप्पणी
ऐसे नोटिस को अभिग्रहण के स्थान के समीपतम गंाव में प्रकाशित किया जायेगा।
(़ख) नोटिस को प्रकाशित करने पर पंचायत साथ ही और सश र्त ऐसे पशुओं को नीलाम करेगी और वसूल किये गये नीलाम–धन को निलबंन खाते में जमा करा दिया जायेगा। पशुओं के नीलाम की शर्ते निम्नलिखित होंगी–
(1) यदि कोई आक्षेप फाइल नहीं किया जाये तो 30 दिन की कालावधि के भीतर–भीतर और यदि फाईल किया जाये तो ऐसे आक्षेप का अंतिम विनिश्चय होने तक पशु का क्र्रेता पशुओं का स्वामित्व अंतिरत नहीं करेगा, और
(2) वह नीलाम धन और पशुओं को खिलाने के व्ययांे का संदाय किये जाने पर पंचायत को पशु लौटा भी देगा। पंरतु यदि पंचायत परिबö पशु का लोक नीलाम द्वारा विक्रय, बोली लगाने वालों के अभाव कें कारण या नीलाम विक्रय के पशु की पूरी कीमत प्राप्त न होने के कारण, करने में असमर्थ हो तो पंचायत पशु को पड़ोस की पंचायत में या पशु मेला प्रभारी को विक्रय के लिए भेज सकेगी और पश्चात् कथित व्यक्ति ऐसे पशु के संबंध में नीलाम विक्रय की कार्यवाहियां संचालित करेगा और विक्रय आगम विक्रय कार्यवाही के खर्चे काट कर पूर्वकथित को विप्रेषित कर देगा। टिप्पणी नीलाम तीन दिनों तक किया जायेगा किन्तु यदि नीलाम से पशुओं की पूरी कीमत पहले ही प्राप्त हो जाये तो तीन दिनों की ऐसी कोई भी कालावधि आवश्यकनहीं होगी।
़(ग) यदि नोटिस की कालावधि के दौरान किसी भी व्यक्ति द्वारा कोई भी आक्षेप फाइल किया जावे तो पंचायत उससे उन पशुओं का स्वामित्व साबित करने की अपेक्षा करेगी। पंचायत पशुओं को उस व्यक्ति को लौटाने का आदेश देगी जिसने आक्षेप फाईल किया है, यदि वह यह साबित कर दे कि पशु उसके स्वयं के हैं।
स्पष्टीकरण– कार्यवाहियों की कालावधि के दौरान यदि पंचायत को यह समाधान हो जाये कि पशु आक्षेप फाईल करने वाले व्यक्ति के है और आगे किसी कार्यवाही की आवष्यकता नहीं है तो पंचायत यह ध्यान में रखते हुए कि खिलाने और पानी पिलाने के व्यय अनावष्यक रूप से न बढ़ें, यदि वह उचित समझे, पर्याप्त प्रतिभूति पेश करने पर पशु ऐसे व्यक्ति को परिदत्त कर सकेंगी।
(घ) आक्षेप फाईल करने वाले व्यक्ति को, पशुओं के परिदान के मामले में जुर्माना और खिलाने के व्यय उससे लिये जायेंगे। पशुओं के कांजी हाउस में रखने की कालावधि का जुर्माना और व्यय कांजी हाउस के लेखे में जमा करा दिये जायेंगे और खिलाने के व्ययों में से पंचायत सशर्त नीलामी के दिन तक खिलाने के ऐसे पभार संदत करेगी जो वह ठीक समझे। अतिशेष यदि कोई हैं, पंचायत की निधियों में जमा करा दिया जायेगा।
(ड.) किसी व्यक्ति से आक्षेप प्राप्त नहीं होने पर या पशु उस व्यक्ति के जिसने आक्षेप फाईल किये हैं साबित न किये जा सकने के मामले में, पंचायत पशुओं के नीलाम का आदेश देते समय जुर्माना और पशुओं को खिलाने के व्यय कांजी हाउस के लेखे में जमा करायेगी और नीलाम धन का अतिशेष , यदि केाई हो, पंचायत की निधियों में जमा करा दिया जायेगा। परन्तु सशर्त नीलाम, पंचायत के विनिश्चय के विरूद्ध की गई अपील का अंतिम विनिश्चय होने के पश्चात् ही अंतिम होगा।
131. कांजी हाउस का निरीक्षण – कांजी हाउस ग्रामीण विकास एवं पंचायती राज विभाग के किसी भी अधिकारी द्वारा निरीक्षण करने के लिए खुला रहेगा। निरीक्षण के समय, निरीक्षण अधिकारी रजिस्टर में के स्तम्भों के योग की परीक्षा करेगा और देखेगा कि रसीद में आगामी योगों को सही रूप में लिखा गया है तथा वे पंचायत निधि में जमा रकमों से मेल खाते हैं। वे कांजी हाउस कीपर के पास रखी नकदी, यदि कोई हो, की परीक्षा व गणना भी करेंगे।
132. खिलाने और जल पिलाने के प्रभारों का मापमान और जुर्माने की दरें – खिलाने और जल पिलाने के प्रभारों का मापमान निम्नलिखित होगाः–
क्र.सं. पशु जुर्माने की दरें खिलाने के प्रभार (प्रतिदिन)
1. हाथी – 50/- रू 150/- रू
2. ऊंट – 50/- रू 50/-रू
3. घोड़ा – 50/- रू 50/-रू
4. भैंस – 25/- रू 25/-रू
5. गाय, बैल – 25/- रू 25/-रू
6. गधा – 25/- रू 25/-रू
7. बछ़डा – 10/- रू 10/-रू
8 . बकरी – 10/- रू 10/-रू
9 . भेड़ – 10/- रू 10/-रू
10 . अन्य – 10/- रू 10/-रू
[टिप्पणी(1) पशु में, जहाँ भी उसका उल्लेख हो, मादा पशु सम्मिलित होगा]
(2) स्वामियों द्वारा रात्रि में पशु को साशय चरने के लिए छोड़ने की स्थिति में जुर्माना दुगनी दर से प्रभारित किया जायेगा। ऐसे पशु को लाने वाले व्यक्ति को जुर्माने में से प्रोत्साहन के रूप में 20 रू दिये जा सकेंगे।
133. कांजी हाउस कीपर को अग्रिम धन दिया जाना – पंचायत कांजी हाउस कीपर को प्रबंध के प्रयोजनों के लिए 100रू तक की अग्रिम रकम देगी जो परिश द पशुओं को खिलाने और जल पिलाने की आवश्यकव्यवस्था पंचायत के पर्यवेक्षाधीन करेगा। प्रत्येक कांजी हाउस कीपर जो अग्रिम धन प्राप्त करता है, इस आश य की एक लिखित रसीद देगा कि धन उससे शोध्य है और वह उसका लेखा देगा। ऐसी रसीद पंचायत की सुरक्षित फाइल में रखी जायेगी। ऐसे किसी अग्रिम का कोई भी अतिशेष यदि वित्तीय वर्ष की समाप्ति पर कांजी हाउस से शोध्य हो तो वह प्रतिवर्ष मार्च के मासिक लेखे में दिखाया जावेगा। अग्रिम जो कांजी हाउस कीपर को दिया जा सकेगा, पंचायत निधि का भाग होगा परन्तु कांजी हाउस की दैनिक आय कांजी हाउस कीपर द्वारा अगले दिन पंचायत में जमा करा दी जायेगी।
134. नीलामी में बोली लगाने के बारे में प्रतिषेध– पंचायत का कोई भी सदस्य या कर्मचारी नीलाम मं अपनी बोली नहीं लगायेगा।
135. पशु स्वामित्व किसी न्यायालय में विवादग्रस्त होने के मामले में उपबन्ध– उन मामलों में जहॉ परिबद्ध पशु का स्वामित्व किसी न्यायालय में या अन्यथा विवादग्रस्त है वहॉ न्यायालय यह निदेश दे सकेगा कि पशु को, उतनी कालावधि के लिए काजी हाउस में रखा जाये जो उस आदेश में विनिर्दिेष्ट हो, और पशु को, खिलाने आदि के मद्दे अनुमानित प्रभार संबंधित पक्ष द्वारा अग्रिम रूप से जमा कराये जायेंगेः
परन्तु यदि वह पक्ष इस नियम के अधीन पंचायत द्वारा नियत राशि अग्रिम रूप में संदत्त न करे या उक्त राशि संदत्त करने के लिए ऐसा कोई भी पक्ष न हो तो न्यायालय ऐसा समुचित आदेश पारित कर सकेगा जो वह ठीक समझे।
संकर्म, संविदाएं और क्रय
174. पंचायती राज संस्थाओं द्वारा वार्षिक कार्य योजना – (1) पंचायती राज संस्थान प्रत्येक वित्तीय वर्ष के प्रारंभ के पूर्व पूर्ववर्ती वर्ष में आवंटित निधियों के अपने हिस्से के 125 प्रतिशत के मूल्य की समतुल्य एक वार्षिक कार्य योजना, अधिमान्यतः, ग्राम सभा की वित्तीय वर्ष के अंतिम त्रिमास में आयोजित बैठक में तैयार करेगी। कोई भी कार्य नहीं लिया जा सकेगा, जब तक वह वार्षिक कार्य-योजना का भाग न हो।
(2) वार्षिक कार्य-योजना बनाते समय अपूर्ण संकर्मों को पूरा करने को, नवीन कार्य हाथ में लेने की तुलना में, प्राथमिकता दी जायेगी। कोई भी ऐसा कार्य नहीं लिया जायेगा जो दो वित्तीय वर्षों के भीतर- भीतर पूरा नहीं किया जा सकता हो।
(3) संकर्मों की योजना तैयार करते समय गांव के कमजोर तबके के हितों के संरक्षण का ध्यान रखा जायेगा और अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, महिलाओं तथा ग्राम-समाज के अन्य कमजोर वर्गों को लाभ पहुंचाने वाले संकर्मों को प्राथमिकता दी जायेगी।
(4) केवल वे ही संकर्म लिये जा सकेंगे जिनका आकार, लागत तथा प्रकृति ऐसी है कि वे स्थानीय स्तर पर कार्यान्वित किये जा सकते हों और जो श्रम सघन तथा लागत प्रभावी हों और उच्चस्तरीय तकनीकी आदाएं अन्तर्वलित नहीं करते हों।
(5) लिये जाने वाले संकर्म चलने योग्य प्रकृति के होने चाहिए और समुचित तकनीकी स्तरमानों तथा विनिर्देशों की पूर्ति करने वाले होने चाहिए।
175. प्राक्लन और दरों की अनुसूची – (1) संबंधित पंचायती राज संस्था संकर्मों की योजना, डिजाइन या विनिर्देश और उनके निष्पादन में संभाव्यतः उपगत होने वाली लागत का प्राक्कलन अर्हता प्राप्त ओवरसीयर या अभियन्ता के जरिये या किसी भी अन्य अभिकरण के जरिये तैयार करायेगी।
(2) पंचायती राज संस्था ऐसे प्राक्कलन जिला परिषद् / जि.गा.वि.अ. द्वारा समय-समय पर जारी किये गये निर्देशों में बताई गई दर सूची के आधार पर कर सकेंगे।
(3) प्राक्कलन नियम 176 के उप-नियम (2) में उल्लिखित अधिकारियों द्वारा तकनीकी रूप से अनुमोदित किये जायेंगे।
176. सकंर्मो (निर्माण कार्यों) की मंजूरी – (1) यदि इस प्रकार तैयार की गयी योजना, डिजाइन या विनिर्देश का प्राकलन जो राज्य सरकार द्वारा निर्धारित सीमा से अधिक का नहीं हो, तो पंचायत अपनी व्ययनाधीन निधियों की उपलब्धता के अध्यधीन रहते हुए, संकर्म के निष्पादन को अपने संकल्प द्वारा मंजूर कर सकेगी।
(2) राज्य सरकार द्वारा समय-समय पर विहित सक्षम अधिकारी द्वारा तकनीकी अनुमोदन किया जायेगा।
(3) पंचायती राज संस्थाओं की कार्य योजना तकनीकी संविक्षा को सुनकर बनाने के लिए जिला परिषद् जि.ग्रा.वि.अ.संकर्मो की उन मदों के मानक–ड़िजाईन और लागत प्राक्कलन तैयार और अनुमोदन कर सकेगा जो पंचायती राज
संस्थाओं द्वारा हाथ में लिये जायें।
(4) संकर्म पंचायती राज संस्थाओं द्वारा अनुमोदित लागत मानदण्ड़ों और समय–समय पर राज्य सरकार द्वारा जारी
की गयी मंजूरियों के आधार पर निष्पादित किये जा सकेंगे।
[टिप्पणी – वित्त (व्यय-1) विभाग की सहमति आई.डी. सं. 1701 दिनांक 15-6-1998 के अनुसरण में पंचायतों के द्वारा व्यय की सीमा प्रत्येक मामले में रु. 1.00 लाख निर्धारित की जाती है। आदेश क्रमांक एफ. 95/ (19)/7 लेखा/नि. आय / 13 दिनांक 1-1-1999 द्वारा प्रसारित]
177. सकंर्मो (निर्माण कार्यों) का निष्पादन – (1) नियम 176 के उप–नियम (4) के अधीन मंजूर किये गये संकर्म के निष्पादन का उत्तरदायित्व, इस नियम के उपबंधों के अध्याधीन रहते हुए, मुख्य रूप से पंचायत/ पंचायत समिति का होगा।
(2) किसी भी संकर्म का निष्पादन तब तक प्रारंभ नहीं किया जायेगा जब तक –
(क) वह सम्यक रूप से मंजूर न किया गया हो,
(ख) उसके लिए आवश्यक निधियां उपलब्ध न हो या उपलब्ध न करवा दी गयी हो,
(ग) तकनीकी अनुमोदन नियम 176(2) अथवा 176(3) के अनुसार अभिप्राप्त न कर लिया गया हो।
(3) पंचायतों तथा पंचायत समिति द्वारा निष्पादित संकर्मो के कुर्सी–स्तर छत–स्तर तक के और पूर्ण होने पर स्थल निरीक्षणों क लिए पंचायत समिति का कनिष्ठ अभियन्ता संकर्मों के संनिर्माण और तकनीकी विनिर्देशों की गुणवत्ता सुनिश्चित कराने के लिए उत्तरदायी होगा। संकर्मो की मापों के ब्योरों की प्रविष्टि इस प्रयोजन के लिए रखी गई माप–पुस्तक में की जायेगी।
(4) पंचो/ सदस्यों की समिति को स्थल पर ऐसे संकर्मो के निष्पादन को पर्यवेक्षण सौंपा जा सकेगा।
(5) पंचायतों/ पंचायत समितियों के निरीक्षण के दौरान प्रत्येक मास, विकास अधिकारी स्थल पर 10 प्रतिशत संकर्मो का भौतिक सत्यापन करेगा और मुख्य कार्यपालक अधिकारी कम से कम 10 संकर्मो की जांच करेगा।
178. समापन का प्रमाणप्रत्र – (1) संबंधित पंचायती राज संस्था का यह कर्तव्य होगा कि वह समापन प्रमाण–पत्र जारी करने के लिए संकर्म की समापन की रिपोर्ट एक सप्ताह के भीतर–भीतर करें।
(2) समापन प्रमाण–पत्र जारी करने के लिए सक्षम तकनीकी अधिकारी एक मास के भीतर संकर्म का निरीक्षण करेगा और प्रमाण–पत्र जारी करेगा।
(3) समापन प्रमाण–पत्र पर सरपंच और कनिष्ठ अभियन्ता दोनों के द्वारा हस्ताक्षर किये जायेंगे।
179. सावधि प्रगति रिपोर्ट – (1) मासिक प्रगति रिपोर्ट संकर्म वार मंजूर रकम, मास के दौरान व्यय, संचयी व्ययों, भौतिक प्रगति, मजदूरी/सामग्री पर व्यय का प्रतिशत, अनुसूचित जाति/ अनुसूचित जनजाति/ महिला / भूमिविहीन श्रमिकों के नियोजन को उपदर्शित करते हुए तैयार की जावेगी।
(2) ऐसी रिपोर्ट अगले उच्चतर प्राधिकारी और जिला परिषद/ जि.ग्रा.वि.अ. को भेजी जायेगी।
181. संकर्मो का रजिस्टर – (1) प्रत्येक पंचायती राज संस्था उसके द्वारा अपने जिम्मे लिए गये प्रत्येक संकर्मों के लिए प्रपत्र 25 में संकर्मो का एक रजिस्टर रखेगी।
(2) प्रत्येक संकर्म के लिए पृथक फाईल रखी जायेगी, जिसमें संबंधित संकर्म मंजूरी, प्राक्कलन, योजना आदि की प्रति रखी जायेगी।
(3) प्रत्येक संकर्म के लिए प्राप्त सार्वजनिक अंशदानों के लिए भी एक पृथक रजिस्टर रखा जायेगा।
*[181. संविदा पर संकर्मो का निष्पादन – (1) पंचायती राज संस्था किसी संकर्म को संविदाकारों के माध्यम से भी निष्पादित कर सकेगी जब तक कि संविदाकार के माध्यम से ऐसे संकर्म का निष्पादन सम्बन्धित स्कीम के मार्गदर्शक सिंद्वान्तो द्वारा निबंधित न हो ।]
*[राजस्थान पंचायती राज (संशोधन) नियम 2012 संख्या एफ.(7) एम /नियम/ विधि/ पंरा/ 2012/ 930 दिनांक 02.0 5.2012 द्वारा नियम 181 प्रतिस्थापित किया गया]
(2) उप– नियम (1) में अन्तर्विष्ठ किसी बात के होते हुए भी पंचायती राज संस्था कर्मकारी को मस्टल रोल पर अभिनियोजिता कर किसी संकर्म का निष्पादन कर सकेगी
(3) पंचायती राज संस्था उपर्युक्त उप–नियम (2) के अधीन निष्पादित किये जाने संकर्माे के लिए संकर्म सामग्री के क्रय के लिए निविदा आमान्त्रित करने की सम्यक प्रकिया का अनुसरण करने के पश्चात संविदा के आधार पा सामग्री का उपापन कर सकेगी । ]
182. पंचायती राज संस्थाओं के द्वारा संविदाएं और उनकी ओर से विलेखो का निष्पादन – (1) किसी पंचायती राज संस्था द्वारा या उसकी और से की गयी समस्त संविदाएं ऐसी पंचायती राज संस्था के नाम से की गयी अभिव्यक्त की जायेगी।
(2) वे पंचायत की और से संरपच और सचिव द्वारा संयुक्त रूप से, पंचायत समिति की और से प्रधान और विकास अधिकारी द्वारा संयुक्त रूप से, जिला परिषद की ओर से प्रमुख और मुख्य कार्यपालक अधिकारी द्वारा संयुक्त रूप से सत्यापित और हस्ताक्षरित की जायेगी।
*[182क. संकर्मों के लिए विस्तृत प्रक्रिया – संकर्मों की योजना, मंजूरी और निष्पादन में, प्रत्येक पंचायती राज संस्था और निष्पादन करने वाला कोई अन्य अधिकरण राज्य सरकार द्वारा जारी ग्रामीण कार्य निर्देशिका में यथा विनिर्दिष्ट प्रक्रिया और निर्देशों का पालन करेंगें ।]
क्रय
183. *[सामग्री ओर सेवाओं का उपापन] – (1) पचंायती राज संस्थाए संनिर्माण संकर्मों लिए अपेक्षित सीमेन्ट, चूना, पत्थर, ईंट, पट्टियों, बजरी, लकडी इत्यदि (या कोई भी अन्य वस्तुए या सेवाएं ) न्यूनतम कीमतों पर उपाप्त करेगी
**[(1क) सम्बन्धित पंचायती रात संस्था द्वारा सामग्री ओर सेवाओं के उपापन के लिए वर्षिक कार्य योजना को प्रत्येक वर्ष 31 जनवरी तक या ऐसी किसी अन्य तारीख तक जो राज्य सरकार द्वारा इस निमित विनिश्चित की जाये अन्तिम रूप दिया जायेगा ओर सम्बन्धित पंचायती राज संस्था के नोटिस बोर्ड पर ओर सम्बन्धित जिले की शासकीय वेबसाइट पर प्रदर्शित की जायेगी ।]
**[राज. पंचायती राज (संशोधन) नियम, 2011 द्वारा जोड़ा गया, राजपत्र भाग 4(ग) दिनांक 16 .03 .2011 को प्रकाशित एवं प्रभावी]
(1ख) प्रेत्यक पंचायत समित अपनी अधिकारिता के भीतर किसी ग्राम पंचायत द्वारा उपाप्त की जाने वाली सामग्री ओर सेवाओ की दरों की मूल अनुसूची जिसें इसमें इसके पश्चात् द.मू.अ. वर्ष में कम से कम एक बार 15 फरवरी तक या किसी अन्य तारीख तक जो राज्य सरकार द्वारा विनिश्चित की जाये तैयार की जायेगी । द.मू.अ. को निम्नलिखित से मिलकर बनी समिति द्वारा अन्तिम रूप दिया जायेगा अर्थात
(1) खण्ड विकास अधिकारी – अध्यक्ष
(2) पंचायत समिति कार्यालय में कार्यालय सहायक अभियंता – सदस्य सचिव
(3)संबधित पंचायत समिति क्षेत्र के लोक निर्माण विभाग का सहायक अभियंता – सदस्य
(4) संबधित पंचायत समिति क्षेत्र क ेजल संसाधन विभाग का सहायक अभियंता – सदस्य
(5) पंचायत समिति का लेखाकार या कनिष्ठ लेखाकार – सदस्य
(6) जिला कलक्टर/ जिला कार्यक्रम समन्वयक द्वारा नामनिर्दिष्ट पंचायत समिति मुख्यालय पर कार्यरत राजपत्रित अधिकारी – सदस्य
टिप्पणी – सहायक अभियंता, पंचायत समिति का पद रिक्त होने की स्थिति में, खंड विकास अधिकारी पंचायत समिति के क्षेत्र में किसी अन्य विभाग में कार्यरत अन्य सहायक अभियंता को सहयोजित करेगा ण्
(1ग) उपनियम (1ख) के तहत गठित समिति द्वारा अंतिम रूप दिए गए बीएसआर का अनुमोदन जिला स्तरीय दर अंतिमीकरण समिति से प्राप्त किया जाएगाए जिसमें निम्नलिखित शामिल हैं –
(i) जिला कलेक्टर – अध्यक्ष
(ii) मुख्य कार्यकारी अधिकारीए जिला परिषद – सदस्य
(iii) लोक निर्माण विभाग के जिला स्तरीय अधिकारी – सदस्य
(iv) जल संसाधन विभाग के जिला स्तरीय अधिकारी – सदस्य
(v) वन विभाग के जिला स्तरीय अधिकारी – सदस्य
(vi) कार्यपालक अभियंताए महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना – सदस्य
(vii) जिला मुख्यालय में कार्यरत उद्योग विभाग के वरिष्ठतम पदाधिकारी – सदस्य
(viii) कार्यकारी अभियंताए जिला परिषद के कार्यपालक अभियंता (इंजीनियर) – सदस्य सचिव
(2) सामग्री विनिदेशों के अनुसार अच्छी गुणवता की और यदि मानक मद है तो आई. एस. आई मार्क की होनी चाहिए।
(3) सामग्री किसी ठेकेदार या बिचौलिये के माध्यम से क्रय की जाने की बजाय सीधें ही विनिर्माता या थोक प्रदायकर्ता से क्रय की जावेगी।
(4) पंचायती राज संस्था वर्ष के दौरान अपेक्षित ऐसी सामग्री के लिए मांग का निर्धारण कर सकेगी और यदि कुल मूल्य 30,000 रूपये से अधिक हो तो खुली निविदाएं आमंत्रित कर सकेगी।
(5) छोटे भागो में क्रय किये जाने को परिवर्जित किया जायें।
ख्(6) निविदाकर्ता राजस्थान मूल्य वर्धित कर अधिनियमए 2003 (2003 का अधिनियम संख्या 4) के तहत पंजीकृत एक डीलर होना चाहिए। निविदाकर्ता को निविदा में अपनी पंजीकरण संख्या (टिन) का उल्लेख करना होगा और संबंधित निर्धारण अधिकारी द्वारा जारी कर निकासी प्रमाण पत्र की एक प्रति संलग्न करनी होगीए ऐसा न करने पर निविदा को अस्वीकार कर दिया जाएगा।,
*[184. **[निविदाओं द्वारा की जाने वाली खरीद] – (1) यदि खरीद की राशि 3000/- रुपये से कम है तो किसी भी निविदा की आवश्यकता नहीं होगी और यह एकल कोटेशन के आधार पर या जिला परिषद के केंद्रीय या राज्य सरकार द्वारा अनुमोदित दर अनुबंध पर किया जा सकता है।
*[राज. पंचायती राज (संशोधन) नियम, 2006 द्वारा नियम 184 प्रतिस्थापित, अधिसूचना संख्या एफ. 186(14) लेखा/ इनस 1 / 2648 दिनांक 07.06 .2006]
**[राज. पंचायती राज (संशोधन) नियम, 2011 द्वारा अन्तःस्थापित, राजपत्र भाग 4(ग) दिनांक 16 .03 .2011 को प्रकाशित एवं प्रभावी]
(2) यदि खरीद की राशि 3000/- रुपये से अधिक है लेकिन 50000/- रुपये तक है तो ऐसी सामग्री में काम करने वाले कम से कम तीन आपूर्तिकर्ताओं से प्रतिस्पर्धी दरों को आमंत्रित करके,सीमित निविदा आधार पर किया जा सकता है।
(3) यदि खरीद की राशि 50,000/- रुपये से अधिक हैए तो खुली निविदाएं सीलबंद लिफाफे में आमंत्रित की जाएंगी।
[(4) ग्राम पंचायत सामग्री और सेवाओं की खरीद के लिए निम्नलिखित प्रक्रिया का पालन करेगीए अर्थात –
(क) सीमित या खुली निविदा के माध्यम से संबंधित ग्राम पंचायत द्वारा प्राप्त की जाने वाली सामग्री और सेवाएं नियम 183 के उप.नियम (1ख) और (1ग) के प्रावधानों के तहत अंतिम रूप दी गई दरों की नवीनतम मूल अनुसूची से अधिक नहीं होंगी।
(ख) यदि सीमित या खुली निविदा के माध्यम से पंचायत स्तर पर आमंत्रित वस्तुओं की दरें नवीनतम मूल अनुसूची दरों से 10% तक अधिक है, तो संबंधित पंचायत ऐसे मामलों को अधिकतम एक सप्ताह की अवधि सीमा के भीतर ऐसे मामले की जांच नियम 183 के उप.नियम (1ख) के तहत गठित दर अंतिमकरण समिति द्वारा की जाएगी और ऐसी समिति का निर्णय अंतिम होगा ।
(ग) ऐसे मामलों में जहां पंचायत स्तर पर सीमित या खुली निविदा के माध्यम से आमंत्रित मदों की दर 10% से अधिक लेकिन 25% तक है, उन्हें नियम 183 के उप.नियम (1ख) के तहत गठित समिति अपनी टिप्पणियों के साथ एक सप्ताह की अधिकतम अवधि के भीतर जिला कलेक्टर को संदर्भित किया जाएगा। इस प्रकार प्राप्त संदर्भ की जांच नियम 183 के उप नियम (1 ग) के तहत गठित जिला स्तरीय दर अंतिमीकरण समिति द्वारा की जाएगी। समिति इसे संदर्भित ऐसे सभी मामलों की जांच करेगी और अधिकतम 10 दिनों की अवधि
के भीतर इसका फैसला करेगी।,
*[टिप्पणी – सीमित निविदा की अनुमति अधिकतम रूपये 50,000/- प्रत्येक मामले में रुपये 5,00,000/- की वार्षिक सीमा तक अनुज्ञेय। राजस्थान पंचायती राज (संशोधन) नियम 2012 संख्या एफ.(7) एम /नियम/ विधि/ पंरा/ 2012/ 930 दिनांक 02.0 5.2012 द्वारा रुपये 2 ,00,000/- स्थान पर रुपये 5,00,000/- प्रतिस्थापित किया गया]
185. निविदाएं आमंत्रित करने का नोटिस – (1) मुहरबंद लिफाफे में खुली निविदाएं आमंत्रित करने का नोटिस निम्नलिखित को विनिर्दिष्ट करते हुए जारी किया जायेगा–
(क) अपेक्षित वस्तुए, मात्रा, गुणवत्ता के बारे में विनिर्देश तथा अनुमानित मूल्य और अन्य आवश्यक ब्योरे जैसे प्रत्येक मद के लिए अथवा ग्रुपों आदि में दरे उद्धरित की जायें।
(ख) संबंधित पंचायती राज संस्था के कार्यालय में निविदाएं प्रस्तुत करने की तारीख और समय।
(ग) निविदा के साथ जमा कराये जाने वाले प्राक्कलित मूल्य का 2 प्रतिशत अग्रिम धन।
(घ) निविदाएं खोलने की तारीख और समय।
(ड़) निविदा स्वीकृत करने या उसे उसके लिए कोई कारण बताये बिना अस्वीकृत करने के लिए सक्षम प्राधिकारी।
(2) ऐसे निविदा नोटिस की प्रति हिन्दी में संबंधित पंचायती राज संस्था के कार्यालय में तथा ऐसे अन्य स्थानों पर, जो उपयुक्त समझे जाए, चिपकायी जायेगी और प्रतिष्ठित फर्मो, व्यवहारियों और प्रदायकर्ताओं को भी प्रतियां भेजी जायेगी।
(3) जिले में व्यापक प्रसार संख्या वाले कम से कम एक समाचार पत्र को विज्ञापन भेजा जायेगा
(4) नोटिस की अवधि निम्नानुसार होगी –
(ए) यदि निविदा राशि रुपये 50,000/- से अधिक लेकिन रुपये 5,00,000/- तक हो तो 10 दिन,
(बी) यदि निविदा राशि रुपये 5,00,000/- से अधिक लेकिन रुपये 10 ,00,000/- तक हो तो 15 दिन,
(सी) ) यदि निविदा राशि रुपये 10 ,00,000/- से अधिक हो तो 30 दिन।
परन्तु अत्यावश्यक आवश्यकता की दशा में जिसे लिखित रूप में अभिलेखित किया जायेगा, क्रय समिति एवं विभाग स्तर पर समिति, खुली निविदा की सूचना की अवधि 30 दिन से घटाकर 20 दिन तथा 15 दिन से घटाकर 10 दिन कर सकती है।
186. निविदाओं का खोला जाना – (1) निविदाए, नोटिस में विनिर्दिष्ट तारीख और और समय पर, न कि उसके पूर्व, संबंधित पंचायत राज संस्था के कार्यालय में ऐसे निविदाकारों अथवा उनके प्रतिनिधियों की उपस्थिति में, जो उस समय उपस्थित हो, क्रय समिति द्वारा खोली जायेगी। यह सत्यापित किया जायेगा कि मुहर अविकल हैं तथा अधिकारियों द्वारा प्रत्येक निविदा पर उसे खोले जाने की तारीख और समय का पृष्ठांकन उपस्थित निविदा पर हस्ताक्षर करके किया जायेगा।
*[परन्तु उपनियम (2) के खण्ड (क) के अधीन गठित क्रय समिति की बैठक ग्राम पंचायत अथवा पंचायत समिति कार्यालय में हो सकती है।]
*[राज. पंचायती राज (संशोधन) नियम, 2011 द्वारा परन्तुक अन्तःस्थापित, राजपत्र भाग 4(ग) दिनांक 16 .03 .2011 को प्रकाशित एवं प्रभावी]
(2) क्रय समिति निम्नलिखित रूप में गठित की जायेगी–
(क) पंचायत स्तर –
(i) सरपंच (अध्यक्ष),
(ii उप.सरपंच,
(iii) सतर्कता समिति का अध्यक्ष,
(iv) सचिव,
*[(v) पंचायत के कनिष्ठ अभियंता,
(vi) पंचायत समिति के लेखाकार या कनिष्ठ लेखाकार]
*[एक ग्राम पंचायत ऐसी खरीद समिति के माध्यम से सामग्री और सेवाओं की खरीद करेगी। समिति की गणपूर्ति हेतु पंचायत समिति के कनिष्ठ अभियंता एवं लेखाकार अथवा कनिष्ठ लेखाकार, ग्राम पंचायत के सरपंच एवं सचिव की उपस्थिति अनिवार्य होगी।,
*[राज. पंचायती राज (संशोधन) नियम, 2011 द्वारा जोड़ा गया, राजपत्र भाग 4(ग) दिनांक 16 .03 .2011 को प्रकाशित एवं प्रभावी]
(ख) पंचायत समिति स्तर –
(i) प्रधान (अध्यक्ष),
(ii) विकास अधिकारी,
(iii) कनिष्ठ अभियंता,
(iv) पंचायत समिति के वरिष्ठतम लेखा अधिकारी
(ग) जिला परिषद स्तर –
(फर्नीचर, स्टेशनरी,स्कूल के सामान और कार्यालय की वस्तुओं की खरीद के लिए दर अनुबंध)।
(i) प्रमुख (अध्यक्ष),
(ii) मुख्य कार्यकारी अधिकारी,
(iii) जिला परिषद के लेखा अधिकारी/ सहायक लेखा अधिकारी या जिले के कोषाधिकारी,
(iv) कलेक्टर द्वारा नामित एक अधिकारी,
(v) जिलों के दो विकास अधिकारी
(3) सभी निविदाये, उनके सिवाय जो उन पर अभिलिखित कारणों से अस्वीकृत की गयी हैं, सारणीबद्ध और संवीक्षित की जावेगी और मद वार दरों का तुलनात्मक विवरण तैयार किया जायेगा।
187. निविदाओं की अस्वीकृति – जो निविदाये नियत तारीख और समय के पश्चात् प्राप्त हुयी हो या जो नियम 185 के अधीन जारी किये गये नोटिस की अपेक्षाओं को पूरा नहीं करती हो या जिनके साथ केाई अग्रिम धन नियत समय के भीतर जमा नहीं करवाया गया हो अन्यथा सहीं नहीं हो, वे आम तौर पर अस्वीकृत कर दी जावेगी।
188. निविदाओं की स्वीकृति – (1) सभी वे निविदाएं जो समिति द्वारा खोले जाने पर सहीं पायी जाये और नियम 187 के अधीन अस्वीकृत नहीं की जाये, संबंधित पंचायती राज संस्था द्वारा अग्रिम रूप से अनुमोदन किये जाने के लिए रखी जावें।
(2) निम्नतम निविदा आमतौर पर स्वीकृत कर ली जायेगी और जहाँं निम्नतम निविदा को अस्वीकृत करवा आवश्यक समझा जायें वहाँ इसके कारणों को लेखबद्ध किया जाये।
(3) जब निविदा एक से अधिक वस्तुओं के सम्बन्ध में हो जैसे लेखन–सामग्री या संनिर्माण सामग्री तो प्रत्येक वस्तु के लिए या तो पृथक्–पृथक् रूप से या सभी वस्तुओं के लिये संयुक्ततः या वस्तुओं के विनिर्दिष्ट ग्रुपों के लिए, जहाँं तक स्वीकृत निविदा की कुल राशि निम्नतम हो, उनकी तुलनात्मक कीमतों पर विचार किया जा सकता है, बशर्ते कि पंचायती राज संस्था निम्नतम निविदा का चयन करने का आशय उनमें से किसी भी रूप में निविदा नोटिस में स्पष्ट किया जाये।
(4) यदि निविदा पर सभी वस्तुओं के लिए या वस्तुओं के ग्रुपों के लिए संयुक्ततः विचार किया जाये तो सभी वस्तुओं के या यथास्थिति, प्रत्येक गु्रप में की सभी वस्तुओं के सम्बन्ध में संभाव्य अपेक्षाओं की लागत प्रत्येक निविदा में दी गयी दरों के निर्देश से संगणित की जायेगी और निम्नतम निविदा वह होगी जिसके अनुसार एक साथ लिये जाने के लिए प्रस्तावित सभी वस्तुओं की संभाव्य अपेक्षाओं को कुल लागत की गणना न्यूनतम आती हो।
(5) पंचायत समिति अपने स्तर पर निर्माण सामग्री क्रय करने के लिए दरों को अंतिम रूप दे सकेगी और ऐसी दर सूची को अपनी अधिकाविता के भीतर की पंचायतों में मार्गदर्शन के लिए परिचालित कर सकेगी और उन वस्तुओं को उन्हीं दरों पर स्थानीय तौर पर उपाप्त कर सकेगी, किन्तु जो किसी भी मामले में ऐसी दरों से उच्चतर नहीं होगी।
(6) जहाँं निविदाकार के प्रदाय करने की क्षमता और सत्यानिष्ठा की जानकारी न हो वहाँ उसकी निविदा को अस्वीकृत किया जाना आवश्यक नहीं हैं ।ऐसे निविदाकार से ऐसी अतिरिक्त प्रतिभूति या बैंक गारंटी ली जा सकती है ,जो आवश्यक समझी जावें।
189. नयी निविदाएं आमंत्रित करना – यदि कोई भी निविदा स्वीकृत न की जाये और सामग्री, माल या सामान का क्रय करना आवश्यक हो तो पूर्वगामी नियमों में प्र िक्रया के अनुसार नयी निविदा आमंत्रित की जायेगी।
*[190. सहकारी सोसायटियों से क्रय – यदि कीमत उचित हो और गुणवत्ता संतोषप्रद हो तो क्रय अधिमानतः संबंधित क्षेत्र की निम्नलिखित पंजीकृत सहकारी समितियों से किये जायेंगे, अर्थात –
(1) ग्राम सेवा सहकारी समिति लिमिटेड,
(2) क्रय विक्रय सहकारी समिति लिमिटेड,
(3) जिला सहकारी उपभोक्ता भंडार लिमिटेड।]
*[राज. पंचायती राज (संशोधन) नियम, 2011 द्वारा नियम 190 प्रतिस्थापित, राजपत्र भाग 4(ग) दिनांक 16 .03 .2011 को प्रकाशित एवं प्रभावी]
191. करार – (1) जब कोई निविदा स्वीकृत की जाये तो प्रपत्र संख्या 26 में करार का एक विलेख ऐसे फेरफारो सहित, जो कि मामले की परिस्थितियों के अनुसार अपेक्षित हो उस व्यक्ति द्वारा निष्पादित किया जावेगा जिसकी निविदा स्वीकृत की गयी है।
(2) ऐसे विलेख में उन शर्तो का स्पष्ट कथन होगा, जिनके अधीन ठेका दिया गया हैं और वह शास्ति विनिर्दिष्ट की जायेगी जिसके दायित्वाधीन वह निविदाकार उन शर्तो में से किसी के भी भंग के कारण होगा।
192. क्रय नियमों से छूट – नियम 183 से 191 तक में अन्तर्विष्ट कोई भी बात–
(क) राज्य सरकार के आदेश पर उनके अभिकर्त्ताओं द्वारा जारी की गयी किसी अनुज्ञा के जरिये नियंत्रित दरों पर नियंत्रित वस्तुओं के,
(ख) राज्य सरकार द्वारा संचालित किसी भी संस्था से वस्तुओं के,
(ग) जिले के लिए केन्द्रीय सरकार, राज्य सरकार या जिला परिषद् की दर संविदा पर वस्तुओं के,
(घ) किसी भी ऐसी वस्तु के, जिनका क्रय निविदाएं या कोटेशन आमंत्रित किये बिना राज्य सरकार के किसी भी साधारण या विशेष आदेश द्वारा अनुज्ञात हो, क्रय पर लागू नही होगी।
193. बजट – बजट किसी भी वर्ष के लिए किसी भी पंचायती राज संस्था की प्राप्तियां और व्यय के प्राक्कलन का एक विवरण है।
194. बजट का तैयार किया जाना – (1) बजट प्राक्कलन, पंचायत के लिए सचिव द्वारा पंचायत समिति के लिए विकास अधिकारी द्वारा और जिला परिषद् के लिए मुख्य कार्यपालक अधिकारी द्वारा तैयार किये जायेंगे। संबंधित पंचायती राज संस्था को सालाना बैठक में 15 फरवरी तक प्रस्तुत किये जायेंगे। किसी पंचायत के मामले में बजट ग्राम सभा के समक्ष भी रखा जावेगा जैसा कि अधिनियम की धारा 3 की उप – धारा (4) में उपबंधित हैं।
(2) बजट में प्रत्येक वित्तीय वर्ष के दौरान प्राप्तियों और व्यय का संभाव्य प्राक्कलन अन्तर्विष्ट होगा और अधिनियम की धारा 74 में उल्लिखित उपबन्धों के लिए व्यवस्था होगी और वह यथासंभव वास्तविकता के निकट और सही होनी चाहिए।
(3) लेखे के शीर्ष विशेष के अधीन प्राप्ति और व्यय के प्राक्कलनों में उपलब्ध करायी जाने वाली राशियां ऐसी होनी चाहिए जिनके वर्ष के दौरान युक्तियुक्त रूप से प्राप्त होने या व्यय किये जाने की आषा हो और उनमें उस वर्ष के दौरान की प्राप्तियां या बकायाओं के संदाय सम्मिलित होने चाहिए।
(4) बजट पंचायत के लिए विहित प्रपत्र संख्या 27 में और पंचायत समिति/जिला परिषद् के लिए प्रपत्र संख्या 28 में तैयार किया जावेगा।
195. बजट की अन्तर्वस्तु – (1) बजट में अन्य बातों के साथ – साथ निम्नलिखित के लिए भी पर्याप्त और उपयुक्त उपबन्ध अन्तविर्ष्ट होने चाहिए –
(क) पंचाायती राज संस्था की बजट वर्ष की निधियों में आरम्भिक अतिशेष और प्राक्कलित आय,
(ख) प्राक्कलित आय निम्नलिखित के लिए पृथक रूप से दर्शित होगी –
(i) स्वयं की आय से
(क) कर राजस्व
(ख) गैर – कर राजस्व, जैसे शुल्क, शास्तियां, मेलों, भूमि – वि क्रय, भूमि के अस्थायी उपयोग, कांजी हाउस, चरागहों, जलाशयों, कृषि फार्म, फलोद्यानो, और हड्डी ठेकों, से होने वाली आय तथा दुकानों और भवनों आदि से होने वाली किराये की आय।
(ii) राज्य सरकार से विभिन्न शीर्षों के अधीन सहायता अनुदान जैसे – भू – राजस्व में हिस्सा, अनुरक्षण अनुदान, विकास अनुदान, स्थापन अनुदान, प्रोत्साहन अनुदान, तुल्य हिस्सा, शिक्षा, ग्रामीण स्वच्छता, आवासन, उन्नत चूल्हा, जल – प्रदाय और स्वच्छता तथा सामान्य प्रयोजनार्थ अनुदान,
(iii) ग्रामीण विकास संकर्म और नियोजन जनन के लिए ग्रामीण विकास अभिकरण के जरिये केन्द्रीय सरकार से होने वाली प्राप्तियां,
(ग) अधिनियम और नियमों के अधीन स्थापन और उसके कर्तव्यों के निर्वहन पर प्रस्तावित व्यय/ प्राक्कलन –
(क) विद्यमान व्यय के लिए और नये व्यय के लिए,
(ख) नयी मदों के लिए विशेष कारण पृथक रूप से उपदर्शित करते हुए, दिये जाने चाहिए,
(घ) उधारों के सम्बन्ध में सभी दायित्वों का और प्रतिदायों आदि जैसी सभी अन्य प्रतिबद्धताओं का सम्यक् उनमोचन,
(ड) कार्यकरण अतिशेष वर्ष के लिए स्वयं के आय की पा्रक्कलित प्राप्तियों का 20 प्रतिशत से कम न हो।
(2) बजट में निम्नलिखित भी अन्तर्विष्ट होंगे –
(1) पिछले वर्ष के वास्तविक आंकडे उस वर्ष के मूल प्राक्कलनों की तुलना में,
(2) चालू वर्ष के पुनरीक्षत प्राक्कलन उस वर्ष के मूल पा्रक्कलनों की तुलना में और
(3) आगामी वर्ष के बजट प्राक्कलन चालू वर्ष के मूल या पुनरीक्षित प्राक्कलनों की तुलना में।
196. बजट कलेण्डर – बजट प्राक्कलनों को तैयार करने और उनकी संवीक्षा करने में निम्मलिखित कार्यक्रम का सख्ती से अनुसरण किया जावेगा –
(क) बजट को अंतिम रूप देने और संबंधित पंचायती राज संस्था द्वारा पारित करने के लिए अंतिम तारीख -15 फरवरी
(ख) अधिनियम की धारा 74 को उप – धारा (4) में यथाउपबंधित अगले उच्च प्राधिकरण को प्रस्तुत करने की अंतिम तारीख – 28 फरवरी
(ग) बजट प्राक्कलनों को स्वीकृति देने वाले प्राधिकारी द्वारा लौटाये जाने की अंतिम तारीख जेड20 मार्च।
197. बजट की मंजूरी – (1) अधिनियम की धारा 74 की उप – धारा (4) में उल्लिखित बातों के सिवाय स्वीकृति देने वाला प्राधिकारी निम्नलिखित की भी संवीक्षा करेगा –
(1) बजट तैयार करने में नियम 194 तथा 195 में अन्तर्विष्ट का अनुसरण किया गया है।
(2) प्राप्ति करने और व्यय का प्राक्कलन सहीं है और बजट वर्ष के दौरान बकाया उधारो या होने वाले शोध्यों की वसूली के लिए उपबन्ध किया गया हैं।
(3) आबादी भूमि के विक्रय से प्राप्त आय स्थापन प्रभारों के लिए उपयोग में नही ली गयी हैं।
(4) पंचायत एवं विकास विभाग द्वारा समय – समय पर जारी की गयी सिफारिशों पर बजट तैयार करते समय सम्यक रूप से विचार किया गया हैं।
(5) पंचायत बजट में बाध्यकर प्रभारों के लिए उपबन्ध किया गया है जैसे स्वच्छता, विद्युत, जल, गांवों की सड़के, विद्यालय भवनों का रखरखाव और मरम्मत और विकास क्रिया कलाप आदि और पंचायत समितियों/जिला परिषदों के बजट में वेतन तथा भतों, आकस्मिकताओं विकास कार्य के साथ ही उधारों, यदि कोई हो, के प्रतिसंदाय के लिए भी उपबन्ध किया गया है।
(6) बजट वर्ष के और पूर्व के आंकडो के बीच भिन्नताओं को पर्याप्त रूप से स्पष्ट किया गया हैं।
(2) मंजूरी प्राधिकारी उपनियम (1) में उल्लिखित बिन्दुओं पर समाधान होने के पश्चात बजट को उपान्तरों के साथ या के बिना, जैसा भी वह ठीक समझे मंजूरी देगा।
(3) मंजूर किया गया बजट 20 मार्च या इसके पूर्व सम्बधित पंचायती राज संस्था को लौटा दिया जावेगा।
198. स्थापन के लिए प्राक्कलन – पंचायत समिति और जिला परिषद भी स्थापन पर के व्यय के पृथक पृाथक प्राक्कलन निम्ललिखित को उपदर्शित करते हुए तैयार करेगी –
(1) संवर्ग अनुसार स्वीकृत पद सं[या, वेतन मान की दर, मंहगाई भत्ता, वेतन वृ)ियां जो बजट वर्ष के दौरान देय होगी। (2) रिक्तीयों के कारण अधिसंभाव्य बचतें।
199. एक बजट शीर्ष से अन्य में पुनर्विनियोजन – किसी वित्तीय वर्ष के लिए पारित बजट में एक शीर्ष के अधीन उपबंधित रकम को, निम्नलिखित शर्तें के अध्यधीन रहते हुए पूर्ण रूप से या आंशिक रूप से किसी भी अन्य शीर्ष में अन्तरित किया जा सकेगा –
(1) कि ऐसी सेवाओं या दायित्वों के लिए सम्यक प्रबन्ध किया जावे जिन्हें अधिनियम या तदधीन बनाये गये नियमों के अनुसार निष्पादित, अनुरक्षित या संदत करना किसी पंचायती राज सस्ं था के लिए बाध्यकारी हैं।
(2) कि पंचायत ने पूर्व में मंजूर संकर्मे के उपयोग में न लिखे गये बजट को अव्ययित अतिशेषो के बदले मे, वर्ष के दौरान नये संकर्म ं के लिए अन्तरित करने हेतु ग्राम सभा का अनुमोदन प्राप्त कर लिया हैं।
(3) कि राज्य सरकार/केन्द्र सरकार से प्राप्त सहायता अनुदान को उन प्रायोजनों के लिए खर्च किया जाये, जिनके लिए वह मंजूर किया है।
(4) कि एक मुख्य शीर्ष की रकम अन्य मुख्य शीर्ष में अन्तरित न की जावे।
200. बजटेतर व्यय की अनुज्ञा उपगत किया जाना – (1) कोई भी पंचायती राज संस्था मंजूरी प्राधिकारी की पूर्व अनुज्ञा के बिना, मंजूर शुदा बजट में शामिल न की गयी किसी भी मद का या बजट आवंटन से अधिक व्यय उपगत नहीं करेगी। ऐसे व्यय के लिए अनुपूरक/ पुनरीक्षित बजट तैयार किया जा सकेगा।
(2) इस बात की सावधानी बरती जावेगी कि बजट सीमाओं का अतिक्रमण न हेा।
201. त्रैमासिक पुनर्विलोकन – पंचायती राज संस्था प्रत्येक शीर्ष पर के बजट उपबंध और संचयी व्यय का एक त्रैमासिक विवरण तैयार करायेगी और उसे प्रतिवर्ष अप्रेल, जुलाई, अक्टूबर और जनवरी मास में आयेजित की जाने वाली बैठकों में भौतिक लक्ष्यों और उपलब्धियों के तथा व्यय की थीमी गति प्रतिषत यदि कोई हो, के कारणों के साथ रखेगी।
राजस्व
202. राजस्व का निर्धारण और संग्रहण – (1) पंचायती राज संस्था के कार्यालय प्रधान का वह कर्तव्य होगा कि राजस्व तथा व्यय के लेखो का उचित रूप से रखा जाना सुनिश्चित हो।
(2) कार्यालय प्रधान राजस्वों की प्राप्ति और संग्रहण के लिए भी उत्तरदायी होगा। वह सुनिश्चित करेगा कि शोध्य सही – सही और नियमित रूप से निर्धारित संगृहित और निधि में तत्परतापूर्वक जमा किये गये हैं। तदनुसार वह उन समस्त स्त्रोतो से जहाँ से राजस्व प्राप्त होता है, वसूली की प्रगति के बारे में विवरणियां प्राप्त करने करने की व्यवस्था करेगा और उन्हें प्रपत्र संख्या 6 में मांग और संग्रहण रजिस्टर में अंकित करवायेगा।
203. राजस्व की लीकेज पर नियंत्रण – यह सुनिश्चित करने के लिए कि समस्त संगृहित राजस्व सहीं तौर पर लेखे में अंकित कर दिया गया हैं कि कोई भी लीकेज नहीं हैं। कार्यालय प्रधान यह देखेगा कि पर्याप्त नियन्त्रणों का प्रयोजन किया जाये और इस प्रयोजन के लिए प्राप्ति के लेखे के सांकेतिक निरीक्षण करा सकेगा।
204. राजस्व बकाया – पंचायती राज संस्था को देय कोई भी रकम बिना पर्याप्त कारणों के बकाया नहीं छोड़ी जायेगी और जहाँ ऐसे देय अवसूलीय प्रतीत हो, वहाँं अन्य समायोजन, छूट मांग में जमा का उपलेखन के लिए साक्षम प्राधिकारी के आदेष, बिना किसी परिहार्य विलम्ब के प्राप्त किये जाने आवश्यकहै।
205. वास्तविक वसूली के अनुसार जमा – कोई भी राशि राजस्व के रूप में तब तब जमा नहीं की जा सकेगी जब तक वह वास्तविक रूप से वसूल न कर ली गयी हो।
206. पी. डी. लेखे/बैंक या ड़ाकघर में जमा – (1) पंचायत कार्यालय में प्राप्त सभी रकमें डाकघर या बैक में जमा करायी जायेगी।
(2) पंचायत समिति/जिला परिषद् द्वारा प्राप्त सभी रकमें सरकारी उप कोषागार/ कोषागार में पी डी, लेखे में जमा करायी जायेगी।
(3) राज्य सरकार से प्राप्त सभी अनुदान संबंधित जिला परिषद् के पी, डी, लेखे में त्रैमासिक आधार पर अन्तरित किये जायेगे।
(4) मुख्य कार्यपालक अधिकारी यह सुनिश्चित करेगा कि सम्बंधित पंचायतो/पंचायत समितियों का हिस्सा उनके लेखो में तत्परता से अंतरित किया जाये।
व्यय
207. धन का आहरण – धन निधि से तब तक आहरित नहीं किया जावेगा जब तक वह किसी भी नियम के अधीन व्यय का किसी मद पर या सक्षम प्राधिकारी के किसी विनिर्दिष्ट आदेश पर तत्काल संवितरण के लिए अपेक्षति न हो।
208. वित्तीय औचित्य का मानक – किसी भी पंचायती राज संस्था का कार्यालय प्रधान वित्तीय औचित्य के स्थापित मानकों से नियन्त्रित होना चाहिए और उसे वहीं सतर्कता बरतनी चाहिए जो कोई सामान्य प्रज्ञावान व्यक्ति अपने स्वयं के धन के व्यय के संबंध में बरतता है।
209. देयता का बजट उपबंध के बिना उपगत न किया जाना – कोई भी प्राधिकारी व्यय तब तक उपगत नहीं करेगा या किसी भी दायित्व में प्रवेश नही करेगा जब तक उसके लिए कोई बजट उपबन्ध न हो और व्यय सक्षम प्राधिकारी द्वारा मंजूर न किया गया हो।
210. व्यय का नियंत्रण – कार्यालय प्रधान को यह देखना हीं चाहिए कि न केवल कुल व्यय प्राधिकृत विनियोजन की सीमाओं के भीतर – भीतर रखा जाये अपितु यह भी कि आवंटित निधियों का व्यय संबंधित पंचायती राज संस्था के हित में और सेवा के लिए तथा उन प्रयोजनों पर किया जावे जिनके लिए उपबंध किया गया है। समुचित नियंत्रण बनाये रखने के लिए उसे व्यय प्रतिबद्धताओं और उपगत असंदत्त देयताओं की प्रगति से स्वयं को निकटतम रूप से अवगत बनाये रखना चाहिए।
211. निधियों का आहरण – (1) धन केवल चैंको के जरिये आहरित किया जायेगा। अन्य व्यक्तियों को 1,000/ – रुपये से अधिक रकम का संदाय भी *[खाता प्राप्तकर्ता] चैक के जरिये ही किया जायेगा। पक्षकार सीधे बैंक/ खजाना/ उप – खजाना से संदाय अभिप्राप्त कर सकेगे। संबंधित बिल पर चैक संख्याऔर तारीख का निर्देश सदैव किया जायेगा ताकि एक ही बिल का दोहरा संदाय नहीं किया जा सकें।
*[राज. पंचायती राज (संशोधन) नियम, 2011 द्वारा अंतः स्थापित, राजपत्र भाग 4(ग) दिनांक 16 .03 .2011 को
प्रकाशित एवं प्रभावी]
(2) कार्यालय प्रधान व्यक्तिश: केवल उतनी ही रकम चैक के जरिये आहरित करने के लिए उत्तरदायी होगा जो बैठक में सक्षम मंजूरी द्वारा प्राधिकृत किये गये बिलों में पारित की गयी है। किसी भी मामले में अधिक धन का आहरण नहीं होगा। परंतु जब कभी चैक पर संयुक्त हस्ताक्षर आवश्यकहो तथा सरपंच, प्रधान, प्रमुख के हस्ताक्षर प्राप्त करना दस दिन तक संभव ना हो परन्तु भुगतान करना अति आवश्यकहो तो सरपंच के स्थान पर विकास अधिकारी, प्रधान के स्थान पर मुख्य कार्यपालक अधिकारी और प्रमुख के स्थान पर जिलाधीश चैक पर हस्ताखर करने हेतु अधिकृत होगे। परंतु ऐसे भुगतान के अति आवश्यक होने के बारे में लिखित कारण अधिलिखित किये जावेगे।
(3) अनपेक्षित आकस्मिक व्यय के लिए स्थायी अग्रिम के रूप से अग्रदाय धन भी संबंधित पंचायती राज संसथा द्वारा धारा 64 की उप धारा (3) के अधीन प्राधिकृत किया जायेगा किन्तु वह सामान्यत: निम्नलिखित रूप से होना चाहिए
**[(क) पंचायत 10,000/- रुपये
(ख) पंचायत समिति/परिषद् 25,000/ – रुपये]
**[उपरोक्त राशि, आकस्मिक आकस्मिक व्यय से संबंधित सामान्य वित्त और लेखा नियमों में उल्लिखित प्रावधानों के अलावा, निर्माण कार्यों से संबंधित ऐसी मदों पर भी खर्च की जा सकती है, जिसके संबंध में भुगतान एकाउंट पेयी चेक द्वारा नहीं किया जा सकता है, लेकिन ऐसे सभी मामलों में एकाउंट पेयी चेक द्वारा भुगतान न करने के कारणों को संबंधित पंचायती राज संस्थान के संबंधित रिकॉर्ड में दर्ज किया जाएगा । उपरोक्त कारणों को दर्ज करने के बादए अग्रदाय राशि को वाहक चेक के माध्यम से निकाला जा सकता है।,
राजपत्र भाग 4(ग) दिनांक 16 .03 .2011 को प्रकाशित एवं प्रभावी]
जिस व्यक्ति की अभिरक्षा के स्थायी अग्रिम है वह ऐसे अग्रिम की प्राप्ति की अभिस्वीकृति प्रत्येक वर्ष पहली अप्रेल को देगा।
(4) कार्यालय प्रधान मास के अंत में इस बात का भौतिक सत्यापन करेगा कि पर्याक्त सीमाओं के अधीन का कोई भी धन वापस पी.डी. लेख/बैंक में जमा करा दिया गया है।
[(5) पंचायती राज संस्था के कार्यालय प्रमुख/ सरपंच/ सचिव/ खजांची के लिए व्यक्तिगत रूप से उत्तरदायी होगा, यदि संबंधित पंचायती राज संस्थान में नकद शेष राशि महीने के अंत में ऊपर निर्धारित सीमा से अधिक है। ऐसे मामले में, वे इस तरह की अतिरिक्त राशि पर 18% प्रतिवर्ष की दर से ब्याज का भुगतान करने के लिए संयुक्त रूप से उत्तरदायी होंगे। इस प्रकार देय ब्याज की राशि कार्यालय प्रमुख/ सरपंच एवं सचिव/ खजांची से समान रूप से वसूल की जायेगी।],
अधिसूचना संख्या एफ. 186(3 ) लेखा-परीक्षा-I/ 97/ 186 दिनांक31.01 .2003]
212 सा. भ. नि./ राज्य बीमा/जीवन बीमा की कटोतियां आदि – (1) वेतन बिलों से भविश्य निधि, राज्य बीमा आयकर, जीवन बीमे और गृह किराये की कटोतियों आदि के मुद्दे उचित कटोतियां करने का कर्तव्य बिल का आहरण करने वाले पर न्यागत होगा।
(2) कोई भी विकास अधिकारी, कर्मचारियों के वेतनो से सा, भ, नि, राज्य बीमा, जीवन बीमा, आयकर, कटौतियों के प्रति नगदी आहरित नहीं करेगा। वह वेतन बिलों के साथ – साथ निदेशक, राज्य बीमा/सा.भ.नि./आयकर अधिकारी जीवन बीमा निगम ष्शाखा के नाम से ऐसे चैक तैयार करवायेगा और मास के प्रथम सप्ताह के दौरान भेजेगा। संबंधित विकास अधिकारी को ऐसी प्रक्रिया के अतिक्रमण के लिए व्यक्तिश: दायित्वाधीन ठहराया जायेगा।
213. सचिव की अनुपस्थिति में विकास अधिकारी की शक्तियां – पंचायत के मामले में सभी अधिनियम की धारा 64 की उप – धारा (5) के उपबंधों के अनुसार सरपंच और सचिव के संयुक्त हस्ताक्षर से आहरित किये जायेंगे अत% सचिव की अनुपस्थिति या बीमारी या छुट्टी पर होने की स्थिति में उस पंचायत समिति के विकास अधिकारी को जिसकी अधिकारिता में ऐसी पंचायत आती है, तुरन्त और अत्यावश्य क संदाय सुगम बनाने के लिए सरपंच के साथ – साथ उस पंचायत के चैकों पर हस्ताक्षर कर सकेगा।
214, पंचायती राज संस्थाओं का स्वयं की आय में से व्यय – (1) पंचायती राज संस्थाएं करो, जुर्मानो, फीसो, और अपने व्ययनााधीन रखी गयी आस्तियों के जरिये जुटायी गयी अपनी आय से साधारण बैठक या स्थायी समिति के अनुमोदन से व्यय ऐसी सीमाओं के अनुसार उपगत कर सकेगी जो राज्य सरकार द्वारा समय – समय पर निधार्र त की जावे।
[टिप्पणी – वित्त (व्यय-1) विभाग की सहमति आई.डी. सं. 1701 दिनांक 15-6-1998 के अनुसरण में पंचायतों के द्वारा व्यय की सीमा प्रत्येक मामले में रु. 1.00 लाख निर्धारित की जाती है। आदेश क्रमांक एफ. 95/ (19)/7 लेखा/नि. आय / 13 दिनांक 1-1-1999 द्वारा प्रसारित]
(2) स्वयं की आय में से व्यय वेतन, भत्तो और आकस्मिकता के दायित्व की पूर्ति करने के पश्चात् हीं उपगत किया जायेगा।
(3) सभी व्यय अन्य प्रतिबद्धताओं और समाध्यासनों को हिसाब में लेने के पश्चात्, स्वयं की आय निधियों की उपलब्धता के अध्यधीन रखते हुए किये जायेगे।
(4) शिक्षा उपकर से आय केवल शैक्षिक भवनों क्रिया कलापों पर ही खर्च की जायेगी किन्तु अन्य स्त्रोतो से स्वयं को होने वाली आय ऐसे भवनों/क्रियाकलापों पर भी खर्चे करना संभव होगा।
(5) कोई भी व्यय पंचायती राज संस्था की अधिकारिता के बाहर उपगत नहीं किया जायेगा।
(6) स्वंय की आय का प्राप्ति और व्यय के लिए वार्षिक बजट अनुमान तैयार किया जायेगा और संबंधित पंचायती राज संस्था से अनुमोदित कराया जायेगा।
(7) कोई भी व्यय स्वयं की आय की प्रत्याषा के आधार पर नहीं किया जायेगा। टिप्पणी
जुलाई 2003 से पंचायत को अपनी निजी आय से 2 लारव तक व्यय करने की शक्ति दी जा चुकी है।
215. कर्मचारियों को अग्रिम – (1) कर्मचारियों को वाहन क्रय के लिये दिेये जाने वाले अग्रिम, त्यौहारों के लिए दिये जाने वाले अग्रिम राज्य सरकार के कर्मचारियों पर समय – समय पर लागू होने वाले नियमं और शर्त द्वारा शासित होगे सिवाय तब के कि जब ऐसा अग्रिम स्वयं की आय में से मंजूर किया जाये। यदि इस प्रयोजन के लिए इनकी स्वंय की आय पर्याप्त न हो, तो अग्रिम एसे े अन्य स्त्रोतो से मंजूर किये जा सकेगें जो पंचायती राज संस्था में उपलब्ध हो। प्राप्त ब्याज को पंचायती राज संस्था की आय के रूप में माना जायेगा और उसकी निधि में जमा कराया जायेगा।
(2) संकर्मो या अन्य विनिर्दिष्ट प्रयोजनों के लिए दिये जाने वाले अग्रिमों को अधिकतम तीन मास के भीतर – भीतर समायोजित कराया जायेगा। ऐसा न होने पर वह अस्थायी गबन की कोटि में आवेगा और उपयोग में न लिया गया नकदी अभिलेख 18 प्रतिषत ब्याज वापस जमा कराया जायेगा।
216. उधार – (1) राज्य सरकार या केन्द्रीय या राज्य सरकार के किसी भी निगम द्वारा किसी पंचायती राज संस्था को मंजूर किया गया उधार निधि पर प्रथम प्रभार होगा और उधार की किष्ते नियत तारीख पर नियमित रूप से संदत्त की जायेगी ऐसा न करने पर राज्य सरकार संदेय सहायता – अनुदान में से शोध्य रकम का समायोजन कर सकेगी या धन को वसूल करने के लिए अन्य उपुयक्त कदम उठा सकेगी।
(2) पंचायती राज संस्थाएं पंचायती राज संस्थाओं के लिए वित्त निगम के निबंधनों और शर्तो के अनुसार, ग्रामीण आवास, दुकानों के सन्निर्माण और अन्य परियोजनाओं के लिए उधार अभिप्राप्त कर सकेगी और अपनी किस्तों का उपयोग और प्रतिसंदाय कर सकेगी। संबंधित पंचायती राज संस्थाएं उधार के लेखे रखने हेतु की गईं सेवाओं के लिये अभिकरण प्रभारों के रूप में एक प्रतिषत प्रभारित कर सकेगी।
(3) बकाया उधारों को पंचायत समितियों द्वारा वसूल किया जाना जारी रखा जायेगा। और राज्य सरकार के पास से सुसंगत राजस्व शीर्ष में जमा कराया जायेगा।
217. नमूने के हस्ताक्षर – विकास अधिकारी/प्रधान और मुख्य कार्यपालक अधिकारी/प्रमुख के नमूना हस्ताक्षर जिला कोषागार और संबंधित उप – कोषागार को भेजे जायेगें। पंचायत के मामले में सरपंच/सचिव के नमूना हस्ताक्षर उस बैंक/डाकघर को भेजे जायेगें जिसमें लेखे रखे जाते है।
218. चैक बुक – (1) कोषागार/उप – कोषागार या बैंक/डाकघर की चैक बुके कार्यालय प्रधान के प्रभार में रखी जायेगी। वे ताले में बंद रखी जायेगी।
(2) सभी चैंक बुके प्राप्त की जाये, गिनी जायेगी और चैक बुक की प्रत्येक परत पर संबंधित पंचायती राज संस्था के नाम वाली रबड की मुहर सुभिन्नत लगायी जायेगी।
219. वेतन और भत्त्ेा – (1) अधिकारियों और कर्मचारीयों के वेतन और भत्ते तथा सदस्यों के मानदेय और भत्ते निधि के स्रोत पर द्वितीय भार होगे।
(2) किसी पंचायत राज संस्था के नियत तारीखों पर वेतन संदत करने में विफल रहने की दशा में राज्य सरकार नकद अतिशेषों पर रोक लगाने और ऐसी रकमों को निकालकर संदाय करने के लिए विकास अधिकारी को निर्देशदे सकेगी।
220. नियत तारीख – अधिकारियों और कर्मचारियों द्वारा अर्जित वेतन और भत्ते आगामी माह के प्रथम कार्य दिवस पर संदाय के लिए देय हो जायेंगे।
221. संदायों की अभिस्वीकृति – कार्यालय का प्रधान उसके द्वारा हताक्षरित किसी बिल/चैक पर निकाली गयी रकम के लिए वैयक्तिक रूप से उतरदायी हागा जब तक वह इसका संदाय न कर दे और पाने वाले से उसके लिए विधि रूप से मान्य रसीद प्राप्त न करले।
222. स्थानान्तरण पर वेतन और अग्रिम – स्थानान्तरणों पर वेतन और अग्रिमों के उपबन्ध, राज्य सरकार के कर्मचारियों पर समय समय पर लागू नियमों द्वारा शासित होगे।
223. अन्य प्रभार – (1) कार्यालय के प्रबन्ध के लिए उपगत समस्त आनुबंधिक और प्रकरण व्ययों की प्रकृति नमनीय और उतार – चढाव वाली हैं और उनमें मितव्ययिता करने के लिए पूरी सावधानी रखी जानी हैं। बिल का आहरण करने वाला अधिकारी यह देखने के लिए उतरदायी होगा कि बिल में सम्मिलित व्यय की मदें स्पष्ट आवश्यकता की है और कोई भी खरीद वस्तु उचित और उपयुक्त दरों पर प्राप्त की गयी है।
(2) अन्य प्रभारों के लिए अग्रिमों की आहरण में पाने वाले की रसीद सहित सम्यक रूप से समर्थित वाउचरों पर या फर्म या ठेकेदारों के प्रोफार्मा बिलों पर किया जाना चाहिए और अग्रिमों का आहरण तब तक अनुज्ञान नहीं किया जाना चाहिए जब तक कि किसी विशेष प्रकृति के व्यय की पूर्ति के लिए अपेक्षित न हो।
224. राजस्व का प्रतिदाय – राजस्व के प्रतिदाय के लिए किसी भी मांग को स्वीकार करने के पूर्व रोकड बही में मूल जमा को अवश्य खोजना चाहिए और संबंधित रसीद भी साथ लगानी चाहिए और प्रतिदाय की प्रविष्टि इन दस्तावेजों में लाल स्याही से सुभिन्न रूप से की जानी चाहिए जिससे कि दूसरे दावे के विरू) सुरक्षा की जा सकें। जहाँ कर या उपकर का प्रतिदाय किया जाये वहाँ मांग और संग्रहण रजिस्टर में प्रति – निर्देशभी किया जायेगा।
225. अतिसंदाय / गलत संदाय – (1) कार्यालय का प्रधान निधि में से लिये गये किसी भी अतिसंदाय की, चाहे वह सद्भावपूर्वक किया गया है, शीघ््रा वसूल करने के लिए उतरदायी है।
(2) यदि ऐसा संदाय किसी कपट के कारण किया गया है तो ऐसे व्यक्ति के विरू) गलत रूप से कपट वंचित करने और धन प्राप्त करने के लिए पुलिस थाने में प्रथम सूचना रिपोर्ट भी दर्ज करवायी जायेगी।
226. कालातीत दावों का संदाय – (1) वेतन, यात्रा – भत्ते/चिकित्सा पुनर्भरण के तीन वर्ष के कालातीत दावों का संदाय कार्यालय के प्रधान द्वारा, कनिष्ठ लेखाकार द्वारा पूर्व – जाँच किये जाने के पश्चात किया जायेगा।
(2) तीन वर्ष से अधिक के ऐसे सभी दावों के लिए, जिला पारेषद के लेखाकार/सहायक लेखाधिकारी द्वारा पूर्व/जांच किये जाने के पश्चात मुख्य कार्यपालक अधिकारी की पूर्व – मंजूरी अपेक्षित होगीं।
परंतु यह तब जब कि
(क) दावे का औचित्य सि) हो जावे
(ख) वे आदेशऔर दस्तावेज उपलब्ध हो, जिन पर दावा आधारित है।
(ग) उन पूर्व बिलों का निर्देशकिया जावे जब दावे का आहरण नहीं किया गया था।
(घ) विलम्ब के कारण स्पष्ट किये जावे –
(3) वर्ष तक के आकस्मिक दावों पर मुख्य कार्यपालक अधिकारी की पूर्व मंजूरी अपेक्षित होगी जबकि तीन वर्ष के पश्चात निदेशक, गा्रमीण विकास एवं पंचायती राज की मंजूरी अपेक्षित होगी।
227. सामान्य वित्तीय एवं लेखा के अधीन प्रादेशिक अधिकारी और कार्यालय प्रधान की शक्तियां – (1) इन नियमों में विनिर्दिष्ट नहीं की गयी, प्रादेषिक अधिकारी की वित्तीय शक्तियों का प्रयोग, जिले में पदस्थापित कर्मचारियोंके संबंध में मुख्य कार्यपालक अधिकारी द्वारा सा.वि. एवं ले. नि. के अनुसार किया जावेगा।
(2) सा.वि.एवं ले.नि.के अनुसार इन नियमों में विनिर्दिष्ट नहीं की गयी कार्यालय के प्रधान की शक्तियों का प्रयोग, पंचायत के लिए संरपच, पंचायत समिति के लिए विकास अधिकारी और जिला परिषद के लिए मुख्य कार्यपालक अधिकारी द्वारा किया जावेगा।
लेखों का रखा जाना
228. सभी नकद संव्यवहारों का लेखा जोखा दिया जाना – ऐसे समस्त नकद, संव्यवहारों को, जिनमें पंचायत राज संस्था एक पक्षकार है, किसी भी अपवाद के बिना लेखे में लिया जायेगा। लेखे रखे जाने में पारदर्शिता सुनिश्चित की जावेगी।
229. रोकड बही – (1) प्रत्येक पंचायती राज संस्था द्वारा धन की प्राप्ति और संदाय का अभिलेख रखने के लिए प्रपत्र संख्या29 में एक रोकड बही रखी जायेगी।
(2) सभी नकद संव्यवहारों की, ज्यांेहीं वे किये जाये, रोकड बही में पूर्ण प्रविष्टि की जायेगी और वह जांच के प्रतीक स्वरूप कार्यालय के प्रधान द्वारा अनुप्रमाणित की जायेगी।
(3) रोकड बही का नियमित रूप से समवरण किया जायेगा और कार्यालय का प्रधान प्रत्येक प्रविष्टि पर उसके सही होने के अभीष्ट स्वरूप आवश्यककरेगा।
(4) प्रत्येक मास के अंत में कार्यालय प्रधान को तिजोरी के नकद अतिशेष का रोकड बहीं के अतिशेष से सत्यापन करना चाहिए और निम्नलिखित आशय का हस्ताक्षरित और दिनांकित प्रमाण पत्र अभिलिखित करना चाहिए –
‘‘प्रमाणित किया जाता है कि नकद अतिशेष की जांच कर ली गयी है और निम्नलिखित रूप में पाया गया हैं – वास्तविक नकदी और रोकड बही के अतिशेषों के बीच अन्तर होने की दशा में उसका स्पष्टीकरण किया जायेगा।
(5) धन के किसी भी दुरूपयोग को रोकने के लिए वास्तविक नकद अतिशेष की आकस्मिक जांच भी मास में दो बार की जायेगी। (6) पंचायत, विकास योजनाओं की निधियों के लिए एक पृथक रोकड बहीं भी रखेगी।
230. धन की रसीद – (1) जब धन कार्यालय में संगृहित या संदत किया जाये तो देने वाले को प्रपत्र संख्या30 में रसीद दी जायेगी।
(2) रसीद पर सचिव/रोकडिये द्वारा हस्ताक्षर किये जायेगंे।
(3) रकम अंको और शब्दों दोनों मे लिखी जायेगी।
(4) कार्यालय प्रधान स्वयं का इस बात से समाधान करेगा कि रकम की रोकड बही में सही रूप से प्रविष्टि कर ली गयी है।
(5) खाली रसीद पुस्तकें, सुरक्षित अभिरक्षा में रखी जायेगी और रसीद पुस्तकों का समुचित लेखा रखा जायेगा।
231. रोकडिये की प्रतिभूति – (1) नकदी का प्रभारी व्यक्ति, अपनी अभिरक्षा में संभाव्यत% रखी जाने वाली नकदी की रकम की समतुल्य पर्याप्त और विधिमान्य प्रतिभूति देगा।
(2) प्रतिभूति विश्वस्तता बंधपत्र के रूप में होगी जिसे उसकी समाप्ति के लिए नियत तारीख के पूर्व स्वीकृत किया जायेगा।
(3) रोकडिये को राज्य सरकार द्वारा तदनुसार विहित दर पर भत्ता संदेय होगा।
232. डबल लॉक – (1) विश्वस्तता बंधपत्र की रकम के अधिक समस्त नकदी डबल लॉक व्यवस्था के अधीन लोहे की मजबूत तिजोरी में रखी जायेगी।
(2) एक ताले की सभी चाबियां एक व्यक्ति की अभिरक्षा में रखी जायेगी। अन्य तालों की चाबियां कार्यालय के प्रधान की अभिरक्षा में रखी जायेगी। तिजोरी को तब तक नही खोला जायेगा जब तक दोनों अभिरक्षक उपस्थित न हों।
233. नकदी की सुरक्षा – जब रोकडिये के द्वारा बैक से कार्यालय या कार्यालय से बैंक तक अत्यधिक नकदी अतिशेष लाया जाये तो उसके साथ जाने आने के लिए पुलिस थाने से एक सुरक्षा गार्ड की व्यवस्था संदाय आधार पर की जा सकेगी।
234. दावों का प्रस्तुतिकरण – (1) संदाय के लिए समस्त दावे प्रपत्र 31 में तैयार किये जायेंगे और पंचायती राज संस्था के संबंधित कार्यालय मे प्रस्तुत किये जायेंगे जहाँ कार्यालय के प्रधान द्वारा उनकी जांच की जायेगी और वे पारित किये जायंेगे।
(2) कोई संदाय – आदेशदेने वाला अधिकारी यह देखने के लिए व्यक्गित रूप से उतरदायी है कि दावा हर प्रकार से पूर्ण और सही है और उसमें, किये गये संदाय की प्रकृति के बारे में, पर्याप्त सूचना है।
235. वाउचर – (1) धन के प्रत्येक संदाय के लिए, निधि का धन खर्च करने वाला अधिकारी दावे की पूर्ण और स्पष्ट विषिष्टियां और लेखों में समुचित वर्गीकरण के लिए आवश्यकसमस्त सूचना देने वाला वाउचर अभिप्राप्त करेगा।
(2) प्रत्येक वाउचर में या उसके साथ, उस व्यक्ति द्वारा संदाय किये जाने की अभिस्वीकृति होनी चाहिए जिसके द्वारा या जिसकी और से दावा प्रस्तुत किया गया है।
(3) प्रत्येक वाउचर पर, रकम को शब्दों और अंको में विनिर्दिष्ट करते हुए, कार्यालय प्रधान द्वारा संदाय – आदेश होना चाहिए।
(4) समस्त वाउचरो को क्रम से तारीखवार संख्यांकित किया जायेगा जो 1 अप्रेल से प्रारंभ होगी और वाउचरों के पार्श्व में लाल स्याही से ‘‘संदत‘‘ अंकित किया या लिखा जाना चाहिए जिससे उनका दूसरी बार प्रयोग नहीं किया जा सके।
(5) कार्यालय का प्रधान रोकड बही में व्यय पक्ष के संदायों को सत्यापित करते समय वाउचरों पर भी आद्याक्षर करेगा।
(6) वाउचरों संपरीक्षा की लिए सुरक्षित अभिरक्षा में रखे जायेंगे और विहित कालावधि समाप्त हो जाने के पश्चात ही नष्ट किये जायेंगें।
236. खाता – (1) प्रत्येक पचायत राज संस्था मे, निधि मे से उपगत व्यय के विभिन्न शीर्षो के अधीन उपगत व्यय को दर्शित करने के लिए प्रपत्र संख्या32 में एक खाता रखा जायेगा।
(2) खाते में, स्वीकृत बजट में उपबन्धित प्रत्येक व्यय – षीर्ष के लिए एक पृष्ठ या कुछ पृष्ठ आवंटित किये जायेगें और उसमें रोकड बही से नियमित रूप से प्रविष्टियां की जायेगी।
237. राजस्व रजिस्टर – (1) प्रत्येक पंचायती राज संस्था में प्रपत्र 33 में राजस्व प्राप्तियों का एक रजिस्टर भी उसमें समस्त करों, फीसों और अन्य आय के मद की प्राप्तियों को अभिलिखित करने के लिए रखा जायेगा।
(2) आय कर या फीस के प्रत्येक शीर्ष के लिए आवश्यकता के अनुसार पृथक पृष्ठ आवंटित किया या किये जायं और रोकड बही से नियमित रूप से प्रविष्टि की जायेगी।
238. लेखों का मिलान – (1) पंचायत सचिव का यह कर्तव्य होगा कि वह पंचायत अभिलेखों के आधार पर प्रत्येक मास बैंक/डाकघर पास बुकों से जमाओं और आहरणों का मिलान करें और यदि कोई भूलें हों, तो उन्हें ठीक करें।
(2) पंचायत समिति और जिला परिषद के मामले में रोकडिया कोषागार/उप – कोषागार में के.पी.डी. खातों का प्रत्येक माह मिलान करेगा।
सामान
239. स्टॉक रजिस्टर – (1) प्रत्येक पंचायती राज संस्था द्वारा प्रपत्र 34 में एक स्टॉक रजिस्टर रखा जायेगा जिसमें संबंधित पंचायती राज संस्था के समस्त स्टॉक और अन्य जंगम सम्पतियों की प्राप्ति और निर्गम की प्रविष्टि की जायेगीं।
(2) सामान का लेखा प्रत्येक मद के लिए पृथक – पृथक रखा जायेगा। प्राप्ति पक्ष की और की प्रविष्टियां प्रदायक के बिल से सीधी की जायेगी, सामान वास्तविक मांग – पत्र के अनुसार जारी किया जायेगा और सामान के निर्गम के लिए समुचित रसीद अभिपा्रप्त की जायेगी। उसकी स्टॉक रजिस्टर के निर्गम पक्ष में सही – सही प्रविष्टि की जायेगी।
240. सामान की अभिरक्षा – (1) सामान की अभिरक्षा से न्यस्त व्यक्ति उसकी सुरक्षा और उसे अच्छी स्थिति और उसे हानि, नुकसान या धूप से संरक्षित करने के लिए उतरदायी होगा।
(2) वह म शीनों, टेलीफोन, टंकण यंत्रों, फोटो प्रतिलिपि, कूलरों और अन्य कार्यालय उपस्कर का, उन्हें हर समय चालू स्थिति में रखने के लिये, समुचित और समयबद्ध अनुरक्षण सुनिश्चित करेगा।
241. छपने वाला सामान – (1) छपने वाले सामान और लेखन की सामग्री की वस्तुआंे के लिए प्रपत्र 34 में भी एक पृथक रजिस्टर रखा जायेगा।
(2) कार्यालय का प्रधान प्रत्येक कर्मचारी/अनुभाग के लिए लेखन सामग्री की वस्तुओं के निर्गम के लिए तिमाही मानदण्ड नियत करेगा। मानदण्ड इस प्रकार नियत किये जायेगें जिससे दुरूपयोग या अत्यधिक उपयोग से बचा जा सकें।
242. भौतिक सत्यापन – (1) सामान का भौतिक सत्यापन एक वर्ष में कम से कम एक बार किया जायेगा और ऐसा कर लेने के प्रतीक स्वरूप वह यह प्रमाण – पत्र अभिलिखित करेगा और वास्तव में पाये गये आधिक्यों/कमियों के लिए टिप्पणी अंकित करेगा।
(2) कार्यालय के प्रधान द्वारा, किन्ही भी भण्डार वस्तुओं का हानि की वसूली के लिए समुचित जांच के पश्चात उतरदायित्व नियत करते हुए समुचित कार्यवाही की जायेगी।
243. अनुपयोगी/बेकार/अधिशेष भण्डार वस्तुओं का व्ययन – (1) कार्यालय का प्रधान भण्डार – वस्तुओं को बेकार/अनुपयोगी/अधिशेष घोषित करने के लिए एक सर्वेक्षण सूची तैयार करने हेतु तीन व्यक्तियों की एक समिति गठित करेगा जिसमें
एक व्यक्ति लेखा अनुभाग से होगा।
(2) अपलेखन की शक्तियां निम्नलिखित रूप में होंगी –
(क) सरपंच विकास अधिकारी – 10,000 रूपये के बही मूल्य तक की भण्डार वस्तुएं।
(ख) मुख्य कार्यपालक अधिकारी 20,000 रूपये के बही मूल्य तक की भण्डार – वस्तुएं।
(ग) निदेशक, ग्रामीण विकास 50,000 रूपये तक।
(घ) विकास आयुक्त – दो लाख रूपये तक।
(3) ऐसी सभी भण्डार – वस्तुओं का व्ययन सक्षम मंजूरी के पश्चात नाषन/नीलामी द्वारा किया जायेगा और उनके आगमों को निधि में जमा किया जायेगा।
244. अनुपयोगी यानों का व्ययन – (1) पंचायती राज संस्थाओं के यानों (जीप, कार, पिकअप, टेक्टर, मोटर साइकिल, थ्री व्हीलर, बुलडोजर) को अनुपयोगी घोषित करने और नीलाम करने के लिए जिला परिषद स्तर पर एक समिति निम्नलिखित रूप से गठित की जायेगी –
(क) मुख्य कार्यपलाक अधिकारी – अध्यक्ष
(ख) जिला परिषद का लेखा अधिकारी/ सहायक लेखा अधिकारी – सदस्य
(ग) जिला मुख्यालय पर पुलिस विभाग का एम.टी.ओ/परिवहन विभाग का मोटरयान निरीक्षक/जिला पूल मैकेनिक और सम्भागीय मुख्यालय पर राजकीय गैरेज का तकनीकी अधिकारी – सदस्य
(2) उक्त समिति यह सुनिश्चित करेगी कि यान ने निम्नलिखित रूप में विहित दूरी और अवधि पूरी कर ली है –
यान का प्रकार किलो मीटर (लाख) कालावधि (वर्ष)
1. मोटर साइकिल/ 1.20 7
थ्री व्हीलर
2. हल्के मोटर यान 2.00 8
3. मध्यम मोटर यान 3.00 10
4. भारी मोटर यान 4.00 10
5. ट्रैक्टर/ बुलडोजर उपयोग के 20,000 घंटे 10
(3) ऐसे यानों को अनुपयोगी घोषित नहीं किया जायेगा जो विहित दूरी और अवधि तो पूरी कर चुके है किंतु समिति की राय में उपयोग के लिए ठीक है।
(4) समिति के सदस्य यान को अनुपयोगी घोषित करने के पूर्व वास्तविक रूप से उसका निरीक्षण करेंगे और यह प्रमाणित करेंगे कि –
(क) यान ने विहित दूरी और अवधि पूरी कर ली है।
(ख) यान की लाभप्रद मरम्मत संभव नही है और पेट्रेाल/डीजल के अत्यधिक उपभोग के कारण उसे चलाने से कोई लाभ नहीं है।
(ग) पुर्जाे के प्रतिस्थापन में भारी व्यय होगा और यान को और चलाने से कोई लाभ नहीं होगा। मुख्य कार्यपालक अधिकारी, समिति की सिफारिश पर अनुपयोगी यानों की नीलामी के लिए आदेश जारी करेगा।
(5) यदि यान ने विहित न्यूनतम दूरी या अवधि पूरी नहीं की है, या यान पिछले सात वर्षो से अप्रयुक्त पडा है या यान दुर्घटनाग्रस्त हो गया है और मरम्मत के बाद उपयोगी नहीं रहेगा तो समिति यह प्रमाणित करते हुए मामले की सिफारिश करेगी कि –
(क) यान की लाभप्रद मरम्मत संभव नहीं है और चलाने से कोई लाभ नहीं है,
(ख) पुर्जों के प्रतिस्थापन में भारी व्यय होगा और यान को और चलाने से कोई लाभ नही होगा।
(ग) मरम्मत और पुर्जो के प्रतिस्थापन का कुल खर्च………. रूपये होगा, जैसा कि मोटर गैरेज विभाग के सर्वेक्षक द्वारा प्रमाणित किया गया है।
ऐसे यानों को अनुपयोगी घोषित करने की शक्तियां विकास आयुक्त को होगी।
(6) अनुपयोगी यान जिला स्तर पर एक समिति द्वारा नीलाम किये जायेंगे, जिसमें निम्नलिखित होंगे –
(क) अपर कलक्टर (विकास),
(ख) मुख्य कार्यपालक अधिकारी,
(ग) कोषाधिकारी या जिला परिषद का लेखाधिकारी।
अपर जिला मजिस्टेट (विकास) या मुख्य कार्यपालक अधिकारी, जो भी वरिष्ठ हो, अध्यक्ष के रूप में कार्य करेगा परन्तु राज्य की संचित निधि से खरीदे गये यान संबंधित खण्डीय मुख्यायलों पर राज्य मोटर गैरेज के माध्यम से नीलाम किये जायेंगे।
(7) उप – नियम 6 में की समिति द्वारा नीलाम किये गये यानों के विक्रयागमों को संबंधित पंचायती राज संस्था निधि में जमा किया जावेगा और विक्रय कर को सरकारी खाते में जमा किया जायेगा।
लेखें और विवरणियां
245. लेखों की त्रैमासिक विवरणी – आय और व्यय के लेखे का एक त्रैमासिक विवरण पंचायती राज संस्थाओं द्वारा प्रपत्र संख्या35 में तैयार किया जायेगा और अगले उच्चतर प्राधिकार को भेजा जायेगा। जून, सितम्बर, दिसम्बर और मार्च को समाप्त होने वाली तिमाही के लिए तिमाही लेखे, उस तिमाही के, जिससे लेखे संबंधित है, अगले मास की 15 तारीख तक प्रेषित कर दिये जाने चाहिये। बाद में उपबन्धित आय और व्यय की सभी मदों का प्रगामी योग, लेखे के ऐसे विवरण तैयार करते समय और अगले उच्चतर प्राधिकारी को आंकडे बताते समय, लगाया जायेगा।
246. वार्षिक लेखों का सार – (1) वर्ष के अन्त में पंचायत/पंचायत समिति, बजट के प्रत्येक शीर्ष के अधीन अपनी आय और व्यय दर्शित करते हुए, प्रपत्र 36 में वार्षिक लेखों का सार तैयार करेगी और उसे आगामी एक मई तक, जिला परिषद के माध्यम से, राज्य सरकार को भेजेंगी।
(2) वार्षिक लेखों के सार के साथ, प्रपत्र 37 में, लेखों के विभिन्न शीर्ष के अधीन राज्य सरकार से सहायता अनुदान, उपयोगिता प्रमाण – पत्रों द्वारा समर्थित उपगत व्यय का कार्यालय के प्रधान द्वारा हस्ताक्षरित विवरण होगा जिसमें स्पष्ट रूप से यह उल्लिखित किया जायेगा कि अनुदान विशिष्ट रूप से उद्देश्यों और प्रयोजनों के लिए, जिनके लिए वह दिया गया था, सम्पूर्णत: या भागत: खर्च किया गया है, जिसके लेखे समुचित रूप से रखे गये है और सम्बद्ध वाउचर उसकी अभिरक्षा में है ।मुख्य कार्यपालक अधिकारी इन विवरणों की सूक्ष्म संवीक्षा करेगा और उनकों, अपनी टिप्पणियों सहित, राज्य सरकार को भेजेगा, जिसकी एक प्रति संबन्धित पंचायत समिति/ पंचायत को भी दी जायेगी।
(3) प्रत्येक पंचायत समिति वार्षिक लेखेां के साथ, प्रपत्र संख्या 36 में बकाया ऋणों और रकम का विवरण भी संलग्न करेगी।
(4) वार्षिक लेखे के साथ विभिन्न स्कीमों के अधीन हाथ में लिये गये संकर्माें की एक सूची भी प्रपत्र 39 में यथा – उपंबधित व्यय की प्रगति सहित, संलग्न की जायेगी।
(5) वार्षिक लेखे क साथ प्रपत्र 40 में पंचायत/पंचायत समिति की शास्तियों और दायित्वों का विवरण भी होगा।
247. जिला परिषदों के लेखे और विवरणियां – (1) प्रत्येक जिला परिषद आय और व्यय का त्रैमासिक विवरण, नियम 245 में बताया गया है, तैयार करेगी और उसे राज्य सरकार को भेजेगी।
(2) इसी प्रकार प्रत्येक जिला परिषद आय और व्यय के वार्षिक लेखे, जैसा कि नियम 246 में बताया गया है, तैयार करेगी और उनको 15 मई तक राज्य सरकार को भेजेगी।
संपरीक्षा
248, लेखों की संपरीक्षा – (1) पंचायती राज संस्थाओं के लेखों की संपरीक्षा राजस्थान स्थानीय निधि संपरीक्षा अधिनियम, 1954 और उक्त अधिनियम के अधीन बनाये गये राजस्थान स्थानीय निधि संपरीक्षा नियम, 1955 के उपवचनों से शासित होगी।
(2) लेखों की सांकेतिक संपरीक्षा भारत के नियंत्रक महालेखा परीक्षक की और से भी की जा सकेगी।
249. संपरीक्षा के लिए व्यवस्थाएं – सम्बंधित पंचायती राज संस्था, संपरीक्षक को, संपरीक्षा करने के लिए उसका कार्यालय लगााने में समर्थ बनाने हेतु, युक्तियुक्त व्यवस्थाएं करेगी और संपरीक्षा के प्रयोजन के लिए समस्त अभिलेख, विवरण आदि तैयार रखेगी और उन्हे ऐसी रीति से पेश करेगी जिसकी संपरीक्षा तंत्र द्वारा मांग की जाये।
250. वित्तीय विवरण का तैयार किया जाना – पंचायती राज संस्था स्थानीय निधि संपरीक्षा नियम, 1955 द्वारा विहित वित्तीय विवरण और उस कालावधि के वास्तविक लेखे तैयार करेगी जिसके लिए संपरीक्षा की जानी है उन्हें तब पेश करेगी जब संपरीक्षा तंत्र द्वारा मांग की जाये।
251. संपरीक्षा रिपोर्ट – निदेशक, स्थानीय निधि संपरीक्षा की संपरीक्षा रिपोर्ट सम्बंधित पंचायती राज संस्था को भेजी जायेगी। पंचायतों की संपरीक्षा रिपोर्ट की एक प्रति संबंधित पंचायत समिति को भी भेजी जायेगी। इसी प्रकार पंचायत समितियों की संपरीक्षा रिपोर्ट की एक प्रति संबंधित जिला परिषद को भी भेजी जायेगी जो यह देखेगी कि संपरीक्षा तंत्र द्वारा बताई गई अनियमितताओं पर शीघ्रता से ध्यान दिया गया है और उनको परिशोधित किया गया है।
252. संपरीक्षा रिपोर्टो का अनुपालन – (1) निदेशक , स्थानीय निधि संपरीक्षा द्वारा भेजी गई संपरीक्षा रिपोर्ट का अनुपालन राजस्थान स्थानीय निधि संपरीक्षा नियम, 1955 के नियम 28 में अधिकथित प्रक्रिया के अनुसार किया जायेगा।
(2) मुख्य कार्यपालक अधिकारी और मुख्य लेखाधिकारी, जिला परिषद् प्रादेशिक मुख्यालयों पर पदस्थापित उप निदेशक, स्थानीय निधि संपरीक्षा की उपस्थिति में, संपरीक्षा रिपोर्टों के अनुपालन की प्रगति का प्रत्येक तीन मास में पुनर्विलोकन करेंगे और अभियान चलाकर उनके अनुपालन के लिए सभी कदम उठायेंगे।
(3) मुख्य कार्यपालक अधिकारी गबन, राजस्व की हानि, अतिसंदाय, गलत संदाय आदि को उपदर्शित करने वाले क्षेत्रों का विनिर्दिष्ट रूप से पुनर्विलोकन करेगा और व्यतिक्रमियों के विरूद्ध विभागीय कार्यवाही या दाण्डिक कार्यवाहियां संस्थित करेगा।
(4) संपरीक्षा रिपोर्टों में बताई गई राजस्व हानि की वसूली के लिए मुख्य कार्यपालक अधिकारी और विकास अधिकारियों द्वारा सभी प्रयास किये जायेंगे।
253. अपलेखन – (1) सभी धनीय हानियां, अवसूलीय राजस्व, उधार, अग्रिम पंचायती राज संस्था द्वारा राज्य सरकार से पूर्व अनुमोदन से ही अपलिखित किये जायेंगे।
(2) उस दशा में, जहाँं कोई हानि किसी भी सेवक से कपट, कूट रचना, गबन, गम्भीर उपेक्षा के कारण हुई हो, जिससे अनु शासनिक कार्यवाही आवश्यक हो गयी हो या जो नियमों और प्रक्रिया में दोष के कारण हुई हो जिससे परिशोधन या संशोधन अपेक्षित हो, पंचायत समिति/ जिला परिषद् पहले ऐसे मामले का पुनर्विलोकन करेगी और ‘‘अपलेखन’’ के अनुमोदन के लिए राज्य सरकार को मामले की सिफारिश करने के पूर्व समुचित अनुशासनिक कार्यवाही करेगी।
(3) हानियों के ‘‘अपलेखन’’ की समस्त मंजूरियों की एक प्रति निदेशक, स्थानीय निधि संपरीक्षा को भी प्रेषित की जायेगी।
254. प्रपत्र – प्रपत्रों की अनुपलब्धता की दशा में पंचायती राज संस्थाओं के कार्यालय में उपयोग के लिए राज्य सरकार के समरूपी प्रपत्रों को अंगीकृत किया जा सकेगा।
बजट, लेखे और संपरीक्षा
193. बजट – बजट किसी भी वर्ष के लिए किसी भी पंचायती राज संस्था की प्राप्तियां और व्यय के प्राक्कलन का एक विवरण है।
194. बजट का तैयार किया जाना – (1) बजट प्राक्कलन, पंचायत के लिए सचिव द्वारा पंचायत समिति के लिए विकास अधिकारी द्वारा और जिला परिषद् के लिए मुख्य कार्यपालक अधिकारी द्वारा तैयार किये जायेंगे। संबंधित पंचायती राज संस्था को सालाना बैठक में 15 फरवरी तक प्रस्तुत किये जायेंगे। किसी पंचायत के मामले में बजट ग्राम सभा के समक्ष भी रखा जावेगा जैसा कि अधिनियम की धारा 3 की उप-धारा (4) में उपबंधित हैं।
(2) बजट में प्रत्येक वित्तीय वर्ष के दौरान प्राप्तियों और व्यय का संभाव्य प्राक्कलन अन्तर्विष्ट होगा और अधिनियम की धारा 74 में उल्लिखित उपबन्धों के लिए व्यवस्था होगी और वह यथासंभव वास्तविकता के निकट और सही होनी चाहिए।
(3) लेखे के शीर्ष विशेष के अधीन प्राप्ति और व्यय के प्राक्कलनों में उपलब्ध करायी जाने वाली राशियां ऐसी होनी चाहिए जिनके वर्ष के दौरान युक्तियुक्त रूप से प्राप्त होने या व्यय किये जाने की आषा हो और उनमें उस वर्ष के दौरान की प्राप्तियां या बकायाओं के संदाय सम्मिलित होने चाहिए।
(4) बजट पंचायत के लिए विहित प्रपत्र संख्या 27 में और पंचायत समिति/जिला परिषद् के लिए प्रपत्र संख्या 28 में तैयार किया जावेगा।
195.बजट की अन्तर्वस्तु – (1) बजट में अन्य बातों के साथ-साथ निम्नलिखित के लिए भी पर्याप्त और उपयुक्त उपबन्ध अन्तविर्ष्ट होने चाहिए-
(क) पंचाायती राज संस्था की बजट वर्ष की निधियों में आरम्भिक अतिशेष और प्राक्कलित आय,
(ख) प्राक्कलित आय निम्नलिखित के लिए पृथक रूप से दर्शित होगीः
(i) स्वयं की आय सेः
(क) कर राजस्व
(ख) गैर-कर राजस्व, जैसे शुल्क, शास्तियां, मेलों, भूमि-वि क्रय, भूमि के अस्थायी उपयोग, कांजी हाउस, चरागहों, जलाशयों, कृषि फार्म, फलोद्यानो, और हड्डी ठेकों, से होने वाली आय तथा दुकानों और भवनों आदि से होने वाली किराये की आय।
(ii) राज्य सरकार से विभिन्न शीर्षों के अधीन सहायता अनुदान जैसे-भू-राजस्व में हिस्सा, अनुरक्षण अनुदान, विकास अनुदान, स्थापन अनुदान, प्रोत्साहन अनुदान, तुल्य हिस्सा, शिक्षा, ग्रामीण स्वच्छता, आवासन, उन्नत चूल्हा, जल-प्रदाय और स्वच्छता तथा सामान्य प्रयोजनार्थ अनुदान,
(iii) ग्रामीण विकास संकर्म और नियोजन जनन के लिए ग्रामीण विकास अभिकरण के जरिये केन्द्रीय सरकार से होने वाली प्राप्तियां,
(ग) अधिनियम और नियमों के अधीन स्थापन और उसके कर्तव्यों के निर्वहन पर प्रस्तावित व्यय/प्राक्कलन-
(क) विद्यमान व्यय के लिए और नये व्यय के लिए,
(ख) नयी मदों के लिए विशेष कारण पृथक रूप से उपदर्शित करते हुए, दिये जाने चाहिए,
(घ) उधारों के सम्बन्ध में सभी दायित्वों का और प्रतिदायों आदि जैसी सभी अन्य प्रतिबद्धताओं का सम्यक् उनमोचन,
(ड) कार्यकरण अतिषेष वर्ष के लिए स्वयं के आय की पा्रक्कलित प्राप्तियों का 20 प्रतिषत से कम न हो।
(2) बजट में निम्नलिखित भी अन्तर्विष्ट होंगे-
(1) पिछले वर्ष के वास्तविक आंकडे उस वर्ष के मूल प्राक्कलनों की तुलना में,
(2) चालू वर्ष के पुनरीक्षत प्राक्कलन उस वर्ष के मूल पा्रक्कलनों की तुलना में और
(3) आगामी वर्ष के बजट प्राक्कलन चालू वर्ष के मूल या पुनरीक्षित प्राक्कलनों की तुलना में।
196. बजट कलेण्डर – बजट प्राक्कलनों को तैयार करने और उनकी संवीक्षा करने में निम्मलिखित कार्यक्रम का सख्ती से अनुसरण किया जावेगा-
(क) बजट को अंतिम रूप देने और संबंधित पंचायती राज संस्था द्वारा पारित करने के लिए अंतिम तारीख 15 फरवरी
(ख) अधिनियम की धारा 74 को उप-धारा (4) में यथाउपबंधित अगले उच्च प्राधिकरण को प्रस्तुत करने की अंतिम तारीख 28 फरवरी
(ग) बजट प्राक्कलनों को स्वीकृति देने वाले प्राधिकारी द्वारा लौटाये जाने की अंतिम तारीख 20 मार्च।
197. बजट की मंजूरी – (1) अधिनियम की धारा 74 की उप-धारा (4) में उल्लिखित बातों के सिवाय स्वीकृति देने वाला प्राधिकारी निम्नलिखित की भी संवीक्षा करेगा-
(1) बजट तैयार करने में नियम 194 तथा 195 में अन्तर्विष्ट का अनुसरण किया गया है।
(2) प्राप्ति करने और व्यय का प्राक्कलन सहीं है और बजट वर्ष के दौरान बकाया उधारो या होने वाले शोध्यों की वसूली के लिए उपबन्ध किया गया हैं।
(3) आबादी भूमि के विक्रय से प्राप्त आय स्थापन प्रभारों के लिए उपयोग में नही ली गयी हैं।
(4) पंचायत एवं विकास विभाग द्वारा समय-समय पर जारी की गयी सिफारिशों पर बजट तैयार करते समय सम्यक रूप से विचार किया गया हैं।
(5) पंचायत बजट में बाध्यकर प्रभारों के लिए उपबन्ध किया गया है जैसे स्वच्छता, विद्युत, जल, गांवों की सड़के, विद्यालय भवनों का रखरखाव और मरम्मत और विकास क्रिया कलाप आदि और पंचायत समितियों/जिला परिषदों के बजट में वेतन तथा भतों, आकस्मिकताओं विकास कार्य के साथ ही उधारों, यदि कोई हो, के प्रतिसंदाय के लिए भी उपबन्ध किया गया है।
(6) बजट वर्ष के और पूर्व के आंकडो के बीच भिन्नताओं को पर्याप्त रूप से स्पष्ट किया गया हैं।
(2) मंजूरी प्राधिकारी उपनियम (1) में उल्लिखित बिन्दुओं पर समाधान होने के पश्चात बजट को उपान्तरों के साथ या के बिना, जैसा
भी वह ठीक समझे मंजूरी देगा।
(3) मंजूर किया गया बजट 20 मार्च या इसके पूर्व सम्बधित पंचायती राज संस्था को लौटा दिया जावेगा।
198. स्थापन के लिए प्राक्कलन – पंचायत समिति और जिला परिषद भी स्थापन पर के व्यय के पृथक पृाथक प्राक्कलन निम्ललिखित को उपदर्षित करते हुए तैयार करेगी-
(1) संवर्ग अनुसार स्वीकृत पद संख्या, वेतन मान की दर, मंहगाई भत्ता, वेतन वृद्धियां जो बजट वर्ष के दौरान देय होगी। (2) रिक्तीयों के कारण अधिसंभाव्य बचतें।
199. एक बजट शीर्ष से अन्य में पुनर्विनियोजन – किसी वित्तीय वर्ष के लिए पारित बजट में एक शीर्ष के अधीन उपबंधित रकम को, निम्नलिखित शर्तें के अध्यधीन रहते हुए पूर्ण रूप से या आंषिक रूप से किसी भी अन्य शीर्ष में अन्तरित किया जा सकेगा-
(1) कि ऐसी सेवाओं या दायित्वों के लिए सम्यक प्रबन्ध किया जावे जिन्हें अधिनियम या तदधीन बनाये गये नियमों के अनुसार निष्पादित, अनुरक्षित या संदत करना किसी पंचायती राज सस्ं था के लिए बाध्यकारी हैं।
(2) कि पंचायत ने पूर्व में मंजूर संकर्मे के उपयोग मंे न लिखे गये बजट को अव्ययित अतिषेषो के बदले मे, वर्ष के दौरान नये संकर्म ं के लिए अन्तरित करने हेतु ग्राम सभा का अनुमोदन प्राप्त कर लिया हैं।
(3) कि राज्य सरकार/केन्द्र सरकार से प्राप्त सहायता अनुदान को उन प्रायोजनों के लिए खर्च किया जाये, जिनके लिए वह मंजूर किया है।
(4) कि एक मुख्य शीर्ष की रकम अन्य मुख्य शीर्ष में अन्तरित न की जावे।
200. बजटेतर व्यय की अनुज्ञा उपगत किया जाना – (1) कोई भी पंचायती राज संस्था मंजूरी प्राधिकारी की पूर्व अनुज्ञा के बिना, मंजूर शुदा बजट में शामिल न की गयी किसी भी मद का या बजट आवंटन से अधिक व्यय उपगत नहीं करेगी। ऐसे व्यय के लिए अनुपूरक/ पुनरीक्षित बजट तैयार किया जा सकेगा।
(2) इस बात की सावधानी बरती जावेगी कि बजट सीमाओं का अतिक्रमण न हेा।
201. त्रैमासिक पुनर्विलोकन – पंचायती राज संस्था प्रत्येक शीर्ष पर के बजट उपबंध और संचयी व्यय का एक त्रैमासिक विवरण तैयार करायेगी और उसे प्रतिवर्ष अप्रेल, जुलाई, अक्टूबर और जनवरी मास में आयेजित की जाने वाली बैठकों में भौतिक लक्ष्यों और उपलब्धियों के तथा व्यय की थीमी गति प्रतिषत यदि कोई हो, के कारणों के साथ रखेगी। राजस्व
202. राजस्व का निर्धारण और संग्रहण – (1) पंचायती राज संस्था के कार्यालय प्रधान का वह कर्तव्य होगा कि राजस्व तथा व्यय के लेखो का उचित रूप से रखा जाना सुनिष्चित हो।
(2) कार्यालय प्रधान राजस्वों की प्राप्ति और संग्रहण के लिए भी उत्तरदायी होगा। वह सुनिष्चित करेगा कि शोध्य सही-सही और नियमित रूप से निर्धारित संगृहित और निधि में तत्परतापूर्वक जमा किये गये हैं। तदनुसार वह उन समस्त स्त्रोतो से जहाँ ंसे राजस्व प्राप्त होता है, वसूली की प्रगति के बारे में विवरणियां प्राप्त करने करने की व्यवस्था करेगा और उन्हें प्रपत्र संख्या 6 में मांग और संग्रहण रजिस्टर में अंकित करवायेगा।
203. राजस्व की लीकेज पर नियंत्रण – यह सुनिष्चित करने के लिए कि समस्त संगृहित राजस्व सहीं तौर पर लेखे में अंकित कर दिया गया हैं कि कोई भी लीकेज नहीं हैं। कार्यालय प्रधान यह देखेगा कि पर्याप्त नियन्त्रणों का प्रयोजन किया जाये और इस प्रयोजन के लिए प्राप्ति के लेखे के सांकेतिक निरीक्षण करा सकेगा।
204. राजस्व बकाया -पंचायती राज संस्था को देय कोई भी रकम बिना पर्याप्त कारणों के बकाया नहीं छोड़ी जायेगी और जहाँ ऐसे देय अवसूलीय प्रतीत हो, वहाँं अन्य समायोजन, छूट मांग में जमा का उपलेखन के लिए साक्षम प्राधिकारी के आदेष, बिना किसी परिहार्य विलम्ब के प्राप्त किये जाने आवश्यकहै।
205. वास्तविक वसूली के अनुसार जमा-कोई भी राशि राजस्व के रूप में तब तब जमा नहीं की जा सकेगी जब तक वह वास्तविक रूप से वसूल न कर ली गयी हो।
206. पी. डी. लेखे/बैंक या ड़ाकघर में जमा-(1) पंचायत कार्यालय में प्राप्त सभी रकमंे डाकघर या बैक में जमा करायी जायेगी।
(2) पंचायत समिति/जिला परिषद् द्वारा प्राप्त सभी रकमें सरकारी उप कोषागार/कोषागार में पी डी, लेखे में जमा करायी जायेगी।
(3) राज्य सरकार से प्राप्त सभी अनुदान संबंधित जिला परिषद् के पी, डी, लेखे में त्रैमासिक आधार पर अन्तरित किये जायेगे।
(4) मुख्य कार्यपालक अधिकारी यह सुनिष्चित करेगा कि सम्बंधित पंचायतो/पंचायत समितियों का हिस्सा उनके लेखो में तत्परता से अंतरित किया जाये।
व्यय
207. धन का आहरण-धन निधि से तब तक आहरित नहीं किया जावेगा जब तक वह किसी भी नियम के अधीन व्यय का किसी मद पर या सक्षम प्राधिकारी के किसी विनिर्दिष्ट आदेष पर तत्काल संवितरण के लिए अपेक्षति न हो।
208. वित्तीय औचित्य का मानक-किसी भी पंचायती राज संस्था का कार्यालय प्रधान वित्तीय औचित्य के स्थापित मानकों से नियन्त्रित होना चाहिए और उसे वहीं सतर्कता बरतनी चाहिए जो कोई सामान्य प्रज्ञावान व्यक्ति अपने स्वयं के धन के व्यय के संबंध में बरतता है।
209. देयता का बजट उपबंध के बिना उपगत न किया जाना-कोई भी प्राधिकारी व्यय तब तक उपगत नहीं करेगा या किसी भी दायित्व में प्रवेष नहीें करेगा जब तक उसके लिए कोई बजट उपबन्ध न हो और व्यय सक्षम प्राधिकारी द्वारा मंजरू न किया गया हो।
210. व्यय का नियंत्रण-कार्यालय प्रधान को यह देखना हीं चाहिए कि न केवल कुल व्यय प्राधिकृत विनियोजन की सीमाओं के भीतर-भीतर रखा जाये अपितु यह भी कि आवंटित निधियों का व्यय संबंधित पंचायती राज संस्था के हित में और सेवा के लिए तथा उन प्रयोजनों पर किया जावे जिनके लिए उपबंध किया गया है। समुचित नियंत्रण बनाये रखने के लिए उसे व्यय प्रतिबद्धताओं ओर उपगत असंदत्त देयताओं की प्रगति से स्वयं को निकटतम रूप से अवगत बनाये रखना चाहिए।
211. निधियों का आहरण-(1) धन केवल चैंको के जरिये आहरित किया जायेगा। अन्य व्यक्तियों को 1,000/- रुपये से अधिक रकम का संदाय भी ख्खाता प्राप्तकर्ता, चैंक के जरिये ही किया जायेगा। पक्षकार सीधे बैंक/खजाना/उप-खजाना से संदाय अभिप्राप्त कर सकेगे। संबंधित बिल पर चैक संख्या और तारीख का निर्देष सदैव किया जायेगा ताकि एक ही बिल का दोहरा संदाय नहीं किया जा सकें।
(2) कार्यालय प्रधान व्यक्तिषः केवल उतनी ही रकम चैक के जरिये आहरित करने के लिए उत्तरदायी होगा जो बैठक में सक्षम मंजूरी
द्वारा प्राधिकृत किये गये बिलों में पारित की गयी है। किसी भी मामले में अधिक धन का आहरण नहीं होगा। परंतु जब कभी चैक पर संयुक्त हस्ताक्षर आवश्यकहो तथा सरपंच, प्रधान, प्रमुख के हस्ताक्षर प्राप्त करना दस दिन तक संभव ना हो परन्तु भुगतान करना अति आवश्यकहो तो सरपंच के स्थान पर विकास अधिकारी, प्रधान के स्थान पर मुख्य कार्यपालक अधिकारी और प्रमुख के स्थान पर जिलाधीष चैक पर हस्ताखर करने हेतु अधिकृत होगे। परंतु ऐसे भुगतान के अति आवश्यकहोने के बारे में लिखित कारण अधिलिखित किये जावेगे।
(3) अनपेक्षित आकस्मिक व्यय के लिए स्थायी अग्रिम के रूप से अग्रदाय धन भी संबंधित पंचायती राज संसथा द्वारा धारा 64 की उप धारा (3) के अधीन प्राधिकृत किया जायेगा किन्तु वह सामान्यतः निम्नलिखित रूप से होना चाहिए
(क) पंचायत 10ए000ध्. रुपये
(ख) पंचायत समिति/परिषद् 25000/- रुपये
ख्उपरोक्त राशिए आकस्मिक आकस्मिक व्यय से संबंधित सामान्य वित्त और लेखा नियमों में उल्लिखित प्रावधानों के अलावाए निर्माण कार्यों से संबंधित ऐसी मदों पर भी खर्च की जा सकती हैए जिसके संबंध में भुगतान एकाउंट पेयी चेक द्वारा नहीं किया जा सकता हैए लेकिन ऐसे सभी मामलों में एकाउंट पेयी चेक द्वारा भुगतान न करने के कारणों को संबंधित पंचायती राज संस्थान के संबंधित रिकॉर्ड में दर्ज किया जाएगा। उपरोक्त कारणों को दर्ज करने के बादए अग्रदाय राशि को वाहक चेक के माध्यम से निकाला जा सकता है।,
जिस व्यक्ति की अभिरक्षा के स्थायी अग्रिम है वह ऐसे अग्रिम की प्राप्ति की अभिस्वीकृति प्रत्येक वर्ष पहली अप्रेल को देगा।
(4) कार्यालय प्रधान मास के अंत में इस बात का भौतिक सत्यापन करेगा कि पर्याक्त सीमाओं के अधीन का कोई भी धन वापस पी.डी. लेख/बैंक में जमा करा दिया गया है।
ख्;5द्ध पंचायती राज संस्था के कार्यालय प्रमुखध्सरपंचध्सचिवध्खजांची के लिए व्यक्तिगत रूप से उत्तरदायी होगाए यदि संबंधित पंचायती राज संस्थान में नकद शेष राशि महीने के अंत में ऊपर निर्धारित सीमा से अधिक है। ऐसे मामले मेंए वे इस तरह की अतिरिक्त राशि पर 18ः प्रतिवर्ष की दर से ब्याज का भुगतान करने के लिए संयुक्त रूप से उत्तरदायी होंगे। इस प्रकार देय ब्याज की राशि कार्यालय प्रमुखध्सरपंच एवं सचिवध्कैशियर से समान रूप से वसूल की जायेगी।,
212 सा. भ. नि./राज्य बीमा/जीवन बीमा की कटोतियां आदि-(1) वेतन बिलों से भविष्य निधि, राज्य बीमा आयकर, जीवन बीमे और गृह किराये की कटोतियों आदि के मुद्दे उचित कटोतियां करने का कर्तव्य बिल का आहरण करने वाले पर न्यागत होगा।
(2) कोई भी विकास अधिकारी, कर्मचारियों के वेतनो से सा, भ, नि, राज्य बीमा, जीवन बीमा, आयकर, कटौतियों के प्रति नगदी आहरित नहीं करेगा। वह वेतन बिलों के साथ-साथ निदेशक , राज्य बीमा/सा.भ.नि./आयकर अधिकारी जीवन बीमा निगम ष्शाखा के नाम से ऐसे चैक तैयार करवायेगा और मास के प्रथम सप्ताह के दौरान भेजेगा। संबंधित विकास अधिकारी को ऐसी प्रक्रिया के अतिक्रमण के लिए व्यक्तिषः दायित्वाधीन ठहराया जायेगा।
213 सचिव की अनुपस्थिति में विकास अधिकारी की शक्तियां-पंचायत के मामले में सभी अधिनियम की धारा 64 की उप-धारा (5) के उपबंधों के अनुसार सरपंच और सचिव के संयुक्त हस्ताक्षर से आहरित किये जायेंगे अतः सचिव की अनुपस्थिति या बीमारी या छुट्टी पर होने की स्थिति में उस पंचायत समिति के विकास अधिकारी को जिसकी अधिकारिता में ऐसी पंचायत आती है, तुरन्त ओर अत्यावष्यक संदाय सुगम बनाने के लिए सरपंच के साथ-साथ उस पंचायत के चैकों पर हस्ताक्षर कर सकेगा।
214 पंचायती राज संस्थाओं का स्वयं की आय में से व्यय- (1) पंचायती राज संस्थाएं करो, जुर्मानो, फीसो, और अपने व्ययनााधीन रखी गयी आस्तियों के जरिये जुटायी गयी अपनी आय से साधारण बैठक या स्थायी समिति के अनुमोदन से व्यय ऐसी सीमाओं के अनुसार उपगत कर सकेगी जो राज्य सरकार द्वारा समय-समय पर निधार्र त की जावे। ख्वित्त क्ष्व्यय .1 द्वविभाग की सहमति आइडी 1701 दिनांक 15.06.1998 के अनुसरण में पंचायतों द्वारा व्यय की सीमा प्रत्येक मामले में रुपये 1ए00ए000 निर्धारित की जाती है ,
(2) स्वयं की आय में से व्यय वेतन, भत्तो और आकस्मिकता के दायित्व की पूर्ति करने के पष्चात् हीं उपगत किया जायेगा।
(3) सभी व्यय अन्य प्रतिबद्धताओं और समाध्यासनों को हिसाब में लेने के पष्चात्, स्वयं की आय निधियों की उपलब्धता के अध्यधीन रखते हुए किये जायेगे।
(4) षिक्षा उपकर से आय केवल शैक्षिक भवनों क्रिया कलापों पर ही खर्च की जायेगी किन्तु अन्य स्त्रोतो से स्वयं को होने वाली आय ऐसे भवनों/क्रियाकलापों पर भी खर्चे करना संभव होगा।
(5) कोई भी व्यय पंचायती राज संस्था की अधिकारिता के बाहर उपगत नहीं किया जायेगा।
(6) स्वंय की आय का प्राप्ति और व्यय के लिए वार्षिक बजट अनुमान तैयार किया जायेगा और संबंधित पंचायती राज संस्था से अनुमोदित कराया जायेगा।
(7) कोई भी व्यय स्वयं की आय की प्रत्याषा के आधार पर नहीं किया जायेगा। टिप्पणी
जुलाई 2003 से पंचायत को अपनी निजी आय से 2 लारव तक व्यय करने की शक्ति दी जा चुकी है।
215. कर्मचारियों को अग्रिम-(1) कर्मचारियों को वाहन क्रय के लिये दिेये जाने वाले अग्रिम, त्यौहारों के लिए दिये जाने वाले अग्रिम राज्य सरकार के कर्मचारियों पर समय-समय पर लागू होने वाले नियमं और शर्त द्वारा शासित होगे सिवाय तब के कि जब ऐसा अग्रिम स्वयं की आय में से मंजूर किया जाये। यदि इस प्रयोजन के लिए इनकी स्वंय की आय पर्याप्त न हो, तो अग्रिम एसे े अन्य स्त्रोतो से मंजूर किये जा सकेगें जो पंचायती राज संस्था में उपलब्ध हो। प्राप्त ब्याज को पंचायती राज संस्था की आय के रूप में माना जायेगा और उसकी निधि में जमा कराया जायेगा।
(2) संकर्मो या अन्य विनिर्दिष्ट प्रयोजनों के लिए दिये जाने वाले अग्रिमों को अधिकतम तीन मास के भीतर-भीतर समायोजित कराया जायेगा। ऐसा न होने पर वह अस्थायी गबन की कोटि में आवेगा और उपयोग में न लिया गया नकदी अभिलेख 18 प्रतिषत ब्याज वापस जमा कराया जायेगा।
216. उधार-(1) राज्य सरकार या केन्द्रीय या राज्य सरकार के किसी भी निगम द्वारा किसी पंचायती राज संस्था को मंजूर किया गया उधार निधि पर प्रथम प्रभार होगा और उधार की किष्ते नियत तारीख पर नियमित रूप से संदत्त की जायेगी ऐसा न करने पर राज्य सरकार संदेय सहायता-अनुदान में से शोध्य रकम का समायोजन कर सकेगी या धन को वसूल करने के लिए अन्य उपुयक्त कदम उठा सकेगी।
(2) पंचायती राज संस्थाएं पंचायती राज संस्थाओं के लिए वित्त निगम के निबंधनों ओर शर्तो के अनुसार, ग्रामीण आवास, दुकानों के सन्निर्माण और अन्य परियोजनाओं के लिए उधार अभिप्राप्त कर सकेगी और अपनी किस्तों का उपयोग और प्रतिसंदाय कर सकेगी। संबंधित पंचायती राज संस्थाएं उधार के लेखे रखने हेतु की गईं सेवाओं के लिये अभिकरण प्रभारों के रूप में एक प्रतिषत प्रभारित कर सकेगी।
(3) बकाया उधारों को पंचायत समितियों द्वारा वसूल किया जाना जारी रखा जायेगा। और राज्य सरकार के पास से सुसंगत राजस्व
शीर्ष में जमा कराया जायेगा।
217. नमूने के हस्ताक्षर-विकास अधिकारी/प्रधान और मुख्य कार्यपालक अधिकारी/प्रमुख के नमूना हस्ताक्षर जिला कोषागार और संबंधित उप-कोषागार को भेजे जायेगें। पंचायत के मामले में सरपंच/सचिव के नमूना हस्ताक्षर उस बैंक/डाकघर को भेजे जायेगें जिसमें लेखे रखे जाते है।
218. चैक बुक- (1) कोषागार/उप-कोषागार या बैंक/डाकघर की चैक बुके कार्यालय प्रधान के प्रभार में रखी जायेगी। वे ताले मंे बंद रखी जायेगी।
(2) सभी चैंक बुके प्राप्त की जाये, गिनी जायेगी और चैक बुक की प्रत्येक परत पर संबंधित पंचायती राज संस्था के नाम वाली
रबड की मुहर सुभिन्नत लगायी जायेगी।
219. वेतन और भत्त्ेा-(1) अधिकारियों और कर्मचारीयों के वेतन और भत्ते तथा सदस्यों के मानदेय और भत्ते निधि के स्रोत पर द्वितीय भार होगे।
(2) किसी पंचायत राज संस्था के नियत तारीखों पर वेतन संदत करने में विफल रहने की दशा में राज्य सरकार नकद अतिषेषों पर रोक लगाने और ऐसी रकमों को निकालकर संदाय करने के लिए विकास अधिकारी को निर्देष दे सकेगी।
220. नियत तारीख- अधिकारियों और कर्मचारियों द्वारा अर्जित वेतन और भत्ते आगामी माह के प्रथम कार्य दिवस पर संदाय के लिए देय हो जायेंगे।
221. संदायों की अभिस्वीकृति- कार्यालय का प्रधान उसके द्वारा हताक्षरित किसी बिल/चैक पर निकाली गयी रकम के लिए वैयक्तिक रूप से उतरदायी हागा जब तक वह इसका संदाय न कर दे ओर पाने वाले से उसके लिए विधि रूप से मान्य रसीद प्राप्त न करले।
222. स्थानान्तरण पर वेतन और अग्रिम- स्थानान्तरणों पर वेतन और अग्रिमों के उपबन्ध, राज्य सरकार के कर्मचारियों पर समय समय पर लागू नियमों द्वारा शासित होगे।
223. अन्य प्रभार- (1) कार्यालय के प्रबन्ध के लिए उपगत समस्त आनुबंधिक और प्रकरण व्ययों की प्रकृति नमनीय और उतार-चढाव वाली हैं और उनमें मितव्ययिता करने के लिए पूरी सावधानी रखी जानी हैं। बिल का आहरण करने वाला अधिकारी यह देखने के लिए उतरदायी होगा कि बिल में सम्मिलित व्यय की मदें स्पष्ट आवष्यकता की है और कोई भी खरीद वस्तु उचित और उपयुक्त दरों पर प्राप्त की गयी है।
(2) अन्य प्रभारों के लिए अग्रिमों की आहरण में पाने वाले की रसीद सहित सम्यक रूप से समर्थित वाउचरों पर या फर्म या ठेकेदारों के प्रोफार्मा बिलों पर किया जाना चाहिए और अग्रिमों का आहरण तब तक अनुज्ञान नहीं किया जाना चाहिए जब तक कि किसी विषेष प्रकृति के व्यय की पूर्ति के लिए अपेक्षित न हो।
224. राजस्व का प्रतिदाय- राजस्व के प्रतिदाय के लिए किसी भी मांग को स्वीकार करने के पूर्व रोकड बही में मूल जमा को अवश्य खोजना चाहिए और संबंधित रसीद भी साथ लगानी चाहिए और प्रतिदाय की प्रविष्टि इन दस्तावेजों में लाल स्याही से सुभिन्न रूप से की जानी चाहिए जिससे कि दूसरे दावे के विरूद्ध सुरक्षा की जा सकें। जहाँ कर या उपकर का प्रतिदाय किया जाये वहाँ मांग और संग्रहण रजिस्टर में प्रति-निर्देष भी किया जायेगा।
225. अतिसंदाय / सद्संदाय-(1) कार्यालय का प्रधान निधि में से लिये गये किसी भी अतिसंदाय की, चाहे वह सद्भावपूर्वक किया गया है, शीघ््रा वसूल करने के लिए उतरदायी है।
(2) यदि ऐसा संदाय किसी कपट के कारण किया गया है तो ऐसे व्यक्ति के विरूद्ध गलत रूप से कपट वंचित करने और धन प्राप्त करने के लिए पुलिस थाने में प्रथम सूचना रिपोर्ट भी दर्ज करवायी जायेगी।
226. कालातीत दावों का संदाय – (1) वेतन, यात्रा-भत्ते/चिकित्सा पुनर्भरण के तीन वर्ष के कालातीत दावों का संदाय कार्यालय के प्रधान द्वारा, कनिष्ठ लेखाकार द्वारा पूर्व – जाँच किये जाने के पश्चात किया जायेगा।
(2) तीन वर्ष से अधिक के ऐसे सभी दावों के लिए, जिला पारेषद के लेखाकार/सहायक लेखाधिकारी द्वारा पूर्व/जांच किये जाने के पश्चात मुख्य कार्यपालक अधिकारी की पूर्व-मंजूरी अपेक्षित होगीं।
परंतु यह तब जब कि
(क) दावे का औचित्य सिद्ध हो जावे
(ख) वे आदेष और दस्तावेज उपलब्ध हो, जिन पर दावा आधारित है।
(ग) उन पूर्व बिलों का निर्देष किया जावे जब दावे का आहरण नहीं किया गया था।
(घ) विलम्ब के कारण स्पष्ट किये जावे-
(3) वर्ष तक के आकस्मिक दावों पर मुख्य कार्यपालक अधिकारी की पूर्व मंजूरी अपेक्षित होगी जबकि तीन वर्ष के पश्चात निदेशक , गा्रमीण विकास एवं पंचायती राज की मंजूरी अपेक्षित होगी।
227. सामान्य वित्तीय एवं लेखा के अधीन प्रादेशिक अधिकारी और कार्यालय प्रधान की शक्तियां – (1) इन नियमों में विनिर्दिष्ट नहीं की गयी, प्रादेषिक अधिकारी की वित्तीय शक्तियों का प्रयोग, जिले में पदस्थापित कर्मचारियोंके संबंध में मुख्य कार्यपालक अधिकारी द्वारा सा.वि. एवं ले. नि. के अनुसार किया जावेगा।
(2) सा.वि.एवं ले.नि.के अनुसार इन नियमों में विनिर्दिष्ट नहीं की गयी कार्यालय के प्रधान की शक्तियों का प्रयोग, पंचायत के लिए संरपच, पंचायत समिति के लिए विकास अधिकारी और जिला परिषद के लिए मुख्य कार्यपालक अधिकारी द्वारा किया जावेगा। लेखों का रखा जाना
228. सभी नकद संव्यवहारों का लेखा जोखा दिया जाना- ऐसे समस्त नकद, संव्यवहारों को, जिनमें पंचायत राज संस्था एक पक्षकार है, किसी भी अपवाद के बिना लेखे में लिया जायेगा। लेखे रखे जाने में पारदर्षिता सुनिष्चित की जावेगी।
229. रोकड बही- (1) प्रत्येक पंचायती राज संस्था द्वारा धन की प्राप्ति और संदाय का अभिलेख रखने के लिए प्रपत्र संख्या 29 में एक रोकड बही रखी जायेगी।
(2) सभी नकद संव्यवहारों की, ज्यांेहीं वे किये जाये, रोकड बही में पूर्ण प्रविष्टि की जायेगी और वह जांच के प्रतीक स्वरूप कार्यालय के प्रधान द्वारा अनुप्रमाणित की जायेगी।
(3) रोकड बही का नियमित रूप से समवरण किया जायेगा और कार्यालय का प्रधान प्रत्येक विद्धि दर ही होने के अभीष्ट स्वरूप आवश्यककरेगा।
(4) प्रत्येक मास के अंत में कार्यालय प्रधान को तिजोरी के नकद अतिषेष का रोकड बहीं के अतिषेष से सत्यापन करना चाहिए और निम्नलिखित आषय का हस्ताक्षरित और दिनांकित प्रमाण पत्र अभिलिखित करना चाहिए-
‘‘प्रमाणित किया जाता है कि नकद अतिषेष की जांच कर ली गयी है और निम्नलिखित रूप में पाया गया हैं- वास्तविक नकदी और रोकड बही के अतिषेषों के बीच अन्तर होने की दशा में उसका स्पष्टीकरण किया जायेगा।
(5) धन के किसी भी दुरूपयोग को रोकने के लिए वास्तविक नकद अतिषेष की आकस्मिक जांच भी मास में दो बार की जायेगी। (6) पंचायत, विकास योजनाओं की निधियों के लिए एक पृथक रोकड बहीं भी रखेगी।
230. धन की रसीद-(1) जब धन कार्यालय में संगृहित या संदत किया जाये तो देने वाले को प्रपत्र संख्या 30 में रसीद दी जायेगी।
(2) रसीद पर सचिव/रोकडिये द्वारा हस्ताक्षर किये जायेगंे।
(3) रकम अंको और शब्दों दोनों मे लिखी जायेगी।
(4) कार्यालय प्रधान स्वयं का इस बात से समाधान करेगा कि रकम की रोकड बही में सही रूप से प्रविष्टि कर ली गयी है।
(5) खाली रसीद पुस्तकें, सुरक्षित अभिरक्षा में रखी जायेगी और रसीद पुस्तकों का समुचित लेखा रखा जायेगा।
231. रोकडिये की प्रतिभूति-(1) नकदी का प्रभारी व्यक्ति, अपनी अभिरक्षा में संभाव्यतः रखी जाने वाली नकदी की रकम की समतुल्य पर्याप्त और विधिमान्य प्रतिभूति देगा।
(2) प्रतिभूति विष्वस्तता बंधपत्र के रूप में होगी जिसे उसकी समाप्ति के लिए नियत तारीख के पूर्व स्वीकृत किया जायेगा।
(3) रोकडिये को राज्य सरकार द्वारा तदनुसार विहित दर पर भत्ता संदेय होगा।
232. डबल लॉक-(1) विष्वस्तता बंधपत्र की रकम के अधिक समस्त नकदी डबल लॉक व्यवस्था के अधीन लोहे की मजबूत तिजोरी में रखी जायेगी।
(2) एक ताले की सभी चाबियां एक व्यक्ति की अभिरक्षा मंे रखी जायेगी। अन्य तालों की चाबियां कार्यालय के प्रधान की अभिरक्षा में रखी जायेगी। तिजोरी को तब तक नही खोला जायेगा जब तक दोनों अभिरक्षक उपस्थित न हों।
233. नकदी की सुरक्षा- जब रोकडिये के द्वारा बैक से कार्यालय या कार्यालय से बैंक तक अत्यधिक नकदी अतिषेष लाया जाये तो उसके साथ जाने आने के लिए पुलिस थाने से एक सुरक्षा गार्ड की व्यवस्था संदाय आधार पर की जा सकेगी।
234. दावों का प्रस्तुतिकरण-(1) संदाय के लिए समस्त दावे प्रपत्र 31 में तैयार किये जायेंगे और पंचायती राज संस्था के संबंधित कार्यालय मे प्रस्तुत किये जायेंगे जहाँ कार्यालय के प्रधान द्वारा उनकी जांच की जायेगी और वे पारित किये जायंेगे।
(2) कोई संदाय-आदेष देने वाला अधिकारी यह देखने के लिए व्यक्गित रूप से उतरदायी है कि दावा हर प्रकार से पूर्ण और सही है और उसमें, किये गये संदाय की प्रकृति के बारे में, पर्याप्त सूचना है।
235. वाउचर-(1) धन के प्रत्येक संदाय के लिए, निधि का धन खर्च करने वाला अधिकारी दावे की पूर्ण और स्पष्ट विषिष्टियां और लेखों में समुचित वर्गीकरण के लिए आवश्यकसमस्त सूचना देने वाला वाउचर अभिप्राप्त करेगा।
(2) प्रत्येक वाउचर में या उसके साथ, उस व्यक्ति द्वारा संदाय किये जाने की अभिस्वीकृति होनी चाहिए जिसके द्वारा या जिसकी ओर से दावा प्रस्तुत किया गया है।
(3) प्रत्येक वाउचर पर, रकम को शब्दों और अंको में विनिर्दिष्ट करते हुए, कार्यालय प्रधान द्वारा संदाय-आदेष होना चाहिए।
(4) समस्त वाउचरो को क्रम से तारीखवार संख्यांकित किया जायेगा जो 1 अप्रेल से प्रारंभ होगी और वाउचरों के पार्ष्व में लाल स्याही से ‘‘संदत‘‘ अंकित किया या लिखा जाना चाहिए जिससे उनका दूसरी बार प्रयोग नहीं किया जा सके।
(5) कार्यालय का प्रधान रोकड बही में व्यय पक्ष के संदायों को सत्यापित करते समय वाउचरों पर भी आद्याक्षर करेगा।
(6) वाउचरों संपरीक्षा की लिए सुरक्षित अभिरक्षा में रखे जायेंगे और विहित कालावधि समाप्त हो जाने के पश्चात ही नष्ट किये जायेंगें।
236. खाता-(1) प्रत्येक पचायत राज संस्था मे, निधि मे से उपगत व्यय के विभिन्न शीर्षो के अधीन उपगत व्यय को दर्षित करने के लिए प्रपत्र संख्या 32 में एक खाता रखा जायेगा।
(2) खाते में, स्वीकृत बजट में उपबन्धित प्रत्येक व्यय-षीर्ष के लिए एक पृष्ठ या कुछ पृष्ठ आवंटित किये जायेगें और उसमें रोकड बही से नियमित रूप से प्रविष्टियां की जायेगी।
237. राजस्व रजिस्टर-(1) प्रत्येक पंचायती राज संस्था में प्रपत्र 33 में राजस्व प्राप्तियों का एक रजिस्टर भी उसमें समस्त करों, फीसों और अन्य आय के मद की प्राप्तियों को अभिलिखित करने के लिए रखा जायेगा।
(2) आय कर या फीस के प्रत्येक शीर्ष के लिए आवष्यकता के अनुसार पृथक पृष्ठ आवंटित किया या किये जायं और रोकड बही से नियमित रूप से प्रविष्टि की जायेगी।
238. लेखों का मिलान-(1) पंचायत सचिव का यह कर्तव्य होगा कि वह पंचायत अभिलेखों के आधार पर प्रत्येक मास बैंक/डाकघर पास बुकों से जमाओं और आहरणों का मिलान करें और यदि कोई भूलें हों, तो उन्हें ठीक करें।
(2) पंचायत समिति और जिला परिषद के मामले में रोकडिया कोषागार/उप-कोषागार में के.पी.डी. खातों का प्रत्येक माह मिलान करेगा। सामान
239. स्टॉक रजिस्टर-(1) प्रत्येक पंचायती राज संस्था द्वारा प्रपत्र 34 में एक स्टॉक रजिस्टर रखा जायेगा जिसमें संबंधित पंचायती राज संस्था के समस्त स्टॉक और अन्य जंगम सम्पतियों की प्राप्ति और निर्गम की प्रविष्टि की जायेगीं।
(2) सामान का लेखा प्रत्येक मद के लिए पृथक-पृथक रखा जायेगा। प्राप्ति पक्ष की और की प्रविष्टियां प्रदायक के बिल से सीधी की जायेगी, सामान वास्तविक मांग-पत्र के अनुसार जारी किया जायेगा और सामान के निर्गम के लिए समुचित रसीद अभिपा्रप्त की जायेगी। उसकी स्टॉक रजिस्टर के निर्गम पक्ष में सही-सही प्रविष्टि की जायेगी।
240. सामान की अभिरक्षा – (1) सामान की अभिरक्षा से न्यस्त व्यक्ति उसकी सुरक्षा और उसे अच्छी स्थिति और उसे हानि, नुकसान या धूप से संरक्षित करने के लिए उतरदायी होगा।
(2) वह मषीनों, टेलीफोन, टंकण यंत्रों, फोटो प्रतिलिपि, कूलरों और अन्य कार्यालय उपस्कर का, उन्हें हर समय चालू स्थिति में रखने के लिये, समुचित और समयबद्ध अनुरक्षण सुनिष्चित करेगा।
241. छपने वाला सामान – (1) छपने वाले सामान और लेखन की सामग्री की वस्तुआंे के लिए प्रपत्र 34 में भी एक पृथक रजिस्टर रखा जायेगा।
(2) कार्यालय का प्रधान प्रत्येक कर्मचारी/अनुभाग के लिए लेखन सामग्री की वस्तुओं के निर्गम के लिए तिमाही मानदण्ड नियत करेगा। मानदण्ड इस प्रकार नियत किये जायेगें जिससे दुरूपयोग या अत्यधिक उपयोग से बचा जा सकें।
242. भौतिक सत्यापन – (1) सामान का भौतिक सत्यापन एक वर्ष में कम से कम एक बार किया जायेगा और ऐसा कर लेने के प्रतीक स्वरूप वह यह प्रमाण – पत्र अभिलिखित करेगा और वास्तव में पाये गये आधिक्यों/कमियों के लिए टिप्पणी अंकित करेगा।
(2) कार्यालय के प्रधान द्वारा, किन्ही भी भण्डार वस्तुओं का हानि की वसूली के लिए समुचित जांच के पश्चात उतरदायित्व नियत करते हुए समुचित कार्यवाही की जायेगी।
243. अनुपयोगी/बेकार/अधिशेष भण्डार वस्तुओं का व्ययन – (1) कार्यालय का प्रधान भण्डार-वस्तुओं को बेकार/अनुपयोगी/अधिषेष घोषित करने के लिए एक सर्वेक्षण सूची तैयार करने हेतु तीन व्यक्तियों की एक समिति गठित करेगा जिसमें
एक व्यक्ति लेखा अनुभाग से होगा।
(2) अपलेखन की शक्तियां निम्नलिखित रूप में होंगी-
(क) सरपंच विकास अधिकारी- 10,000 रूपये के बही मूल्य तक की भण्डार वस्तुएं।
(ख) मुख्य कार्यपालक अधिकारी 20,000 रूपये के बही मूल्य तक की भण्डार-वस्तुएं।
(ग) निदेशक , ग्रामीण विकास 50,000 रूपये तक।
(घ) विकास आयुक्त- दो लाख रूपये तक।
(3) ऐसी सभी भण्डार-वस्तुओं का व्ययन सक्षम मंजूरी के पश्चात नाषन/नीलामी द्वारा किया जायेगा और उनके आगमों को निधि में जमा किया जायेगा।
244. अनुपयोगी यानों का व्ययन – (1) पंचायती राज संस्थाओं के यानों (जीप, कार, पिकअप, टेक्टर, मोटर साइकिल, थ्री व्हीलर, बुलडोजर) को अनुपयोगी घोषित करने और नीलाम करने के लिए जिला परिषद स्तर पर एक समिति निम्नलिखित रूप से गठित की जायेगीः-
(क) मुख्य कार्यपलाक अधिकारी अध्यक्ष
(ख) जिला परिषद का लेखा अधिकारी/ सहायक लेखा अधिकारी सदस्य
(ग) जिला मुख्यालय पर पुलिस विभाग का एम.टी.ओ/परिवहन विभाग
का मोटरयान निरीक्षक/जिला पूल मैकेनिक और सम्भागीय मुख्यालय
पर राजकीय गैरेज का तकनीकी अधिकारी। सदस्य
(2) उक्त समिति यह सुनिष्चित करेगी कि यान ने निम्नलिखित रूप में विहित दूरी और अवधि पूरी कर ली हैः-
यान का प्रकार किलो मीटर (लाख) कालावधि (वर्ष)
1. मोटर साइकिल/ थ्री व्हीलर 1.20 7
2. हल्के मोटर यान 2.00 8
3. मध्यम मोटर यान 3.00 10
4. भारी मोटर यान 4.00 10
5. ट्रैक्टर/बुलडोजर उपयोग के 20,000 घंटे 10
(3) ऐसे यानों को अनुपयोगी घोषित नहीं किया जायेगा जो विहित दूरी और अवधि तो पूरी कर चुके है किंतु समिति की राय में उपयोग के लिए ठीक है।
(4) समिति के सदस्य यान को अनुपयोगी घोषित करने के पूर्व वास्तविक रूप से उसका निरीक्षण करेंगे और यह प्रमाणित करेंगे कि- (क) यान ने विहित दूरी और अवधि पूरी कर ली है।
(ख) यान की लाभप्रद मरम्तत संभव नही है और पेट्रेाल/डीजल के अत्यधिक उपभोग के कारण उसे चलाने से कोई लाभ नहीं है।
(ग) पुर्जाे के प्रतिस्थापन में भारी व्यय होगा और यान को और चलाने से कोई लाभ नहीं होगा। मुख्य कार्यपालक अधिकारी, समिति की सिफारिश पर अनुपयोगी यानों की नीलामी के लिए आदेष जारी करेगा।
(5) यदि यान ने विहित न्यूनतम दूरी या अवधि पूरी नहीं की है, या यान पिछले सात वर्षो से अप्रयुक्त पडा है या यान दुर्घटनाग्रस्त हो गया है और मरम्मत के बाद उपयोगी नहीं रहेगा तो समिति यह प्रमाणित करते हुए मामले की सिफारिश करेगी कि-
(क) यान की लाभप्रद मरम्मत संभव नहीं है और चलाने से कोई लाभ नहीं है,
(ख) पुर्जों क प्रतिस्थापन में भारी व्यय होगा और यान को और चलाने से कोई लाभ नही होगा।
(ग) मरम्मत और पुर्जो के प्रतिस्थापन का कुल खर्च………………………… रूपये होगा, जैसा कि मोटर गैरेज विभाग के सर्वेक्षक द्वारा प्रमाणित किया गया है।
ऐसे यानों को अनुपयोगी घोषित करने की शक्तियां विकास आयुक्त को होगी।
(6) अनुपयोगी यान जिला स्तर पर एक समिति द्वारा नीलाम किये जायेंगे, जिसमें निम्नलिखित होंगेः-
(क) अपर कलक्टर (विकास)
(ख) मुख्य कार्यपालक अधिकारी
(ग) कोषाधिकारी या जिला परिषद का लेखाधिकारी।
अपर जिला मजिस्टेट (विकास) या मुख्य कार्यपालक अधिकारी, जो भी वरिष्ठ हो, अध्यक्ष के रूप में कार्य करेगाः परन्तु राज्य की संचित निधि से खरीदे गये यान संबंधित खण्डीय मुख्यायलों पर राज्य मोटर गैरेज के माध्यम से नीलाम किये जायेंगे।
(7) उप-नियम 6 में की समिति द्वारा नीलाम किये गये यानों के विक्रयागमों को संबंधित पंचायती राज संस्था निधि में जमा किया जावेगा और विक्रय कर को सरकारी खाते में जमा किया जायेगा। लेखें और विवरणियां
245. लेखों की त्रैमासिक विवरणी – आय और व्यय के लेखे का एक त्रैमासिक विवरण पंचायती राज संस्थाओं द्वारा प्रपत्र संख्या 35 में तैयार किया जायेगा और अगले उच्चतर प्राधिकार को भेजा जायेगा। जून, सितम्बर, दिसम्बर और मार्च को समाप्त होने वाली तिमाही के लिए तिमाही लेखे, उस तिमाही के, जिससे लेखे संबंधित है, अगले मास की 15 तारीख तक प्रेषित कर दिये जाने चाहिये। बाद में उपबन्धित आय और व्यय की सभी मदों का प्रगामी योग, लेखे के ऐसे विवरण तैयार करते समय और अगले उच्चतर प्राधिकारी को आंकडे बताते समय, लगाया जायेगा।
246. वार्षिक लेखों का सार – (1) वर्ष के अन्त में पंचायत/पंचायत समिति, बजट के प्रत्येक शीर्ष के अधीन अपनी आय और व्यय दर्शित करते हुए, प्रपत्र 36 में वार्षिक लेखों का सार तैयार करेगी और उसे आगामी एक मई तक, जिला परिषद के माध्यम से, राज्य सरकार को भेजेंगी।
(2) वार्षिक लेखों के सार के साथ, प्रपत्र 37 में, लेखों के विभिन्न शीर्ष के अधीन राज्य सरकार से सहायता अनुदान, उपयोगिता प्रमाण-पत्रों द्वारा समर्थित उपगत व्यय का कार्यालय के प्रधान द्वारा हस्ताक्षरित विवरण होगा जिसमें स्पष्ट रूप से यह उल्लिखित किया जायेगा कि अनुदान विशिष्ट रूप से उद्देश्यों और प्रयोजनों के लिए, जिनके लिए वह दिया गया था, सम्पूर्णतः या भागतः खर्च किया गया है, जिसके लेखे समुचित रूप से रखे गये है और सम्बद्ध वाउचर उसकी अभिरक्षा में है ।मुख्य कार्यपालक अधिकारी इन विवरणों की सूक्ष्म संवीक्षा करेगा और उनकों, अपनी टिप्पणियों सहित, राज्य सरकार को भेजेगा, जिसकी एक प्रति संबन्धित पंचायत समिति/ पंचायत को भी दी जायेगी।
(3) प्रत्येक पंचायत समिति वार्षिक लेखेां के साथ, प्रपत्र संख्या 36 में बकाया ऋणों और रकम का विवरण भी संलग्न करेगी।
(4) वार्षिक लेखे के साथ विभिन्न स्कीमों के अधीन हाथ में लिये गये संकर्माें की एक सूची भी प्रपत्र 39 में यथा-उपंबधित व्यय की प्रगति सहित, संलग्न की जायेगी।
(5) वार्षिक लेखे क साथ प्रपत्र 40 में पंचायत/पंचायत समिति की शास्तियों और दायित्वों का विवरण भी होगा।
247. जिला परिषदों के लेखे और विवरणियां – (1) प्रत्येक जिला परिषद आय और व्यय का त्रैमासिक विवरण, नियम 245 में बताया गया है, तैयार करेगी और उसे राज्य सरकार को भेजेगी।
(2) इसी प्रकार प्रत्येक जिला परिषद आय और व्यय के वार्षिक लेखे, जैसा कि नियम 246 में बताया गया है, तैयार करेगी और उनको 15 मई तक राज्य सरकार को भेजेगी।
संपरीक्षा
248 लेखों की संपरीक्षा–(1) पंचायती राज संस्थाओं के लेखों की संपरीक्षा राजस्थान स्थानीय निधि संपरीक्षा अधिनियम, 1954 और उक्त अधिनियम के अधीन बनाये गये राजस्थान स्थानीय निधि संपरीक्षा नियम, 1955 के उपवचनों से शासित होगी।
(2) लेखों की सांकेतिक संपरीक्षा भारत के नियंत्रक महालेखा परीक्षक की ओर से भी की जा सकेगी।
249. संपरीक्षा के लिए व्यवस्थाएं – सम्बंधित पंचायती राज संस्था, संपरीक्षक को, संपरीक्षा करने के लिए उसका कार्यालय लगााने में समर्थ बनाने हेतु, युक्तियुक्त व्यवस्थाएं करेगी और संपरीक्षा के प्रयोजन के लिए समस्त अभिलेख, विवरण आदि तैयार रखेगी और उन्हे ऐसी रीति से पेश करेगी जिसकी संपरीक्षा तंत्र द्वारा मांग की जाये।
250. वित्तीय विवरण का तैयार किया जाना – पंचायती राज संस्था स्थानीय निधि संपरीक्षा नियम, 1955 द्वारा विहित वित्तीय विवरण और उस कालावधि के वास्तविक लेखे तैयार करेगी जिसके लिए संपरीक्षा की जानी है उन्हें तब पेश करेगी जब संपरीक्षा तंत्र द्वारा मांग की जाये।
251. संपरीक्षा रिपोर्ट – निदेशक, स्थानीय निधि संपरीक्षा की संपरीक्षा रिपोर्ट सम्बंधित पंचायती राज संस्था को भेजी जायेगी। पंचायतों की संपरीक्षा रिपोर्ट की एक प्रति संबंधित पंचायत समिति को भी भेजी जायेगी। इसी प्रकार पंचायत समितियों की संपरीक्षा रिपोर्ट की एक प्रति संबंधित जिला परिषद को भी भेजी जायेगी जो यह देखेगी कि संपरीक्षा तंत्र द्वारा बताई गई अनियमितताओं पर शीघ्रता से ध्यान दिया गया है और उनको परिशोधित किया गया है।
252. संपरीक्षा रिपोर्टो का अनुपालन – (1) निदेशक , स्थानीय निधि संपरीक्षा द्वारा भेजी गई संपरीक्षा रिपोर्ट का अनुपालन राजस्थान स्थानीय निधि संपरीक्षा नियम, 1955 के नियम 28 में अधिकथित प्रक्रिया के अनुसार किया जायेगा।
(2) मुख्य कार्यपालक अधिकारी और मुख्य लेखाधिकारी, जिला परिषद् प्रादेशिक मुख्यालयों पर पदस्थापित उप निदेशक , स्थानीय निधि संपरीक्षा की उपस्थिति में, संपरीक्षा रिपोर्टों के अनुपालन की प्रगति का प्रत्येक तीन मास में पुनर्विलोकन करेंगे और अभियान चलाकर उनके अनुपालन के लिए सभी कदम उठायेंगे।
(3) मुख्य कार्यपालक अधिकारी गबन, राजस्व की हानि, अतिसंदाय, गलत संदाय आदि को उपदर्शित करने वाले क्षेत्रों का विनिर्दिष्ट रूप से पुनर्विलोकन करेगा और व्यतिक्रमियों के विरूद्ध विभागीय कार्यवाही या दाण्डिक कार्यवाहियां संस्थित करेगा।
(4) संपरीक्षा रिपोर्टों में बताई गई राजस्व हानि की वसूली के लिए मुख्य कार्यपालक अधिकारी और विकास अधिकारियों द्वारा सभी प्रयास किये जायेंगे।
253. अपलेखन – (1) सभी धनीय हानियां, अवसूलीय राजस्व, उधार, अग्रिम पंचायती राज संस्था द्वारा राज्य सरकार से पूर्व अनुमोदन से ही अपलिखित किये जायेंगे।
(2) उस दशा में, जहाँं कोई हानि किसी भी सेवक से कपट, कूट रचना, गबन, गम्भीर उपेक्षा के कारण हुई हो, जिससे अनु शासनिक कार्यवाही आवश्यक हो गयी हो या जो नियमों और प्रक्रिया में दोष के कारण हुई हो जिससे परिशोधन या संशोधन अपेक्षित हो, पंचायत समिति/ जिला परिषद् पहले ऐसे मामले का पुनर्विलोकन करेगी और ‘‘अपलेखन’’ के अनुमोदन के लिए राज्य सरकार को मामले की सिफारिश करने के पूर्व समुचित अनुशासनिक कार्यवाही करेगी।
(3) हानियों के ‘‘अपलेखन’’ की समस्त मंजूरियों की एक प्रति निदेशक , स्थानीय निधि संपरीक्षा को भी प्रेषित की जायेगी।
254. प्रपत्र – प्रपत्रों की अनुपलब्धता की दशा में पंचायती राज संस्थाओं के कार्यालय में उपयोग के लिए राज्य सरकार के समरूपी प्रपत्रों को अंगीकृत किया जा सकेगा।
255. अनुदेश जारी करने की राज्य सरकार की शक्ति -राज्य सरकार ऐसे अनुदेश जारी कर सकेगी जो इन नियमों के समुचित पालन के लिए समय-समय पर दिये जाने आवश्यक हो।
(5) कोई भी व्यय पंचायती राज संस्था की अधिकारिता के बाहर उपगत नहीं किया जायेगा। |
(6) स्वंय की आय का प्राप्ति और व्यय के लिए वार्षिक बजट अनुमान तैयार किया जायेगा और संबंधित पंचायती राज संस्था से अनुमोदित कराया जायेगा। |
(7) कोई भी व्यय स्वयं की आय की प्रत्याषा के आधार पर नहीं किया जायेगा। टिप्पणी |
जुलाई 2003 से पंचायत को अपनी निजी आय से 2 लारव तक व्यय करने की शक्ति दी जा चुकी है। |
215. कर्मचारियों को अग्रिम – (1) कर्मचारियों को वाहन क्रय के लिये दिेये जाने वाले अग्रिम, त्यौहारों के लिए दिये जाने वाले अग्रिम राज्य सरकार के कर्मचारियों पर समय – समय पर लागू होने वाले नियमं और शर्त द्वारा शासित होगे सिवाय तब के कि जब ऐसा अग्रिम स्वयं की आय में से मंजूर किया जाये। यदि इस प्रयोजन के लिए इनकी स्वंय की आय पर्याप्त न हो, तो अग्रिम एसे े अन्य स्त्रोतो से मंजूर किये जा सकेगें जो पंचायती राज संस्था में उपलब्ध हो। प्राप्त ब्याज को पंचायती राज संस्था की आय के रूप में माना जायेगा और उसकी निधि में जमा कराया जायेगा। |
(2) संकर्मो या अन्य विनिर्दिष्ट प्रयोजनों के लिए दिये जाने वाले अग्रिमों को अधिकतम तीन मास के भीतर – भीतर समायोजित कराया जायेगा। ऐसा न होने पर वह अस्थायी गबन की कोटि में आवेगा और उपयोग में न लिया गया नकदी अभिलेख 18 प्रतिषत ब्याज वापस जमा कराया जायेगा। |
216. उधार – (1) राज्य सरकार या केन्द्रीय या राज्य सरकार के किसी भी निगम द्वारा किसी पंचायती राज संस्था को मंजूर किया गया उधार निधि पर प्रथम प्रभार होगा और उधार की किष्ते नियत तारीख पर नियमित रूप से संदत्त की जायेगी ऐसा न करने पर राज्य सरकार संदेय सहायता – अनुदान में से शोध्य रकम का समायोजन कर सकेगी या धन को वसूल करने के लिए अन्य उपुयक्त कदम उठा सकेगी। |
(2) पंचायती राज संस्थाएं पंचायती राज संस्थाओं के लिए वित्त निगम के निबंधनों ओर शर्तो के अनुसार, ग्रामीण आवास, दुकानों के सन्निर्माण और अन्य परियोजनाओं के लिए उधार अभिप्राप्त कर सकेगी और अपनी किस्तों का उपयोग और प्रतिसंदाय कर सकेगी। संबंधित पंचायती राज संस्थाएं उधार के लेखे रखने हेतु की गईं सेवाओं के लिये अभिकरण प्रभारों के रूप में एक प्रतिषत प्रभारित कर सकेगी। |
(3) बकाया उधारों को पंचायत समितियों द्वारा वसूल किया जाना जारी रखा जायेगा। और राज्य सरकार के पास से सुसंगत राजस्व |
शीर्ष में जमा कराया जायेगा। |
217. नमूने के हस्ताक्षर – विकास अधिकारी/प्रधान और मु[य कार्यपालक अधिकारी/प्रमुख के नमूना हस्ताक्षर जिला कोषागार और संबंधित उप – कोषागार को भेजे जायेगें। पंचायत के मामले में सरपंच/सचिव के नमूना हस्ताक्षर उस बैंक/डाकघर को भेजे जायेगें जिसमें लेखे रखे जाते है। |
218. चैक बुक – (1) कोषागार/उप – कोषागार या बैंक/डाकघर की चैक बुके कार्यालय प्रधान के प्रभार में रखी जायेगी। वे ताले में बंद रखी जायेगी। |
(2) सभी चैंक बुके प्राप्त की जाये, गिनी जायेगी और चैक बुक की प्रत्येक परत पर संबंधित पंचायती राज संस्था के नाम वाली |
रबड की मुहर सुभिन्नत लगायी जायेगी। |
219. वेतन और भत्त्ेा – (1) अधिकारियों और कर्मचारीयों के वेतन और भत्ते तथा सदस्यों के मानदेय और भत्ते निधि के स्रोत पर द्वितीय भार होगे। |
(2) किसी पंचायत राज संस्था के नियत तारीखों पर वेतन संदत करने में विफल रहने की दशा में राज्य सरकार नकद अतिशेषों पर रोक लगाने और ऐसी रकमों को निकालकर संदाय करने के लिए विकास अधिकारी को निर्देशदे सकेगी। |
220. नियत तारीख – अधिकारियों और कर्मचारियों द्वारा अर्जित वेतन और भत्ते आगामी माह के प्रथम कार्य दिवस पर संदाय के लिए देय हो जायेंगे। |
221. संदायों की अभिस्वीकृति – कार्यालय का प्रधान उसके द्वारा हताक्षरित किसी बिल/चैक पर निकाली गयी रकम के लिए वैयक्तिक रूप से उतरदायी हागा जब तक वह इसका संदाय न कर दे ओर पाने वाले से उसके लिए विधि रूप से मान्य रसीद प्राप्त न करले। |
222. स्थानान्तरण पर वेतन और अग्रिम – स्थानान्तरणों पर वेतन और अग्रिमों के उपबन्ध, राज्य सरकार के कर्मचारियों पर समय समय पर लागू नियमों द्वारा शासित होगे। |
223. अन्य प्रभार – (1) कार्यालय के प्रबन्ध के लिए उपगत समस्त आनुबंधिक और प्रकरण व्ययों की प्रकृति नमनीय और उतार – चढाव वाली हैं और उनमें मितव्ययिता करने के लिए पूरी सावधानी रखी जानी हैं। बिल का आहरण करने वाला अधिकारी यह देखने के लिए उतरदायी होगा कि बिल में सम्मिलित व्यय की मदें स्पष्ट आवश्यकता की है और कोई भी खरीद वस्तु उचित और उपयुक्त दरों पर प्राप्त की गयी है। |
(2) अन्य प्रभारों के लिए अग्रिमों की आहरण में पाने वाले की रसीद सहित सम्यक रूप से समर्थित वाउचरों पर या फर्म या ठेकेदारों के प्रोफार्मा बिलों पर किया जाना चाहिए और अग्रिमों का आहरण तब तक अनुज्ञान नहीं किया जाना चाहिए जब तक कि किसी विशेष प्रकृति के व्यय की पूर्ति के लिए अपेक्षित न हो। |
224. राजस्व का प्रतिदाय – राजस्व के प्रतिदाय के लिए किसी भी मांग को स्वीकार करने के पूर्व रोकड बही में मूल जमा को अवश्य खोजना चाहिए और संबंधित रसीद भी साथ लगानी चाहिए और प्रतिदाय की प्रविष्टि इन दस्तावेजों में लाल स्याही से सुभिन्न रूप से की जानी चाहिए जिससे कि दूसरे दावे के विरू) सुरक्षा की जा सकें। जहाँ कर या उपकर का प्रतिदाय किया जाये वहाँ मांग और संग्रहण रजिस्टर में प्रति – निर्देशभी किया जायेगा। |
225. अतिसंदाय / सद्संदाय – (1) कार्यालय का प्रधान निधि में से लिये गये किसी भी अतिसंदाय की, चाहे वह सद्भावपूर्वक किया गया है, शीघ््रा वसूल करने के लिए उतरदायी है। |
(2) यदि ऐसा संदाय किसी कपट के कारण किया गया है तो ऐसे व्यक्ति के विरू) गलत रूप से कपट वंचित करने और धन प्राप्त करने के लिए पुलिस थाने में प्रथम सूचना रिपोर्ट भी दर्ज करवायी जायेगी। |
226. कालातीत दावों का संदाय – (1) वेतन, यात्रा – भत्ते/चिकित्सा पुनर्भरण के तीन वर्ष के कालातीत दावों का संदाय कार्यालय के प्रधान द्वारा, कनिष्ठ लेखाकार द्वारा पूर्व – जाँच किये जाने के पश्चात किया जायेगा। |
(2) तीन वर्ष से अधिक के ऐसे सभी दावों के लिए, जिला पारेषद के लेखाकार/सहायक लेखाधिकारी द्वारा पूर्व/जांच किये जाने के पश्चात मु[य कार्यपालक अधिकारी की पूर्व – मंजूरी अपेक्षित होगीं। |
परंतु यह तब जब कि |
(क) दावे का औचित्य सि) हो जावे |
(ख) वे आदेशऔर दस्तावेज उपलब्ध हो, जिन पर दावा आधारित है। |
(ग) उन पूर्व बिलों का निर्देशकिया जावे जब दावे का आहरण नहीं किया गया था। |
(घ) विलम्ब के कारण स्पष्ट किये जावे – |
(3) वर्ष तक के आकस्मिक दावों पर मु[य कार्यपालक अधिकारी की पूर्व मंजूरी अपेक्षित होगी जबकि तीन वर्ष के पश्चात निदेशक , गा्रमीण विकास एवं पंचायती राज की मंजूरी अपेक्षित होगी। |
227. सामान्य वित्तीय एवं लेखा के अधीन प्रादेशिक अधिकारी और कार्यालय प्रधान की शक्तियां – (1) इन नियमों में विनिर्दिष्ट नहीं की गयी, प्रादेषिक अधिकारी की वित्तीय शक्तियों का प्रयोग, जिले में पदस्थापित कर्मचारियोंके संबंध में मु[य कार्यपालक अधिकारी द्वारा सा.वि. एवं ले. नि. के अनुसार किया जावेगा। |
(2) सा.वि.एवं ले.नि.के अनुसार इन नियमों में विनिर्दिष्ट नहीं की गयी कार्यालय के प्रधान की शक्तियों का प्रयोग, पंचायत के लिए संरपच, पंचायत समिति के लिए विकास अधिकारी और जिला परिषद के लिए मु[य कार्यपालक अधिकारी द्वारा किया जावेगा। लेखों का रखा जाना |
228. सभी नकद संव्यवहारों का लेखा जोखा दिया जाना – ऐसे समस्त नकद, संव्यवहारों को, जिनमें पंचायत राज संस्था एक पक्षकार है, किसी भी अपवाद के बिना लेखे में लिया जायेगा। लेखे रखे जाने में पारदर्शिता सुनिश्चित की जावेगी। |
229. रोकड बही – (1) प्रत्येक पंचायती राज संस्था द्वारा धन की प्राप्ति और संदाय का अभिलेख रखने के लिए प्रपत्र सं[या 29 में एक रोकड बही रखी जायेगी। |
(2) सभी नकद संव्यवहारों की, ज्यांेहीं वे किये जाये, रोकड बही में पूर्ण प्रविष्टि की जायेगी और वह जांच के प्रतीक स्वरूप कार्यालय के प्रधान द्वारा अनुप्रमाणित की जायेगी। |
(3) रोकड बही का नियमित रूप से समवरण किया जायेगा और कार्यालय का प्रधान प्रत्येक वि)ि दर ही होने के अभीष्ट स्वरूप आवश्यककरेगा। |
(4) प्रत्येक मास के अंत में कार्यालय प्रधान को तिजोरी के नकद अतिशेष का रोकड बहीं के अतिशेष से सत्यापन करना चाहिए और निम्नलिखित आशय का हस्ताक्षरित और दिनांकित प्रमाण पत्र अभिलिखित करना चाहिए – |
‘‘प्रमाणित किया जाता है कि नकद अतिशेष की जांच कर ली गयी है और निम्नलिखित रूप में पाया गया हैं – वास्तविक नकदी और रोकड बही के अतिशेषों के बीच अन्तर होने की दशा में उसका स्पष्टीकरण किया जायेगा। |
(5) धन के किसी भी दुरूपयोग को रोकने के लिए वास्तविक नकद अतिशेष की आकस्मिक जांच भी मास में दो बार की जायेगी। (6) पंचायत, विकास योजनाओं की निधियों के लिए एक पृथक रोकड बहीं भी रखेगी। |
230. धन की रसीद – (1) जब धन कार्यालय में संगृहित या संदत किया जाये तो देने वाले को प्रपत्र सं[या 30 में रसीद दी जायेगी। |
(2) रसीद पर सचिव/रोकडिये द्वारा हस्ताक्षर किये जायेगंे। |
(3) रकम अंको और शब्दों दोनों मे लिखी जायेगी। |
(4) कार्यालय प्रधान स्वयं का इस बात से समाधान करेगा कि रकम की रोकड बही में सही रूप से प्रविष्टि कर ली गयी है। |
(5) खाली रसीद पुस्तकें, सुरक्षित अभिरक्षा में रखी जायेगी और रसीद पुस्तकों का समुचित लेखा रखा जायेगा। |
231. रोकडिये की प्रतिभूति – (1) नकदी का प्रभारी व्यक्ति, अपनी अभिरक्षा में संभाव्यत% रखी जाने वाली नकदी की रकम की समतुल्य पर्याप्त और विधिमान्य प्रतिभूति देगा। |
(2) प्रतिभूति विश्वस्तता बंधपत्र के रूप में होगी जिसे उसकी समाप्ति के लिए नियत तारीख के पूर्व स्वीकृत किया जायेगा। |
(3) रोकडिये को राज्य सरकार द्वारा तदनुसार विहित दर पर भत्ता संदेय होगा। |
232. डबल लॉक – (1) विश्वस्तता बंधपत्र की रकम के अधिक समस्त नकदी डबल लॉक व्यवस्था के अधीन लोहे की मजबूत तिजोरी में रखी जायेगी। |
(2) एक ताले की सभी चाबियां एक व्यक्ति की अभिरक्षा में रखी जायेगी। अन्य तालों की चाबियां कार्यालय के प्रधान की अभिरक्षा में रखी जायेगी। तिजोरी को तब तक नही खोला जायेगा जब तक दोनों अभिरक्षक उपस्थित न हों। |
233. नकदी की सुरक्षा – जब रोकडिये के द्वारा बैक से कार्यालय या कार्यालय से बैंक तक अत्यधिक नकदी अतिशेष लाया जाये तो उसके साथ जाने आने के लिए पुलिस थाने से एक सुरक्षा गार्ड की व्यवस्था संदाय आधार पर की जा सकेगी। |
234. दावों का प्रस्तुतिकरण – (1) संदाय के लिए समस्त दावे प्रपत्र 31 में तैयार किये जायेंगे और पंचायती राज संस्था के संबंधित कार्यालय मे प्रस्तुत किये जायेंगे जहाँ कार्यालय के प्रधान द्वारा उनकी जांच की जायेगी और वे पारित किये जायंेगे। |
(2) कोई संदाय – आदेशदेने वाला अधिकारी यह देखने के लिए व्यक्गित रूप से उतरदायी है कि दावा हर प्रकार से पूर्ण और सही है और उसमें, किये गये संदाय की प्रकृति के बारे में, पर्याप्त सूचना है। |
235. वाउचर – (1) धन के प्रत्येक संदाय के लिए, निधि का धन खर्च करने वाला अधिकारी दावे की पूर्ण और स्पष्ट विषिष्टियां और लेखों में समुचित वर्गीकरण के लिए आवश्यकसमस्त सूचना देने वाला वाउचर अभिप्राप्त करेगा। |
(2) प्रत्येक वाउचर में या उसके साथ, उस व्यक्ति द्वारा संदाय किये जाने की अभिस्वीकृति होनी चाहिए जिसके द्वारा या जिसकी ओर से दावा प्रस्तुत किया गया है। |
(3) प्रत्येक वाउचर पर, रकम को शब्दों और अंको में विनिर्दिष्ट करते हुए, कार्यालय प्रधान द्वारा संदाय – आदेशहोना चाहिए। |
(4) समस्त वाउचरो को क्रम से तारीखवार सं[यांकित किया जायेगा जो 1 अप्रेल से प्रारंभ होगी और वाउचरों के पार्श्व में लाल स्याही से ‘‘संदत‘‘ अंकित किया या लिखा जाना चाहिए जिससे उनका दूसरी बार प्रयोग नहीं किया जा सके। |
(5) कार्यालय का प्रधान रोकड बही में व्यय पक्ष के संदायों को सत्यापित करते समय वाउचरों पर भी आद्याक्षर करेगा। |
(6) वाउचरों संपरीक्षा की लिए सुरक्षित अभिरक्षा में रखे जायेंगे और विहित कालावधि समाप्त हो जाने के पश्चात ही नष्ट किये जायेंगें। |
236. खाता – (1) प्रत्येक पचायत राज संस्था मे, निधि मे से उपगत व्यय के विभिन्न शीर्षो के अधीन उपगत व्यय को दर्शित करने के लिए प्रपत्र सं[या 32 में एक खाता रखा जायेगा। |
(2) खाते में, स्वीकृत बजट में उपबन्धित प्रत्येक व्यय – षीर्ष के लिए एक पृष्ठ या कुछ पृष्ठ आवंटित किये जायेगें और उसमें रोकड बही से नियमित रूप से प्रविष्टियां की जायेगी। |
237. राजस्व रजिस्टर – (1) प्रत्येक पंचायती राज संस्था में प्रपत्र 33 में राजस्व प्राप्तियों का एक रजिस्टर भी उसमें समस्त करों, फीसों और अन्य आय के मद की प्राप्तियों को अभिलिखित करने के लिए रखा जायेगा। |
(2) आय कर या फीस के प्रत्येक शीर्ष के लिए आवश्यकता के अनुसार पृथक पृष्ठ आवंटित किया या किये जायं और रोकड बही से नियमित रूप से प्रविष्टि की जायेगी। |
238. लेखों का मिलान – (1) पंचायत सचिव का यह कर्तव्य होगा कि वह पंचायत अभिलेखों के आधार पर प्रत्येक मास बैंक/डाकघर पास बुकों से जमाओं और आहरणों का मिलान करें और यदि कोई भूलें हों, तो उन्हें ठीक करें। |
(2) पंचायत समिति और जिला परिषद के मामले में रोकडिया कोषागार/उप – कोषागार में के.पी.डी. खातों का प्रत्येक माह मिलान करेगा। सामान |
239. स्टॉक रजिस्टर – (1) प्रत्येक पंचायती राज संस्था द्वारा प्रपत्र 34 में एक स्टॉक रजिस्टर रखा जायेगा जिसमें संबंधित पंचायती राज संस्था के समस्त स्टॉक और अन्य जंगम सम्पतियों की प्राप्ति और निर्गम की प्रविष्टि की जायेगीं। |
(2) सामान का लेखा प्रत्येक मद के लिए पृथक – पृथक रखा जायेगा। प्राप्ति पक्ष की और की प्रविष्टियां प्रदायक के बिल से सीधी की जायेगी, सामान वास्तविक मांग – पत्र के अनुसार जारी किया जायेगा और सामान के निर्गम के लिए समुचित रसीद अभिपा्रप्त की जायेगी। उसकी स्टॉक रजिस्टर के निर्गम पक्ष में सही – सही प्रविष्टि की जायेगी। |
240. सामान की अभिरक्षा – (1) सामान की अभिरक्षा से न्यस्त व्यक्ति उसकी सुरक्षा और उसे अच्छी स्थिति और उसे हानि, नुकसान या धूप से संरक्षित करने के लिए उतरदायी होगा। |
(2) वह मषीनों, टेलीफोन, टंकण यंत्रों, फोटो प्रतिलिपि, कूलरों और अन्य कार्यालय उपस्कर का, उन्हें हर समय चालू स्थिति में रखने के लिये, समुचित और समयबद्ध अनुरक्षण सुनिश्चित करेगा। |
241. छपने वाला सामान – (1) छपने वाले सामान और लेखन की सामग्री की वस्तुआंे के लिए प्रपत्र 34 में भी एक पृथक रजिस्टर रखा जायेगा। |
(2) कार्यालय का प्रधान प्रत्येक कर्मचारी/अनुभाग के लिए लेखन सामग्री की वस्तुओं के निर्गम के लिए तिमाही मानदण्ड नियत करेगा। मानदण्ड इस प्रकार नियत किये जायेगें जिससे दुरूपयोग या अत्यधिक उपयोग से बचा जा सकें। |
242. भौतिक सत्यापन – (1) सामान का भौतिक सत्यापन एक वर्ष में कम से कम एक बार किया जायेगा और ऐसा कर लेने के प्रतीक स्वरूप वह यह प्रमाण – पत्र अभिलिखित करेगा और वास्तव में पाये गये आधिक्यों/कमियों के लिए टिप्पणी अंकित करेगा। |
(2) कार्यालय के प्रधान द्वारा, किन्ही भी भण्डार वस्तुओं का हानि की वसूली के लिए समुचित जांच के पश्चात उतरदायित्व नियत करते हुए समुचित कार्यवाही की जायेगी। |
243. अनुपयोगी/बेकार/अधिशेष भण्डार वस्तुओं का व्ययन – (1) कार्यालय का प्रधान भण्डार – वस्तुओं को बेकार/अनुपयोगी/अधिशेष घोषित करने के लिए एक सर्वेक्षण सूची तैयार करने हेतु तीन व्यक्तियों की एक समिति गठित करेगा जिसमें |
एक व्यक्ति लेखा अनुभाग से होगा। |
(2) अपलेखन की शक्तियां निम्नलिखित रूप में होंगी – |
(क) सरपंच विकास अधिकारी – 10,000 रूपये के बही मूल्य तक की भण्डार वस्तुएं। |
(ख) मुख्य कार्यपालक अधिकारी 20,000 रूपये के बही मूल्य तक की भण्डार – वस्तुएं। |
(ग) निदेशक , ग्रामीण विकास 50,000 रूपये तक। |
(घ) विकास आयुक्त – दो लाख रूपये तक। |
(3) ऐसी सभी भण्डार – वस्तुओं का व्ययन सक्षम मंजूरी के पश्चात नाषन/नीलामी द्वारा किया जायेगा और उनके आगमों को निधि में जमा किया जायेगा। |
244. अनुपयोगी यानों का व्ययन – (1) पंचायती राज संस्थाओं के यानों (जीप, कार, पिकअप, टेक्टर, मोटर साइकिल, थ्री व्हीलर, बुलडोजर) को अनुपयोगी घोषित करने और नीलाम करने के लिए जिला परिषद स्तर पर एक समिति निम्नलिखित रूप से गठित की जायेगी – |
(क) मुख्य कार्यपलाक अधिकारी – अध्यक्ष |
(ख) जिला परिषद का लेखा अधिकारी/ सहायक लेखा अधिकारी – सदस्य |
(ग) जिला मुख्यालय पर पुलिस विभाग का एम.टी.ओ/परिवहन विभाग |
का मोटरयान निरीक्षक/ जिला पूल मैकेनिक और सम्भागीय मुख्यालय |
पर राजकीय गैरेज का तकनीकी अधिकारी – सदस्य |
(2) उक्त समिति यह सुनिश्चित करेगी कि यान ने निम्नलिखित रूप में विहित दूरी और अवधि पूरी कर ली है – |
यान का प्रकार किलो मीटर (लाख) कालावधि (वर्ष) |
1. मोटर साइकिल/ थ्री व्हीलर – 1.20 7 |
2. हल्के मोटर यान – 2.00 8 |
3. मध्यम मोटर यान – 3.00 10 |
4. भारी मोटर यान – 4.00 10 |
5. ट्रैक्टर/बुलडोजर – उपयोग के 20,000 घंटे 10 |
(3) ऐसे यानों को अनुपयोगी घोषित नहीं किया जायेगा जो विहित दूरी और अवधि तो पूरी कर चुके है किंतु समिति की राय में उपयोग के लिए ठीक है। |
(4) समिति के सदस्य यान को अनुपयोगी घोषित करने के पूर्व वास्तविक रूप से उसका निरीक्षण करेंगे और यह प्रमाणित करेंगे कि – (क) यान ने विहित दूरी और अवधि पूरी कर ली है। |
(ख) यान की लाभप्रद मरम्मत संभव नही है और पेट्रेाल/ डीजल के अत्यधिक उपभोग के कारण उसे चलाने से कोई लाभ नहीं है। |
(ग) पुर्जाे के प्रतिस्थापन में भारी व्यय होगा और यान को और चलाने से कोई लाभ नहीं होगा। मुख्य कार्यपालक अधिकारी, समिति की सिफारिश पर अनुपयोगी यानों की नीलामी के लिए आदेश जारी करेगा। |
(5) यदि यान ने विहित न्यूनतम दूरी या अवधि पूरी नहीं की है, या यान पिछले सात वर्षो से अप्रयुक्त पडा है या यान दुर्घटनाग्रस्त हो गया है और मरम्मत के बाद उपयोगी नहीं रहेगा तो समिति यह प्रमाणित करते हुए मामले की सिफारिश करेगी कि – |
(क) यान की लाभप्रद मरम्मत संभव नहीं है और चलाने से कोई लाभ नहीं है, |
(ख) पुर्जों क प्रतिस्थापन में भारी व्यय होगा और यान को और चलाने से कोई लाभ नही होगा। |
(ग) मरम्मत और पुर्जो के प्रतिस्थापन का कुल खर्च……….. रूपये होगा, जैसा कि मोटर गैरेज विभाग के सर्वेक्षक द्वारा प्रमाणित किया गया है। |
ऐसे यानों को अनुपयोगी घोषित करने की शक्तियां विकास आयुक्त को होगी। |
(6) अनुपयोगी यान जिला स्तर पर एक समिति द्वारा नीलाम किये जायेंगे, जिसमें निम्नलिखित होंगे – |
(क) अपर कलक्टर (विकास), |
(ख) मुख्य कार्यपालक अधिकारी, |
(ग) कोषाधिकारी या जिला परिषद का लेखाधिकारी। |
अपर जिला मजिस्टेट (विकास) या मुख्य कार्यपालक अधिकारी, जो भी वरिष्ठ हो, अध्यक्ष के रूप में कार्य करेगा परन्तु राज्य की संचित निधि से खरीदे गये यान संबंधित खण्डीय मुख्यायलों पर राज्य मोटर गैरेज के माध्यम से नीलाम किये जायेंगे। |
(7) उप – नियम 6 में की समिति द्वारा नीलाम किये गये यानों के विक्रयागमों को संबंधित पंचायती राज संस्था निधि में जमा किया जावेगा और विक्रय कर को सरकारी खाते में जमा किया जायेगा। लेखें और विवरणियां |
245. लेखों की त्रैमासिक विवरणी – आय और व्यय के लेखे का एक त्रैमासिक विवरण पंचायती राज संस्थाओं द्वारा प्रपत्र सं[या 35 में तैयार किया जायेगा और अगले उच्चतर प्राधिकार को भेजा जायेगा। जून, सितम्बर, दिसम्बर और मार्च को समाप्त होने वाली तिमाही के लिए तिमाही लेखे, उस तिमाही के, जिससे लेखे संबंधित है, अगले मास की 15 तारीख तक प्रेषित कर दिये जाने चाहिये। बाद में उपबन्धित आय और व्यय की सभी मदों का प्रगामी योग, लेखे के ऐसे विवरण तैयार करते समय और अगले उच्चतर प्राधिकारी को आंकडे बताते समय, लगाया जायेगा। |
246. वार्षिक लेखों का सार – (1) वर्ष के अन्त में पंचायत/पंचायत समिति, बजट के प्रत्येक शीर्ष के अधीन अपनी आय और व्यय दर्शित करते हुए, प्रपत्र 36 में वार्षिक लेखों का सार तैयार करेगी और उसे आगामी एक मई तक, जिला परिषद के माध्यम से, राज्य सरकार को भेजेंगी। |
(2) वार्षिक लेखों के सार के साथ, प्रपत्र 37 में, लेखों के विभिन्न शीर्ष के अधीन राज्य सरकार से सहायता अनुदान, उपयोगिता प्रमाण – पत्रों द्वारा समर्थित उपगत व्यय का कार्यालय के प्रधान द्वारा हस्ताक्षरित विवरण होगा जिसमें स्पष्ट रूप से यह उल्लिखित किया जायेगा कि अनुदान विशिष्ट रूप से उद्देश्यों और प्रयोजनों के लिए, जिनके लिए वह दिया गया था, सम्पूर्णत: या भागत: खर्च किया गया है, जिसके लेखे समुचित रूप से रखे गये है और सम्बद्ध वाउचर उसकी अभिरक्षा में है । मुख्यकार्यपालक अधिकारी इन विवरणों की सूक्ष्म संवीक्षा करेगा और उनकों, अपनी टिप्पणियों सहित, राज्य सरकार को भेजेगा, जिसकी एक प्रति संबन्धित पंचायत समिति/ पंचायत को भी दी जायेगी। |
(3) प्रत्येक पंचायत समिति वार्षिक लेखेां के साथ, प्रपत्र संख्या 36 में बकाया ऋणों और रकम का विवरण भी संलग्न करेगी। |
(4) वार्षिक लेखे के साथ विभिन्न स्कीमों के अधीन हाथ में लिये गये संकर्माें की एक सूची भी प्रपत्र 39 में यथा – उपंबधित व्यय की प्रगति सहित, संलग्न की जायेगी। |
(5) वार्षिक लेखे के साथ प्रपत्र 40 में पंचायत/पंचायत समिति की शास्तियों और दायित्वों का विवरण भी होगा। |
[(6) समस्त पंचायती राज संस्थाएं प्ररूप -36 (क) में वित्त पर डाटा बेस का संधारण करेंगी] |
247. जिला परिषदों के लेखे और विवरणियां – (1) प्रत्येक जिला परिषद आय और व्यय का त्रैमासिक विवरण, नियम 245 में बताया गया है, तैयार करेगी और उसे राज्य सरकार को भेजेगी। |
(2) इसी प्रकार प्रत्येक जिला परिषद आय और व्यय के वार्षिक लेखे, जैसा कि नियम 246 में बताया गया है, तैयार करेगी और उनको 15 मई तक राज्य सरकार को भेजेगी। |
संपरीक्षा |
248 लेखों की संपरीक्षा – (1) पंचायती राज संस्थाओं के लेखों की संपरीक्षा राजस्थान स्थानीय निधि संपरीक्षा अधिनियम, 1954 और उक्त अधिनियम के अधीन बनाये गये राजस्थान स्थानीय निधि संपरीक्षा नियम, 1955 के उपवचनों से शासित होगी। |
(2) लेखों की सांकेतिक संपरीक्षा भारत के नियंत्रक महालेखा परीक्षक की ओर से भी की जा सकेगी। |
249. संपरीक्षा के लिए व्यवस्थाएं – सम्बंधित पंचायती राज संस्था, संपरीक्षक को, संपरीक्षा करने के लिए उसका कार्यालय लगााने में समर्थ बनाने हेतु, युक्तियुक्त व्यवस्थाएं करेगी और संपरीक्षा के प्रयोजन के लिए समस्त अभिलेख, विवरण आदि तैयार रखेगी और उन्हे ऐसी रीति से पेश करेगी जिसकी संपरीक्षा तंत्र द्वारा मांग की जाये। |
250. वित्तीय विवरण का तैयार किया जाना – पंचायती राज संस्था स्थानीय निधि संपरीक्षा नियम, 1955 द्वारा विहित वित्तीय विवरण और उस कालावधि के वास्तविक लेखे तैयार करेगी जिसके लिए संपरीक्षा की जानी है उन्हें तब पेश करेगी जब संपरीक्षा तंत्र द्वारा मांग की जाये। |
251. संपरीक्षा रिपोर्ट – निदेशक, स्थानीय निधि संपरीक्षा की संपरीक्षा रिपोर्ट सम्बंधित पंचायती राज संस्था को भेजी जायेगी। पंचायतों की संपरीक्षा रिपोर्ट की एक प्रति संबंधित पंचायत समिति को भी भेजी जायेगी। इसी प्रकार पंचायत समितियों की संपरीक्षा रिपोर्ट की एक प्रति संबंधित जिला परिषद को भी भेजी जायेगी जो यह देखेगी कि संपरीक्षा तंत्र द्वारा बताई गई अनियमितताओं पर शीघ्रता से ध्यान दिया गया है और उनको परिशोधित किया गया है। |
252. संपरीक्षा रिपोर्टो का अनुपालन – (1) निदेशक , स्थानीय निधि संपरीक्षा द्वारा भेजी गई संपरीक्षा रिपोर्ट का अनुपालन राजस्थान स्थानीय निधि संपरीक्षा नियम, 1955 के नियम 28 में अधिकथित प्रक्रिया के अनुसार किया जायेगा। |
(2) मुख्य कार्यपालक अधिकारी और मुख्य लेखाधिकारी, जिला परिषद् प्रादेशिक मुख्यालयों पर पदस्थापित उप निदेशक , स्थानीय निधि संपरीक्षा की उपस्थिति में, संपरीक्षा रिपोर्टों के अनुपालन की प्रगति का प्रत्येक तीन मास में पुनर्विलोकन करेंगे और अभियान चलाकर उनके अनुपालन के लिए सभी कदम उठायेंगे। |
(3) मुख्य कार्यपालक अधिकारी गबन, राजस्व की हानि, अतिसंदाय, गलत संदाय आदि को उपदर्शित करने वाले क्षेत्रों का विनिर्दिष्ट रूप से पुनर्विलोकन करेगा और व्यतिक्रमियों के विरू) विभागीय कार्यवाही या दाण्डिक कार्यवाहियां संस्थित करेगा। |
(4) संपरीक्षा रिपोर्टों में बताई गई राजस्व हानि की वसूली के लिए मुख्य कार्यपालक अधिकारी और विकास अधिकारियों द्वारा सभी प्रयास किये जायेंगे। |
253. अपलेखन – (1) सभी धनीय हानियां, अवसूलीय राजस्व, उधार, अग्रिम पंचायती राज संस्था द्वारा राज्य सरकार से पूर्व अनुमोदन से ही अपलिखित किये जायेंगे। |
(2) उस दशा में, जहाँं कोई हानि किसी भी सेवक से कपट, कूट रचना, गबन, गम्भीर उपेक्षा के कारण हुई हो, जिससे अनु शासनिक कार्यवाही आवश्यक हो गयी हो या जो नियमों और प्रक्रिया में दोष के कारण हुई हो जिससे परिशोधन या संशोधन अपेक्षित हो, पंचायत समिति/ जिला परिषद् पहले ऐसे मामले का पुनर्विलोकन करेगी और ‘‘अपलेखन’’ के अनुमोदन के लिए राज्य सरकार को मामले की सिफारिश करने के पूर्व समुचित अनुशासनिक कार्यवाही करेगी। |
(3) हानियों के ‘‘अपलेखन’’ की समस्त मंजूरियों की एक प्रति निदेशक , स्थानीय निधि संपरीक्षा को भी प्रेषित की जायेगी। |
254. प्रपत्र – प्रपत्रों की अनुपलब्धता की दशा में पंचायती राज संस्थाओं के कार्यालय में उपयोग के लिए राज्य सरकार के समरूपी प्रपत्रों को अंगीकृत किया जा सकेगा। |
255. अनुदेश जारी करने की राज्य सरकार की शक्ति – राज्य सरकार ऐसे अनुदेश जारी कर सकेगी जो इन नियमों के समुचित पालन के लिए समय – समय पर दिये जाने आवश्यक हो। |
अध्याय 12
भर्ती और अन्य सेवा शर्तें
256. नियोजन के लिए अपात्र व्यक्ति – (1) कोई भी व्यक्ति किसी पंचायती राज संस्था में स्थाई, अस्थाई या अंशकालिक हैसियत में नियोजित नहीं किया जायेगा, यदि वह-
(क) अच्छे चरित्र का नही हैं, या
(ख) किसी भी अन्य पंचायती राज संस्था या किसी अन्य स्थानीय प्राधिकरण या राज्य या केन्द्रीय सरकार की सेवा से अवचार के कारण पद्च्युत किया गया है, या
(ग) किसी ऐसे अपराध के लिए दोषसिद्ध किया गया है जिसमें नैतिक अधमता अन्तर्वलित है, या
(घ) किसी भी पंचायती राज संस्था का या किसी नगरपालिका का सदस्य है, या
(ड़) आवेदन-पत्रों की प्राप्ति के लिए नियत अन्तिम दिनांक के बाद आने वाली पहली जनवरी को 18 वर्ष से कम और *[40 वर्ष] से अधिक आयु का है:
परन्तु अंशकालिक कर्मचारियों के लिए न्यूनतम या अधिकतम आयु सीमा का निर्बधन लागू नहीं होगा ।
*[राजस्थान पंचायती राज (संशोधन) नियम 2020 अधिसूचना संख्या एफ 4(2) संशोधन/ नियम/ विधि/ प.रा / 2020/ 5000 दिनांक 11/09/2020 द्वारा 35 वर्ष के स्थान पर प्रतिस्थापित, राज. राजपत्र भाग 6(ग) दिनांक 11/09/2020 को प्रकाशित एवं प्रभावी]
(च) पंचायत राज संस्था के किसी सदस्य का पुत्र, पौत्र, सगा भाई या कोई अन्य निकट सम्बंधी है:
परन्तु यदि कर्मचारी की नियुक्ति के पश्चात उसका कोई् सम्बंधी ऐसे सदस्य के रूप में निर्वाचित होता है तो उसे सेवोन्मुक्त नहीं किया जायेगा।
(2) नियुक्ति के लिए निरर्हता-(क) कोई भी पुरुष अभ्यर्थी जिसके एक से अधिक जीवित पत्नियां हैं, सेवाओं में नियुक्ति के लिए तब तक पात्र नहीं होगा जब तक कि सरकार, इस बात का समाधान करने के पश्चात, कि ऐसा करने के लिए विशेष आधार है, इस नियम के प्रवर्तन से किसी भी अभ्यर्थी को छूट न दे दे।
(ख) कोई भी महिला अभ्यर्थी जिसने किसी ऐसे व्यक्ति से विवाह किया है जिसके पहले ही कोई पत्नी है, सेवा में नियुक्ति के लिए तब तक पात्र नहीं होगी जब तक कि सरकार इस बात का समाधान करने के पश्चात कि ऐसा करने के लिए विशेष आधार हैं, इस नियम के प्रवर्तन से उस महिला अभ्यर्थी को छूट न दे दे।
*[(ग) कोई ऐसा अभ्यर्थी जिसके 1-6-2002 को या उसके पश्चात दो से अधिक संताने हो, सेवा में नियुक्ति के लिए पात्र नही होगा:
परन्तु यह के दो से अधिक संतानो वाला अभ्यर्थी तब तक नियुक्ति के लिए निर्रहित नही समझा जायेगा जब तक उस संख्या में जो 1-6-2002 को है, बढोतरी नही होती हैः
परन्तु यह और की जहाँ किसी अभ्यर्थी के पूर्वतर प्रसव से केवल एक संतान है, किन्तु पश्चातवर्ती किसी एकल प्रसव से एक से अधिक संताने पैदा हो जाती है, तो वहाँ संतानों की कुल गणना करते समय इस प्रकार पैदा हुई संतानों को एक इकाई समझा जायेगा।]
*[अधिसूचना संख्या एफ 4 ( ) प.रा.वि/ विधि/ संशोधन/ 04/ 1634 दिनांक 23-06-2004 द्वारा जोड़ा गया, राज. राजपत्र भाग 4(ग) दिनांक 25-06-2004 को प्रकाशित एवं प्रभावी]
257. सेवा की पद संख्या -सेवा की पद संख्या उतनी होगी जो अधिनियम की धारा 79, 80 और 83 के अधीन समय-समय पर नियत की जाये।
258. पदों का प्रवर्ग – (1) निम्नलिखित पद प्रवर्ग पंचायत समितियों और जिला परिषदों में रहेंगे-
(क) राज्य सेवा पद-
(i) मुख्य कार्यपालक अधिकारी
(ii) विकास अधिकारी
(iii) लेखाधिकरी
(iv) सहायक अभियन्ता
(v) समय-समय पर राज्य सरकार द्वारा निर्धारित पदों की श्रेणियां
(ख) अधीनस्थ सेवा-
(i) सहायक लेखाधिकारी
(ii) प्रसार अधिकारी (पंचायत, शिक्षा, सहकारिता, प्रगति)
(iii) लेखाकार/कनिष्ठ लेखाकार
(iv) कनिष्ठ अभियन्ता
*[(ग) पंचायत समिति और जिला परिषद् सेवा के मंत्रालयिक एवं अधीनस्थ पद-
(i) वरिष्ठ लिपिक जिसमें वरिष्ठ लिपिक एवं स्टेनों सम्मिलित है।
(ii) कनिष्ठ लिपिक जिसमें टंकक सम्मिलित है।
(iii) वाहन चालक
(iv) प्राथमिक एवं उच्च प्राथमिक विद्यालय अध्यापक (संशोधन दिनाँक 28-2-2004)
(v) ग्राम सेवक एवं सचिव, पंचायत
(vi) फिटर, और
(vii) हैंड पंप मिस्त्री।,]
*[राजस्थान पंचायती राज (संशोधन) नियम, 2016 अधिसूचना संख्या एफ 4 (7) संशोधन/ नियम/ विधि/ प.रा./ 2014/ 397 दिनांक 08-06-2016 द्वारा प्रतिस्थापित, राज. राजपत्र भाग 4(ग) दिनांक 08-06-2016 को प्रकाशित एवं प्रभावी]
(घ)चतुर्थ श्रेणी सेवा पद।
*[(ङ) पदेन अधिकारी: -(i) पदेन पंचायत प्रारंभिक शिक्षा अधिकारी]
*[राजस्थान पंचायती राज (संशोधन) नियम, 2017 अधिसूचना संख्या एफ 4 (7) संशोधन/ नियम/ विधि प.रा./ 2014/ 65 दिनांक 25 -01 – 2017 2017 द्वारा जोड़ा गया, राज. राजपत्र भाग 4(ग) दिनांक 25 -01 – 2017 को प्रकाशित एवं प्रभावी]
(2) पंचायत मुख्य कार्यपालक अधिकारी की पूर्व अनुज्ञा से अपनी आय से सम्पत्ति एवं पशु बाड़े आदि के प्रबन्धन के लिए संविदा के आधार पर अंशकालिक व्यक्ति तथा राज्य सरकार से प्राप्त सामान्य प्रयोजन अनुदान से पंचायत कार्यालय हेतु चतुर्थ श्रेणी सेवक नियुक्त कर सकती है। ।
*[(3) पंचायत मुख्य कार्यपालक अधिकारी की पूर्व अनुज्ञा से पंचायत, कार्यालय या किसी अन्य कार्य के लिए अंशकालिक या निश्चित मानदेय या अनुबंध के आधार पर किसी व्यक्ति को ग्राम पंचायत सहायक के रूप में नियुक्त कर सकती है। उसे राज्य वित्त आयोग की सिफारिश पर राज्य सरकार से इस प्रयोजन के लिए प्राप्त अनुदान से या पंचायत की अपनी आय में से भुगतान किया जाएगा।]
*[राजस्थान पंचायती राज (द्वितीय संशोधन) नियम, 2016 अधिसूचना संख्या एफ 4 (7) संशोधन/ नियम/ विधि/ प.रा./ 2014/ 812 दिनांक 02 -11 – 2016 द्वारा जोड़ा गया, राज. राजपत्र भाग 4(ग) दिनांक 02 -11 – 2016 को प्रकाशित एवं प्रभावी]
259.भर्ती की विधियां – (1) राज्य सेवा के पद उपयुक्त सेवाओं से प्रतिनियुक्ति पर स्थानान्तरण द्वारा भरे जा सकेंगे।
(2) विकास अधिकारियों के पद राज्य सरकार द्वारा उद्देश्य से तैयार किये गये अधिनियम/ नियमों के उपयुक्त संवर्ग से भरे जायेंगे।
(3) पंचायत प्रसार अधिकारी के पद ग्राम सेवक-एवं-सचिव, पंचायत से 100% पदोन्नति द्वारा भरे जायेंगे।
(4) अन्य प्रसार अधिकारियों के पद क्रमश: शिक्षा, सहकारिता और सांख्यिकी विभागों से प्रतिनियुक्ति पर स्थानान्तरण द्वारा भरे जायेंगे। ।
*[(5) राजस्थान ग्रामीण विकास एवं पंचायती राज राज्य एवं अधीनस्थ सेवा नियम, 1998 के अधीन विहित प्रक्रिया के अनुसार कनिष्ठ अभियंताओं के पद सीधी भर्ती द्वारा भरे जायेंगे।]
*[राजस्थान पंचायती राज (संशोधन) नियम, 2022 अधिसूचना संख्या एफ.4(4) संशोधन/ नियम/ विधि प.रा./ 2022/101 दिनांक 08 -02 – 2022 द्वारा प्रतिस्थापित, राज. राजपत्र भाग 4(ग) दिनांक 09 -02 – 2022 को प्रकाशित एवं प्रभावी]
**[(5ए) फिटर का पद लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग से प्रतिनियुक्ति पर भरा जाएगा।]
**[राजस्थान पंचायती राज (संशोधन) नियम, 2006 अधिसूचना संख्या एफ.1(2) RDPR/ PHED/ नियम/ 99-2K/ 3069 दिनांक 05 -07 – 2006 द्वारा जोड़ा गया, राज. राजपत्र भाग 4(ग) दिनांक 05 -07 – 2006 को प्रकाशित एवं प्रभावी]
(5ख) हैंडपंप मिस्टी के पद पंचायत समितियों में नियमित हैंडपंप मिस्त्रियों से शासकीय आदेश क्रमांक एफ.13(147)विधि/ ग्राविपा/ हाई कोर्ट/ 94/ 3882 दिनांक 30.12.1995 के अनुसार भरे जायेंगे।]
(6) धारा 89 की उपधारा (2) के अनुसार पंचायत समिति एवं जिला परिषद सेवाओं में संवर्गित पदों की भर्ती अधिनियम की धारा 80 और 90 के प्रावधानों के अनुसार जिला स्थापना समिति के माध्यम से जिलेवार की जायेगी. ।
परन्तु धारा 89 (2) की उप धारा (iii) में विनिर्दिष्ट पद के चयन के लिए सूचि, राज्य स्तर पर प्राधिकृत अधिकरण
द्वारा तैयार की जायेगी।
[ राजस्थान पंचायती राज (चतुर्थ संशोधन) नियम 2015 (जी. एस. आर. 95) संख्या एफ 4 (7) संशोधन /नियम / लीगल / पीआर/ 2014 /678 दिनांक 15 .10.2015 द्वारा iiक अन्त: स्थापित, राज राजपत्र भाग 4(ग) दिनांक15 .10.2015 को प्रकाशित एवं प्रभावी ]
*[परंतु यह और कि राज्य स्तर पर राजस्थान अधीनस्थ लिपिकवर्गीय सेवा चयन बोर्ड द्वारा ग्राम सेवक और लिपिक ग्रेड-II के पद पर चयन के लिए सूची तैयार की जाएगी।]
(7) चतुर्थ श्रेणी सेवा की भर्ती रोजगार कार्यालय के माध्यम से या समय – समय पर सरकार द्वारा निर्धारित तरीके से की जा सकती है।
*[( 8 ) इन नियमों में अन्तर्विष्ट किसी बात के होते हुए भी, सम्यक रूप से स्वीकृत किन्हीं पदों पर अनियमित रूप से नियुक्त और 10.04.2006 को किसी न्यायालय या अधिकरण के हस्तक्षेप के बिना, दस वर्ष की सेवा पूर्ण कर चुके और राजस्थान पंचायती राज (चतुर्थ संशोधन) नियम, 2013 के प्रारम्भ की तारीख को इस रूप में लगातार कार्य कर रहे व्यक्ति संबंधित जिला परिषदों की जिला स्थापन समिति द्वारा छांटे जायेंगे परन्तु यह कि उनकी प्रारम्भिक अनियमित नियुक्ति की तारीख पर नियमानुसार वे नियुक्ति के लिए पात्र थे और छंटनी के समय रिक्ति उपलब्ध है। नियुक्ति प्राधिकारी उस व्यक्ति के नियुक्ति आदेश जारी करेगा जो छंटनी समिति द्वारा उपयुक्त न्यायनिर्णित किया गया है और नियुक्ति ऐसे नियुक्ति आदेश के जारी होने की तारीख से प्रभावी होगी।]
*[(8) ग्राम पंचायत सहायक के पद के लिए चयन अंशकालिक या निश्चित मानदेय पर या अनुबंध के आधार पर [***] राज्य सरकार द्वारा समय – समय पर निर्धारित तरीके से किया जाएगा।]
*[(9) स्कूल शिक्षा विभाग के किसी भी अधिकारी को स्कूल शिक्षा विभाग द्वारा पदेन पंचायत प्रारंभिक शिक्षा अधिकारी घोषित किया जाएगा।]
260. पंचायत समिति और जिला परिषद सेवाओं के लिए भर्ती के स्रोत – रिक्तियों को भरा जाएगा: –
(क)प्रत्येक श्रेणी के निम्नतम ग्रेड में सीधी भर्ती द्वारा,
(ख)एक ही श्रेणी में निम्न से उच्च ग्रेड में पदोन्नति द्वारा,
(ग) पंचायत समिति/जिला परिषद् या सरकार के अधीन तदनुरूपी पद धारण करने वाले व्यक्तियों के स्थानान्तरण द्वारा :
*[(घ) राज्य सरकार के,और राज्य सरकार द्वारा नियंत्रित स्थानीय निकायों, पंचायती राज संस्थाओं, निगमों या बोर्डों के ऐसे कर्मचारियों के आमेलन द्वारा जिनको पदों के कम/ समाप्त करने के कारण अधिशेष घोषित किया गया हो।]
बशर्ते कि भारत में कानून द्वारा स्थापित विश्वविद्यालय के कला, विज्ञान, कृषि या वाणिज्य में डिग्री रखने वाले उम्मीदवारों में से उच्च श्रेणी लिपिक की श्रेणी में रिक्तियों को सीधी भर्ती द्वारा भरा जा सकता है, यदि सेवा का कोई सदस्य पात्र नहीं पाया जाता है। ऐसी रिक्तियों को भरने के लिए पदोन्नति के लिए और ऐसी रिक्तियों को इन नियमों के अनुसार स्थानान्तरण द्वारा भरना संभव नहीं होगा।
261. अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए रिक्तियों का आरक्षण –1) अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति के लिए रिक्तियों का आरक्षण क्रमश: 16 प्रतिशत एवं 12 प्रतिशत या भर्ती अर्थात सीधी भर्ती द्वारा और पदोन्नति द्वारा भर्ती के समय ऐसे आरक्षण के लिए प्रस्तुत सरकारी आदेशों के अनुसार होगा।
(2) पदोन्नति के लिए ऐसी आरक्षित रिक्तियां वरिष्ठता एवं योग्यता द्वारा भरी जावेगी।
(3) ऐसी आरक्षित रिक्तियों को भरने में, ऐसे पात्र अभ्यर्थियों पर, जो अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के सदस्य है, नियुक्ति के लिए उसी क्रम में विचार किया जावेगा जिस क्रम में उनके नाम सीधी भर्ती के लिए या पदोन्नति के लिये समिति द्वारा तैयार की गई सूची में आये है, भले ही अन्य अभ्यर्थियों की तुलना में उनकी आपेक्षित रैंक कुछ भी क्यों न हो।
(4) नियुक्ति सर्वथा सीधी और पदोन्नति के लिए अलग-अलग विहित रोस्टरों के अनुसार की जावेगी। किसी वर्ष विशेष में अनुसूचित जाति या, यथास्थिति, अनुसूचित जनजाति में पात्र और उपयुक्त अभ्यर्थियों की अनुपलब्धता की दशा में उनके लिए ऐसी आरक्षित रिक्तियां सामान्य प्रक्रिया के अनुसार भरी जावेगी और पश्चत्वर्ती वर्ष में समतुल्य संख्या में अतिरिक्त रिक्तियां आरक्षित रखी जायेगी। ऐसी रिक्तियां जो इस प्रकार बिना भरी रह जायें पश्चत्वर्ती कुल तीन भर्ती वर्षो तक अग्रणीत की जावेगी और तत्पश्चत् ऐसा आरक्षण व्ययगत हो जायेगा।
(5) अन्य पिछड़ी जाति के लिये रिक्तियों का 21 प्रतिशत पद आरक्षित होगा अथवा सीधी भर्ती लागू राज्य सरकार के आरक्षण सम्बन्धी आदेशों के अनुरूप होंगे। किसी वर्ष विशेष में अन्य पिछड़ी जाति में योग्य एवं उपुक्त प्रत्याशी उपलब्ध ना होने के स्थिति में ऐसी आरक्षित रिक्तियाँ सामान्य प्रक्रिया अनुसार भरी जावेगी।
262. अन्य प्रवर्गो के लिए रिक्तियों का आरक्षण – (1) इन नियमों में अन्तर्विष्ट किसी बात के होते हुए भी, सीधी भर्ती द्वारा भरे जाने वाले पदों का कतिपय प्रतिशत राज्य सरकार के नियमों के अनसु ार विकलांग अभ्यर्थियों के लिए आरक्षित किया जावेगा और वे राजस्थान शारीरिक रूप से निशक्त व्यक्तियों को नियोजन नियम 2000 प्रभावी दिनॉक 23-6-2004 नियम, 1976 के उपबन्धों के अनुसार भरे जायेंगे।
(2) रिक्तियों के आरक्षण के संबंध में वे अन्य उपबन्ध भी लागू होंगे जो राज्य सरकार में समय-समय पर विद्यमान हों।
263. रिक्तियों का अवधारण – इन नियमों के उपबन्धों और सरकार के निर्देशों, यदि कोई हों, के अध्यधीन रहते हुए, पंचायत समिति या जिला परिषद् आगामी छः मास की कालावधि के दौरान प्रत्येक प्रवर्ग के अधीन प्रत्याशित रिक्तियों की संख्या और प्रत्येक रीति द्वारा भर्ती किये जाने के लिए सम्भाव्य व्यक्तियों की संख्या प्रत्येक वर्ष में दो बार अर्थात् 1 जनवरी और 1 जुलाई को अवधारित करेगी और समिति को सूचित करेगी :
* [परन्तु यह और कि ग्राम सेवकऔर लिपिक ग्रेड – II के पद पर इस प्रकार अवधारित रिक्तियों की सूचना आयुक्त, पंचायती राज, राजस्थान को दी जायेगी।]
*[परन्तु धारा 89 की उपधारा (2) के खंड (iii) में विनिर्दिष्ट पद पर अवधारित रिक्तियों की सूचना निदेशक, प्रारंभिक शिक्षा, राजस्थान को प्रज्ञापित किया जायेगा। ]
*[ राजस्थान पंचायती राज (चतुर्थ संशोधन) नियम 2015 (जी. एस. आर. 95) संख्या एफ 4 (7) संशोधन /नियम / लीगल / पीआर/ 2014 /678 दिनांक 15 .10.2015 द्वारा iiक अन्त: स्थापित, राज राजपत्र भाग 4(ग) दिनांक 15 .10.2015 को प्रकाशित एवं प्रभावी ]
264. राष्ट्रीयता – सेवा में नियुक्ति के लिए उम्मीदवार को भारत का वास्तविक नागरिक होना चाहिए।
265. आयु – सीधी भर्ती के लिए अभ्यर्थी को आवेदन प्राप्ति की नियत तारीख के पश्चत् आने वाली जनवरी के प्रथम दिन को अठारह वर्ष की आयु प्राप्त किया हुआ होना चाहिए और *[चालीस वर्ष] की आयु प्राप्त किया हुआ नहीं होना चाहिएः परन्तु-
*[“(i) ऊपर उल्लिखित ऊपरी आयु सीमा में छूट दी जाएगी, –
(क)अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों, पिछड़े वर्गों, अधिक पिछड़े वर्गों और आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के पुरुष उम्मीदवारों के मामले में 5 वर्ष;
(ख)सामान्य श्रेणी से संबंधित महिला उम्मीदवारों के मामले में 5 वर्ष; और
(ग)अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, पिछड़ा वर्ग, अधिक पिछड़ा वर्ग और आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों से संबंधित महिला उम्मीदवारों के मामले में 10 साल।]
*[No. F4(2) AM/नियम/कानूनी/PR/2020/490]
(ii) भूतपूर्व सैनिकों के लिए अधिकतम आयु सीमा पचास वर्ष होगी,
(iii) पंचायतों के सचिवों के रूप में पहले से कार्यरत व्यक्तियों के लिए ऊपरी आयु सीमा में पंचायत सचिव के रूप में प्रदान की गई सेवा की अवधि तक अधिकतम तीन वर्ष की सीमा के अधीन छूट दी जाएगी,
(iv) विधवाओं और तलाकशुदा महिलाओं के मामले में कोई आयु सीमा नहीं होगी,
व्याख्या – विधवा होने की स्थिति में उसे अपने पति की मृत्यु का प्रमाण पत्र सक्षम प्राधिकारी से तथा तलाकशुदा होने की स्थिति में तलाक का प्रमाण प्रस्तुत करना होगा,
(v) पंचायत समिति या जिला परिषद् के अधीन उनकी अस्थायी नियुक्ति पर निर्धारित आयु सीमा के भीतर रहने वाले व्यक्तियों के लिए ऊपरी आयु सीमा में उनके द्वारा पंचायत समिति या जिला परिषद् के अधीन की गई सेवा की अवधि तक छूट दी जाएगी,
(vi) ऊपर उल्लिखित ऊपरी आयु सीमा ऐसे भूतपूर्व कैदी के मामले में लागू होगी, जिसने अपनी दोषसिद्धि से पूर्व पंचायत समितियों और जिला परिषदों के अधीन मौलिक आधार पर किसी पद पर सेवा की हो और इन नियमों के अधीन नियुक्ति का पात्र हो,
(vii) किसी पूर्व कैदी के मामले में, जो अपनी सजा से पहले अधिक उम्र का नहीं था और इन नियमों के तहत नियुक्ति के लिए पात्र था, ऊपर उल्लिखित ऊपरी आयु सीमा में कारावास की अवधि के बराबर की अवधि में छूट दी जाएगी।
*[(viii) 1.1.1999 के बाद ऊपरी आयु सीमा पार करने वाला उम्मीदवार 23.5.2007 तक सरकारी सेवा में प्राथमिक और उच्च प्राथमिक विद्यालय शिक्षक [सामान्य शिक्षा / विशेष शिक्षा] के रूप में भर्ती के लिए पात्र होगा।]
*[(ix) नियम 259 के उप – नियम (5 – बी) के तहत हैंडपंप मिस्त्री के रूप में नियुक्त व्यक्तियों के लिए कोई ऊपरी आयु सीमा नहीं होगी, बशर्ते ऐसे व्यक्ति अधिवर्षिता की आयु प्राप्त न करें।]
*[(एक्स) यदि कोई उम्मीदवार किसी भी वर्ष में सीधी भर्ती के लिए अपनी आयु के संबंध में हकदार होता है, जिसमें ऐसी कोई भर्ती नहीं हुई है, तो उसे अगली भर्ती में पात्र माना जाएगा, यदि वह / वह 3 वर्ष से अधिक आयु का नहीं है।“।]
*[(ix) कनिष्ठ तकनीकी सहायक, कनिष्ठ अभियंता, ग्राम रोजगार सहायक, डाटा एंट्री ऑपरेटर, कंप्यूटर के रूप में ग्रामीण विकास और पंचायती राज विभाग की किसी भी योजना के तहत लगातार अनुबंध के आधार पर काम करने वाले व्यक्ति के लिए ऊपर उल्लिखित ऊपरी आयु सीमा मशीन के साथ ऑपरेटर (प्लेसमेंट एजेंसी के माध्यम से लगे हुए को छोड़कर)। एलडीसी, लेखा सहायक, समन्वयक आईईसी, समन्वयक प्रशिक्षण, समन्वयक पर्यवेक्षण या किसी भी पद पर, उनके द्वारा प्रदान की गई सेवा के बराबर अवधि तक अधिकतम 5 वर्ष के अधीन छूट दी जाएगी।]
266. शैक्षणिक योग्यता – एक भर्ती के लिए न्यूनतम योग्यता निम्नानुसार होनी चाहिए: –
*[(1) एलडीसी (95% सीधी भर्ती द्वारा और 05% पदोन्नति द्वारा) – ( क.) सीधी भर्ती के लिए, –
(i) किसी मान्यता प्राप्त बोर्ड या इसके समकक्ष परीक्षा से वरिष्ठ माध्यमिक,तथा इलेक्ट्रॉनिक्स विभाग, भारत सरकार के नियंत्रण में डीओईएसीसी द्वारा संचालित “ओ” या उच्च स्तर का सर्टिफिकेट कोर्स। या
कंप्यूटर ऑपरेटर और प्रोग्रामिंग सहायक (सीओपीए) / डेटा तैयारी और कंप्यूटर सॉफ्टवेयर (डीपीसीएस) प्रमाण पत्र राष्ट्रीय / राज्य व्यावसायिक प्रशिक्षण योजना परिषद के तहत आयोजित किया गया। या
भारत में कानून द्वारा स्थापित विश्वविद्यालय या सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त संस्थान से कंप्यूटर साइंस / कंप्यूटर एप्लीकेशन में डिप्लोमा। या
सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त एक पॉलिटेक्निक संस्थान से कंप्यूटर साइंस एंड इंजीनियरिंग में डिप्लोमा। या
राजस्थान नॉलेज कॉर्पोरेशन लिमिटेड के नियंत्रण में वर्धमान महावीर ओपन यूनिवर्सिटी, कोटा द्वारा संचालित सूचना प्रौद्योगिकी (RSCIT) में सर्टिफिकेट कोर्स।
(ख ) पदोन्नति हेतु किसी मान्यता प्राप्त बोर्ड से माध्यमिक‘ तथा चतुर्थ श्रेणी के पद पर पांच वर्ष का अनुभव।]
*[(2) ग्राम सेवक – सह – सचिव (सीधी भर्ती द्वारा 100%) (i) सरकार द्वारा स्नातक या उसके समकक्ष घोषित योग्यता तथा
इलेक्ट्रॉनिक्स विभाग, भारत सरकार के नियंत्रण में डीओईएसीसी द्वारा संचालित “ओ” या उच्च स्तर का सर्टिफिकेट कोर्स या
कंप्यूटर ऑपरेटर और प्रोग्रामिंग सहायक (COPA) / डेटा तैयारी और कंप्यूटर सॉफ्टवेयर (DPCS) प्रमाण पत्र राष्ट्रीय / राज्य व्यावसायिक प्रशिक्षण परिषद योजना के तहत आयोजित किया गया या
भारत में कानून द्वारा स्थापित विश्वविद्यालय या सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त संस्थान से कंप्यूटर साइंस / कंप्यूटर एप्लीकेशन में डिप्लोमा या
सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त एक पॉलिटेक्निक संस्थान से कंप्यूटर साइंस एंड इंजीनियरिंग में डिप्लोमा या
राजस्थान नॉलेज कॉर्पोरेशन लिमिटेड के नियंत्रण में वर्धमान महावीर ओपन यूनिवर्सिटी, कोटा द्वारा संचालित सूचना प्रौद्योगिकी (RSCTT) में सर्टिफिकेट कोर्स।]
*[(3) प्राथमिक और उच्च प्राथमिक विद्यालय शिक्षक (100 प्रतिशत सीधी भर्ती द्वारा) (क) सामान्य शिक्षा स्तर – (i) कक्षा I से V स्तर–निःशुल्क और अनिवार्य बाल शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009 (2009 का केंद्रीय अधिनियम संख्या 35) की धारा 23 की उपधारा (1) के प्रावधानों के तहत राष्ट्रीय शिक्षक शिक्षा परिषद द्वारा समय – समय पर निर्धारित योग्यताएं और आरईईटी / आरटीईटी उत्तीर्ण होना चाहिए।
(ii)कक्षा VI से VIII – निःशुल्क और अनिवार्य बाल शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009 (2009 का केंद्रीय अधिनियम संख्या 35) की धारा 23 की उपधारा (1) के प्रावधानों के तहत समय – समय पर राष्ट्रीय शिक्षक शिक्षा परिषद द्वारा निर्धारित योग्यताएं , और
(i) सामाजिक अध्ययन के शिक्षक के लिए, उम्मीदवार को इतिहास, भूगोल, अर्थशास्त्र, राजनीति विज्ञान, समाजशास्त्र, लोक प्रशासन, दर्शनशास्त्र, लेखा, में से वैकल्पिक विषय के रूप में कम से कम एक विषय के साथ स्नातक या समकक्ष परीक्षा उत्तीर्ण होना चाहिए। आर्थिक और वित्तीय प्रबंधन और बैंकिंग और व्यवसाय अर्थशास्त्र;
(ii) विज्ञान और गणित के शिक्षक के लिए, उम्मीदवार को रसायन विज्ञान, भौतिकी, वनस्पति विज्ञान, जूलॉजी, सूक्ष्म जीव विज्ञान, जैव प्रौद्योगिकी, जैव रसायन और गणित में से वैकल्पिक विषय के रूप में कम से कम एक विषय के साथ स्नातक या समकक्ष परीक्षा उत्तीर्ण होना चाहिए।;
(iii) भाषा के शिक्षक के लिए, उम्मीदवार को वैकल्पिक विषय के रूप में संबंधित भाषा के साथ स्नातक या समकक्ष परीक्षा उत्तीर्ण होना चाहिए;
(iv) प्रारंभिक शिक्षा में स्नातक (बी.एल.एड.) या बीएबीएड./बी.एससी. बी.एड., यानी चार साल के एकीकृत पाठ्यक्रम की योग्यता वाले उम्मीदवार को भी संबंधित विषय के साथ योग्यता परीक्षा उत्तीर्ण होना चाहिए; और
(v) आवेदन करने वाले विषय में REET/RTET पास होना चाहिए।
(ख) विशेष शिक्षा स्तर – (i) कक्षा I से V स्तर – निःशुल्क और अनिवार्य बाल शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009 (2009 का केंद्रीय अधिनियम संख्या 35) की धारा 23 की उपधारा (1) के प्रावधानों के तहत समय – समय पर राष्ट्रीय शिक्षक शिक्षा परिषद द्वारा निर्धारित योग्यता और REET/RTET पास होना चाहिए।
स्तर –(ii)कक्षा VI से VIII – निःशुल्क और अनिवार्य बाल शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009 (2009 का केंद्रीय अधिनियम संख्या 35) की धारा 23 की उपधारा (1) के प्रावधानों के तहत समय – समय पर राष्ट्रीय शिक्षक शिक्षा परिषद द्वारा निर्धारित योग्यताएं ; और
(i) सामाजिक अध्ययन के शिक्षक के लिए, उम्मीदवार को इतिहास, भूगोल, अर्थशास्त्र, राजनीति विज्ञान, समाजशास्त्र, लोक प्रशासन, दर्शनशास्त्र, लेखाशास्त्र, आर्थिक में से वैकल्पिक विषय के रूप में कम से कम एक विषय के साथ स्नातक या समकक्ष परीक्षा उत्तीर्ण होना चाहिए। और वित्तीय प्रबंधन और बैंकिंग और व्यवसाय अर्थशास्त्र;
(ii) विज्ञान और गणित के शिक्षक के लिए, उम्मीदवार को रसायन विज्ञान, भौतिकी, वनस्पति विज्ञान, जूलॉजी, सूक्ष्म जीव विज्ञान, जैव प्रौद्योगिकी, जैव रसायन और गणित में से वैकल्पिक विषय के रूप में कम से कम एक विषय के साथ स्नातक या समकक्ष परीक्षा उत्तीर्ण होना चाहिए।
(iii) भाषा के शिक्षक के लिए, उम्मीदवार को वैकल्पिक विषय के रूप में संबंधित भाषा के साथ स्नातक या समकक्ष परीक्षा उत्तीर्ण होना चाहिए;
(iv) प्रारंभिक शिक्षा में स्नातक (बी.एल.एड.) या बीए बीएड./बी.एससी. बी.एड., यानी चार साल के एकीकृत पाठ्यक्रम की योग्यता वाले उम्मीदवार को भी संबंधित विषय के साथ योग्यता परीक्षा उत्तीर्ण होना चाहिए; और
(v) आवेदन करने वाले विषय में REET/RTET पास होना चाहिए
[बशर्ते कि वह व्यक्ति जो B.Ed/BSTC/DSE/B.Ed. (विशेष शिक्षा) परीक्षा, प्राथमिक एवं उच्च प्राथमिक विद्यालय के शिक्षकों (सामान्य शिक्षा/विशेष शिक्षा) के पद हेतु आवेदन करने के पात्र होंगे, परन्तु उन्हें उक्त शैक्षिक योग्यता प्राप्त करने का प्रमाण प्रतियोगी परीक्षा के परिणाम की घोषणा।][जिला स्थापना समिति] के समक्ष प्रस्तुत करना होगा।
“बशर्ते कि वह व्यक्ति जो सीधी भर्ती के लिए उपरोक्त खंड (1) और (2) में निर्दिष्ट पदों के लिए अपेक्षित शैक्षिक योग्यता वाले पाठ्यक्रम के अंतिम वर्ष की परीक्षा में शामिल हुआ है या हो रहा है, आवेदन करने के लिए पात्र होगा। उक्त पदों के लिए, लेकिन उन्हें उपयुक्त चयन एजेंसी को अपेक्षित शैक्षिक योग्यता प्राप्त करने का प्रमाण प्रस्तुत करना होगा, –
(1) मुख्य परीक्षा में उपस्थित होने से पहले, जहां चयन लिखित परीक्षा और साक्षात्कार के दो चरणों के माध्यम से किया जाता है;
(2) ) साक्षात्कार में उपस्थित होने से पहले जहां लिखित परीक्षा और साक्षात्कार के माध्यम से चयन किया जाता है;
(3) लिखित परीक्षा या साक्षात्कार में उपस्थित होने से पहले जहां चयन केवल लिखित परीक्षा या केवल साक्षात्कार के माध्यम से किया जाता है, जैसा भी मामला हो।“
[सं. F4(2) AM/नियम/कानूनी/PR/2020/83]
*[(3ए) हैण्डपम्प मिस्त्री- 5वी कक्षा उत्तीर्ण और ट्राइसेम प्रोग्राम के तहत 3 महीने का प्रशिक्षण। या फ्री लांस हैंडपंप मरम्मत, हैंडपंप की मरम्मत में दो साल का अनुभव।]
(4) चालक (90% प्रत्यक्ष 10% पदोन्नति द्वारा) – आठवीं कक्षा पास ड्राइविंग लाइसेंस और ड्राइविंग लाइट / भारी मोटर वाहन का 3 साल का अनुभव।
[(5) चतुर्थ श्रेणी (सीधी भर्ती द्वारा 100%) –
[बशर्ते कि वह व्यक्ति जो सीधी भर्ती के लिए उपरोक्त खंड (1) और (2) में निर्दिष्ट पदों के लिए अपेक्षित शैक्षिक योग्यता वाले पाठ्यक्रम के अंतिम वर्ष की परीक्षा में शामिल हुआ है या हो रहा है, आवेदन करने के लिए पात्र होगा।उक्त पदों के लिए, लेकिन उन्हें उपयुक्त चयन एजेंसी को अपेक्षित शैक्षिक योग्यता प्राप्त करने का प्रमाण प्रस्तुत करना होगा, –
(1) मुख्य परीक्षा में उपस्थित होने से पहले, जहां चयन लिखित परीक्षा और साक्षात्कार के दो चरणों के माध्यम से किया जाता है;
(2) ) साक्षात्कार में उपस्थित होने से पहले जहां लिखित परीक्षा और साक्षात्कार के माध्यम से चयन किया जाता है; (3) लिखित परीक्षा या साक्षात्कार में उपस्थित होने से पहले जहां चयन केवल लिखित परीक्षा या केवल साक्षात्कार के माध्यम से किया जाता है, जैसा भी मामला हो।“]
[266क इन नियमों में निहित किसी बात के होते हुए भी विधवा/तलाकशुदा महिला, जिन्हें बीएसटीसी/बी.एड. नियम 266 के तत्कालीन परंतुक के तहत उन्हें अपेक्षित शैक्षिक योग्यता प्राप्त करने की तारीख से नियमित किया जाएगा।]
267. चरित्र – सेवा में सीधी भर्ती के लिए अभ्यर्थी को विश्वविद्यालय, महाविद्यालय संस्था के, जिसमें उसने अन्तिम वार शिक्षा प्राप्त की थी, प्रधान शैक्षणिक अधिकारी से सच्चरित्र प्रमाणपत्र और उसके विश्वविद्यालय, महाविद्यालय, विद्यालय या संस्था से असम्बद्ध और ऐसे दो उत्तरदायी व्यक्तियों से, जो उसके सम्बन्धी न हो, आवेदन की तारीख से छह से अनधिक मास पूर्व लिखे गये दो ऐसे प्रमाणपत्र समिति को प्रस्तुत किये जाने चाहिये।
नोट-किसी न्यायालय के द्वारा की गई किसी दोषसिद्धि मात्र के कारण अच्छे चरित्र प्रमाणपत्र देने से इन्कार नहीं किया जायेगा। दोषसिद्धि की परिस्थितियां पर विचार किया जाना चाहिए और यदि उनमें कोई नैतिक अधमता या हिसा के अपराधों के साथ या किसी ऐसे आन्दोलन के साथ जिसका उद्देष्य विधि द्वारा स्थापित सरकार को हिंसात्मक उपयों से उलटना है, सहबद्धता अन्वलिर्त न हो तो मात्र दोषसिद्धि को निरर्हता नहीं समझा जाना चाहिए।
268. शारीरिक फिटनेस – सेवा में सीधी भर्ती के लिए एक उम्मीदवार का मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य अच्छा होना चाहिए और सेवा के एक सदस्य के रूप में अपने कर्तव्यों के कुशल प्रदर्शन में बाधा डालने की संभावना वाले किसी भी शारीरिक दोष से मुक्त होना चाहिए, और नियुक्ति के लिए चुने जाने पर उसे चिकित्सा अधिकारी से इस आशय का प्रमाण पत्र पेश करना होगा।
269. संयाचना – भर्ती के लिए नियमों के अधीन अपेक्षित से भिन्न किसी भी लिखित या मौखिक सिफारिश पर विचार नहीं किया जायेगा। किसी अभ्यर्थी की ओर से अपनी अभ्यर्थिता के लिए ऐसे प्रत्यक्षतः या अप्रत्यक्षतः समर्थन हेतु संयाचना का कोई भी प्रयत्न करने पर उसे भर्ती के लिए निरर्हित किया जा सकेगा।
सीधी भर्ती के लिए प्रक्रिया
270. आवेदन आमंत्रित करना – सेवा में सीधी भर्ती हेतु जिला परिषद समिति द्वारा जिला स्थापना समिति को किये गये अध्यपेक्षा पर समिति द्वारा व्यापक प्रसार वाले दैनिक समाचार पत्र में खुले विज्ञापन के माध्यम से आवेदन आमंत्रित किये जायेंगे.
271. आवेदन पत्र – आवेदन समिति द्वारा निर्धारित प्रारूप में किया जायेगा तथा पोस्टल आर्डर या डिमांड ड्राफ्ट के रूप में निर्धारित आवेदन शुल्क के साथ विधिवत भरे गये आवेदन पत्र पर विचार किया जायेगा।
272. आवेदनों की संवीक्षा – समिति उसके द्वारा प्राप्त किए गए आवेदनों की संवीक्षा करेगी और इन नियमों के अधीन नियुक्ति के लिए योग्य अभ्यर्थियों को लिखित परीक्षा/साक्षात्कार के लिये बुला सकेगी।
*[273। * * *]
274. समिति द्वारा योग्यता सूची तैयार करना – (1) समिति *[ग्राम सेवक, प्राथमिक और उच्च प्राथमिक विद्यालय के शिक्षक और क्लर्क ग्रेड – II, जिले में] के पद को छोड़कर [प्रत्येक ग्रेड या पदों की श्रेणी] पर नियुक्ति के लिए उपयुक्त माने जाने वाले उम्मीदवारों की योग्यता सूची तैयार करेगी और पंचायती समितियों या जिला परिषदों से मांग प्राप्त होने पर सूची में से उम्मीदवारों को सूची में उनके नाम आने के क्रम में आवंटित करेंगे:
परन्तु
(i)समिति द्वारा तैयार की गयी योग्यता सूची में अभ्यर्थियों की संख्या, ऐसी योग्यता सूची को तैयार करने के समय वास्तविक रूप में उपलब्ध रिक्त पदों की संख्य के डेढ़ गुने से अधिक नहीं होगी, एवं
(ii)इस प्रकार तैयार की गयी अभ्यर्थियों की योग्यता सूची सामान्य रूप से एक वर्ष की अवधि तक तथा अध्यापकांे के लिए शैक्षिक सत्र की समाप्ति तक वैध रहेगी। उस अवधि की समाप्ति के बाद, इसे व्ययगत (लैप्स) हुआ समझा जायेगा।
(2) पंचायत समिति एवं जिला परिषदें समिति को अपनी अधियाचना भेजते समय नियम 261 की अपेक्षाओं को ध्यान में रखेंगी।
275. राज्य सरकार द्वारा आवंटन – राज्य सरकार ऐसे जिले की सूची में से जहाँ अन्य जिले में कोई रिक्त पद नहीं है, योग्यता क्रम में अभ्यर्थियों को वह स्थान अलाट करेगी जहॉँ नियुक्ति के लिए रिक्त पद होंगे, परन्तु यह कि उस बाद वाले जिले की योग्यता सूची में अभ्यर्थी उपलब्ध न हों।
276. पंचायत समिति या जिला परिषद द्वारा नियुक्ति – पंचायत समिति या जिला परिषद समिति द्वारा आवंटित किए अभ्यर्थियेां को उसी क्रम में नियुक्त करेगी जिसमें उनके नाम समिति द्वारा भेजे गए है।
277. मृतक कर्मचारी के परिवार के सदस्य की नियुक्ति – (1) पंचायत समिति/जिला परिषद सेवा के मृतक कर्मचारी के मामले में, उसके परिवार के एक ऐसे सदस्य को, जो पहले से ही पंचायत समिति/जिला परिषद /भारत/राज्य सरकार या भारत सरकार/राज्य सरकार द्वारा स्वामित्व प्राप्त या नियन्त्रित किसी सांविधिक निकाय/संगठन/निगम में पहले से नियुक्त नहीं है, तत्प्रयोजनार्थ आवेदन करने पर, सामान्य भर्ती नियमों को शिथिल करते हुए, विद्यमान रिक्त पद के विरू) ही यथाशक्य जितना व्यवहार्य हो सकेगा उतनी ही जल्दी, सेवा में उपयुक्त रूप से नियुक्ति दी जायेगी, बशर्ते कि वह सदस्य उस पद के लिए विहित शैक्षणिक अर्हताओं को पूरी करता हो तथा अन्यथा प्रकार से भी उस सेवा के लिए अर्हता प्राप्त (योग्य) हो। यदि कोई्र रिक्त पद उपलब्ध न हो या यदि परिवार का सदस्य अनर्ह (अयोग्य) या अवयस्क हो तथा तुरन्त नियुक्ति के लिए उसे उपयुक्त या पात्र नहीं पाया गया हो, तब उस मामले पर पद उपलब्ध होने पर या इन नियमों के अन्तर्गत ऐसी नियुक्ति के लिए उनमें से किसी एक के अर्ह (योग्य) या पात्र हो जाने पर, तुरन्त नियुक्ति देने के लिए विचार किया जायेगा।
(2) इस सम्बन्ध में राज्य सरकार द्वारा बनाए गए तथा समय-समय पर यथा संशोधित किए गए नियम ऐसे कर्मचारियों पर भी लागू होंगे।
*[ “277क. प्राथमिक एवं उच्च प्राथमिक विद्यालय के शिक्षक के पदों पर सीधी भर्ती की प्रक्रिया एवं पद्धति – इन नियमों में निहित किसी बात के होते हुए भी, प्राथमिक एवं उच्च प्राथमिक विद्यालय के शिक्षक के पदों पर सीधी भर्ती की प्रक्रिया निम्नलिखित तरीके से की जायेगी, अर्थात्: – (i) प्राथमिक एवं उच्च प्राथमिक विद्यालय के शिक्षक के पदों को सीधी भर्ती द्वारा प्राधिकृत अभिकरण द्वारा आयोजित प्रतियोगिता परीक्षा के माध्यम से भरा जायेगा;
(ii) प्रारंभिक एवं उच्च प्राथमिक विद्यालय के शिक्षक के पदों पर सीधी भर्ती हेतु प्रतियोगिता परीक्षा का पाठ्यक्रम ऐसा होगा, जैसा कि राज्य सरकार द्वारा समय – समय पर अवधारित किया जाये;
(iii) प्राथमिक एवं उच्च प्राथमिक विद्यालय के शिक्षक के पदों पर सीधी भर्ती के लिए भरे जाने वाले आवेदन प्राधिकृत अभिकरण द्वारा पदों का विज्ञापित करते हुए ऐसी रीति से, जैसा वह उचित समझे, आमंत्रित किया जाएगा और ऐसे रूप में किया जाएगा जैसा वह उचित समझे। मंजूर। उम्मीदवारों को आवेदन पत्र में अपनी वरीयता के क्रम में जिलों के नामों का उल्लेख करना होगा जिसमें वे सेवा करना चाहते हैं; (iv) इन नियमों के प्रावधानों के अधीन, विज्ञापन में, अन्य बातों के साथ – साथ, शामिल होगा, –
(क)एक खंड है कि कोई भी उम्मीदवार जो उसे पेश किए जा रहे पद पर असाइनमेंट स्वीकार करता है, उसे परिवीक्षा की अवधि के दौरान, राज्य सरकार द्वारा समय – समय पर निर्धारित दर पर मासिक निश्चित पारिश्रमिक और वेतनमान का भुगतान किया जाएगा। पद का भुगतान जैसा कि अन्यत्र दिखाया गया है – जहां विज्ञापन में परिवीक्षा की अवधि के सफल समापन की तिथि से ही अनुमति दी जाएगी;
(ख)ऐसी परीक्षा के परिणाम के रूप में भरे जाने वाले पदों की संख्या, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, सहरिया, पिछड़ा वर्ग, अधिक पिछड़ा वर्ग, आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग, महिला उम्मीदवारों के उम्मीदवारों के लिए आरक्षित पदों की संख्या को अलग से इंगित करते हुए, बेंचमार्क विकलांग व्यक्ति, खेल व्यक्ति और भूतपूर्व सैनिक, यदि कोई हो और राज्य सरकार द्वारा समय – समय पर अधिसूचित अनुसूचित क्षेत्र और किसी अन्य श्रेणी के लिए पदों की संख्या;
(ग)आवेदन पत्र जमा करने की अंतिम तिथि;
(v) विज्ञापन के अलावा, अधिकृत एजेंसी उम्मीदवारों के मार्गदर्शन के लिए ऐसे अन्य निर्देश जारी कर सकती है, जो अधिकृत एजेंसी उचित समझे;
(vi) सेवा में पद पर सीधी भर्ती के लिए एक उम्मीदवार प्राधिकृत एजेंसी को समय – समय पर निर्धारित शुल्क का भुगतान करेगा और इस तरह से, जैसा कि इसके द्वारा इंगित किया जा सकता है;
(vii) शुल्क की वापसी के लिए किसी भी दावे पर विचार नहीं किया जाएगा और न ही शुल्क को किसी अन्य भर्ती के लिए आरक्षित रखा जाएगा, जब तक कि प्राधिकृत एजेंसी द्वारा अधियाचना वापस लेने या किसी अन्य कारण से विज्ञापन रद्द कर दिया जाता है, उस मामले में राशि वापस किया जाएगा: बशर्ते कि प्राधिकृत एजेंसी द्वारा विज्ञापन रद्द करने की तारीख से एक महीने की अवधि के बाद फीस की वापसी के लिए कोई दावा स्वीकार नहीं किया जाएगा;
(viii) ऐसे आवेदन जो अपूर्ण पाए जाते हैं या जो प्राधिकृत एजेंसी द्वारा जारी किए गए निर्देशों के अनुसार नहीं भरे गए हैं, उनके द्वारा प्रारंभिक चरण में ही खारिज कर दिए जाएंगे। प्राधिकृत अभिकरण उन बचे हुए अभ्यर्थियों को अनंतिम रूप से प्रतियोगी परीक्षा में सम्मिलित होने की अनुमति देगा जिन्हें वे प्रवेश पत्र प्रदान करना उचित समझें। किसी भी अभ्यर्थी को प्रतियोगी परीक्षा में तब तक प्रवेश नहीं दिया जाएगा जब तक कि उसके पास प्रतियोगी परीक्षा में उपस्थित होने से पूर्व प्राधिकृत एजेंसी द्वारा दिए गए उस परीक्षा में प्रवेश पत्र न हो, यह अभ्यर्थी द्वारा स्वयं सुनिश्चित किया जाएगा कि वह सभी इन नियमों में प्रदान की गई आयु, शैक्षिक और व्यावसायिक योग्यता के संबंध में शर्तों सहित पात्रता मानदंड। परीक्षा देने की अनुमति दिए जाने से उम्मीदवार पात्रता की उपधारणा का हकदार नहीं होगा। प्राधिकृत एजेंसी बाद में केवल ऐसे उम्मीदवारों के आवेदनों की जांच करेगी जो प्रतियोगी परीक्षा में योग्य हैं;
(ix) प्रतियोगी परीक्षा में प्रवेश और उम्मीदवार की पात्रता के संबंध में प्राधिकृत एजेंसी का निर्णय अंतिम होगा;
(x) प्राधिकृत अभिकरण प्राथमिक एवं उच्च प्राथमिक विद्यालय के शिक्षकों के पदों हेतु आयोजित प्रतियोगिता परीक्षा में प्राप्त अंकों के आधार पर सफल घोषित अभ्यर्थियों की श्रेणीवार योग्यता सूची तैयार करेगा: परन्तु प्राधिकृत अभिकरण, अंतिम रूप से सूचित रिक्तियों के 50% की सीमा तक, उपयुक्त उम्मीदवारों के नाम आरक्षित सूची में रखें। प्राधिकृत एजेंसी मांग करने पर योग्यता के क्रम में ऐसे उम्मीदवारों के नामों की अनुशंसा प्राधिकृत एजेंसी द्वारा मूल सूची अग्रेषित किए जाने की तारीख से छह महीने के भीतर निदेशक, प्रारंभिक शिक्षा को कर सकती है। परन्तु यह और कि प्राधिकृत अभिकरण सरकार द्वारा निर्धारित आरक्षण के अनुसार अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, सहरिया, पिछड़ा वर्ग, अधिक पिछड़ा वर्ग, आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग, महिला अभ्यर्थी, व्यक्ति के अभ्यर्थियों की पृथक सूची तैयार करेगा। राज्य सरकार द्वारा समय – समय पर अधिसूचित बेंचमार्क विकलांगता, खेल व्यक्तियों, पूर्व सैनिकों और अन्य श्रेणियों के साथ, यदि कोई हो;
(xi) प्राधिकृत अभिकरण खण्ड (x) के अधीन तैयार की गई सूचियों को निदेशक, प्रारम्भिक शिक्षा राजस्थान, बीकानेर को प्राथमिक एवं उच्च प्राथमिक विद्यालय के शिक्षकों के पदों पर नियुक्ति हेतु भेजेगा;
(xii) चयनित अभ्यार्थियों को जिले आवंटित करते हुए प्रारंभिक शिक्षा निदेशक, राजस्थान द्वारा इन नियमों के अधीन मेरिट के क्रम में उनकी वरीयता के क्रम में नियुक्ति/तैनाती की जिलावार सूचना सम्बन्धित जिला परिषदों को उपलब्ध करायी जायेगी। शासन द्वारा निर्धारित रीति के अनुसार जनपदों हेतु विज्ञापित पदवार श्रेणीवार पदों के अनुसार; तथा
(xiii) इन नियमों के अधीन संबंधित जिले की जिला स्थापना समिति द्वारा अभ्यर्थियों को नियुक्ति दी जायेगी।” ]
[277(ख). ग्राम सेवकऔर क्लर्क ग्रेड – II के पद के लिए सीधी भर्ती की प्रक्रिया और पद्धति – इन नियमों में किसी बात के होते हुए भी, ग्राम सेवकएवं लिपिक ग्रेड – II के पद पर सीधी भर्ती निम्नलिखित रीति से की जायेगी, अर्थात्: –
(i) ग्राम सेवकएवं लिपिक ग्रेड – II के पदों को सीधी भर्ती द्वारा राजस्थान अधीनस्थ एवं लिपिकवर्गीय सेवा, चयन बोर्ड द्वारा इन नियमों के अनुसार संचालित प्रतियोगिता परीक्षा के माध्यम से भरा जायेगा;
(ii) ग्राम सेवकएवं लिपिक ग्रेड – II के पदों पर सीधी भर्ती हेतु प्रतियोगी परीक्षा का पाठ्यक्रम राज्य सरकार द्वारा समय – समय पर निर्धारित किया जायेगा;
(iii) राजस्थान अधीनस्थ एवं लिपिकवर्गीय सेवा चयन बोर्ड द्वारा पदों का विज्ञापन ऐसी रीति से, जैसा वे उचित समझें, आवेदन आमंत्रित किया जायेगा और ऐसे प्रारूप में किया जायेगा जैसा कि वे स्वीकृत करें। उम्मीदवारों को आवेदन पत्र में अपनी वरीयता के क्रम में उन सभी 33 जिलों के नाम बताने होंगे, जिनमें वे सेवा करना चाहते हैं;
(iv) इन नियमों के प्रावधानों के अधीन विज्ञापन में अन्य बातों के साथ – साथ निम्नलिखित शामिल होंगे –
(क) ऐसी परीक्षा के परिणाम के रूप में भरे जाने वाले पदों की संख्या, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग, विशेष पिछड़ा वर्ग, महिला, विकलांग व्यक्तियों और खेल व्यक्तियों के उम्मीदवारों के लिए अलग से आरक्षित पदों की संख्या का संकेत, यदि कोई हो, और अनुसूचित क्षेत्र के पद;
(ख) प्रवेश के लिए आवेदन जमा करने की तारीख;
(ग) परीक्षा में प्रवेश के लिए आवश्यक योग्यता और उम्मीदवारों द्वारा अपनी क्षमता स्थापित करने के लिए उठाए जाने वाले कदम;
(घ) विज्ञापन में एक खंड शामिल होगा कि एक उम्मीदवार जो उसे पेश किए जाने वाले पद पर असाइनमेंट स्वीकार करता है, उसे परिवीक्षा की अवधि के दौरान समय – समय पर राज्य सरकार द्वारा निर्धारित दर पर मासिक निश्चित पारिश्रमिक का भुगतान किया जाएगा। और पद का वेतनमान, जैसा कि विज्ञापन में कहीं दिखाया गया है, केवल परिवीक्षा की अवधि के सफलतापूर्वक पूरा होने की तारीख से ही स्वीकृत किया जाएगा; तथा
(v) विज्ञापन के अतिरिक्त, राजस्थान अधीनस्थ एवं लिपिकवर्गीय सेवा चयन बोर्ड इस तरह के अन्य तरीके से जारी कर सकता है, जैसा कि राजस्थान अधीनस्थ और लिपिकवर्गीय सेवा चयन बोर्ड उपयुक्त समझे, उम्मीदवारों के दिशानिर्देशों के लिए ऐसे अन्य निर्देश;
(vi) सेवा में पद पर सीधी भर्ती के लिए अभ्यर्थी राजस्थान अधीनस्थ एवं लिपिकवर्गीय सेवा चयन बोर्ड को ऐसे शुल्क का भुगतान करेगा जो उनके द्वारा समय – समय पर निर्धारित किया जाता है, ऐसी रीति में, जैसा कि उनके द्वारा निर्दिष्ट किया जा सकता है;
(vii) शुल्क की वापसी के लिए किसी भी दावे पर विचार नहीं किया जाएगा और न ही शुल्क को किसी अन्य परीक्षा के लिए रिजर्व में रखा जाएगा, जब तक कि राजस्थान अधीनस्थ एवं लिपिकवर्गीय सेवा चयन बोर्ड द्वारा विज्ञापन को आयुक्त द्वारा मांग वापस लेने के कारण रद्द कर दिया जाता है। पंचायती राज या किसी अन्य कारण से जिस स्थिति में राशि वापस की जाएगी:
बशर्ते कि उम्मीदवार को राजस्थान अधीनस्थ एवं लिपिकवर्गीय सेवा चयन बोर्ड द्वारा वापसी पत्र जारी करने की तिथि से एक महीने की अवधि के बाद शुल्क वापसी के लिए कोई दावा स्वीकार नहीं किया जाएगा;
(viii) जो आवेदन पत्र अपूर्ण पाये जायेंगे या राजस्थान अधीनस्थ एवं लिपिकवर्गीय सेवा चयन बोर्ड द्वारा जारी निर्देशों के अनुसार नहीं भरे गये हैं, उनके द्वारा प्रारम्भिक स्तर पर ही अस्वीकृत कर दिये जायेंगे। राजस्थान सबऑर्बिटल एंड मिनिस्ट्रियल सर्विसेज सेलेक्शन बोर्ड बाकी उम्मीदवारों को परीक्षा में अनंतिम रूप से उपस्थित होने की अनुमति देगा, जिन्हें वे प्रवेश प्रमाण पत्र देना उचित समझते हैं। किसी भी अभ्यर्थी को परीक्षा में तब तक प्रवेश नहीं दिया जाएगा जब तक कि उसके पास परीक्षा में उपस्थित होने से पूर्व राजस्थान अधीनस्थ एवं लिपिकवर्गीय सेवा चयन बोर्ड द्वारा दिए गए उस परीक्षा में प्रवेश का प्रमाण पत्र न हो, यह अभ्यर्थी द्वारा स्वयं सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि वह उम्र के संबंध में शर्तें। शैक्षिक योग्यता, अनुभव यदि कोई हो, जैसा कि नियमों में प्रदान किया गया है। परीक्षा में बैठने की अनुमति दिए जाने से उम्मीदवार पात्रता के लिए अनुमान लगाने का हकदार नहीं होगा। राजस्थान अधीनस्थ एवं लिपिकवर्गीय सेवा चयन बोर्ड लिखित परीक्षा में उत्तीर्ण होने वाले अभ्यर्थियों के ही आवेदन पत्रों की बाद में जांच करेगा।
(ix) किसी परीक्षा में अभ्यर्थी के प्रवेश और पात्रता के संबंध में राजस्थान अधीनस्थ एवं लिपिकवर्गीय सेवा चयन बोर्ड का निर्णय अंतिम होगा।
(x) राजस्थान अधीनस्थ एवं लिपिकवर्गीय सेवा चयन बोर्ड, ग्राम स्तरीय कार्यकर्ताओं के चयन अथवा लिपिक ग्रेड – द्वितीय परीक्षा जैसी भी स्थिति हो, के लिए आयोजित परीक्षा में सफल घोषित अभ्यर्थियों की श्रेणीवार योग्यता सूची तैयार करेगा:
बशर्ते कि राजस्थान अधीनस्थ एवं लिपिकवर्गीय सेवा चयन बोर्ड अंतिम रूप से सूचित रिक्तियों के पचास प्रतिशत की सीमा तक उपयुक्त उम्मीदवारों के नाम आरक्षित सूची में रख सकता है। राजस्थान अधीनस्थ एवं लिपिकवर्गीय सेवा चयन बोर्ड मांग पर योग्यता के क्रम में ऐसे उम्मीदवारों के नाम की सिफारिश आयुक्त, पंचायती राज को कर सकता है, जिस तारीख को राजस्थान अधीनस्थ और मंत्रालयिक सेवा चयन बोर्ड द्वारा मूल सूची अग्रेषित की गई थी।
परन्तु यह और कि राजस्थान अधीनस्थ एवं लिपिकवर्गीय सेवा चयन बोर्ड सरकार द्वारा समय – समय पर निर्धारित आरक्षण के अनुसार अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग, विशेष पिछड़ा वर्ग, महिला, विकलांग व्यक्तियों एवं खिलाड़ियों के अभ्यर्थियों की पृथक सूची तैयार करेगा।
(xi) उम्मीदवारों के नाम उनके द्वारा परीक्षा में प्राप्त कुल अंकों के क्रम में संबंधित सूची में व्यवस्थित किए जाएंगे।
(xii) राजस्थान अधीनस्थ एवं लिपिकवर्गीय सेवा चयन बोर्ड इन सूचियों को आयुक्त, पंचायती राज को भेजेगा जो इसे संबंधित नियुक्ति प्राधिकारी की जानकारी के लिए अधिसूचित करेंगे। आयुक्त की इन सूची में से पंचायती राज आवेदन पत्र में लिखित अभ्यर्थी की वरीयता के अनुसार अभ्यर्थियों को जिला आवंटित करेगा।]
पदोन्नति एवं स्थानान्तरण द्वारा भर्ती की प्रक्रिया
278. चयन के लिए सिद्धान्त – (1) पदोन्नति के लिए, जिले में सेवा कर रहे सेवा के उन सदस्यों में से जो ऐसी पदोन्नति के लिए पात्र होंगे, वरिष्ठता-एवं-योग्यता के आधार पर चयन किया जायेगाः परन्तु यह कि इन नियमों के अन्तर्गत सेवा के संस्थायी (सबस्टान्टिव) सदस्य या पंचायत समिति एवं जिला परिषद चतुर्थ श्रेणी सेवा नियम, 1959 के अधीन सेवा के संस्थायी सदस्य, जो इन नियमों के नियम 266 के अधीन विहित शर्तो के अनुसार सेवा में किसी अन्य उच्चतर पद के लिए अन्यथा रूप से पात्र हैं, उन्हें इस अध्याय में दी गयी प्रक्र्रिया के अनुसार पदोन्नति के रूप में ऐसे पदों पर नियुक्त किया जायेगा। तथापि, ऐसी नियुक्तियां इन नियमों के नियम 246 के 286 के प्रावधानों के अध्यधीन होगी।
(2) पदोन्नति के लिए अभ्यर्थियों का चयन करने में, उनकी निम्न बातों को ध्यान में रखा जायेगा-
(क) शैक्षिक एव तकनीकी अर्हताएं एवं ज्ञान
(ख) चातुर्य, योग्यता एवं बुद्धिमानी
(ग) सत्यनिष्ठा, एवं
(घ) सेवा का पूर्ण अभिलेख
(ड़) विद्यमान पद पर न्यूनतम पांच वर्ष का अनुभव।
(3) ड्राइवरों के 10 प्रतिशत पद तथा कनष्ठि लिपिकों के 15 प्रतिशत पद राज्य सरकार के विद्यमान नियमों के अनुसार या समय-समय
पर संशोधित विद्यमान नियमों के अनुसार चतुर्थ श्रेणी सेवा के सदस्यों में से पदोन्नति द्वारा भरे जायेंगे:
बशर्ते कि उप.नियम (2) में निर्धारित शर्तों को पूरा किया जाता है।
*[(4) किसी भी व्यक्ति को पदोन्नति की तारीख से 5 भर्ती वर्षों के लिए पदोन्नति के लिए विचार नहीं किया जाएगा, यदि उसके 1.6.2002 को या उसके बाद दो से अधिक बच्चे हैं;]
बशर्ते कि दो से अधिक बच्चे वाले व्यक्ति को तब तक पदोन्नति के लिए अयोग्य नहीं माना जाएगा जब तक कि 1.6.2002 को उसके बच्चों की संख्या में वृद्धि नहीं होती है;
परन्तु यह और कि जहाँ किसी सरकारी सेवक के पूर्व प्रसव से केवल एक ही सन्तान हो परन्तु बाद के एकल प्रसव से एक से अधिक सन्तानों का जन्म हो, वहाँ बालकों की कुल संख्या की गणना करते समय इस प्रकार उत्पन्न सन्तानों को एक इकाई माना जायेगा।]
279. चयन के लिए प्रक्रिया – (1) जब भी जिले में सेवा की विभिन्न ग्रेडों एवं श्रेणियों में रिक्त पदों को पदोन्न्ति के द्वारा भरा जाना हो तो समिति पंचायत समिति एवं जिला परिषद से सिफारिशें आमन्त्रित करेगी। पदोन्नति के लिए सिफारिशों को तथा सिफारिश किए गए व्यक्तियों के वार्षिक गोपनीय प्रतिवेदनों एवं अन्य सेवा अभिलेखों को प्राप्त करने पर उन पर विचार किया जायेगा, तथा जिन लोगों को अधिक्रमित (सुपरसीड) किए गया है, उन पर भी विचार किया जायेगा तथा इसके बाद वरिष्ठता के क्रम में उस ग्रेड या श्रेणी में पदोन्न्ति के लिए पात्र व्यक्तियों की एक सूची तैयार की जायेगी तथा साथ में व्यक्तियों को यदि कोई हों, अधिक्रमित किए जाने के कारणों का उल्लेख किया जायेगा।
(2) पदोन्नति के लिए पात्रता की सीमा वरिष्ठता-एवं-योग्यता के आधार पर भरे जाने वाले रिक्त पदों की संख्या का पांच गुना होगा।
280. आवंटन एवं नियुक्ति – (1) पंचायत समितियों या जिला परिषद से अधियाचना प्राप्त किए जाने पर, समिति उस सूची में से व्यक्तियों को उसी क्रम में अलाट करेगी जिस क्रम में उनके नाम उस सूची में दिए गए हैं।
(2) पंचायत समितियां या जिला परिषद समिति से आवंटन प्राप्त हो जाने पर, इस प्रकार आवंटित किए गए व्यक्तियों को उन पदों पर नियुक्त करेगी जिनके लिए समिति द्वारा उन्हें चयनित किया गया है।
281. सेवा में पदों पर राज्य सरकार के कर्मचारियों का स्थानान्तरण – पंचायत समिति या जिला परिषद से इस आशय की अधियाचना प्राप्त होने पर कि पदोन्नति द्वारा या अन्य पंचायत समितियों या जिला परिषद से स्थानान्तरण द्वारा सेवा में पद पर नियुक्ति के लिए सेवा का कोई सदस्य उपलब्ध नहीं है, तथा उस पद को किसी एसे व्यक्ति के स्थानान्तरण द्वारा भरा जाना है जो सेवा में उस पद के सामान्य राज्य सेवा में किसी पद को धारण कर रहा हो, तो मुख्य कार्यकारी अधिकारी उस राज्य कर्मचारी की सहमति प्राप्त करके एवं इस सम्बन्ध में सम्बन्धित विभागाध्यक्ष की अनुमति लेकर, उस व्यक्ति का स्थानान्तरण करने के लिए समिति के पास अपनी सिफारिशों को भेजेगा। इसके बाद समिति ऐसे व्यक्ति को सम्बन्धित पंचायत समिति या जिला परिषद को अलाट करेगी। पंचायत समिति या जिला परिषद
जैसी भी स्थिति हो, तब इस प्रकार अलाट किए गए व्यक्ति को इन नियमों में दी गयी शर्ता के अनुसार पद पर नियुक्त करेगी।
*[282. सरप्लस (बेशी) घोषित किए गए सरकारी कर्मचारियों की सेवा में स्थानान्तरण द्वारा भर्ती – (1) जब भी सरकार के अधीन पदों को कम करने/समाप्त करने के कारण किसी सरकारी कर्मचारी को सरप्लस किया जताा है या उसको सरप्लस करने की सम्भावना हो, तो वह इस नियम में एतद्पश्चत् दिए गए तरीके से, ऐसे किसी पद पर, उसे उसकी सहमति से नियुक्त किया जायेगा जो राज्य सरकार द्वारा उस सरकारी कर्मचारी द्वारा उसका स्थानान्तरण किए जाने से पूर्व धारित पद के समान होने के रूप में सरकार द्वारा घोषित किया गया है।
(2) सरकार के अधीन सरलप्स किए गए इन व्यक्तियों की एक सूची, निदेशक, ग्रामीण विकास एवं पंचायती राज को, जिसे इसमें आगे इस भाग में निदेशक कहा गया है, भेजी जायेगी जो उस सूची में, प्रत्येक जिले के लिए सेवा में पदों के लिए व्यक्तियों का चयन करेगा तथा इस प्रकार चयन किए गए व्यक्तियों को उस समिति से सम्बन्धित पंचायत समितियों एवं जिला परिषद में विद्यमान रिक्त पदों की संख्या के बराबर संस्था में समिति को आवंटित करेगा। निदेशक को भेजी गयी सूची की एक प्रति साथ-साथ सम्बन्धित विभागाध्यक्ष को भी भेजी जायेगी। ]
283. पदों को कम करने / समाप्त करने के कारण सरप्लस किए गए सेवा के सदस्यों का अन्तर्व्यन – (1) सेवा में कतिपय पदों का कम करने/समाप्त कर दिये जाने के कारण, सरप्लस किए गए व्यक्तियों की एक सूची पंचायत समितियों या जिला परिषद द्वारा सरकार को भेजी जायेगी तथा साथ ही उसकी एक प्रति मुख्य कार्यकारी अधिकारियों को भेजी जायेगी जिसके कि आधार पर सरकार सेवा में इस प्रकार सरप्लस किए गए व्यक्तियों की जिलेवार एक सूची तैयार करेगी।
(2) सरप्लस कर्मचारी, जिन्हें जिले के भीतर अन्तर्लायित (एब्जार्ब) किया जा सकता है, सेवा में उस समय विद्यमान रिक्त पदों की संख्या के अनुसार या समान पदों या कमी करने के अन्तर्गत लाए गए सेवा में पदों के समकक्ष होने के रूप में सरकार द्वारा घोषित किए गए पदों पर समिति द्वारा नियुक्त किया जायेगा।
(3) समिति तद्नुसार उन व्यक्तियों को सम्बन्धित पंचायत समिति या जिला परिषद को अलाट करेगी जो इस प्रकार अलाट किये गए व्यक्तियों को समान पदों पर या सेवा में सम्मानित किए गए पदों पर ऐसी शर्तो पर जो उन सम्मानित पदों (इन्वेटेड पोस्ट्स) पर लागू होंगी, करेगी।
(4) जिन व्यक्तियों को जिले के बाहर अन्तर्लपित (एब्जार्व) किए जाने का प्रस्ताव किया गया है, उनकी एक सूची निेदेशक द्वारा सम्बन्धित मुख्य कार्यकारी अधिकारी को भेजी जायेगी जो उन्हें समान या समानित दिए गए पदों पर अन्तर्लपित (एब्जार्व) करेगा।
अति आवश्यक अस्थायी नियुक्ति
284. अति आवश्यक अस्थायी नियुक्ति द्वारा रिक्त पदों को भरना – (1) यदि रिक्त पद को भरने के लिए, किसी समय, कोई चयन नहीं किया गया हो या समिति द्वारा चयनित कोई व्यक्ति उपलब्ध न हो, तो नियुक्ति प्राधिकारी द्वारा अधिकतम छह माह की अवधि के लिए अत्यावष्यक व अस्थायी आधार पर नियुक्ति दी जा सकेगी, परन्तु यह कि पंचायतां के मामले में जिला स्थापना समिति की पूर्व अनुमति से तथा पंचायत समिति/जिला परिषद द्वारा तैयार राज्य सरकार की अनुमति से केवल संविदा के आधार पर ऐसे व्यक्ति की नियुक्ति की जायेगी।
(2) यदि रिक्त पद को अस्थायी रूप से सीधी भर्ती द्वारा भरे जाने के लिए प्रस्ताव किया गया हो तो निकटतम रोजगार कार्यालय को इस प्रकार रिक्त पदों की संख्या में कम से कम पांच गुने उन व्यक्तियों के नाम की एक पेनल (सूची) भेजने के लिए कहा जायेगा जो न्यूनतम अपेक्षित अर्हता रखते हों। नियुक्ति प्राधिकारी तब पद के लिए उपयुक्त व्यक्तियों को, अभ्यर्थियों की उस सूची में नियुक्त करेगा।
(3) यदि रिक्त पद को अस्थायी रूप से पदोन्नति द्वारा भरने का प्रस्ताव किया गया हो तो अगली निम्न ग्रेड में वरिष्ठत कर्मचारी को नियुक्ति प्राधिकारी इस प्रकार नियुक्त कर सकेगा: परन्तु यह कि यदि वरिष्ठतम कर्मचारी का रिकार्ड सन्तोषप्रद नहीं है, तो उसके ठीक नीचे के व्यक्ति को इस प्रकार नियुक्त किया जायेगा।
(4) तथापि, ऐसी अस्थायी नियुक्ति की अवधि, केवल समिति की पूर्व सहमति से ही, छह माह के बाद बढ़ाई जायेगी।
(5) इस नियम के तहत की गई अस्थायी नियुक्ति समिति द्वारा चयनित उम्मीदवार के उपलब्ध होते ही समाप्त हो जाएगी। इस प्रकार उपलब्ध कराए गए और पंचायत समिति/जिला परिषद के अधिकार में रखे गए उम्मीदवारों को नियुक्ति प्राधिकारी द्वारा उन रिक्तियों पर तत्काल नियुक्त किया जाएगा जिनके विरुद्ध अस्थायी नियुक्तियां की गई हैं और ड्यूटी के लिए उनकी रिपोर्ट करने पर, अस्थायी नियुक्तियों वाले व्यक्तियों को अपना कार्यालय खाली कर दिया है और उसके बाद किसी भी वेतन के हकदार नहीं होंगे।
285. वरिष्ठता – सेवा के निम्नतम ग्रेड या श्रेणी में वरिष्ठता स्थायीकरण की तिथि से निर्धारित की जायेगी तथा अन्य उच्चतर पदों पर पदोन्नति द्वारा भरे जाने पर नियमित चयन की तिथि से निर्धारित की जायेगी:
परन्तु: : –
(i) कि यदि दो या दो से अधिक व्यक्तियों को एक ही क्रम या एक ही तिथि के आदेश के अधीन एक ही श्रेणी या श्रेणी के पदों पर नियुक्त किया जाता है तो उनकी वरिष्ठता उसी क्रम में होगी जिस क्रम में उनके नाम समिति द्वारा तैयार की गई सूची में आये हों।
(ii) स्थानान्तरण द्वारा नियुक्त व्यक्तियों की वरिष्ठता संस्थायी रूप से नियुक्त व्यक्तियों से नीचे नियत की जायेगी और वह सबसे कनिष्ठ होगा यद्यपि उसका वेतन वैयक्तिक वेतन के रूप में सुरक्षित रहेगा।
(iii) किसी विशेष वर्ष में पदोन्नति द्वारा नियुक्त व्यक्ति सीधी भर्ती द्वारा नियुक्त व्यक्तियों से वरिष्ठ होंगे।
*[286. परिवीक्षा की कालावधि – (1) स्पष्ट रिक्ति पर सीधी भर्ती द्वारा सेवा में प्रवेश करने वाले व्यक्ति को दो वर्ष की कालावधि के लिए परिवीक्षाधीन प्रशिक्षणार्थी के रूप में पदस्थापित किया जायेगा :
परन्तु ऐसी नियुक्ति के पश्चातृ की ऐसी किसी भी कालावधि को, जिसके दौरान कोई व्यक्ति तत्समान या उच्चतर पद पर प्रतिनियुक्ति पर रहा है, प्रतिनियुक्ति की कालावधि में गिना जायेगा।
(2) उपनियम (1) में विनिर्दिष्ट परिवीक्षा की कालावधि के दौरान प्रत्येक परिवीक्षाधीन प्रशिक्षणार्थी से ऐसी विभागीय परीक्षा उत्तीर्ण करने और ऐसा प्रशिक्षण पूरा करने की अपेक्षा की जायेगी जो राज्य सरकार, समय-समय पर विनिर्दिष्ट करें।]
**[(3 )। ***]
**[राजस्थान पंचायती राज (द्वितीय संशोधन) नियम, 2012 द्वारा जोड़ गया। संख्या एफ. 4 (7) अगे / रूल्स/ लीगल / पीआर/2012/2049 दिनांक 17-12-2012 एवं राजस्थान राजपत्र भाग 4 (ग) दिनांक 18-12-2012 को प्रकाशित एवं प्रभावी तथा एफ. 4 (7) अमे/ लीगल / पी.आर./2014/397 दिनांक 8-6-2016 द्वारा विलोपित]
*[286क परिवीक्षा के दौरान वेतन-सीधी भर्ती द्वारा सेवा में नियुक्त किसी परिवीक्षाधीन प्रशिक्षणार्थी को परिवीक्षा
कालावधि के दौरान ऐसी दरों से मासिक नियत पारिश्रमिक संदत्त किया जायेगा जो राज्य सरकार द्वारा समय-समय पर नियत किया जाये।]
*[संख्या एफ. 4 (33) पी. आर. डी. / विधि/पी. राज नियम / एमेण्ड / एल ऐजू/2006/4365 दिनांक 22-9-2006 द्वारा नियम 286 एवं नियम 286क अन्तःस्थापित किया गया। राजस्थान राजपत्र भाग 4(ग) दिनांक 10-10-2006 को प्रकाशित एवं प्रभावी।
287. परिवीक्षा के दौरान असन्तोषजनक प्रगति – (1)यदि जिला परिषद या पंचायत समिति जैसा भी को यह प्रतीत हो कि सेवा के किसी सदस्य ने अपने अवसरों का पर्याप्त उपयोग नहीं किया है या कि मामला हो, वह सन्तोष प्रदान करने में असफल हुआ है तो पंचायत समिति या जिला परिषद् उसे सेवा से हटा सकेगी या यदि उसका कोई अधिष्ठायी पद है तो उसे उस पद पर प्रतिवर्तित कर सकेगी: परन्तु पंचायत समिति / जिला परिषद् कुल एक वर्ष से अनधिक कालावधि तक सेवा के किसी भी सदस्य का परिवीक्षा काल बढ़ा सकेगी।
(2) उपनियम (1) के अधीन परिवीक्षाकाल के दौरान या अन्त में सेवा से प्रतिवर्तित या हटाया गया कोई परिवीक्षाधीन व्यक्ति किसी भी प्रतिकर का हकदार नहीं होगा।
288. स्थायीकरण – परिवीक्षाधीन व्यक्ति को उसके परिवीक्षाकाल के अन्त में उसकी नियुक्ति में स्थायी किया जायेगा यदि पंचायत समिति या जिला परिषद् को यह समाधान हो जाये कि उसकी सत्यनिष्ठा प्रश्नास्पद नहीं है, उसका कार्य सन्तोषप्रद है और वह अन्यथा स्थायीकरण के लिए योग्य है।
289. जिले के भीतर स्थानान्तरण – (1) जिले के भीतर स्थानान्तरण के इच्छुक अथवा स्थानान्तरण के इच्छुक कर्मचारी का नाम पंचायत समिति द्वारा *[सम्बन्धित जिला परिषद की प्रशासन एवं स्थापना समिति] को सूचित किया जायेगा।
(2) ऐसे कर्मचारी की पदस्थापना संबंधित पंचायत समिति या जिला परिषद द्वारा *[जिला परिषद की प्रशासन एवं स्थापना समिति] की सिफारिश पर स्थानान्तरण द्वारा की जायेगी।
(3) राज्य सरकार समय – समय पर तबादलों के संबंध में आदेश जारी कर सकती है। यदि *[जिला परिषद की प्रशासन एवं स्थापना समिति] पंचायत समिति की स्थायी समिति सहमत नहीं होती है, तो मुख्य कार्यकारी अधिकारी/विकास अधिकारी, जैसा भी मामला हो, राज्य सरकार के आदेशों का पालन करेगा।
(4) कर्मचारियों के स्थानान्तरण पर उनका गोपनीय नामावली एवं सेवा अभिलेख बिना किसी परिहार्य विलम्ब के उस पंचायत समिति/ जिला परिषद् को प्रेषित किया जायेगा, जिसे उनकी सेवाएँ स्थानान्तरित की गयी हैं।
290. जिले के बाहर स्थानांतरण – (1) स्थानान्तरण के इच्छुक अथवा एक जिले से दूसरे जिले में स्थानान्तरण के इच्छुक कर्मचारी का नाम यथास्थिति पंचायत समिति या जिला परिषद द्वारा निदेशक को सूचित किया जायेगा।
(2) ऐसे कर्मचारी की पदस्थापना संबंधित पंचायत समिति या जिला परिषद् द्वारा उस समय विद्यमान रिक्त पदों के विरुद्ध राज्य सरकार की सिफारिश पर स्थानान्तरण द्वारा की जायेगी। राज्य सरकार सेवा के किसी भी सदस्य को *[किसी भी स्थान से पदस्थापन के किसी अन्य स्थान पर चाहे एक ही पंचायत समिति के भीतर या] एक पंचायत समिति से उसी जिले के भीतर या उसके बाहर दूसरी पंचायत समिति में स्थानांतरित कर सकती है, एक जिला परिषद से एक अन्य जिला परिषद, या पंचायत समिति से जिला परिषद या एक जिला परिषद से पंचायत समिति और इन नियमों के तहत किए गए स्थानांतरण के किसी भी आदेश के संचालन को रोक सकता है, या रद्द कर सकता है। संबंधित मुख्य कार्यकारी अधिकारी या विकास अधिकारी ऐसे आदेशों का पालन करेंगे *[:]
*[परन्तु अधिनियम की धारा 89 की उप – धारा (2) के खंड (i) और (iv) में निर्दिष्ट पदों के कर्मचारियों को उस जिले से बाहर स्थानांतरित नहीं किया जाएगा जिसमें उन्हें नियुक्त किया गया था।]
(3) किसी कर्मचारी के स्थानान्तरण पर उसका गोपनीय नामावली एवं सेवा अभिलेख बिना किसी परिहार्य विलम्ब के उस पंचायत समिति/जिला परिषद को प्रेषित किया जायेगा, जिसे उसकी सेवाएँ स्थानान्तरित की गयी हैं।
291. स्थानान्तरण पर वरिष्ठता – धारा 89 की उपधारा (8 – क) के अधीन राज्य सरकार द्वारा जिले के बाहर स्थानान्तरित कर्मचारी की वरिष्ठता उस जिले की समिति द्वारा अवधारित की जायेगी जिसमें उसे स्थानान्तरित किया गया है: –
(i) यदि कर्मचारी के अनुरोध पर स्थानांतरण किया जाता है, तो उसकी वरिष्ठता उस संवर्ग की वरिष्ठता सूची के नीचे तय की जाएगी जिससे वह संबंधित है; तथा
(ii) यदि स्थानांतरण प्रशासनिक या अन्य कारणों से किया जाता है, तो उसकी वरिष्ठता सदृश पद पर उसकी निरंतर मौलिक सेवा के आधार पर तय की जाएगी।
वेतन
292. वेतनमान और मंहगाई भत्ता – सेवा के किसी सदस्य को अनुमन्य वेतनमान और मंहगाई भत्ता ऐसा होगा जैसा कि सरकार द्वारा समय – समय पर सरकारी सेवकों की तदनुरूपी श्रेणी या श्रेणी के संबंध में या किसी विशेष श्रेणी के पद के संबंध में सरकार द्वारा नियत किया जाए।
अन्य प्रावधान
293. वेतन, अवकाश, भत्ता, पेंशन आदि के विनियम – इन नियमों में यथा उपबंधित को छोड़कर, वेतन, भत्ते, वेतन वृद्धि, सामान्य भविष्य निधि, राज्य बीमा कटौतियां, पेंशन, ग्रेच्युटी, स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति, अनिवार्य सेवानिवृत्ति आदि, अवकाश, प्रतिनियुक्ति और सेवा के सदस्यों की सेवा की अन्य शर्ते समय – समय पर संशोधित राजस्थान सेवा नियम, 1951 और राजस्थान यात्रा भत्ता नियमावली द्वारा आवश्यक परिवर्तनों सहित विनियमित की जाएंगी।
*[293अ. हैंडपंप मिस्त्रियों को मकान किराया भत्ता, यात्रा भत्ता, दैनिक भत्ता, अवकाश एवं अन्य लाभ – इन नियमों में अन्तर्विष्ट किसी बात के होते हुए भी हैण्ड पम्प मिस्त्रियों को समय – समय पर विशिष्ट शासनादेशों के अनुसार मकान किराया भत्ता, यात्रा भत्ता, दैनिक भत्ता, अवकाश (सभी प्रकार के), अवकाश की स्थिति एवं अतिरिक्त सुविधाएँ अनुज्ञेय होंगी।]
294. पेंशन का भुगतान – (1) सेवा का सदस्य राज्य की संचित निधि में से सरकार द्वारा पेंशन भुगतान का हकदार होगा तथा प्रत्येक पंचायत समिति एवं जिला परिषद् उस खाते में सरकार को पेंशन अंशदान करेगी तथा भुगतान करेगी। राजस्थान सेवा नियमावली के परिशिष्ट – V में निर्धारित दरें।
(2) संबंधित पंचायत समिति/जिला परिषद् से पेंशन के कागजात प्राप्त होने पर निदेशक स्थानीय निधि लेखापरीक्षा द्वारा पेंशन भुगतान आदेश जारी किया जायेगा। भुगतान पेंशनभोगी के अनुरोध के अनुसार निदेशक स्थानीय निधि लेखापरीक्षा द्वारा प्राधिकृत कोषागार/ बैंक से आहरित किया जा सकता है।
(3) मुख्य कार्यपालन अधिकारी जिला परिषद राजस्थान सेवा नियमावली के प्रावधानों के अनुसार पेंशनभोगी को अनंतिम पेंशन भुगतान आदेश जारी करने के लिए सक्षम होगा।
295. प्रशिक्षण के दौरान असंतोषजनक प्रगति – यदि सेवा का कोई सदस्य पंचायत समिति/जिला परिषद या राज्य सरकार द्वारा मनोनीत किये जाने के बाद प्रशिक्षण लेने में विफल रहता है या उपरोक्त प्रशिक्षण में शामिल होने के बाद संतोषजनक ढंग से अध्ययन करने में विफल रहता है या प्रशिक्षण पूरा करने में विफल रहता है या परीक्षा में उपस्थित होने और पास करने में विफल रहता है। बिना उचित एवं उचित कारण के ऐसे प्रशिक्षण की निर्धारित परीक्षाओं के लिए वह ऐसे प्रशिक्षण के दौरान प्राप्त वृत्तिका की राशि, यदि कोई हो, वापस करने के लिए उत्तरदायी होगा और अनुशासनात्मक कार्रवाई के लिए भी उत्तरदायी होगा।
*[296. नियमों में ढील देने की शक्ति – संबंधित पंचायत समितियों/जिला परिषदों द्वारा एक संदर्भ पर, एक असाधारण मामले में जहां प्रशासनिक विभाग संतुष्ट है कि आयु से संबंधित नियमों का संचालन या भर्ती के लिए अनुभव की आवश्यकता के संबंध में, यदि कोई हो, किसी विशेष मामले में अनुचित कठिनाई का कारण बनता है जहां सरकार की यह राय है कि किसी व्यक्ति की आयु या अनुभव के संबंध में इन नियमों के किसी भी प्रावधान में छूट देना आवश्यक या समीचीन है, तो वह कार्मिक और प्रशासनिक सुधार विभाग की सहमति से इन नियमों में छूट दे सकती है। इन नियमों के प्रासंगिक प्रावधान उस हद तक और ऐसी शर्तों के अधीन हैं जो मामले को न्यायोचित और न्यायसंगत तरीके से निपटाने के लिए आवश्यक समझें, बशर्ते कि ऐसी छूट इन नियमों में पहले से मौजूद प्रावधानों से कम अनुकूल नहीं होगी।]
अनुशासनिक कार्यवाही एवं शास्तियाँ
297.आचरण नियम – समय-समय पर यथा संषोधित राजस्थान सिविल सेवा (आचरण) नियम, 1971 में अन्तर्विष्ट सभी उपबंध पंचयत समिति और जिला परिषद् सेवा के कर्मचारियों पर यथावश्यक परिवर्तन सहित लागू होंगे।
298.निलम्बन – (1) नियुक्ति प्राधिकारी या कोई भी प्राधिकारी, जिसका वह अधीनस्थ है, या राज्य सरकार द्वारा इस निमित्त सशक्त किया गया कोई भी अन्य प्राधिकारी किसी पंचायत समिति या जिला परिषद् के किसी भी अधिकारी या कर्मचारी को निलम्बनाधीन रख सकेगा।
(2) ऐसा आदेश करते समय राजस्थान सिविल सेवा (वर्गीकरण, नियंत्रण और अपील) नियम, 1958 के नियम 13 में अन्तर्विष्ट उपबन्धों और राज्य सरकार द्वारा समय-समय पर जारी निर्देशों का अनुसरण किया जायेगा।
299.शास्तियॉं – (1) अधिनियम की धारा 91 की उप-धारा (2) में उपबंधितानुसार विकास अधिकारी/मुख्य कार्यपालक अधिकारी द्वारा चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों पर निर्धारित सभी या कोई दण्ड और अधिनियम की धारा 89 के अधीन गठित सेवा में संवर्गीकृत पदों पर नियुक्ति धारक सभी व्यक्तियों पर छोटी शास्तियां अधिरोपित की जा सकेंगी।
(2) धारा 91 की उप-धारा (3) में उपबंधितानुसार बडी़ शास्तियां केवल जिला स्थापना समिति द्वारा ही अधिरोपित की जायेंगी।
(3) राजस्थान सिविल सेवा (वर्गीकरण, नियंत्रण और अपील) नियम, 1958 के नियम 14 के अन्तर्विष्ट उपबंध इस सम्बन्ध में यथावश्यक परिवर्तन सहित लागू होंगे।
300.शास्तियां अघिरोपित करने के लिए प्रक्रिया – इस सम्बन्ध में राजस्थान सिविल सेवा (वर्गीकरण, नियंत्रण और अपील) नियम, 1958 के नियम, 16,17,18 और 19 में अधिकथित जांच की प्रक्रिया का अनुसरण किया जायेगा।
301.अपीलें – (1) निलम्बन या दण्ड के आदेश के विरूद्ध अपील, अधिनियम की धारा 91 की उप-धारा (4) और (5) के उपबंधानुसार की जा सकेगी।
(2) समय-समय पर यथा संशोधित राजस्थान सिविल सेवा (वर्गीकरण, नियंत्रण और अपील) नियम, 1958 के नियम, 22,23,24,25,26,27,28,29,30,31 में अन्तर्विष्ट सभी उपबंध यथावश्यक परिवर्तन सहित लागू होंगे।
302.पुनर्विवलोकन एवं पुनरीक्षण – पुनर्विलोकन और पुनरीक्षण की शक्तियां अधिनियम की धारा 97 के अनुसार राज्य सरकार को होंगी। अध्याय 14
(3) कार्यालय का अध्यक्ष पंचो/सदस्यों एवं पंचायती राज संस्था के स्टाफ के लिए तथा कार्यालय में उपस्थित होने वाली जनता के लिए बैठने हंतु उपयुक्त व्यवस्था करेगा।
(4) कार्यालय रविवारों एवं सार्वजनिक छुटटियों के दिनों को छोडकर 10.00 बजे प्रातः से 5.00 सायं तक सामान्य रूप से खुला रहेगा।
(5) कार्यालय का अध्यक्ष लेखन सामग्री, फर्नीचर, प्रपत्र एवं रजिस्टरों आदि अपेक्षित वस्तुओं के लिए व्यवस्था करेगा तथा उसकी अभिरक्षा एवं सुरक्षा के लिए आवश्यक प्रबन्ध करेगा।
317. मुहर – (1) प्रत्येक पंचायती राज संस्था की एक मुहर होगी जिस पर उसका नाम खुदा होगा तथा वह उसका उपयोग पत्राचार, उसके द्वारा जारी किए गए आदेशों एवं प्रतियों पर करेगी।
(2) वह मुहर साधारण रूप से कार्यालय के अध्यक्ष की अभिरक्षा में रहेगी।
318. पत्रावलियॉ एवं रजिस्टर – (1) समस्त पत्राचार, फार्म एवं अन्य कागजातों को विषयवार खोलकर अलग – अलग पत्रावलियों में उचित ढंग से रखा जायेगा।
(2) समस्त पत्रावलियां एवं रजिस्टर कार्यालय में रखे जायंेगे तथा किसी सदस्य या स्टाफ द्वारा पंचायती राज संस्था के कार्यालय के अलावा अन्य स्थान पर नहीं ले जाऐ जाएंगे तथा समस्त पत्रावलियां जिन पर कार्यवाही पूर्ण हो गई है तथा उन पर आगे कोई कार्यवाही नहीं की जाती हैं, उन्हें बन्द किया जायेगा तथा अभिलेख कक्ष में भेज दिया जायेगा।
319. पत्राचार की चैनल – जब तक अधिनियम मं या तदधीन निर्मित किसी नियम या उप – विधि मे या राज्य सरकार के किसी निर्देश में स्पष्ट रूप से अन्यथा अभिव्यक्त नहीं किया जाये, पंचायत, पंचायत समिति के साथ पत्र व्यवहार करेगी, पंचायत समिति जिला परिषद के साथ तथा जिला परिषद राज्य सरकार के साथ पत्र – व्यवहार करेगी।
320. अधिकारी प्रभारी पंचायती राज – (1) मुख्य कार्यकारी अधिकारी जिले में सभी पंचायती राज संस्थाओं का सामान्य अधीक्षण, मार्ग निर्देशन एंव निदेशन हेतु जिला स्तर पर अधिकारी, प्रभारी पंचायती राज के रूप में कार्य करेगा।
(2) निदेशक, ग्रामीण विकास एवं पंचायती राज, राज्य स्तर पर पंचायती राज अधिनियम 1994 एवं तदधीन बनाए गए नियमों या जारी की गयी अधिसूचनाओं के प्रावधानों के प्रवर्तन के लिए पंचायती राज संस्थाओं के अधिकारी प्रभारी के रूप में कार्य करेगा।
अभिलेखों का निरीक्षण एवं प्रतियां देना
321.निरीक्षण हेतु आवेदन पत्र – (1) कोई भी व्यक्ति जो किसी पंचायती राज संस्था के किसी रजिस्टर, पुस्तिका, पत्रावली या अभिलेख का निरीक्षण करना चाहता है लिखित में एक आवेदन पत्र देगा जिसमें वह निरीक्षण किए जाने वाली प्रविष्टियां या कागजों का, जैसी भी स्थिति हो, उल्लेख करेगा तथा उस अभिलेख की तलाश करने के लिए 5 रुपये के शुल्क का अग्रिम में भुगतान करेगा।
(2) यदि आवेदन पत्र तुरन्त निरीक्षण करने के लिए दिया गया हो, तो दुगुना शुल्क 10 रुपये का भुगतान किया जायेगा।
322. अभिलेख आदि की तलाशी एवं निरीक्षण के लिए आदेश – नियम 321 के अधीन आवेदन पत्र के प्राप्त होने पर एवं उसमें प्रवाहित शुल्क के भुगतान करने पर, कार्यालय का अध्यक्ष सुसंगत रजिस्टर, पुस्तिका, पत्रावली या अभिलेख की तलाश कराएगा तथा उसके समक्ष रखाएगा तथा जिन प्रविष्टयों या कागजों के निरीक्षण के लिए मॉंग की गई है, उन्हें जांचेगा तथा यदि वह जनहित के विपरीत या आपत्तिजनक नहीं विचारता हो या यदि ऐसे निरीक्षण का निषेध नहीं किया गया हो, तो उनका निरीक्षण करने की अनुमति देते हुए आदेश देगा।
323. निर्माण काार्यों पर व्यय के सम्बन्ध में सूचना – (1) प्रत्येक पंचायत/पंचायत समिति उसके मुख्य कार्यालय में किसी एक सहज दृष्य प्रमुख स्थान पर एक सूचना पट्ट पर, स्वीकृत किए गए निर्माण कार्योका तथा गत पांच वर्षो में निष्पादित कराए गए कार्यो का उसके अनुमानों एवं वास्तविक रूप में खर्च की गई राशि का ब्यौरा प्रदर्शित करेगी।
(2) सम्बन्धित पंचायत/पंचायत समिति मौके पर चल रहे कार्यो को भी, कार्य के नाम, खर्च की गई राशि एवं परू ा किए जाने की तारीख आदि का जनता की सामान्य सूचना के लिए उल्लेख करते हुए नोटिस बोर्ड पर प्रदर्शित करेगी।
(3) कोई भी व्यक्ति या स्वयंसेवी संगठन 5 रुपये जमा कर किसी ऐसे कार्य से संबंधित अभिलेखों का निरीक्षण करने के लिए आवेदन करेगा तथा ऐसे मस्टररोल्स एवं वाऊचरों को उसे दिखाया जायेगा। उसे ऐसी सूचना के ब्यौरों को किसी एक कागज के टुकड़े पर पृथक़ से लिखने की अनुमति दी जायेगी तथा उसके लिए उसे आवश्यकसुविधा प्रदान कराई जायेगी।
(4) पैन, स्याही, फाउण्टेन पैन एवं ऐसी अन्य एसी चीजों का उपयोग निरीक्षण के दौरान नहीं किया जायेगा, किन्तु पैंसिल से नोट लिखे जा सकेंगे तथा निरीक्षण कर्ता व्यक्ति अभिलेख को विकृत नहीं करेगा अथवा उसे विभाजित नहीं करेगा।
324. प्रतियॉं देना – (1) यदि नियम 322 के अन्तर्गत तलाश किए जाने पर, सुसंगत पंजिका, पुस्तिका, पत्रावली या अभिलेख पाया जाता है, तथा कार्यालय अध्यक्ष द्वारा उसकी प्रतियॉं या उससे उद्धरण देने का निर्णय किया जाताहै, तो आवेदक प्रत्येक 200 शब्दों या उसके भाग के लिए नकल शुल्क 2 रुपये की दर से जमा कराएगा तथा ऐसे शुल्क की राशि की गणना करने के लिए जहॉं अंकों को टंकित किया जाता है, वहॉं पांच अंकों को एक शब्द के बराबर समझा जायेगा।
(2) अत्यावष्यक रूप से शीघ्र प्राप्त करने के लिए, प्रतिलिपि शुल्क उप – नियम (1) में विनिर्दिष्ट दर से दुगुनी दर पर वसूल किया जाना चाहिए।
325. प्रतिलिपियॉं तैयार करना एवं जारी करना – प्रतिलिपि शुल्क प्राप्त हो जाने पर, प्रतिलिपियों या उद्धरणों को तैयार कराया जायेगा तथा जॉंच के बाद कार्यालय अध्यक्ष या उसके द्वारा प्राधिकृत किसी कार्यालय के अधिकारी द्वारा उसे सही रूप में होने को प्रमाणित किया जायेगा तथा यदि आवेदक व्यक्तिषः उसे प्राप्त करने के लिए उपस्थिति होता है या उसे प्राप्त करने के लिए किसी को प्राधिकृत करता है तो उसे दे दी जायेगी या यदि आवेदक ने उस प्रयोजन हेतु डाक टिकट जमा करा दिये हैं तो डाक द्वारा उसे भेज दी जायेगी।
326. प्रतियॉं देने के लिए समय – (1) प्रतियॉं साधारणतया 4 दिन के भीतर जारी की जायेंगी।
(2) अत्यावष्यक प्रतियॉं 24 घंटों के भीतर दे दी जायेंगी।
327. रद्द करने के कारण – (1) जब निरीक्षण प्रति का दिया जाना अनुज्ञात किया जावे तो उसके लिए दिये गये आवेदन – पत्र को उसके कारणों का संक्षेप में उल्लेख करते हुए एक पृष्ठांकन द्वारा रद्द कर दिया जाएगा तथा आवेदक को तद्नुसार सूचित किया जायेगा। (2) शासकीय पत्राचार, कागजों की या किसी ऐसे दस्तावेज की जो स्वयं में एक प्रति है, कोइ्र प्रतिलिपि नहीं दी जायेगी।
328. निरीक्षण करने/प्रतियॉं देने के लिए आवेदन – पत्रों की पंजिका – (1) प्रत्येक पंचायती राज संस्था के कार्यालय में ऐसे आवेदन पत्रों को दर्ज करने के लिए प्रपत्र सं. 44 में एक पंजिका तैयार की जायेगी जिसमें आवेदक/स्वयंसेवी संस्था का नाम, आवेदन करने की तारीख तथा जमा कराई गई राशि का उल्लेख किया जायेगा।
(2) सभी निरीक्षणकर्ता अधिकारी उस पंजिका का अपने निरीक्षण करने के समय अवलोकन करेंगे।
(3) मुख्य कार्यकारी अधिकारी नियम 321 से 325 तक के नियमों की पालना कराये जाने कासुनिश्चियन करेगा तथा समय – समय पर उसकी समीक्षा करेगा। वकीलों की नियुक्ति
329. पंचायती राज संस्था द्वारा उसके विरूद्ध वादों एवं कार्यवाहियों में वकील की नियुक्ति – (1) जब राज्य सरकार एवं पंचायती राज संस्था दोनों किसी एक सिविल कार्यवाही में पक्षकार हों तथा उस कार्यवाही में दोनेां के हित समान हों, तो दोनों के लिए एक वकील की नियुक्ति की जायेगी तथा उसे एक ही शुल्क का भुगतान किया जायेगा, तथा आधा भुगतान राज्य सरकार द्वारा एवं आधा पंचायती राज संस्था द्वारा किया जायेगा।
(2) यदि पक्षकार एक और अतिरिक्त वकील नियुक्त करता है, तो उस वकील की फीस का भुगतान उसे नियुक्त करने वाले पक्षकार द्वारा किया जायेगा।
330. सिविल कार्यवाही जिसमें अकेले पंचायती राज संस्था के हित शामिल हों – (1) सिविल कार्यवाहियों में जिनमें अकेले पंचायती राज संस्था के हित शामिल हों तथा पंचायती राज संस्था किसी वकील की नियुक्ति करती है, तो वकील को संदेय शुल्क साधारणतया 2000 रुपये से अधिक नहीं होगा। कार्यालय अध्यक्ष इसे स्वीकृत करने के लिए सक्षम होगा।
(2) प्रति मामले में 2000 रुपये से अधिक के शुल्कों के सदस्य के लिए स्थायी समिति प्रषासन की स्वीकृति अनिवार्य होगी। प्रशासनिक नियन्त्रण
331. सरपंच की प्रशासनिक शक्तियॉं एवं ग्राम सेवक – एवं – सचिव के कर्त्तव्य – (1) ग्राम सेवक – कम – सचिव, पंचायत नियमित रूप से कार्यालय समय में पंचायत के कार्यालय में उपस्थित होगा तथा सरंपच के निर्देशों के अधीन कार्य करेगा।
(2) वह तत्प्रयोजनार्थ तैयार की गई एक पंजिका में नियमित रूप से अपनी उपस्थिति अंकित करेगा।
(3) यदि सचिव एक पंचायत से अधिक का प्रभारी है, तो विकास अधिकारी प्रत्येक सप्ताह के दिनो को निष्चित करेगा जब वह किसी विशेष पंचायत में उपस्थित होगा। ऐसे मामले में वह केवल उन्हीं दिनों के लिए अपनी उपस्थिति अंकित करेगा।
(4) सरपंच ग्राम सेवक – कम – सचिव के वेतन के भुगतान के लिए पंचायत समिति को प्रत्येक माह की 20 तारीख को उन दिनों केलिए उपस्थिति का प्रमाण – पत्र भेजेगा।
(5) ग्राम – सेवक – कम – सचिव का यह कर्त्तव्य होगा कि वह विकास अधिकारी द्वारा उसे स्वीकृत किए गएअवकाश के बारे मंे सम्बन्धित सरपंच को सूचना दे।
(6) ग्राम सेवक – कम – सचिव पंचायत के अभिलेख के बारे में गोपनीयता रखेगा तथा सरपंच की विशेष अनुमति के बिना अभिलेख का निरीक्षण करने की अनुमति नहीं देगा या आवेदक को उसकी प्रतियॉं नहीं देगा।
(7) वह पंचायत के आ देशों को तत्परता से निष्पादन करेगा, पंचायती मीटिंगों में नियमित रूप से एवं समय – पर उपस्थित होगा, इसकी कार्यवाहियों को सही रूप में अभिलिखित करेगा, पंचायत की पत्रावलियों, अभिलेखें एवं पंजिकाओं को संधारित करेगा।
(8) वह पंचायत की ओर से धन प्राप्त करेगा, लेखा पुस्तिकायें संधारित करेगा, बजट तैयार करेगा तथा विहित तारीखों को पंचायत/पंचायत समिति को समस्त सूचनाओं एवं विहित विवरणियों एवं विवरणों को प्रस्तुत करेगा।
(9) पंचायत द्वारा स्वीकृत सभी भुगतानों को करने की व्यवस्था करेगा।
(10) कर/षुल्कों के करदाताओं से मॉंग को तैयार करेगा तथा अप्रेल माह में मॉंग पर्चियॉं जारी करने का सु निश्च य करेगा।
(11) पंचायत के लिए करों को मई के माह में वसूल करने में पटवारी की मदद करेगा।
(12) वित्तीय वर्ष के अन्तिम त्रिमास में आयोजित की जाने वाली ग्राम सभा के समक्ष वार्षिक कार्य योजना तैयार कराएगा तथा डी.आर.
डी.ए. द्वारा स्वीकृति हेतु पंचायत समिति को अग्रेषित करेगा।
(13) निधियों के सम्भावित आवंटन को ध्यान में रखते हुये ग्राम सभा में प्राथमिकता वाले कार्यो को निष्चित करायेगा।
(14) पंचों की समिति की देखरेख में स्वीकृत किए गए कार्यो को निष्पादित करायेगा।
(15) स्वीकृति की शर्तो के अनुसार मस्टर रोल्स तथा निर्माण कार्यो के अन्य लेखे संधारित करेगा।
(16) कार्य की गुणवत्ता (क्वालिटी) एवं तकनीकी विनिर्देषेां को बनाए रखेगा।
(17) काम पूरा होने की तारीख से एक सप्ताह में पंचायत समिति के कनिष्ठ इंजिनियर को सूचना देगा तथा एक माह में पूर्णता प्रमाण – प्रत्र प्राप्त करेगा।
(18) प्रत्येक वर्ष जुलाई एवं जनवरी माहों में पंचों की समिति के साथ आबादी भूमि एवं गोचर भूमियों पर अनाधिकृत अतिक्रमण के मामलों का सर्वेक्षण करने हेतु जायेगा।
(19) ऐसे अतिक्रमणों के लिए एक सर्वेक्षण पंजिका संधारित करेगा तथा ऐसे मामलों की रिपोर्ट पंचायत/तहसीलदार को बेदखल करने के लिए/पंचायत/राजस्व नियमों के अनुसार उनका विनियमन करने के लिए देगा।
(20) आबादी भूमि के क्रय के लिए आवेदन – पत्रों को नियमानुसार शीघ्रतापूर्वक निपटायेगा।
(21) विहित प्रक्रिया का पालन करते हुए प्रतिस्पर्धात्मक मूल्यों पर सामान खरीदने के लिए व्यवस्था करेगा।
(22) नियम 33 एवं 34 में दिये गये कर्त्तव्यांेका कुशलतासे निर्वहन करने में पंचायत/सरपंच की मदद करेगा।
(23) जन्म एवं मृत्यु पंजिकायें तैयार करेगा।
(24) सतर्कता समिति की प्रथम मीटिंग आयोजित करेगा तथा मासिक मीटिंगोंमें सतर्कता समिति के सदस्यों की मदद करेगा।
(25) ऐसे अन्य कार्यो को निष्पादित करेगा जिन्हें पंचायत समय – समय पर उसे सौंपेगी।
332. ग्राम सेवक – कम – सचिव के कार्य – निष्पादन के बारे में वार्षिक प्रतिवेदन – सरपंच ग्राम सेवक – कम – सचिव द्वारा उक्त कर्त्तव्यों के निष्पादन पर विकास अधिकारी को अपने अभिमत भेजेगा। वह ऐसी अभ्यूक्तियों को उस ग्राम सेवक – कम – सचिव के वार्षिक कार्य निष्पादन मूल्यांकन के साथ संलग्न करेगा।
333. प्रधान की प्रशासनिक शक्ति एवं विकास अधिकारी के कर्त्तव्य – (1) प्रधान, पंचायत समिति की प्रत्येक मीटिंग के बाद, पंचायत समिति के विनिश्चय ों एवं संकलें के क्रियान्वयन के सम्बन्ध में ऐसेनिर्देशदेगा जो उन विनिश्चय ों एवं संकल्पों के शीघ्र क्रियान्व्यन को सुनिश्चित करने के लिए आवश्यकसमझे जायेंगे।
(2) विकास अधिकारी प्रधान को उन स्थायी समितियों के विनिश्चय ांे एवं संकल्पों के क्रियान्वन के सम्बन्ध में ऐसेनिर्देशदेगा जो उन विनिश्चय ों एवं संकल्पों के शीघ्र क्रियान्वयन को सुनिश्चित करने के लिए आवश्यकसमझे जायेंगे।
(3) विकास अधिकारी पंचायत समिति की एवं उसकी समितियां की, जैसी भी स्थिति हो, अगली मीटिंग होने से पूर्व प्रधान को पंचायत समिति एवं उसकी स्थायी समितियों के विनिश्चय ों एवं संकल्पों के क्रियान्वयन की प्रगति पर एक प्रतिवेदन प्रधान को प्रस्तुत करेगा, ताकी प्रधान उसे पंचायत समिति के समक्ष रख सकंे।
(4) विकास अधिकारी को आकस्मिकअवकाश प्रधान द्वारा स्वीकृत किया जायेगा।
(5) विकास अधिकारी प्रधान की नियम 35 मं उल्लिखित कर्तव्यों को कुशलतासे निर्वहन करने में उसकी मदद करेगा।
(6) विकास अधिकारी उन मदों को जिनके लिए प्रधाननिर्देशदेगा पंचायत समिति एवं स्थायी समितियांे की मीटिंगों के एजेण्डा में
शामिल करेगा।
(7) वह विकास अधिकारी एवं समस्त प्रसार अधिकारियों के दौरा – कार्यक्रम की प्रति प्रधान की सूचना हेतु प्रस्तुत करेगा।
(8) वह कर्मचारियों के स्थानान्तरण के मामले में प्रधान से परामर्श करेगा।
(9) पंचायत समिति एवं जिला परिषद सेवा के कर्मचारियांे पर लघु शास्तियॉ आरोपित करने से पूर्व प्रधान की अनुमति प्राप्त करेगा।
(10) प्राकृतिक आपदाओं के मामले में पीड़ितों को भोजन एवं शरण प्रदान कराने तथा पशुओं को चारा उपलब्ध कराने एवं मानवांे, पशुओं या फसलों की महामारी पर नियंत्रण करने में प्रधान के साथ कन्धे से कन्धा मिलाकर कार्य करेगा।
(11) प्रधान के समक्ष सभी महत्वपूर्ण कागजातों एवं परिपत्रों इत्यादि को नियमित रूप से प्रस्तुत करेगा तथा कार्यक्रमो का शीघ्रता से निष्पादन के लिए एवं नीतियों के सफल क्रयान्वयन के लिए उठाये जाने वाले कदमों पर विचार – विमर्श करेगा।
(12) प्रधान प्रत्येक वर्ष के अप्रेल माह में विकास अधिकारी के कार्य निष्पादन के बारेमें अपनी टिप्पणी मुख्य कार्यकारी अधिकारी को भेजेगा जो उन्हें, निदेशक, ग्रामीण विकास एवं पंचायती राज को भेजे जाने वाले वार्षिक कार्य निष्पादन मूल्यांकन के साथ संलग्न करेगा।
334. विकास अधिकारी की अन्य शक्तियॉं एवं कर्त्तव्य – अधिनियम की धारा 81 में दिये गये अनुसार विकास अधिकारी निम्नलिखित शक्तियों का प्रयोग एवं कर्त्तव्यों का निर्वहन करेगा –
(1) वह आकस्मिकअवकाश तथा विशेष असमर्थता अवकाश एवं भारत के बाहर जाने हेतु अवकाश के अलावा सभी प्रकार के अवकाश पंचायत समिति में कार्यरत सभी अधिकारियों एवं कर्मचारियों को स्वीकृत करेगा।
(2) वह पंचायत समिति में कार्य कर रहे सभी अधिकारियों एवं कर्मचारियों के दौरों के कार्यक्रमों का अनुमोदन करेगा तथा उनके यात्रा भत्ता बिलों पर प्रति हस्ताक्षर करेगा।
(3) वह स्थायी समिति, प्रशसन की अनुमति से दो वर्ष के बाद या दो वर्ष से पूर्व पंचायत समिति क्षेत्र के भीतर सेवा के किसी भी सदस्य का स्थानान्तरण करेगा।
(4) वह पंचायत समिति एवं स्थायी समितियों की मीटिंगों के लिए एजेण्डा तैयार करेगा।
(5) कार्यवाहियेां को इतिवृत्त पुस्तिका (मिनट बुक) सुरक्षितअभिरक्षा में रखेगा तथा कार्यवाहियों को सही रूप में अभिलेख करेगा। (6) पंचायत समिति की मीटिंगों की कार्यवाहियों की प्रतियॉं जिला परषिद् को भेजेगा।
(7) राज्य सरकार के अधिनियम, नियमों, अधिसूचनाओं या निर्देशों , उल्लंघन के सम्बन्ध में मुख्य कार्यकारी अधिकारी के मार्फ्त राज्यसरकार को सूचित करेगा।
(8) मीटिंगों के विनिश्चय ों पर शीघ्रता से कार्यवाही करेगा तथा अगली मीटिंगों में उसकी प्रगति प्रतिवेदन प्रस्तुत करेगा तथा स्थायी समितियों के जटिल विनिश्चय ों को पंचायत समिति की मीटिंग में हल करायेगा।
(9) नीतियों एवं कार्यक्रमों को प्रसार अधिकारियों एवं पंचायतों के माफर्त सक्रिय रूप से क्रियान्वित करेगा।
(10) विभिन्न कार्यक्रमों का प्रभावी ढंग से क्रियान्वयन करायेगा।
(11) 20 सूत्री कार्यक्रमों का प्रभावी ढंग से क्रियान्वयन करायेगा।
(12) शिक्षा एवं जल प्रदाय इत्यादि की अन्तरित स्कीमों का सफल निष्पादन करेगा।
(13) सभी स्कीमों का प्रभावी ढंग से पर्यवेक्षण एवं परिनिरीक्षण करना।
(14) विहित तारीखों को जिला परिषद्/डी.आर.डी.ए. को प्रगति प्रतिवेदन प्रस्तुत करेगा।
(15) विहित समय सूची के आधार पर पंचायत एवं विकास विभाग को त्रैमासिक एवं वार्षिक लेखे प्रस्तुत करेगा।
(16) समय पर बजट तैयार करेगा तथा 15 फरवरी तक प्रस्तुत करेगा।
(17) पंचायत समिति के सदस्यों को अपेक्षित सूचना एवं अभिलेख उपलब्ध करायेगा।
(18) पंचायत समिति के अधिकारियों एवं कर्मचारियों पर निरीक्षण एवं प्रभावी नियन्त्रण रखेगा।
(19) व्यय पर नियन्त्रण रखेगा।
(20) नकद से संव्यवहार की प्रतिदिन जांच करेगा एवं लेखा – पुस्तिकाओं को सही ढंग से संधारित करेगा।
(21) चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियेां की नियुक्तियॉं।
(22) गतिविधियों की प्रगति की समीक्षा करने के लिए गा्रम सेवकों एवं प्रसार अधिकारियों की मासिक मीटिंगें संचालित करवाना।
(23) पंचायत समिति का वार्षिक प्रषासन प्रतिवेदन तैयार करना।
(24) सभी अधिकारियों एवं कर्मचारियों के वार्षिक कार्य निष्पादन मूल्यांकन प्रतिवेदन को भेजना।
(25) प्रत्येक वर्ष पंचायत समिति के स्वयं के स्त्रोतों में 15प्रतिशत तक की वृद्धि करना।
(26) नवम्बर माह में पंचायत समिति के समक्ष छमाही आय – व्यय का लेखा प्रस्तुत करना।
(27) राज्य सरकार से सहायता अनुदान का उचित उपयोग करना।
(28) चैक पुस्तिकाओं एवं रसीद बुकों को अपनी सुरक्षित अभिरक्षा में रखना।
(29) डबल लॉक की चाबियांे को सुरक्षित ढंग से रखना तथा वैयक्तिक अभिरक्षा में प्राप्त करना।
(30) खजान्ची एवं भण्डारी की उचित प्रतिभूति लेना।
(31) मौके पर जांच करने के बाद कार्य के पूर्णता प्रमाण – पत्र जारी करना।
(32) प्रत्येक वर्ष अप्रेल माह में स्थायी अग्रिम की रसीदें प्राप्त करना।
(33) गबन, छल कपट (फ्राड) एवं धन की हानि के लिए तुरन्त कार्यवाही करना।
(34) अनुषासी कार्यवाही करना, हानि की वसूली करना, एवं यदि आवश्यकहो तो उचित समय पर पुलिस कार्यवाही प्रारम्भ करना। (35) पंचायतों एवं पंचायत समिति के लेखों की समय पर लेखा परीक्षा कराना।
(36) गबन एवं कपट (फ्राड) के पंजीकृत पुलिस केसांेल के संबध में विशेष लेखा परीक्षा कराने की व्यवस्था करना।
(37) कपट (फ्राड) को रोकने के लिए संवेतन बिलों के साथ बैक द्वारा सामान्य प्रावधायी निधि बीमा कटौतियों को साथ – साथ जमा करवाना।
(38) वाउचरों के दुबारा प्रयोग करने एवं दुर्विनियोग किए जाने से बचने के लिए उन पर तथा नकद की प्रविष्टियों पर लघु हस्ताक्षर करना।
(39) नियमों के अनुसार वाहनों का उचित उपयोग करना।
(40) कार्यालय अध्यक्ष के रूप में शक्तियों का पूर्ण उपयोग करना।
(41) वर्ष में एक बार सभी पंचायतों का निरीक्षण करना तथा उन्हें करांे/षुल्कों एवं उनके व्ययन पर रखी अन्य सम्पतियों के द्वारा अपने
स्वयं के स्त्रोतों में वृद्धि करने के लिए प्रोत्साहित करना।
(42) 10प्रतिशत निर्माण कार्यो का भौतिक सत्यापन करना एवं कार्याे की गुणवत्ता की जॉच करना।
(43) 10प्रतिशत आई आर डी.पी ऋणियों की प्राप्तियों का भौतिक सत्यापन करना।
(44) इन्दिरा आवास एवं जीवन – धारा कार्यो की विशेष जांच करवाना।
(45) गा्रम सभा एवं पंचायत मीटिंगो के कन्ट्रोल रजिस्टर रखना।
(46) पिछली तारीखों में पटटा जारी करने को रोकने के लिए पंचायत समिति कार्यालय में पंचायतों के पटटा रजिस्टर की मासिक विवरणी का परिनिरीक्षण करना।
(47) जिला स्तरीय अधिकारियों से उचित तालमेल रखना तथा उचित तकनीकी मार्गदर्शन लेना।
(48) वर्ष में दो बार अपने स्वयं के कार्यालय का निरीक्षण करना।
(49) प्रतिमाह दस स्कूलों का निरीक्षण करना तथा वह देखना कि सभी अध्यापकों का मंजूरषुदा संख्या के अनुसार विद्यालय में पदस्थापन किया गया है और पंचायत समिति के किसी भी विद्यालय में मुख्य कार्यपालक अधिकारी के लिखित अनुमोदन के बिना कोई भी अध्यापक प्रतिनियुक्ति पर कार्य नहीं कर रहा है।
(50) सभी प्रसार अधिकारियों द्वारा जॉच चार्ट्स की अनुपालना करना।
(51) प्रत्येक माह की 5 तारीख को प्राप्ति एवं समस्याआंे के संबंध मंे मुख्य कार्यकारी अधिकारी को डी.ओ. लेटर भेजना।
(52) पंचायत समितियों के मुख्य कार्यकारी के रूप में कार्य करना।
(53) पंचायत समिति अधिकारी/कर्मचारीयो के वतन भत्तो का भुगतान
335. अपर मुख्य कार्यकारी अधिकारी की नियुक्ति के लिए शर्ते – (1) राज्य सरकार अधिनियम के अधीन मुख्य कार्यकारी को उसके कर्तव्यों के निर्वहन में सहायता करने के लिए उपयुक्त सवे ा के अधिकारी को मुख्य कार्यपालक अधिकारी के रूप में नियुक्त करने के लिए आ देश जारी कर सकेगी।
(2) वह अधिकारी प्रतिनियुक्त पर होगा वही वेतन एवं भते आहरित करेगा जो उसे उसके पैतृक विभाग में स्वीकार्य थें।
(3) वह रैंक/वरिष्ठता में मुख्य कार्यकारी अधिकारी से कनिष्ठ (जूनियर) होगा।
(4) जिला परिषद में पदस्थापित परियोजना अधिकारी (लेखा) को निम्न शक्ति प्रत्यायोजित करती है
1 वेतन सम्बधी पंजिकाओं एवं अभिलेखों का सधारण
2 अन्तिम वेतन भुगतान प्रमाण पत्र, बकाया नही होने का प्रमाण पत्र, पेशन मामलो का पुननिरक्षिण, वेतन निर्धारण
3 कालातीत बिलांे की पूर्व जांच, स्रोत पर आय कर कटौती करना, प्रपत्र 16 एवं 24 तैयार करना
4 कर्मचारियो को समस्त ऋण एवं अग्रिम स्वीकृत कराना एवं मानीटरिग, सामान्य वित एवं लेखा नियम अर्न्तगत आहरण/वितरण अधिकारी के रूप में कर्तव्यों का निर्वहण करना। (अधिसूचना प.165/लेखा/वि.य/लेखा संधारण/2003 – 2004/2202 दिनॉक 2 – 8 – 2004
द्वारा जोडा गया)
336. मुख्य कार्यकारी अधिकारी की अन्य शक्तियॉ एवं कर्तव्य – अधिनियम की धारा 84 में दिये गये शक्तियों एवं कर्तव्यों के अलावा, कार्यकारी अधिकारी नियम 36 में विनिर्दिष्ट कर्तव्यों के निर्वहन में प्रमुख की सहायता करेगा तथा अतिरिक्त कर्तव्यों का निष्पादन करेगा तथा शक्तियों का निम्न प्रकार प्रयोग करेगा –
(1) वह जिले के लिए अधिकारी प्रभारी पंचायती राज में कार्य करेगा जो जिले में ग्रामीण विकासात्मक स्कीमों के क्रियान्वयन में आवश्यक मार्गदर्शन एवं परामर्श प्रदान करेगा।
(2) वह अधिनियम एवं नियमों के प्रावधानों के क्रियान्वयन में पंचायतों एवं पंचायत समितियों को मार्गदर्शन प्रदान करेगा।
(3) ग्राम सभाज्ञा, पंचायतों एवं पंचायत समितियों की नियमित एवं समय पर मीटिंगें आयोजित करने से सम्बन्धित प्रावधानों की अनुपालना का परिनिरीक्षण करेगा।
(4) यदि उसके ध्यान में कोई अनर्हता आए तो एसी दशा में सदस्य को हटाना या प्रारम्भिक जांच करवाना तथा जब पंच/सरपंच/उप – प्रधान के विरूद्ध कोई अविष्वास प्राप्त हो जाये तो विशेष बैठक आयोजित करना।
(5) यह सुनिश्चित करना कि अध्यक्षों के निर्वाचन के बाद या अधिकारियों के स्थानान्तरण के बाद पूर्ववर्ती व्यक्तियों द्वारा उत्तराधिकारियेां को पूर्ण कार्यभार संभाला दिया गया है।
(6) यह सुनिश्चित करना कि निर्वाचन के बाद 3 माह में स्थायी समितियों का गठन कर लिया गया है तथा सभी सदस्यों को इन स्थायी समितियों में उचित प्रतिनिधित्व दिया गया है।
(7) अधिनियम, नियमों, अधिसूचनाओं या सरकार के अन्य निर्देशों का उल्लंघन करके किए गए विनिश्चय ों या पारित किये गये संकल्पों के सम्बन्ध में राज्य सरकार को तुरन्त सूचना देना।
(8) मानवों, जानवरों या फसलों में महामारी फैलने जैसी प्राकृतिक आपदाओं के मामले में, भोजन, निवास, चारा, औषधियों आदि हेतु तुरन्त सहायता पहुंचाने के लिए कार्यवाही प्रारम्भ करना।
(9) जिले में पंचायती राज संस्थाओं के अधिकारियों एवं कर्मचारियों पर पूर्ण निरीक्षण एवं नियन्त्रण रखना।
(10) जिले की पंचायती राज संस्थाओं में वित्तीय अनुषासन का सुनिश्चियन करना।
(11) ग्रामीण विकास स्कीमों का निष्पादन करने वाले विभिन्न जिला स्तरीय अधिकारियों में समन्वय स्थापित करना।
(12) जिला आयोजन समिति के मार्फत जिला आयेाजन को समय पर तैयार किये जाने को सुनिश्चित करना।
(13) ऐसी योजना के क्रियान्वयन की त्रैमासिक प्रगति का अवलोकन करना।
(14) जिला परिषद् के निर्देशों के अनुसार तुरन्त क्रियान्वयन के लिए उपाय अपनाना।
(15) यह सुनिश्चित करना कि पंचायत स्तर पर सतर्कता समितियॉं सक्रिय हैं।
(16) यह पुनरीक्षण करना कि बजट पंचायती राज संस्थाआंे द्वारा निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार तैयार किये जाते हैं तथा आय एवं व्यय की विहित त्रैमासिक एवं वार्षिक विवरणिकाएॅ नियत तारीख तक भेज दी जाती है।
(17) ग्रामसेवक – कम – सचिव को पदस्थापित कर या पंचायत के स्वयं के स्त्रोतों में से या राज्य सरकार द्वारा उन्हें दी गई सामान्य प्रयोजनों हेतु ग्राण्ट में से ठेके पर व्यक्तियों की व्यवस्था कर पंचायतों के सुचारू रूप से काम करने का सुनिश्चयन करना।
(18) राज्य सरकार से पंचायतों एवं पंचायत समितियों को प्राप्त निधियों को तुरन्त अन्तरित करना।
(19) पंचायतों एवं पंचायत समितियों के कम से कम 10 निर्माण कार्यो का भौतिक सत्यापन प्रतिमाह करेगा।
(20) दौरों के दौरान जिले के ग्रामीण क्षेत्रों में स्कूलों, प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों, आयुर्वेद एवं पशुचिकित्सालयों, अंागन बाड़ी केन्द्रों एवं
ऐसी अन्य संस्थाओं टीकाकरण कार्यक्रमों, परिवार कल्याण षिविरों, पेयजल की स्थिति, उचित मूल्य की दुकानों, ग्रामीण सड़कों, ग्रामीण
स्वच्छता, विद्युतीकरण, जल निकास (ड्रेनेज), ग्रामीण आवासन कार्यक्रम, मत्स्य विकास, ग्राम के तालाबों तथा गोचर भूमियों के उपयोग,
पशुओं के लिए तालाबों आदि का नियमित रूप से निरीक्षण करना।
(21) जिला स्थापना समिति के द्वारा अभ्यर्थियों का सामप्य पर चयन तथा रिक्त पदों को भरने के लिए उनका आवंटन करना।
(22) पंचायत समिति एवं जिला परिषद् सेवा के सदस्यों द्वारा कर्त्तव्यों की अवहेलना के लिए अनुषासनिक कार्यवाही करना।
(23) पंचायत समितियों एवं जिला परिषद् में प्रतिनियुक्त विकास अधिकारियों एवं अन्य कर्मचारियों पर प्रभावी नियंत्रण रखना।
(24) पंचायती राज संस्थाओं में प्रतिनयिुक्त कर्मचारियों को दो माह तक काअवकाश स्वीकृत करना।
(25) जिला परिषद् में प्रतिनियुक्त विकास अधिकारियों एवं अधिकारियों तथा अन्य कर्मचारियों के वार्षिक कार्य निष्पादन मूल्यांकन प्रतिवेदन भेजना तथा उन्हें सौंपे गये कर्त्तव्यों एवं कृत्यों के अनुसार काम के आधार पर रिपोर्ट करना।
(26) जिला परिषद् के सामान्य मार्ग निर्देशों एवं विनिश्चय ों के अनुसार जिले के भीतर पंचायत समिति एवं जिला परषिद् सेवा के सदस्यों का स्थानान्तरण करना।
(27) एक वर्ष में पंचायत समितियों एवं 20 पंचायतों का निरीक्षण करना।
(28) छह माह में एक बार स्वयं के कार्यालय का निरीक्षण करना।
(29) खरीदों, स्वीकृतियों, अपलेखन, समयबाधित क्लेमों एवं समस्त ऐसे अन्य वित्तीय मामलों के सम्बन्ध में सामान्य वित्तीय एवं लेखा नियमों के अनुसार प्रादेषिक अधिकारी की शक्तियों का प्रयोग करना।
(30) नियम 214 में यथा प्रावहित स्वयं के स्त्रोतों को खर्च करने के लिए पंचायत समितियों को स्वीकृत करना।
(31) जिले में ग्रामीण विकासात्मक कार्यक्रमों के निष्पादन से सम्बन्धित समस्त जिला स्तरीय अधिकारियों की उपस्थिति को सुनिश्चित करना।
(32) पंचायत एवं पंचायत समितियों द्वारा रोजगार पैदा करने एवं गरीबी उन्मूलन के सफल किृर्यान्वयन का सुनिश्चित करना।
(33) स्कीमों की प्रगति की समीक्षा करने तथा सामान्य मार्ग निर्देशन देने के लिए पंचायतों/पंचायत समितियों की मीटिंगों में उपस्थिति!
(34) करों एवं कर – भिन्न राजस्वों जैसे शुल्कों एवं उन्हें सौंपी गयी सम्पत्त्यिों के प्रबन्ध के द्वारा प्रतिवर्ष 15प्रतिशत तक स्वयं की आय को बढ़ाने के लिए पंचायतों/पंचायत समितियों को पा्रेत्साहित करना।
(35) पंचायत समितियों द्वारा बकाया ऋणों की वसूली पर निगरानी रखना।
(36) लेखा, परीक्षकों द्वारा ढँूढे गए या बतलाये गये राजस्व, गबन एवं दुर्विनियोग/व्यक्तिक्रम के मामलों में हानियांे की वसूली के लिए कार्यवाही करना।
(37) कपट (फ्राड), कूट रचना (फोरजरी), गबन आदि में शामिल व्यक्तियों के विरूद्ध पुलिस कार्यवाही प्रारम्भ करना तथा ऐसे मामलों में विशेष लेखा परीक्षा की व्यवस्था करना।
(38) अप्रेल माह में वार्षिक प्रशासनिक प्रतिवेदन तैयार करवाना।
(39) पंचायती राज संस्थाओं की कार्यप्रणाली में परादर्षकता का सुनिश्चयन करना।
(40) यह सुनिश्चित करना कि पंचायत/पंचायत समिति गत पांच वर्षो में कराये गये निर्माण कार्यो के वर्ष बार सूची उन कार्यो के अनुमानों तथा वास्तविक व्यय के साथ प्रदर्शित करती हैं तथा किसी व्यक्ति या स्वयंसेवी संस्था को सूचना के अधिकार से वंचित किया गया है।
337. प्रमुख द्वारा प्रशासकीय नियन्त्रण – (1) निदेशक , ग्रामीण विकास एवं पंचायती राज वर्ष के दौरान उसके कार्यो के निष्पादन के सम्बन्ध में प्रमुख के लिखित अभिमत को प्राप्त करेगा तथा उसे मुख्य कार्यकारी अधिकारी के वार्षिक कार्य निष्पादन मूल्यांकन के भाग के
रूप में उससे संलग्न करेगा।
(2) मुख्य कार्यकारी अधिकारी के आकस्मिकअवकाश कलक्टर की अनुशंसा पर प्रमुख द्वारा स्वीकृत किये जायेंगे।
दौरे एवं निरीक्षण
338. निर्वाचित प्रतिनिधियों के लिए दौरों का नार्म्स (मानदण्ड) – निर्वाचित प्रतिनिधियों के लिए वार्षिक दौरों के दिनों की सीमा सरकार द्वारा समय – समय पर निर्धारित की जायेगी।
339. अधिकारियों के लिए निरीक्षण के नार्म्स – निरीक्षण अधिकारी अवधि
1. पंचायत
(क) पंचायत प्रसार अधिकारी अर्द्ध्रवार्षिक
(ख) विकास अधिकारी वर्ष में एक बार
(ग) मुख्य कार्यकारी अधिकारी प्रति वर्ष 20 पंचायतें
(घ) मुख्य कार्यालयों पर प्रति वर्ष 20 पंचायतें पदस्थापित उप – आयुक्त
2. पंचायत समिति
(क) विकास अधिकारी अर्द्धवार्षिक
(ख) मुख्य कार्यकारी अधिकारी वर्ष में एक बार यदि जिले में पंचायत समितियों की संख्या 6 से अधिक नहीं है। अन्य जिलों के मामले में 6 पंचायत समितियों प्रतिवर्ष लेकिन एक ही पंचायत समिति का दुबारा निरीक्षण नहीं किया जायेगा।
(ग) मुख्य कार्यालयों पर पदस्थापित 5 प्रतिवर्ष उप – आयुक्त
340. अधिकारियों के दौरों के दिवस – (1) कोई भी अधिकारी जिला परिषद्/डी.आर.डी.ए., राज्य स्तर पर आयोजित न्यायालय की उपस्थिति या प्रशिक्षण/वर्कशॉप आदि की मीटिंगों के अलावा माह में 10 दिन से अधिक के लिए दौर पर नहीं रहेगा।
(2) समस्त विकास अधिकारी, प्रसार अधिकारी, कनिष्ठ अभियन्ता, लेखाकार एवं खजान्ची उचित भुगतानों एवं सार्वजनिक शिकायतों के निराकरण की व्यवस्था करने के लिए सोमवार एवं वृहस्पतिवार को अपने मुख्य कार्यालयों पर रहेंगे। इन दिनों में मीटिंग निर्धारित करने से बचा जाना चाहिए।
341. क्षेत्रों के दौरों में सम्पत्तियों एवं कार्यो का निरीक्षण – (1) समस्त निर्वाचित प्रतिनिधि तथा अधिकारी पंचायत/पंचायत समितियों से सम्बन्धित या उसके व्ययन पर रखी गई सम्पत्तियों का निरीक्षण करेंगे तथा यह देखेंगे कि क्या उन्हें ठीक प्रकार से अनुरक्षित किया जाता है।
(2) स्कूल भवनों का निरीक्षण विशेष रूप से यह देखने के लिए किया जायेगा कि क्या वह बालकों के जीवन की सुरक्षा दृष्टि से उचित है तथा वे शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार के लिए सुझावा देंगे।
(3) पूर्ण किये गये या चल रहे निर्माण कार्यो का निरीक्षण कार्य की गुणवत्ता की तथा उनके उचित उपयोग की जांच करने के लिए किया जायेगा।
342. पंचायत प्रसार अधिकारी के कर्त्तव्य एवं कार्य – पंचायत प्रसार अधिकारी अपने क्षेत्राधिकार के अन्तर्गत पंचायतों के लिए मित्र, मार्गदर्शक एवं दार्शनिक के रूप में कार्य करेगा। वह विशेष रूप में कार्य करेगा। वह विशेष रूप से निम्नलिखित कर्त्तव्यों को निष्पादित करेगा –
(1) प्रति पंचायत दो दिनों तक पंचायत के अभिलेखों, लेखों पत्रावलियों, सम्पत्तियों, कार्यो, ग्राम सभा एवं पंचायत मीटिंगों के कार्यवृत्ताों, सचिव द्वारा अनुपालना, करेां के निर्धारण, देय राशि की वसूली, मवेषी खानों, चारागाहों आदि का विस्तृत निरीक्षण करेगा।
(2) नियम 332 एवं 333 में क्रमश: निर्धारित सरपंच एवं ग्राम सेवक द्वारा कर्त्तव्यों के निष्पादन का निरीक्षण करना।
(3) वर्ष में दो बार समस्त पंचायतों का निरीक्षण अथवा प्रत्येक वर्ष में 50 पंचायतों का निरीक्षण करना।
(4) लेखा परीक्षक के प्रतिवेदनों, सतर्कता समिति एवं ग्राम सभा के विनिश्चय ों की अनुपालना करना।
(5) करों/ शल्कों के आरोपण के लिए मार्गदर्शन करना तथा प्रतिवर्ष 15प्रतिशत तक कर – भिन्न राजस्व में वृद्धि करना।
(6) ग्रामीण स्वच्छता, ग्रामीण आवासन, उन्नत चूल्हा, गोबर गैस, राष्ट्रीय/राज्य महामार्गो पर दोनों ओर सुविधाओं का विकास करना।
(7) आई.आर.डी.पी. परिवारों की वास्तविक प्राप्तियों का सत्यापन।
(8) ऋण/आर्थिक सहायता के दुरुपयोग के मामलों की विकास अधिकारी को रिपोर्ट करना।
(9) ग्राम सभा की मीटिंगों में उपस्थित होना तथा नियम 5 एवं 8 में उसे सौंपे गये कर्त्तव्यों को निष्पादित करना। (10) उसे सौंपी गई प्रारम्भिक जांच करना।
(11) विकास अधिकारी/पंचायत समिति/जिला परिषद्/राज्य सरकार द्वारा समय – सयम पर उसे सौंपे गये समस्त अन्य कर्त्तव्यों को निष्पादित करना।
343. सहकारिता प्रसार अधिकारी के कर्त्तव्य एवं कार्य – सहकारिता प्रसार अधिकारी पंचायत समिति के ग्रामीण क्षेत्रों में सहकारिता आन्दोलन को गति देने के लिए उत्तरदायी होंगे। वह निम्नलिखित कार्यो को करेगा।
(1) विद्यमान सहकारी समितियों की सदस्यता में वृद्धि करेगा।
(2) दुग्ध वाले मार्गो पर दुग्ध सहकारी समितियों का गठन, सांडों के बन्ध्याकरण को प्रोत्साहन, कृत्रिम गर्भाधान, गायों एवं भैंसों की उन्नत नस्लों की खरीद करना ताकि अधिक दुग्ध उत्पादन के द्वारा आय को बढ़ाया जा सके।
(3) समस्त संभावित क्षेत्रों में फलों एवं सब्जियों के लिए सहकारी विपणन समितियों का गठन करना।
(4) एकीकृत ग्रामीण विकास कार्यक्रम में चयनित परिवारांे की पंजिका को संधारित करना, ऋण प्रपत्रों को शुद्ध रूप में तैयार करने की व्यवस्था करना, बैकों के जरिये प्रोसेसिंग, ऋणों की स्वीकृति एवं आर्थिक सहायता का वितरण।
(5) एकीकृत ग्रामीण विकास कार्यक्रमों के अन्तर्गत परिवारों द्वारा सृजित आस्तियों का 100प्रतिशत भौतिक सत्यापन एवं अनुसूचित जाति विकास निगम की स्कीमें।
(6) ट्राइसम प्रषिक्षित युवकों को स्व – रोजगार ऋण।
(7) ऋण मेलों के लिए षिविरों में विकास अधिकारी की सहायता करना।
(8) सहायक रजिस्ट्रार के कार्यालय की जिला स्तरीय मीटिंगों में भाग लेना।
(9) क्षेत्र में सहकारी समितियों का निरीक्षण करना।
(1ृ0) इन स्कीमों से सम्बन्धित ग्रामीण आवासन परियोजनाओं एवं ऋण लेखों को संव्यवहृत करना।
(11) बैंक योग्य (बैंक बिल) परियोजनाओं का निर्धारण करना तथा हर वर्ष क्रेडिट प्लान तैयार करना।
(12) क्रेडिट समन्वय समिति की भी मीटिंगों में भाग लेना।
(13) ग्राम सभा की मीटिंगों में भाग लेना तथा नियम 5 व 8 मे समनुदिष्ट कर्त्तव्यों को पूरा करना।
(14) समय – समय पर विकास अधिकारी/पंचायत समिति/जिला परिषद्/राज्य सरकार द्वारा दिये गये सभी अन्य कार्यो को निष्पादित करना।
344. प्रगति प्रसार अधिकारी (सांख्यिकी) के कर्त्तव्य एवं कार्य – प्रगति प्रसार अधिकारी पंचायत समिति द्वारा जिम्में लिये गये कार्यक्रमों की प्रगति की समीक्षा एवं मूल्यांकन के लिए प्रमुख रूप से उत्तरदायी होगा। उसके मुख्य कार्य निम्न प्रकार होंगे –
(1) सांख्यिकी एवं उसके विष्लेषण का संग्रह।
(2) स्थायी सांख्यिकी अभिलेख का संधारण।
(3) योजनाओं एवं अन्य विकासात्मक गतिविधियों की प्रगति के मूल्यांकन में सहायता करना।
(4) प्रगति की समीक्षा के लिए प्रतिवेदन एवं विवरणियॅां तैयार करना।
(5) सर्वेक्षण प्रतिवेदन तैयार करना।
(6) संदेह होने पर मौके पर प्रगति प्रतिवेदन का सत्यापन।
(7) प्रगति प्रतिवेदनों को प्रकाशित करना तथा पाण्डुलिपि तैयार करना तथा उसका प्रूफ शोधन करना।
(8) जिला एवं राज्य स्तरीय अधिकारियों को मासिक/त्रैमासिक/वार्षिक प्रगति प्रतिवेदन समय पर प्रस्तुत करना तथा आंकड़ों की विष्वसनीयता पर विशेष ध्यान देना।
(9) पंचायतों के ग्राम सेवकों – कम – सचिवों को वांछित सांख्यिकीय आंकड़ों को सही रूप में तैयार करने के लिए मार्गदर्शन /प्रषिक्षिण प्रदान करना।
(10) सामाजिक सुरक्षा स्कीमों के अन्तर्गत लाभेां का सु निश्च न करना।
(11) प्रगति चार्टों/नक्षों को तैयार करना एवं उन्हें अद्यावधि तैयार करना।
(12) ग्राम सभा की मीटिंगों में भाग लेने तथा नियम 5 व 8 में समनुदिष्ट कर्त्तव्यों को निष्पादित करना।
(13) समय – समय पर विकास अधिकारी/पंचायत समिति/जिला परिषद्/राज्य सरकार द्वारा आवंटित सभी अन्य कार्यो को निष्पादित करना।
345. शिक्षा प्रसार अधिकारी के कर्त्तव्य एवं कार्य – शिक्षा प्रसार अधिकारी पंचायत समिति के ग्रामीण क्षेत्रों में छात्रों की सार्वजनीक प्राथमिक शिक्षा के लिए तथा विद्यालयों में शिक्षा की गुणवत्ता सुधारने के लिए प्रमुख रूप से उत्तरदायी होगा। उसके मुख्य कार्य निम्न प्रकार होंगे –
(1) नए स्कूल खोलने के लिए प्रस्ताव तैयार करना ताकि एक किलोमीटर की परिधि के भीतर सभी निवासियों को प्राथमिक विद्यालय की सुविधा प्राप्त हो जाये।
(2) लड़कों एवं लड़कियों के प्रवेषांकन में वृद्धि कराना।
(3) 6 से 11 एवं 11 से 14 आयु वर्ग में उन बालकों का सर्वे कराना जो प्रत्येक वर्ष जुलाई के माह में स्कूल नहेीं आते हैं।
(4) 100प्रतिशत बालकों को विद्यालयों में लाने के लिए ग्राम शिक्षा समिति का गठन तथा प्रवेषांक, टूर्नामंेटों, सांस्कृतिक कार्यक्रमों इत्यादि के स्कूल कार्यक्रमों में सहायता करना।
(5) विस्तृत कवरेज के लिए अनौपचारिक शिक्षा केन्द्रों में बालकों को भेजने की व्यवस्था करना।
(6) गांवों की ढाणियों में जहॉं एक किलोमीटर के भीतर कोई विद्यालय न हो, सरस्वती योजना के लिए महिला शिक्षक को तैयार करना –
(क) अध्यापन की गुणवत्ता का निर्धारण करना।
(ख) आपरेशन ब्लैक बोर्ड स्कीम के अन्तर्गत सप्लाई किये गये उपकरणों के उपयोग के बारे में सु निश्च यन करना।
(ग) स्वीकृत पदों की संख्या तथा अध्यापक छात्र अनुपात के अनुसार अध्यापकों के पदस्थापन की जांच करना।
(8) भवनों, कमरों, कमरों के आकारों, खेल के मैदानों, बाउण्ड्री वालों, फर्नीचर, अन्य उपकरणों, पुस्तकालय पुस्तकों, खेल की सामग्री, टाट – पटि़टयों, वृक्ष पौधारोपण इत्यादि के बारे में स्कूलावार अद्यावधिक आंकड़े रखना।
(9) लड़कों एवं लड़कियों के प्रति कक्षावार प्रवेषांकन का ब्यौरा तैयार करना तथाउनके स्कूलों में नहीं आने वालों का विस्तृत विवरण, तैयार करना।
(10) जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थान के जरिये अध्यापकों के प्रशिक्षण का नियमित कार्यक्रम तैयार करना।
346. कनिष्ठ अभियन्ता (जूनियर इंजिनियर) के कर्त्तव्य एवं कार्य – कनिष्ठ अभियन्ता अनुमान तैयार करने, कार्यो की योजना बनाने मौके पर का न क्षे देना, निर्माणाधीन काया की गुणवत्ता का निरीक्षण करने तथा माप – पुस्तिका में वास्तविक माप दर्ज करने के बाद समय पर भुगतान की व्यवस्था करने के लिए उत्तरदायी होगा। वह निम्नलिखित कार्यो को करेगा।
(1) पंचायत समिति द्वारा क्रियान्वित की गई स्कीमों की शर्तो के बारे में जानकारी रखेगा।
(2) राज्य सरकार द्वारा जारी किये गये स्टेण्डर्ड डिजाइनो एवं लागत अनुमानों के बारे में जानकारी रखेगा।
(3) प्रत्येक मामले में अनुदानों की वित्तीय सीमा एवं जनता के अंशदान के हिस्से के बारे में जानकारी रखेगा।
(4) निर्माण सामग्री की चालू बाजार दर के बारे में जानकारी रखेगा।
(5) योजना कार्यो हेतु क्षेत्र के लिए अनुमोदित आधारभूत दर अनुसूची।
(6) दैनिक डायरी एवं माप – पुस्तिका को संधारति करना।
(7) पंचायत समिति भवनों की ब्ल्यू प्रिन्ट केस ाथ माप एवं मूल्यांकन का ब्यौरा तैयार करना एवं पंचायत समिति की स्वीकृति के बाद संधारण का कार्य हाथ में लेना।
(8) सम्पत्ति पंजिका को सही भरने में तथा अनधिकृत अतिक्रमणों को रोकने के लिए पंचायत सचिवों की सहायता करना।
(9) ऐनीकट़स, तालाबों, नदियों के लिए स्थलों का निर्धारण करना।
(10) पंचायत/पंचायत समिति में कार्यो का रजिस्टर संधारित करना।
(11) ग्राम सभा द्वारा अनुमोदित वार्षिक कार्यकारी योजना के अनुसार कार्यो के अनुमान तैयार करना।
(12) कार्यो की स्वीकृति के बाद तकनीकीनिर्देशएवं ले – आउट देना।
(13) कुर्सी स्तर तक, छतस्तर तक तथा काम पूरा होने पर कार्य के स्थल पर जाकर निरीक्षण करना।
(14) कमजोर निर्माण कार्य करने अथवा नमूनों के अनुसार निर्माण कार्य नहीं करने के मामले मेंनिर्देशजारी करना।
(15) किष्तों के समय पर भुगतान के लिए उपयोजन प्रमाण – पत्र समय पर जारी करना।
(16) कार्य पूरा होने से एक माह के भीतर पूर्णता प्रमाण – पत्र जारी करना तथा एक लाख तक के निर्माण कार्य के लिए विकास अधिकारी को/दो लाख तक के लिए सहायक अभियन्ता को/तथा 5 लाख तक के निर्माण कार्यो के लिए अधिषासी अभियन्ता को प्रति हस्ताक्षरों के लिए प्रस्तुत करना।
(17) कार्याे का भुगतान करने हेतु सभी सोमवार एवं बृहस्पतिवार को मुख्य कार्यालय पर रहना।
(18) ग्रामीण तरवा, सोकपिटरों, स्कूलों में मूत्रालयों एवं ग्रामीण स्वच्छता कार्यक्रम के अन्तर्गत अन्य मदों के निर्माण के लिए तथा स्थानीय चुनाई करने वालों का तकनीकी प्रशिक्षण एवं मर्गदर्षन देगा।
(19) विकास अधिकारी के नाम निर्देषिती के रूप में गा्रम सभा की मीटिंगों में भाग लेगा तथा नियम 5 व 8 में समनुदिष्ट कर्त्तव्यों को निष्पादित करेगा।
(20) समय – समय पर विकास अधिकारी/सहायक अभियन्ता/अधिषासी अभियन्ता/पंचायत समिति/राज्य सरकारद्वारा आवंटित समस्त अन्य कार्यो को निष्पादित करेगा। प्रशिक्षण एवं प्रत्यास्मरण (रिफ्रेशर) पाठ्यक्रम
347. प्रशिक्षण कार्यक्रम / प्रत्यास्मरण कार्यक्रम – (1) ग्रामीण विकास एवं पंचायती राज विभाग मानव संसाधन विकास के लिए विशेष प्रयत्न करेंगे तथा निर्वाचित प्रतिनिधियों तथा कर्मचारियों के लिए जिसमें ग्राम सेवक – कम – सचिव, कनिष्ठ लेखाकारों एवं कनिष्ठ अभियन्ताओं के लिए प्रशिक्षण माडयूल तैयार करेंगे।
(2) प्रधानों एवं प्रमुखों के लिए इन्दिरा गांधी पंचायती राज संस्थान, जयपुर में अल्पकालिक पाठ्यक्रमों की व्यवस्था की जायेगी तथा सरपंचो/पंचायत समिति/जिला परिषद् के सदस्यों के लिए जिला परिषदों द्वारा जिला स्तर पर पाठयक्रमों की व्यस्था की जायेगी। महिला सरपंचों एवं अनुसूचित जाति/अनुसूचित जन जाति/अन्य पिछड़े वर्गो के प्रथम बार निर्वाचित सरपंचों के लिए विशेष प्रशिक्षण कार्यक्रम/ वर्कशॉप आयोजित करने की व्यवस्था की जायेगी।
(3) पंचायत समिति स्तर पर या स्वयं सेवी संगठनों के मार्फत पंचों के लिए प्रत्यास्मरण (रिफ्रेशर) पाठयक्रमों के लिए व्यवस्था की जायेगी।
(4) ग्राम सेवक प्रशिक्षण, केन्द्र, ग्राम सेवक – एवं – सचिवों के लिए छह माह के परिचय पाठ्यक्रमों की व्यवस्था की जायेगी।
(5) प्रत्येक ग्राम सेवक – कम – सचिव को तीन वर्ष में कम से कम एक बार 7 दिनों का प्रत्यास्मरण पाठ्यक्रम प्राप्त करना होगा।
(6) कनिष्ठ अभियन्ताओ/कनिष्ठ लेखाकारों को भी लेखा एवं इंजीनियरिंग स्टाफ वाले ग्राम सेवक प्रशिक्षण केन्द्रों में प्रशिक्षण देने की
व्यवस्था की जायेगी।
(7) पाठ्यक्रम से सन्तुष्टि प्रबन्धकीय कार्य होने चाहिए तथा उसकी प्रकृति तकनीकी/कार्यात्मक रूप में शामिल होनी चाहिए। वार्षिक कार्य निष्पादन मूल्यांकन प्रतिवदेन
348. विकास अधिकारी एवं मुख्य कार्यकारी अधिकारी के वार्षिक कार्य निष्पादन मूल्यांकन प्रतिवेदन तैयार करना – (1) प्रधान प्रत्येक वित्तीय वर्ष में कार्य निष्पादन के बारे में मुख्य कार्यकारी अधिकारी की ेएक प्रतिवेदन भेजेगा जो विकास अधिकारी के कार्य पर रिपोर्ट लिखेगा तथा प्रधान से उसे प्राप्त प्रतिवेदन के साथ पुनरावलोकन के लिए कलक्टर को भेजेगा। कलक्टर अपनी अभ्युक्ति लिखने के बाद उसे निदेशक, ग्रामीण विकास एवं पंचायती राज विभाग के पास उसको स्वीकार करने के लिए भेजेगा।
(2) प्रमुख प्रत्येक वित्तीय वर्ष के अन्त में मुख्य कार्यकारी अधिकारी के वर्ष कार्य निष्पादन के बारे में निदेशक, गा्रमीण विकास एवं पंचायती राज विभाग को एक प्रतिवेदन भेजेगा जो मुख्य कार्यकारी अधिकारी के कार्य अपनी रिपोर्ट लिखेगा तथा जिला प्रमुख से उसे प्राप्त प्रतिवेदन के साथ विकास आयुक्त को पुरावलोकन हेतु भेजेगा।
(3) ये प्रतिवेदन अन्ततः राजस्थान प्रषासनिक सेवा के अधिकारियों के मामले में कार्मिक विभाग में तथा अन्य मामलों में सम्बन्धित विभागाध्यक्षों के पास जमा किये जायेंगे।
349. अन्य अधिकारियों के वार्षिक कार्य निष्पादन मूल्यांकन प्रतिवेदनों को तैयार करना – अन्य अधिकारियों के सम्बन्ध में वार्षिक कार्य निष्पादन मूल्यांकन प्रतिवेदन निम्न प्रकार भरे जाएंगें –
क्र
सं अधिकारी जिसका प्रतिवेदन लिया गया प्रतिवेदन लिखने वाला अधिकारी पुनरावलोकन – कर्ता
अधिकारी स्वीकार करने वाला अधिकारी
1 सहायक अभियन्ता जिला परिषद मुख्य कार्यकारी अधिकारी कलक्टर निदेशक ग्रामीण विकास
2 सहायक सचिव जिला परिषद मुख्य कार्यकारी अधिकारी निदेशक ग्रामीण विकास विकास आयुक्त
3 कनिष्ट अभियन्ता विकास अधिकारी मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सहायक अभियन्ता के
अभिमत के साथ) निदेशक ग्रामीण विकास
4 पंचायत प्रसार अघिकारी; पंचायत समितिद्ध विकास अधिकारी मुख्य कार्यकारी अधिकारी (
निदेशक ग्रामीण विकास
5 पंचायत प्रसार अघिकारी; जिला परिषद, मुख्य कार्यकारी अधिकारी निदेशक ग्रामीण विकास विकास आयुक्त
6 पंचायत प्रसार अघिकारी ;कलेक्टर कार्यालयद्, कलक्टर निदेशक ग्रामीण विकास विकास आयुक्त
7 अन्य प्रसार अघिकारी विकास अधिकारी मुख्य कार्यकारी अधिकारी निदेशक ग्रामीण विकास
8 जिला शिक्षा अघिकारी ;जिला परिषद, मुख्य कार्यकारी अधिकारी अपर निदेशक (ग्रामीण)
शिक्षा विभाग निदेशक ग्रामीण विकास
9 वरिष्ठ उप जिला शिक्षा अधिकारी/ उप जिला शिक्षा अधिकारी जिला शिक्षा अधिकारी (जिला परिषद) मुख्य कार्यकारी अधिकारी निदेशक ग्रामीण विकास
10 लेखा अधिकारी/ सहायक
लेखा अधिकारी मुख्य कार्यकारी अधिकारी मुख्य लेखा अधिकारी
(निदेशक ग्रामीण विकास कार्यालय) निदेशक ग्रामीण विकास
जिला आयोजन समिति
350. जिला आयोजन समिति के सदस्य – (1) अधिनियम की धारा 121 में प्रकल्पित किये गये अनसु ार, जिला आयोजन समिति में कुल मिलाकर 25 सदस्य होंगे जिसमें से 20 सदस्य जिला परिषद् एवं नगरपालिका निकायों के निर्वाचित सदस्यों में से उनके द्वारा जिले में ग्रामीण क्षेत्रों एवं नगरीय आबादी के अनुपात में निर्वाचित किये जायेंगे।
(2) पाँच नाम निर्देशित सदस्य निम्न प्रकार होंगे –
(क) जिला कलक्टर
(ख) अपर कलक्टर, जिला ग्रामीण विकास एजेन्सी,
(ग) मुख्य कार्यकारी अधिकारी, जिला परिषद्
(घ) सांसदो, विधायकों या राज्य सरकार द्वारा नामनिर्देषित स्वयंसेवी संस्थाओं का प्रतिनिधित्व करने वाले व्यक्तियों में से दो सदस्य।
351. सदस्यों का निर्वाचन – (1) चयन की प्रक्रिया वही होगी जो जिला परषिद् की स्थायी समिति के सदस्यों के निर्वाचन के लिए विहित की गई है।
(2) सदस्यों के निर्वाचन हेतु ऐसी बैठक की अध्यक्षता मुख्य कार्यपालक अधिकारी की सहायता से कलक्टर या उसके द्वारा नामंाकित अधिकारी जो अतिरिक्त कलक्टर से नीचे का न हो द्वारा की जायेगी।
352. जिला आयेाजन समिति की शक्तियॉं एवं कार्य – (1) मुख्य कार्य जिले की पंचायत समितियों एवं नगरपालिका निकायों द्वारा विहित वार्षिक आयोजनाओं को समेकित करगी होनी।
(2) अधिनियम की धारा 121 की उपधारा (7) में दियेगये अनुसार सामान्य हित के मुद्दों पर विचार करेगी।
(3) जिला योजना को राज्य सरकार के पास भेजेगी।
(4) मुख्य आयोजना अधिकारी समिति के सदस्य के रूप मंे कार्य करेगा। वार्षिक प्रशासनिक प्रतिवेदन
353. पंचायतों का वार्षिक प्रशासनिक प्रतिवेदन – (1) प्रत्येक पंचायत सरपंच प्रत्येक वर्ष 20 अप्रेल तक ठीक पूर्ववर्ती वित्तीय वर्ष में पंचायत का वार्षिक प्रतिवेदन विहित प्रपत्र संख्या 45 में तैयार करायेगा जो पंचायत की मीटिंग के सामने रखा जायेगा एवं उसके द्वारा स्वीकार किया जायेगा तथा इसके बाद सम्बन्धित पंचायत समिति को भ्ेाजा जायेगा। इसमें वर्ष के दौरान पंचायत की महत्त्वपूर्ण गतिविधियों पर एक टिप्पण भी दिया होगा।
(1) प्रत्येक पंचायत का सरपंच प्रत्येक वित्तीय वर्ष की 20 अप्रैल तक संबंधित पंचायत के भामा शाह कार्ड धारकों की सूची प्रकाशित करेगा।,
(2) पंचायत समिति अपने अधिकार क्षेत्र की समस्त पंचायतांे को प्रतिवेदनों की जांच करने के बाद, उसके सम्बन्ध में एक वर्णनात्मक रूप में समेकित रिपोर्ट तैयार कराएगी एवं उसे उस पर अपने विचारों के साथ मुख्य कार्यकारी अधिकारी को उक्त वर्ष की 15 जून तक भेज देगी।
354. पंचायत समिति/जिला परिषद् द्वारा वार्षिक प्रशासनिक प्रतिवेदन तैयार करना – (1) प्रत्येक पंचायत समिति/जिला परिषद् यथाशक्य शीघ्र वित्त वर्ष समाप्त होने के बाद प्रपत्र संख्या 46 में उसके प्रषासन पर एक प्रतिवेदन तैयार करेगी।
(2) जिला परिषद् पंचायतों/पंचायत समितियों से प्राप्त प्रतिवेदनों का पुनरावलोकन करेगी तथा यदि किसी समय, ऐसे पुनरावलोकन के परिणामस्वरूप यह ऐसा प्रकट करती हो कि किसी पंचायत या पंचायत समिति का कार्य सन्तोषजनक नहीं रहा है, तो जिला परिषद् अपने संकल्प की एक प्रति सम्बन्धित पंचायत समिति को भेजेगी।
(3) जिला परिषद् प्रतिवेदन को राज्य सरकार के पास उसके विचारार्थ प्रस्तुत करेगी।
355. प्रतिवेदन का प्रकाशन – राज्यसरकार आम जनता की सूचनाहेतु उसके ऐसे भागों का या ऐसे उद्धरणों को या उसके ऐसे सारांश को जिसे वह आवश्यकसमझेगी, छपवाएगी। पंचायती राज संस्थाओं को प्रोत्साहन अनुदान
356. अवार्ड – (1) कर एवं कर – भिन्न राजस्व वसूल करने, 20 सूत्रीय कार्यक्रम के अन्तर्गत भौतिक लक्ष्यों का ेप्राप्त करने, गरीबी उन्मूलन एवं रोजगार उत्पन्न करने वाले कार्यक्रमों, सामुदायिक कार्यो में जन सहयोग तथा कार्यो एवंसेवा के ऐसे अन्य क्षेत्रों में तत्प्रयोजनार्थ राज्य स्तरीय समिति द्वारा निर्धारित किए जायेंगे, से सम्बन्धित उनके कार्य निष्पादन के आधार पर सर्वोत्तम पंचायती राज संस्थाओं को नकद अवार्ड स्वीकार किये जायेंगें
(2) सबसे श्रेष्ठ पंचायत का निर्णय तत्प्रयोजनार्थ गठित एक समिति द्वारा जिला स्तरपर किया जायेगा। समिति ऐसी पंचायतों के लिए सिफारिश करेगी जो विकास कार्यो के लिए निम्न प्रकार के प्रोत्साहन अनुदान प्राप्त करेगी
1. 2.00 लाख रुपये
2. 1.00 लाख रुपये
3. 0.50 लाख रुपये
(3) सर्वश्रेष्ठ पंचायत समिति का अधिनिर्णय संभाग स्तर पर गठित एक समिति द्वारा किया जायेगा। वे विकास कार्यो के लिए प्रोत्साहन अनुदान निम्न प्रकार प्राप्त करेंगे –
1. 5.00 लाख रुपये
2. 3.00 लाख रुपये
3. 2.00 लाख रुपये
(4) सर्वश्रेष्ठ जिला परिषद् का निर्णय तत्प्रयोजनार्थ गठित राज्य स्तरीय समिति द्वारा किया जायेगा। वे नकद अवार्ड निम्न प्रकार प्राप्त करेंगे –
1. 8.00 लाख रुपये
2. 5.00 लाख रुपये
3. 2.00 लाख रुपये सेवा संघों को मान्यता देना
357. सेवा संघों की परिभाषा – (1) सेवा संघ राजस्थान पंचायत समिति एवं जिला परिषद् सेवा कर्मचारियों के कतिपय संवर्गो की एक यूनियन है जो उसके सदस्यों के सामान्य सेवा हितों को प्रोन्नत करने के लिए गठित की गई है।
(2) ऐसे संघों का गठन अधिनियम की धारा89 की उप – धारा (2) में सम्मिलित चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों या कर्मचारियेां द्वारा किया जा सकेगा।
358. संघों की मान्यता के लिए आवेदन – पत्र – मान्यता प्राप्त करने का इच्छुक कोई भी संघ, विहित प्रपत्र 47 में पंजीयन प्रमाण – पत्र, उप – विधियों की तीन प्रतियों, कार्यकारिणी के सदस्यांे की सूची, संवर्गवार सदस्यों के विस्तृत विवरण एवं चाही गई अन्य सूचना को साथ लगाकर, आवेदन करेगा।
359. मान्यता देने के लिए शर्ते – मान्यता, निदेशक ग्रामीण विकास द्वारा निम्नलिखित शर्तांे के अध्यधीन रहते हुए प्रदान की जायेगी – (1) सभी वांछित विवरण आवेदन – पत्र के साथ प्रस्तुत कर दिये गये हैं।
(2) सदस्यता केवल सेवा के कुछ कर्मचारियों तक ही सीमित है।
(3) संघ का गठन कर्मचारियों के सामान्य हितों को प्रोन्नत करने के उद्वेष्य से किया गया है। इसका गठन किसी जाति या जन जाति के आधार पर नहीं किया गया है और न ही किन्हीं धार्मिक ग्रन्थों के आधार पर गठित किसी ग्रुप के रूप में किया गया है।
(4) कार्यकारिणी के सदस्य इस संध के सदस्य हैं।
(5) संघ के कोष का गठन सदस्यों के अभिदान से किया गया है।
(6) उस संवर्ग के कम से कम 35प्रतिशत कर्मचारी उस संघ के सदस्य हैं।
360. मान्यता प्राप्त संघ द्वारा पालन की जाने वाली शर्ते – मान्यता प्राप्त संघ निम्नलिखित शर्तो से बाध्य होंगी –
(1) मान्यता प्राप्त संघ व्यक्तिगत मामलों के लिए प्रतिनिधि मण्ड़ल (ड़ेलीगेशन) नहीं भेजेगा लेकिन सदस्यों के सामान्य हितों को ही उठायेगा।
(2) वह किसी एक कर्मचारी से सम्बन्धित मामले का समर्थन नहीं करेगा।
(3) वह कोई भी राजनीतिक फण्ड़ नहीं रखेगा, और न ही वह किसी राजनीतिक दल की विचाराधारा का प्रचार करेगा।
(4) प्रत्येक वर्ष की एक जुलाई से पूर्व पदाधिकारियांे की एक सूची तथा लेखों का लेखा परीक्षा प्रतिवेदन प्रस्तुत करेगा।
(5) सभी अभ्यावेदन सचिव या विभागाध्यक्ष को ही सम्बोधित किए जायेंगे।
(6) राज्य सरकार की पूर्व अनुमति के बिना नियमोंध्उप – विधियों में कोई संषोधन नहीं किया जायेगा।
(7) किसी अन्य संघध्महासंघ की सदस्यता भी राज्य सरकार की पूर्व अनुमति के बिना प्राप्त नहीं की जायेगी।
(8) संघ का कोई भी सदस्य किसी ऐसी गतिविधि में शामिल नहीं होगा जो वर्गीकरण, नियंत्रण एवं अपील नियम, 1958 के अन्तर्गत दण्ड़नीय हो।
(9) वह किसी विदेषी एजेन्सी के साथ पत्र – व्यवहार नहीं करेगा।
(10) इसके पदाधिकारियों में से कोई भी व्यक्ति सरकारी कर्मचारियों के साथ अपमानजनक या अनुचित भाषा का प्रयोग नहीं करेगा।
(11) वह संसद, विधान सभा या स्थानीय निकायों के लिए किसी निर्वाचन में निम्न कार्य कर भाग नहीं लेगा – (क) चुनाव व्यय में अंशदान करके,
(ख) ऐसे चुनाव लड़ने वाले अभ्यर्थी का समर्थन करके,
(ंग) किसी अभ्यर्थी के चुनाव में सहायता करके।
(12) वह किसी राजनीतिक आंदोलन में लगे किसी राजनीतिक संगठन के साथ सम्बद्व नहीं किया जायेगा।
(13) उसे किसी व्यावसायिक यूनियन से सम्बद्व नहीं किया जायेगा या उस रूप में पंजीकृत नहीं किया जायेगा।
361. विवादों का निपटारा – केवल मान्यता प्राप्त संघ को अपने सदस्यों के विवादों के बारे में बातचीत करने का अधिकार होगा। प्रक्रिया इस प्रकार होगी –
(1) सभी शिकायतों का निपटारा पत्राचार के द्वारा या विधि विरूद्व साधनों का सहारा लिये बिना निदेशक , ग्रामीण विकास एवं पंचायती राज के साथ बात कर किया जायेगा।
(2) विवाद के मामले में, उसे विभागाध्यक्ष की अध्यक्षता में गठित संयुक्त परामर्श दात्री समिति के पास भेजा जायेगा। संघ उस समिति की सिफाारिषों को मानने के लिए बाध्य होगा।
362. सूचना की मॉंग करना – ग्रामीण विकास एवं पंचायती राज विभाग संघ से कोई भी सूचना यह जांच करने के लिए मॉंग सकेगा कि नियम 359 व 360 में दी गई शर्तो का पालन किया गया है।
363. एक संवर्ग के लिए किसी एक संघ को मान्यता देना – (1) मान्यता एक संवर्ग के केवल एक संघ को ही दी जायेगी।
(2) यदि कोई अन्य संघ भी बाद में उसी संवर्ग के कर्मचारियों के लिए मान्यता देने हेतु आवेदन करेगा तो पूर्व यूनियन को मान्यता दिये जाने की तारीख से एक वर्ष तक उस आवेदन पर विचार नहीं किया जायेगा।
(3) ऐसी अवधि के बाद, प्रत्येक मामले के गुणावगुण के आधार पर मान्यता को जारी रखा जा सकेगा या वापस लिया जा सकेगा।
364. महासंघ की सदस्यता – (1) मान्यता प्राप्त संघ उसी महासंघ की सदस्यता में शामिल हो सकता है जो राज्य सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त है।
(2) महासंघ का उद्वेष्य भी सदस्यों में सद्इच्छा एवं सहयोग की भावना को विकसित करने का होगा।
(3) महासंघ व्यक्तिगत विवादों को नहीं उठायेगा अपितु सामान्य हितों के मामलों पर बातचीत करेगा।
365. मान्यता वापस लेना – ग्रामीण विकास एवं पंचायती राज विभाग सुनवाई का अवसर देने के बाद ऐसी मान्यता को वापस ले लेगा,
यदि –
(1) संघ ने नियम 359 एवं 360 के उपबन्धों का उल्लंघन किया है, या
(2) मान्यता मिथ्यानिरूपण या कपट द्वारा प्राप्त की गयी है या वह दोषपूर्ण ढंग से दी गई है, या
(3) उसने इन नियमों के अन्तर्गत किसी ऐसी अन्य शर्त का उल्लंघन किया है।
366. शर्तों में शिथिलता देना – विभाग सद् एवं पर्याप्त कारणों से कुछ शर्तों को षिथिल करने में सक्षम होगा।
367. अभिलेखों का नाशन – पंचायती राज संस्था की निम्नलिखित पंजिकाओं, पुस्तिकाओं एवं कागजातों को उनके सामने विनिर्दिष्ट की गई अवधि के बीत जाने पर, नष्ट किया जायेगा। यह अवधि उनको बन्द करने या अन्तिम निपटारा किये जाने के तारीख से गिनी जायेगी –
(i) प्रतिपड़त रसीद बुकें – तीन वर्ष
(ii) करों एवं अन्य बकायों की मॉंग व वसूली को दर्शाने वाली पजिकायें – पांच वर्ष
(iii) पत्राचार की पंजिकाएॅं – तीन वर्ष
(iv) निरीक्षण पुस्तिका – तीन वर्ष
(v) पंचायतों की कार्य प्रणाली पर वार्षिक प्रतिवेदन – पांच वर्ष
(vi) अभिलेखों की नकलों के लिए आवेदन – पत्र – एक वर्ष
(vii) अभिलेखों के निरीक्षण हेतु आवेदन – पत्र
(viii) अध्यक्षों एवं सदस्यों द्वारा ली गई शपथ के प्रपत्र – एक वर्ष
तथा निर्वाचन से सम्बन्धित अन्य कागजात – चार वर्ष
(ix) लेखा परीक्षा प्रतिवेदन – पन्द्रह वर्ष
(x) गबन से सम्बन्धित प्रतिवेदन – पन्द्रह वर्ष
(xi) सेवा पुस्तिका एवं चरित्र पंजी का सम्बन्धित व्यक्ति की सेवानिवृत्ति के दो वर्ष बाद
(xii) आय एवं व्यय के वार्षिक अनुमान – तीन वर्ष
(xiii) वाऊचर एवं बिल लेखा परीक्षा किए जाने के – तीन वर्ष बाद
(xiv) प्रतिभूति उनके प्रभावषाली न रहने से – एक वर्ष बाद
(xv) अन्य विविध कागजात – तीन वर्ष
अध्याय 16
उपनियमों का निर्धारण
,
प्ररूप
प्ररूप I
[नियम 21 (1) देखें]
विश्वास की कमी को व्यक्त करते हुए एक प्रस्ताव बनाने के इरादे की लिखित सूचना का प्रपत्र
एक पंचायत के…….. सरपंच/उप-सरपंच में
एक पंचायती समिति के ……… प्रधान/उप प्रधान में
एक जिला परिषद के………. प्रमुख/उप–प्रमुख में
प्रति,
मुख्य कार्यकारी अधिकारी/विकास आयुक्त, जिला परिषद राजस्थान, जयपुर#
सूचना
महोदय,
हम, पंचायत/पंचायत समिति/जिला परिषद# के अधोहस्ताक्षरी निर्वाचित सदस्य, श्री…….………………में अविश्वास प्रस्ताव लाने के अपने इरादे से आपको यह सूचना देते हैं। हमारी पंचायत/पंचायत समिति/जिला परिषद के सरपंच/उप-सरपंच/प्रधान/उप प्रधान/प्रमुख/उप-प्रमुख# और इसके साथ अविश्वास प्रस्ताव की एक प्रति भी संलग्न करें।
भवदीय
जगह ………..
दिनांक …………
# जो लागू न हो उसे हटा दिया गया।
प्ररूप II
[नियम 21(2) देखें]
सरपंच/उप-सरपंच/प्रधान/उप-प्रधान/उप-प्रमुख के विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव पर विचार हेतु आयोजित होने वाली पंचायत/पंचायत समिति/जिला परिषद की बैठक की सूचना का प्रपत्र
प्रति,
श्री ……………
सदस्य,
पंचायत/पंचायत समिति/जिला परिषद………
सूचना
महोदय,
यह सूचना एतद्द्वारा आपको पंचायत/ पंचायत समिति/जिला परिषद की बैठक की जानकारी दी जाती है जो उक्त पंचायत/पंचायत समिति/जिला परिषद के कार्यालय में ……… को होगी। (तारीख) को …….. (समय) श्री…… सरपंच/उप सरपंच/प्रधान/उ0प्र0 के विरूद्ध किये गये अविश्वास प्रस्ताव पर विचार हेतु -उक्त पंचायत पंचायत समिति/जिला परिषद के प्रधान/प्रमुख/उप प्रमुख
प्रस्ताव की एक प्रति इसके साथ संलग्न है।
मुख्य कार्यकारी अधिकारी/विकास आयुक्त
जगह ………
दिनांक ……….
प्ररूप III
[नियम 31 देखें]
पंचायत/पंचायत समिति/जिला परिषद……
श्री ……… का टी ए बिल पदनाम ………
यात्रा और पड़ाव का विवरण |
रेल, सड़क या अन्य द्वारा यात्रा का प्रकार |
रेलवे/मोटर लॉरी/स्टीमर/एयरो विमान किराया |
|||||||||||
प्रस्थान |
आगमन |
कक्षा |
किराए की राशि |
||||||||||
स्थानक |
दिनांक |
घंटा |
स्थानक |
दिनांक |
घंटा |
तरीका |
रु. |
पीएस |
|||||
1 |
2 |
3 |
4 |
5 |
6 |
7 |
8 |
9 |
|||||
कुल |
|||||||||||||
आकस्मिक शुल्क |
दैनिक भत्ता |
स्थानीय परिवहन |
यात्रा के उद्देश्य |
टिप्पणियां |
|||||||||
किमी. |
भाव |
राशि |
दिनों की संख्या |
भाव |
राशि |
विवरण |
राशि |
||||||
रु. |
पीएस |
रु. |
पीएस |
रु. |
पीएस |
||||||||
10 |
1 1 |
12 |
13 |
14 |
15 |
16 |
18 |
19 |
|||||
राशि शब्दों में)
प्रमाणपत्र
1. प्रमाणित किया जाता है कि मुझे सरकारी स्थानीय निधि या स्थानीय निकाय के खर्चे पर कोई मुफ्त चलन नहीं दिया गया था।
2. प्रमाणित किया जाता है कि इस बिल का भुगतान पहले प्राप्त नहीं हुआ है।
3. प्रमाणित किया जाता है कि मैंने वास्तव में उग श्रेणी के आवास में यात्रा की है जिसके लिए टीए. दावा किया गया है।
4. प्रमाणित रविवार या अन्य छुट्टी के दिन जिसके लिए मेरे द्वारा दैनिक भत्ते का दावा किया गया है, मैं वास्तव में शिविर में था।
स्थानक : ………..
दिनांक : …………..
…………………….
हस्ताक्षर
रुपये के लिए काउंटर हस्ताक्षर काउंटर (शब्दों में)
संक्षिप्त वर्गीकरण
नियंत्रण अधिकारी
दिनांक:…………कोषागार उपयोग के लिए
ट्रेजरी/बैंक
रुपये का भुगतान करें …….. रुपये (शब्दों में)
जांच की और प्रवेश किया
पंचायत समिति/जिला परिषद लेखाकार आदाता का कार्यमुक्ति |
दिनांक |
विकास अधिकारी/मुख्य कार्यकारी अधिकारी |
प्राप्त भुगतान |
रुपये का भुगतान ………… पर |
कैश बुक की मद संख्या ………… |
हस्ताक्षर |
कैशियर विकास |
अधिकारी/मुख्य कार्यकारी अधिकारी |
प्ररूप IV
[नियम 63 देखें]
समाप्त होने वाली अवधि के लिए करों की मांग का आकलन…………
पंचायत का नाम…………पंचायत समिति ……………जिला ……… कर का नाम ……… …. कर की दर ……………
गांव का नाम |
निर्धारिती का नाम और पिता का नाम, पेशा और पता |
क्षेत्रों |
वर्तमान मांग |
कुल |
टिप्पणियां |
1 |
2 |
3 |
4 |
5 |
6 |
दिनांक : ………..
पटवारी के हस्ताक्षर
प्ररूप V
[नियम 64 और 105 देखें]
मांग पर्ची
बुक नं…………. |
क्रमांक …………… |
गांव ……………. |
पंचायत ……… |
ज़िला …………. |
पंचायत समिति ………. |
साल के लिए ……….. |
(काउंटर पन्नी)
दिनांक |
निर्धारिती का नाम और पिता का नाम, व्यवसाय और पता |
कर का नाम |
मांग |
टिप्पणियां |
||
क्षेत्र |
वर्तमान |
कुल |
||||
1 |
2 |
3 |
4 |
5 |
6 |
7 |
प्रपत्र VI
[देखो। नियम 67]
मांग और संग्रह रजिस्टर
पंचायत समिति…………
पंचायत ……………
साल के लिए …………
क्रमांक |
गांव का नाम |
निर्धारिती का नाम, पिता का नाम, व्यवसाय और पते |
कर का नाम |
क्षेत्रों |
वर्तमान मांग |
कुल |
संदर्भ। पर्ची मांगना |
भुगतान की गई राशि |
कुल |
संदर्भ। रगद का |
संदर्भ। वसूली विवरण के लिए |
टिप्पणियां |
||||
नहीं। |
दिनांक |
बक़ाया |
वर्तमान मांग |
नहीं। |
दिनांक |
नहीं। |
दिनांक |
|||||||||
1 |
2 |
3 |
4 |
5 |
6 |
7 |
8 |
9 |
10 |
1 1 |
12 |
13 |
14 |
15 |
16 |
17 |
प्ररूप VII
[नियम 69(6) देखें]
मवेशी प्रवेश पास (लाल रंग में)
बुक नं………….
क्रमांक ……………….
दिनांक ……………..
1 आउट पोस्ट नं………….
2. पशु लाने वाले प्रजनक का नाम …………… पुत्र ………जाति ……… आर/ओ ……………….
3. वह स्थान जहाँ से मवेशी लाए थे ……… तहगल ………………. जिला ……… …… राज्य …………..
क्रमांक |
जानवर का प्रकार |
संख्या |
लौटने की तारीख |
टिप्पणियां |
1 |
2 |
3 |
4 |
5 |
विशेष निर्देश: –
1. प्रत्येक व्यापारी/पशु के मालिक को प्रवेश पास प्राप्त करना होगा, अन्यथा वह प्रस्थान के समय दंड के लिए उत्तरदायी होगा।
2. बिक्री के तुरंत बाद मेला कार्यालय में बिक्री का तथ्य दर्ज किया जाना चाहिए।
3. पशु की मृत्यु की घटना के चरने के लिए मवेशियों के प्रवेश या निकास का तथ्य प्रवेश पास पर दर्ज किया जाना चाहिए, ऐसा न करने पर ऐसे जानवर के लिए भी कर लगाया जाएगा।
प्ररूप VIII
[नियम 69(4) देखें]
रावण (सफेद रंग)
बुक नं………….
गरीयल नम्बर ………..
दिनांक ………………..
(मवेशियों के क्रेता का नाम) पुत्र …….. आर/ओ ……… से निम्नानुसार पशु मेला कर की वसूली :
मवेशी . का विवरण |
संख्या |
कीमत |
मेला टैक्स |
टिप्पणियां |
||
कुल |
ज्यादा से ज्यादा |
न्यूनतम |
||||
1 |
2 |
3 |
4 |
5 |
6 |
7 |
प्ररूप IX
[नियम 69(7) देखें]
बिक्री का पंजीकरण
क्रमांक |
दिनांक |
पते के साथ खरीदार का नाम |
खरीदे गए मवेशियों का विवरण |
संख्या |
कीमत |
मेला टैक्स |
विक्रेता का नाम और पता |
||
कुल |
मैक्स |
मिनट |
|||||||
1 |
2 |
3 |
4 |
5 |
6 |
7 |
8 |
9 |
10 |
प्ररूप X
[नियम 82(4) देखें]
करों/चुंगी शुल्क की प्राप्ति
रगद बुक नं…………. |
क्रमांक ……………………. |
गांव …………….. |
पंचायत ………………. |
पंचायत समिति………… |
ज़िला ………………….. |
जमाकर्ता |
||||
दिनांक |
विवरण के साथ प्राप्त राशि |
मांग पर्ची का संदर्भ |
||
कर का नाम |
राशि |
नहीं। |
दिनांक |
|
1 |
2 |
3 |
4 |
5 |
करदाता के हस्ताक्षर/टीI |
चुंगी शुल्क के मामले में: |
पटवारी के हस्ताक्षर |
||
दिनांक |
वस्तुओं के मूल्य |
माल का विवरण |
चुंगी की दर |
चुंगी की मात्रा |
1 |
2 |
3 |
4 |
5 |
दिनांक : ………
चुंगी कलेक्टर के हस्ताक्षर
प्ररूप XI
[नियम 85(1) देखें]
ट्रांजिट माल के लिए रगद
पंचायत ………………… |
पंचायत स्मिता……… |
ज़िला…………….. |
बुक नं…………………… |
क्रमांक ……………………. |
|
दिनांक…………………. |
||
चुंगी चौकीदार का नाम……. |
दिनांक…………………. |
|
आयातक का नाम………… |
इसलिए……………. |
आर/ओ………………….. |
माल का विवरण |
मूल्य |
भाव |
राशि रु. |
टिप्पणियां |
1 |
2 |
3 |
4 |
5 |
रेलवे/माल प्राप्तियों की संख्या……… |
दिनांक……………… |
भेजने का स्थान………… |
|
पास नंबर ………………… |
दिनांक…………….. |
आयातक के हस्ताक्षर |
प्रभारी चुंगी चौकी के हस्ताक्षर |
प्ररूप XII
[नियम 91 देखें]
वाहन के लाइसेंस का प्ररूप
श्री ……… पुत्र ……… निवाग ……… ने वर्ष के लिए वाहन कर का भुगतान किया है और नीचे वर्णित वाहन रखने की अनुमति है उक्त अवधि के लिए पंचायत सर्कल के भीतर।
विवरण
सरपंच…………
पंचायत ……………
प्ररूप XIII
[नियम 106 देखें]
मांग सूचना का प्रपत्र
पंचायत…………पंचायत समिति…………जिला परिषद…………मामला क्रमांक… ……….वर्ष………………..
प्रति,
…………………………………………
_
विवरण
…………………….
उपरोक्त मामले में, आपके द्वारा ……….. की राशि बकाया है और मांग पर्ची दिनांकित होने के बावजूद आपने बकाया राशि जमा नहीं की, इसलिए आपको एतद्द्वारा आदेश दिया जाता है कि उपरोक्त राशि को आपके द्वारा जमा किया जाए पन्द्रह दिनों में विफल होने पर आपकी चल संपत्ति को अभिरक्षा में ले लिया जाएगा और बकाया की वसूली के लिए कार्रवाई की जाएगी।
के तहत दिया गया है इस दिन मुहर लगा सकता है …………………….
सरपंच के हस्ताक्षर
प्रपत्र XIV
[नियम 107 देखें]
कुर्की और बिक्री का वारंट
पंचायत ………………..पंचायत समिति…………जिला परिषद………… केस नं………………वर्ष…………
विवरण
…………………
प्रति,
……………..
उपरोक्त मामले में श्री…….पुत्र…..आर/ओ से ……….. की राशि देय है और उग के पास है डिमांड और डिमांड स्लिप की सूचना के बावजूद भुगतान नहीं किया गया और 15 दिनों की समय गमा भी समाप्त हो गई। राजस्थान पंचायती राज अधिनियम, 1994 की धारा 65 की उप-धारा (2) के तहत नियम 107 के अनुसरण में, आप एतद्द्वारा………… की चल संपत्ति को कुर्क करने के लिए अधिकृत हैं। …..विधि द्वारा छूट प्राप्त वस्तुओं को छोड़कर और पंचायत के समक्ष प्रस्तुत करते हुए उक्त चल सम्पत्ति को विधि के अनुसार कुर्क एवं विक्रय कर विक्रय राशि पंचायत में जमा करायें।
इस दिन किग भी हाथ और मुहर के नीचे दिया जाता है………….
सरपंच के हस्ताक्षर
प्ररूप XV
[नियम 115 और 118 देखें]
मवेशी पौंड रजिस्टर (कीन-हाउस)
क्रमांक |
जानवर की तिथि और समय |
पशु के प्रवेश पर दी गई रगद की संख्या |
जानवर का विवरण |
जानवर का पहचान चिह्न और दिखावट |
पशु लाने वाले व्यक्ति का नाम और निवास स्थान |
पशु के मालिक का नाम और निवास स्थान यदि ज्ञात हो |
पशु के निपटान की तिथि, समय का तरीका अर्थात, बेचा, छोड़ा या छोड़ा या दावा न की गई संपत्ति के रूप में माना जाता है |
|||
दिनांक |
समय |
तौर – तरीका |
||||||||
1 |
2 |
3 |
4 |
5 |
6 |
7 |
8 |
9 |
10 |
|
बेचे गए जानवर के निपटान की रगद और संख्या, जिसे दावा न किया गया संपत्ति माना जाता है |
कितने दिनों तक पशु काइन हाउस में रहा |
जुर्माना और खिलाने का शुल्क वसूल किया गया |
पंचायत निधि में जमा या पशु के मालिक को भुगतान की गई राशि |
कुल पंचायत निधि में जमा या पशु के मालिक को भुगतान |
पशु प्राप्त करने वाले व्यक्ति का नाम और पता |
जानवर को प्राप्त करने वाले व्यक्ति के हस्ताक्षर या अंगूठे का निशान |
पशु पौंड के हस्ताक्षर या प्रभारी (काइंड हाउस) |
टिप्पणियां |
||
पाना |
फीडिंग चार्ज |
पंचायत निधि |
जानवर का मालिक |
|||||||
1 1 |
12 |
13 |
14 |
15 |
16 |
17 |
18 |
19 |
20 |
21 |
प्ररूप XVI
[नियम 115 और 119 देखें]
पशु के प्रवेश की रगद (दो पन्नी में)
बुक नं…………. |
दिनांक……………………… |
गरीयल नम्बर…………….. |
पंचायत ………………… |
काइन-हाउस का नाम……………… |
पंचायत समिति……. |
ज़िला…………………… |
पशु की तिथि और प्रवेश |
जानवर लाने वाले व्यक्ति का नाम और निवास स्थान |
भर्ती किए गए जानवरों की संख्या और विवरण आदि |
मालिक के निवास का नाम और स्थान यदि यह ज्ञात है |
काइन-हाउस रजिस्टर नंबर |
टिप्पणियां |
1 |
2 |
3 |
4 |
5 |
6 |
काइन हाउस प्रभारी के हस्ताक्षर
प्ररूप XVII
[नियम 115 और 126 देखें]
काइन-हाउस से पशु की रिहाई के लिए पास
बुक नं…………. |
दिनांक……………………… |
गरीयल नम्बर…………….. |
पंचायत ………………… |
काइन-हाउस का नाम……………… |
पंचायत समिति……. |
ज़िला…………………… |
जानवर के प्रवेश की तिथि और समय |
जानवर की रिहाई की तारीख और समय |
जानवरों की संख्या और विवरण |
पशु लेने वाले व्यक्ति का नाम और निवास स्थान |
अच्छा एहसास हुआ |
चराई शुल्क वसूल |
कोई अन्य वसूली |
टिप्पणियां |
1 |
2 |
3 |
4 |
5 |
6 |
7 |
8 |
काइन हाउस प्रभारी के हस्ताक्षर
प्ररूप XVIII
[नियम 115 और 126 देखें]
पशु की रिहाई के लिए पास
(पंचायत में रखा जाना है)
बुक नं…………. |
दिनांक………………………. |
गरीयल नम्बर…………….. |
पंचायत ………………. |
काइन-हाउस का नाम………… |
पंचायत समिति………… |
काइन हाउस रजिस्टर का क्रमांक |
जानवर की रिहाई की तारीख और समय |
जुर्माने की राशि |
चराई शुल्क |
कोई अन्य वसूली |
टिप्पणियां |
1 |
2 |
3 |
4 |
5 |
6 |
पिछले कुल सहित कुल
काइन हाउस प्रभारी के हस्ताक्षर
प्ररूप XIX
[नियम 115 और 127 देखें]
पशु के क्रेता को दी जाने वाली रगद |
पशु के क्रेता को दी जाने वाली रगद |
बुक नं…………. |
बुक नं………………….. |
क्रमांक …….. दिनांक…..19 …. |
क्रमांक …. दिनांक….. 19…. के नाम का नाम |
काइन हाउस …………… |
काइन हाउस………… |
पंचायत………… |
पंचायत………… |
पंचायत समिति………… |
पंचायत समिति………… |
काइन-हाउस रजिस्टर नंबर |
पशु और वर्ग का विवरण |
पहचान चिह्न या दिखावट |
पशु के क्रेता का नाम और निवास स्थान |
वह कीमत जिस पर जानवरों को नीलामी द्वारा बेचा गया था |
रोकड़ बही में प्रविष्टि का विवरण |
टिप्पणियां |
1 |
2 |
3 |
4 |
5 |
6 |
7 |
पशुओं के क्रेता के हस्ताक्षर
सरपंच के हस्ताक्षर
प्ररूप XX
[नियम 137 देखें]
भवनों और अन्य अचल संपत्ति का रजिस्टर …………
पंचायत………… |
पंचायत समिति………… |
जिला…………वर्ष…………19………….
गरीयल नम्बर। |
संपत्ति प्राप्ति की तिथि |
संपत्ति का विवरण |
मूल्य |
जिसका उद्देश्य उपयोग किया जाता है |
वार्षिक आय यदि कोई हो |
टिप्पणियां |
1 |
2 |
3 |
4 |
5 |
6 |
7 |
प्ररूप XXI
[नियम 146 देखें]
पंचायत ………………. |
पंचायत समिति………… |
जिला…………वर्ष…………19………….
गरीयल नम्बर। |
संपत्ति प्राप्ति की तिथि |
संपत्ति का विवरण |
मूल्य |
जिसका उद्देश्य उपयोग किया जाता है |
वार्षिक आय यदि कोई हो |
टिप्पणियां |
1 |
2 |
3 |
4 |
5 |
6 |
7 |
प्ररूप XXII
[नियम 148 देखें]
आबादी भूमि की प्रस्तावित बिक्री के संबंध में आपत्ति आमंत्रण सूचना।
पंचायत………… |
पंचायत समिति……… |
जिला परिषद………… |
सूचना
नहीं…………..
दिनांक……………
एतद्वारा सूचित किया जाता है कि श्री…… पुत्र…………निवास ने इस पंचायत में नीचे वर्णित भूमि के लिए आवेदन किया है:-
(भूमि का विवरण)
यदि किग को उपरोक्त भूमि की बिक्री से कोई आपत्ति है तो वह एक माह के भीतर अपनी आपत्ति दर्ज करा सकता है।
[[राजस्व अभियान या प्रशन गांव के संग अभियान या राज्य सरकार के आदेश द्वारा आयोजित भूमि और पट्टा वितरण के लिए आयोजित किग अन्य अभियान के दौरान, आपत्ति दर्ज करने की अवधि एक महीने के स्थान पर सात दिन होगी]
पंचायत के हस्ताक्षर
सरपंच के हस्ताक्षर
प्ररूप XXIII
[नियम 167(1) देखें]
आबादी भूमि की बिक्री विलेख
यह बिक्री विलेख राजस्थान पंचायती राज अधिनियम, 1994 (राजस्थान अधिनियम संख्या 13) के तहत स्थापित पंचायत के खच …………… के दिन को बनाया जाता है। 1994 का), उस अधिनियम की धारा 9 के प्रावधानों के आधार पर एक निगमित निकाय होने के नाते, (इसके बाद एक भाग का “विक्रेता” कहा जाता है और ……… S/o…… ……. के निवाग (बाद में “क्रेता” कहा जाता है), दूसरे भाग का।
जबकि
1. यहां की अनुसूची में वर्णित भूमि और विशेष रूप से इसके साथ संलग्न योजना में वर्णित भूमि, जो इसे लाल रंग से बंधी हुई दर्शाती है, विक्रेता के उद्देश्य के लिए विक्रेता में निहित है।
2. उक्त भूमि को विक्रेता की ओर से ……….. के दिन (श्री……. के आवेदन के अनुसार भूमि की खरीद के लिए) बिक्री के लिए नीलामी के लिए रखा गया था। ) और क्रेता की बोली रु……. उच्चतम होने के कारण स्वीकार कर ली गई।
या
उक्त भूमि को मोल-तोल कर बाजार भाव से …………(बातचीत द्वारा बिक्री के लिए लागू) पर बेचा गया है और संकल्प संख्या………. दिनांकित द्वारा नीलाम किया गया है। विक्रेता पंचायत के ……… और पंचायत समिति/जिला परिषद/राज्य सरकार द्वारा आदेश संख्या ……… दिनांक ……… द्वारा पुष्टि की गई
3. उक्त नीलामी राजस्थान पंचायती राज नियम, 1996 के नियम 150 से 152 के अनुसार आयोजित की गई थी; जैसा कि आज तक संशोधित किया गया है और
4. क्रेता ने उक्त राशि विक्रेता के खाते में जमा कर दी है।
अब यह विलेख इस प्रकार साक्षी है :-
मैं । उक्त नीलामी/बिक्री के अनुसरण में और क्रेता द्वारा भुगतान की गई रुपये की राशि को ध्यान में रखते हुए (जिस रगद पर विक्रेता एतद्द्वारा स्वीकार करता है), विक्रेता एतद्द्वारा; यहां अनुसूची में वर्णित भूमि को क्रेता को हस्तांतरित करना और विशेष रूप से इसके साथ संलग्न योजना में वर्णित है जो इसे लाल रंग में परिबद्ध के रूप में दर्शाता है। ऐसे उपकरों और करों के भुगतान के अधीन क्रेता को पूर्ण स्वामी के रूप में रखने के लिए जो कानूनी रूप से मूल्यांकन या उस पर लगाए जा सकते हैं और राजस्थान पंचायती राज अधिनियम, 1994 और उसके तहत बनाए गए नियमों और उप-नियमों द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों के अधीन हैं। फिलहाल लागू है।
2. एतद्द्वारा यह सहमति व्यक्त की जाती है कि इसके पहले प्रयुक्त अभिव्यक्ति “विक्रेता” में विक्रेता के उत्तराधिकारी और समनुदेशिती शामिल हैं, और इसके पहले प्रयुक्त अभिव्यक्ति “क्रेता” में उसके उत्तराधिकारी, प्रतिनिधि, उत्तराधिकारी और समनुदेशिती शामिल हैं।
(अनुसूची और योजना संलग्न की जाए)
पंचायत की ओर से उस पंचायत के संकल्प संख्या…………के आलोक में हस्ताक्षर किये गये।
सरपंच/ग्राम सेवक-सह-सचिव क्रेता के हस्ताक्षर गवाह के हस्ताक्षर
नं. 1………………
गवाह नं. मैं………………
गवाह नं। मैं …………………
गवाह संख्या II …………………
प्ररूप XXIII क
[नियम 157 (1) देखें]
आवागय भूमि का पट्टा
ग्राम पंचायत…………
पंचायत समिति…………
ज़िला……………………..
यह विलेख राजस्थान पंचायती राज अधिनियम, 1994 (1994 का राजस्थान अधिनियम संख्या 13) के तहत स्थापित पंचायत (पंचायत का नाम) के खच (पंचायत का नाम) के ……… दिन को बनाया गया था (जिसे इसके बाद “ आबंटन प्राधिकारी”) एक भाग का…………और पुत्र/ओ, डब्ल्यू/ओ, डी/ओ……निवाग…… …… (बाद में “आवंटी” कहा जाता है), दूसरे भाग का।
जबकि
इसके साथ संलग्न अनुसूचित में वर्णित भूमि, जो इसे लाल रंग से बंधी हुई दर्शाती है, आवंटन के प्रयोजन के लिए आवंटन प्राधिकारी में निहित है।
यह पट्टा राजस्थान पंचायत के नियम 157(1) के तहत निवाग श्री/श्रीमती …… राज नियम, 1996 निम्नलिखित शर्तों के साथ।
1. उक्त आबंटिती के पास पंचायत आबादी भूमि पर राजस्थान पंचायती राज नियम, 1996 के प्रारंभ होने की तिथि से पचास वर्ष से अधिक पुराना/पिछले पचास वर्षों के दौरान निर्मित पुराने मकान का कब्जा है। आवंटी ने एक सौ दो सौ रुपये जमा कर दिए हैं।
2. संलग्न मानचित्र योजना में भूमि का क्षेत्रफल लाल स्याही से अंकित किया गया है।
3. आवंटी घर के पुनर्निर्माण के लिए सरकारी, सहकारी बैंक, वाणिज्यिक बैंक या किग अन्य वित्तीय संस्थान से ऋण लेने के लिए दस्तावेज गिरV रख सकता है।
4. आवंटी सरकार या स्थानीय प्राधिकरण को देय सभी करों या अन्य शुल्कों का भुगतान करने के लिए उत्तरदायी होगा।
संकल्प सं……. के अनुपालन में ग्राम पंचायत द्वारा दिनांक ………… को जारी किया गया
हस्ताक्षर सचिव
हस्ताक्षर सरपंच
गमांकन –
1. उत्तर…………
2. दक्षिण………………
3. पूर्व………………
4. पश्चिम …………………
मानचित्र:- (भूमि को मानचित्र में लाल स्याही से डी-चिह्नित किया गया है)
माप: –
उत्तर दिशा:………………
दक्षिण दिशा:………………
पूर्व दिशा:……………………….
पश्चिम दिशा …………………
कुल क्षेत्रफल…………वर्ग.यार्ड।
हस्ताक्षर सचिव
हस्ताक्षर सरपंच
उपयोग के लिए नहीं |
प्ररूप-XXIII ख
[नियम 157(2) देखें]
आबादी भूमि का आवंटन/झोपड़ी/कच्चा रखने वाले परिवारों का नियमितीकरण।
ग्राम पंचायत …………………
पंचायत समिति ……… …………जिला …………………….(राजस्थान)
यह आवंटन विलेख राजस्थान पंचायती राज अधिनियम, 1994 (राजस्थान अधिनियम, सं. 13 ऑफ 1994), उस अधिनियम की धारा 9 के प्रावधानों के आधार पर एक कॉर्पोरेट निकाय होने के नाते, (इसके बाद “आवंटन प्राधिकरण” कहा जाता है), एक तरफ और श्रीमती। ………… डब्ल्यू / ओ ………… निवाग (बाद में “आवंटी” कहा जाता है), दूसरे हिस्से का।
जबकि
यहां संलग्न अनुसूचित में वर्णित भूमि, जो इसे लाल रंग से बंधी हुई दर्शाती है, आवंटन प्राधिकारी में निहित है।
जबकि आबंटिती के परिवार के पास कोई मकान या आवास स्थल नहीं है और उक्त भूमि पर वर्ष 2003 तक निर्माण के रूप में आबादी भूमि के कब्जे में है।
जबकि ग्राम पंचायत ने राजस्थान पंचायती राज नियम, 1996 के नियम 157(2) के तहत आवंटी को भूमि का आवंटन एवं कब्जा सौंप दिया है।
जबकि पंचायत ने उक्त भूमि का आबंटन…… वर्ग मीटर करने पर सहमति जताई है। इसके बाद उल्लिखित नियमों और शर्तों पर यार्ड (अधिकतम 300 गज)।
और जबकि पंचायत ने मृत भूमि का कब्जा आवंटी को सौंप दिया था………….
अब यह विलेख साक्षी इस प्रकार है:
1. यह आवंटन नियमावली में निर्धारित प्रक्रिया का पालन करते हुए किया जा रहा है।
2. आवंटन प्राधिकारी को उनके आवेदन के संदर्भ में ऐग भूमि आवागय प्रयोजन के लिए श्रीमती को नि:शुल्क आवंटित की गई है।
3. आवंटी और उसके उत्तराधिकारियों को किग को भी भूमि हस्तांतरित करने का कोई अधिकार नहीं है और शर्त संख्या 4 में दिए गए प्रावधान को छोड़कर स्वयं आवंटी के कब्जे में होंगे।
4. इस भूमि पर मकान बनाने के लिए आवंटी को सरकारी उपक्रम से ऋण लेने के दस्तावेज गिरV रखने का अधिकार होगा। सहकारी बैंक या किग अन्य वित्तीय संस्थान से।
5. इस भूखंड का उपयोग आवागय उद्देश्य के रूप में किया जा सकता है।
6. यदि आवंटी द्वारा कोई गलत सूचना दी जाती है या यदि वह किग व्यक्ति को भूखंड हस्तांतरित करता है, तो आवंटन प्राधिकारी के पास भूमि का आवंटन रद्द करने का अधिकार सुरक्षित है।
7. आवंटी ग्राम के व्यवस्थित विकास के लिए ग्राम पंचायत द्वारा अनुमोदित योजनाओं का अनुपालन करने के लिए बाध्य होगा।
8. यदि आवेदक किग शर्त या नियमों के प्रावधानों का उल्लंघन करता है तो आवंटन प्राधिकारी के पास आवंटन रद्द करने का अधिकार सुरक्षित है। आवंटन निरस्त करने से पूर्व आवंटन प्राधिकारी द्वारा आवंटी को सुनवाई का अवसर दिया जायेगा।
9. आवंटी सरकार और अन्य स्थानीय प्राधिकरण को देय सभी करों या शुल्कों का भुगतान करने के लिए उत्तरदायी होगा।
ग्राम पंचायत द्वारा जारी ……… दिनांक को है ……… संकल्प संख्या का अनुपालन है ………………. ….
हस्ताक्षर सचिव
हस्ताक्षर सरपंच
गमांकन –
1. उत्तर …………………
2. दक्षिण …………………
3. पूर्व …………………
4. पश्चिम। ……………………………
मानचित्र :- (भूमि को मानचित्र में लाल स्याही से अंकित किया गया है) माप :-
उत्तर दिशा …………………
दक्षिण दिशा …………………
पूर्व दिशा ………………………..
पश्चिम दिशा …………………
कुल दिशा :…………………. वर्ग यार्ड
हस्ताक्षर सचिव
हस्ताक्षर सरपंच
प्ररूप XXIII ग
[नियम 158 देखें]
अबादी भूमि का रियायती दर/नि:शुल्क आवंटन
ग्राम पंचायत …………………
पंचायत समिति ……… …………जिला ……………………. (राजस्थान)
आवंटन का यह विलेख राजस्थान पंचायती राज अधिनियम, 1994 (राजस्थान अधिनियम, 1994) के तहत स्थापित पंचायत (पंचायत का नाम) के खच ………… के दिन ……… को किया जाता है। 1994 की संख्या 13)। उस अधिनियम की धारा 9 के प्रावधानों के आधार पर एक निगमित निकाय होने के नाते। (बाद में “आवंटन प्राधिकारी” कहा जाता है) एक भाग का और ……… पुत्र …….. निवाग …….. …… (बाद में “आवंटी” कहा जाता है), दूसरे भाग का।
जबकि
जबकि आवंटी ने आवास निर्माण हेतु भूमि का आवंटन रियायती दर पर/नि:शुल्क करने का अनुरोध किया तथा पंचायत उसे आवंटित करने के लिए सहमत है।
जबकि ग्राम पंचायत ने राजस्थान पंचायती राज नियम, 1996 के नियम 158 के तहत आवंटी को भूमि का आवंटन एवं कब्जा सौंप दिया है।
जबकि ग्राम पंचायत ने राजस्थान पंचायती राज के नियम 158 के तहत आवंटी को भूमि का आवंटन एवं कब्जा सौंप दिया है। नियम, 1996।
तथा जबकि पंचायत मापी भूमि आवंटित करने पर सहमत हो गई है…. वर्ग. गज (150 गज तक) आवागय उद्देश्य के लिए इसके बाद उल्लिखित नियमों और शर्तों पर –
जबकि पंचायत ने मृत भूमि का कब्जा आवंटी को सौंप दिया था।
अब यह विलेख साक्षी इस प्रकार है:
1. आबंटिती रियायती दर पर/नि:शुल्क आवंटन के लिए पात्र है।
2. भूमि जो संलग्न मानचित्र में लाल स्याही से आबंटन में दर्शाया गया है, आवंटी को आवागय प्रयोजन के लिए हस्तान्तरित की जाती है।
3. आवंटी और उसके उत्तराधिकारियों को किग को भी भूमि हस्तांतरित करने का कोई अधिकार नहीं है और शर्त संख्या 4 में दिए गए प्रावधान को छोड़कर, वह स्वयं आबंटिती के कब्जे में होगा।
4. इस भूमि पर मकान बनाने के लिए आवंटी को सरकारी उपक्रम, सहकारी बैंक या किग अन्य वित्तीय संस्था से ऋण लेकर दस्तावेज गिरV रखने का अधिकार होगा।
5. ऐग भूमि राजस्थान पंचायती राज नियम, 1996 के प्रावधानों के अनुसार आबंटिती को उसके आवेदन के संदर्भ में ………/- की दर से अथवा आवागय प्रयोजन हेतु नि:शुल्क आबंटित की गई है। .
6. इस भूखंड का उपयोग आवागय उद्देश्य के रूप में किया जा सकता है।
7. यदि आवेदक द्वारा कोई गलत सूचना दी जाती है या यदि वह किग अन्य को भूखण्ड हस्तांतरित करता है, तो आवंटन प्राधिकारी भूमि के आवंटन को रद्द करने का अधिकार सुरक्षित रखता है।
8. ग्राम के व्यवस्थित विकास की दृष्टि से आबंटिती ग्राम पंचायत द्वारा अनुमोदित योजनाओं का अनुपालन करने के लिए बाध्य होगा।
9. यदि आवेदक किग शर्त या नियमों के प्रावधानों का उल्लंघन करता है तो आवंटन प्राधिकारी को भूखंड को रद्द करने का अधिकार सुरक्षित है। ऐसे भूखण्ड को निरस्त करने से पूर्व आवंटन प्राधिकारी आवंटी को सुनवाई का अवसर देगा।
10. आवंटी सरकार और अन्य स्थानीय प्राधिकरण को देय सभी करों या शुल्कों का भुगतान करने के लिए उत्तरदायी होगा।
ग्राम पंचायत द्वारा जारी किया गया ……… दिनांक को है ……… संकल्प संख्या ……… का अनुपालन है ………
हस्ताक्षर सचिव
हस्ताक्षर सरपंच
गमांकन:
1. उत्तर: …………………
2. दक्षिण: …………………
3. पूर्व: …………………
4. पश्चिम: …………………
मानचित्र:- (भूमि को मानचित्र में लाल स्याही से अंकित किया गया है) मापन:-
1. उत्तर दिशा: …………………
2. दक्षिण दिशा: …………………
3. पूर्व दिशा: …………………
4. पश्चिम दिशा: …………………
कुल क्षेत्रफल ……………………… वर्ग। यार्ड।
हस्ताक्षर सचिव
सिग्नेचर सरपंच”
प्रपत्र XXIV
[नियम 168 (1) देखें]
आबादी भूमि के पट्टा बही (बिक्री विलेख का रजिस्टर)
पंचायत …….. पंचायत समिति …….. जिला ……………
क्र.सं. |
कोई फ़ाइल नहीं। |
पंचायत के आदेश की संख्या और तारीख और उच्च अधिकारी द्वारा पुष्टि की तारीख, यदि कोई हो |
प्लॉट संख्या और आकार |
की कुल लागत |
बिक्री विलेख प्राप्त करने वाले व्यक्ति का नाम |
पट्टा पाने वाले के हस्ताक्षर |
सचिव/सरपंच के हस्ताक्षर |
पंचायत समिति को मासिक विवरण भिजवाने की तिथि दिनांक: से… |
1 |
2 |
3 |
4 |
5 |
6 |
7 |
8 |
9 |
प्ररूप XXV
[नियम 180 देखें]
कार्यों का रजिस्टर
पंचायत का नाम ………………… |
पंचायत समिति ………………… |
कार्य का विवरण…………
क्र.सं. |
कार्य शुरू करने की तारीख |
कार्य के लिए स्वीकृत राशि |
राशि खर्च |
बिक्री विलेख प्राप्त करने वाले व्यक्ति का नाम |
पट्टा पाने वाले के हस्ताक्षर |
टिप्पणियां (मजदूरी/सामग्री के भुगतान की तिथि दर्शाई जाए) |
|
सामग्री |
वेतन |
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1 |
2 |
3 |
4 |
5 |
6 |
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8 |
प्ररूप XXVI
[नियम 191 देखें]
समझौते का रूप
इस ………… के दिन ……… के खच ……… के खच एक समझौता किया गया (इसके बाद अनुमोदित आपूर्तिकर्ता कहा जाता है, जहां अभिव्यक्ति होगी जहां संदर्भ होगा) एक भाग और पंचायत/पंचायत समिति/जिला परिषद के उत्तराधिकारियों, उत्तराधिकारी, निष्पादकों और प्रशासकों को शामिल करने के लिए माना जाता है, जो अभिव्यक्ति, जहां संदर्भ ऐसा मानता है, कार्यालय में अपने उत्तराधिकारी और के असाइन किए गए लोगों को शामिल करने के लिए समझा जाएगा। अन्य भाग।
2. जबकि अनुमोदित आपूर्तिकर्ता ने ……..पंचायत/पंचायत समिति/जिला परिषद के साथ संलग्न अनुसूची में उल्लिखित इन सभी वस्तुओं को निर्धारित तरीके से आपूर्ति करने के लिए सहमति व्यक्त की है। इसके साथ संलग्न निविदा और अनुबंध की शर्तों में और अनुसूची के कॉलम ……… में निर्धारित दरों पर।
3. और जबकि स्वीकृत आपूर्तिकर्ता ने ………… की राशि जमा की है:
(I) कैश/बैंक ड्राफ्ट/बैंकर चैक नं……. दिनांक…
(II) डाकघर/बचत बैंक पासबुक पंचायत/पंचायत समिति/जिला परिषद को सम्यक रूप से दृष्टिबंधक
(III) राष्ट्रीय बचत प्रमाणपत्र/रक्षा बचत प्रमाणपत्र/किसान विकास पत्र या राष्ट्रीय बचत योजना के तहत कोई अन्य साधन। (प्रमाणपत्र उनके समर्पण मूल्य पर स्वीकार किए जा रहे हैं)।
4. अब ये मौजूद गवाह –
(1) उक्त पंचायत/पंचायत समिति/जिला परिषद द्वारा इसके लिए अनुसूची में निर्धारित दरों पर किए जाने वाले भुगतानों को ध्यान में रखते हुए, अनुमोदित आपूर्तिकर्ता …… में उल्लिखित उक्त वस्तुओं की विधिवत आपूर्ति करेगा। .. और …….. निविदा और अनुबंध की शर्तों में निर्धारित तरीके से।
(2) निविदा की शर्तें और खुली निविदा के लिए अनुबंध, जैसा कि निविदा सूचना संख्या …… दिनांक ……. के साथ संलग्न है और इस समझौते में संशोधित भी किया गया है, के हिस्से के रूप में माना जाएगा। यह समझौता इस समझौते को क्रियान्वित करने वाले पक्षों के लिए बाध्यकारी है।
(3) पंचायत/पंचायत समिति/जिला परिषद द्वारा जारी निविदाकर्ता से प्राप्त पत्र संख्या………… और पत्र संख्या …………… और इस समझौते के साथ संलग्न भी इस समझौते का हिस्सा बनेंगे।
(4)(क) उक्त पंचायत/पंचायत समिति/जिला परिषद एतद्द्वारा सहमत हैं कि यदि अनुमोदित आपूर्तिकर्ता उक्त वस्तुओं को पूर्वोक्त तरीके से आपूर्ति करेगा और उक्त नियमों और शर्तों का पालन करेगा और पंचायत/पंचायत समिति/जिला परिषद ………… के माध्यम से अनुमोदित आपूर्तिकर्ता को उक्त शर्तों में निर्धारित समय और तरीके से प्रत्येक खेप के लिए देय राशि का भुगतान करेगा या भुगतान करवाएगा।
(ख) भुगतान का तरीका नीचे निर्दिष्ट अनुसार होगा: –
1 :…………
2 :………
3 :…………
5. सुपुर्दगी इस अनुबंध की तारीख और/या तारीख या आदेश की ………… की अवधि के भीतर प्रभाV और अनुपालन की जाएगी। ….
क्रमांक |
मद |
मात्रा |
वितरण अवधि |
1. |
|||
2. |
6. (1) परिसमाप्त क्षति के साथ सुपुर्दगी अवधि में विस्तार के मामले में, वसूली उन दुकानों के मूल्य के निम्नलिखित प्रतिशत के आधार पर की जाएगी, जो निविदाकार आपूर्ति करने में विफल रहे हैं
नोट – (I) आपूर्ति में देरी की अवधि की गणना में एक दिन के अंश को समाप्त कर दिया जाएगा यदि यह आधे दिन से कम है।
(द्वितीय) सहमत परिसमापन नुकसान की अधिकतम राशि 10% होगी
(III) यदि आपूर्तिकर्ता को किग भी बाधा के कारण संविदात्मक आपूर्ति को पूरा करने में समय के विस्तार की आवश्यकता होती है, तो वह उस प्राधिकरण को लिखित रूप में आवेदन करेगा जिसने आपूर्ति आदेश दिया था, इसके लिए तुरंत बाधा उत्पन्न होने पर, लेकिन नहीं आपूर्ति पूर्ण होने की निर्धारित तिथि के बाद।
(2) माल की आपूर्ति में देरी के कारण माल की आपूर्ति में देरी के कारण या उसके बिना डिलीवरी की अवधि को बढ़ाया जा सकता है, यह निविदाकर्ता के नियंत्रण से परे बाधाओं के कारण है।
7. इस समझौते से उत्पन्न होने वाले सभी विवादों और इस समझौते की व्याख्या से संबंधित सभी प्रश्नों का निर्णय सरकार द्वारा किया जाएगा और सरकार का निर्णय अंतिम होगा।
इसके साक्ष्य में कि इसके पक्षकारों ने ….. दिन ……… को अपना हाथ रखा है।
स्वीकृति आपूर्तिकर्ता के हस्ताक्षर
पंचायत/पंचायत समिति/जिला परिषद के लिए और उसकी ओर से हस्ताक्षर
दिनांक ………..
गवाह नहीं मैं ……
गवाह संख्या II ………
दिनांक …………….
गवाह नहीं मैं ……
गवाह संख्या II ………
XXVII . से
[नियम 194(4) देखें]
पंचायत का बजट अनुमान
पंचायत समिति…………
वर्ष 20…………20……. के लिए
पंचायत…………
जिला परिषद…………
अनुमानित आय |
अनुमानित व्यय |
|||||||||
क्रमांक |
गत वर्ष का मदवार स्वीकृत बजट |
पिछले वर्ष की वास्तविक आय |
वर्ष 20 की अनुमानित आय…………20…… |
क्रमांक |
व्यय का शीर्ष |
पिछले वर्ष का स्वीकृत बजट |
पिछले वर्ष का वास्तविक व्यय |
वर्ष 20 का अनुमानित व्यय…………20……. |
टिप्पणियां |
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1 |
2 |
3 |
4 |
5 |
6 |
7 |
8 |
9 |
10 |
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1. |
प्रारंभिक शेष |
1 |
सामान्य प्रशासन पंच और सरपंच की स्थापना (ख) की (III) सरपंच का मानदेय/बैठक/भत्ते/बैठक में जलपान |
|||||||
2 |
सार्वजनिक सड़कों, नालों, शौचालयों, सोख्ता गड्ढों का निर्माण |
|||||||||
3. |
गैर-कर राजस्व से स्वयं की आय (ए) भूमि की बिक्री (चतुर्थ) जल जलाशय (ए) मत्स्य पालन (V) चराई शुल्क (ए) चराई का पीछा (VI) कृषि फार्म/बगीचे (ए) दुकानें और साइटें |
3. |
भवनों का निर्माण (विद्यालय, औषधालय, आंगनबाडी आदि) |
|||||||
4. |
पेयजल आपूर्ति ( |
|||||||||
5. |
नालों की सफाई एवं निर्माण आदि। |
|||||||||
6. |
प्रकाश व्यवस्था: |
|||||||||
7. |
जलने और दफनाने के मैदान |
|||||||||
8. |
मवेशी पाउंड |
|||||||||
9. |
चिकित्सा राहत (टीकाकरण, परिवार कल्याण शिविर) |
|||||||||
4. |
सरकार से सहायता |
10. |
मातृत्व एवं बाल कल्याण (आंगनवाड़ी केंद्र) |
|||||||
1 1। |
सार्वजनिक स्वास्थ्य (खमारियों की रोकथाम) |
|||||||||
12. |
स्कूल सहित पंचायत में निहित सार्वजनिक भवन का रखरखाव। इमारतों |
|||||||||
13. |
प्राथमिक शिक्षा (I) निर्माण |
|||||||||
14. |
बूचड़खाने |
|||||||||
5. |
(I) जवाहर रोजगार योजना (II) अपना गांव अपना काम (III) अन्य योजनाओं के लिए DRDA के माध्यम से केंद्र सरकार से अनुदान सहायता । |
15. |
ग्राम रक्षा |
|||||||
16. |
कृषि और वानिकी का विकास |
|||||||||
6. |
के लिए पंचायत समिति/जिला परिषद के माध्यम से सहायता अनुदान: (I) हैंडपंपों का रखरखाव और अन्य जलापूर्ति योजना (II) स्टड बुल का रखरखाव। |
17. |
जनगणना |
|||||||
18. |
परिवार नियोजन |
|||||||||
19. |
स्टड बुल का रखरखाव |
|||||||||
20. |
पशुओं का प्रजनन और संरक्षण |
|||||||||
21. |
ग्रामोद्योग |
|||||||||
22. |
आग के लिए सहायता। |
|||||||||
7. |
विकास के लिए दान/योगदान के रूप में प्राप्त राशि। |
23. |
लोगों का कल्याण (I) अखाड़ों/क्लबों का रखरखाव |
|||||||
8. |
किग न्यायालय या विभाग द्वारा आदेशित राशि को पंचायत निधि में जमा किया जाना है। |
|||||||||
9. |
विविध रगदें (ब्याज आदि) |
24. |
जनोपयोगी कार्यों के अन्य कार्य |
|||||||
25. |
विविध/लेखापरीक्षा शुल्क |
|||||||||
10. |
ऋण, जमा अग्रिम (द्वितीय) जमा (ए) ठेकेदार (III) अग्रिम |
26. |
ऋण, जमा और अग्रिम |
|||||||
28 |
जमा शेष |
|||||||||
1 1। |
कुल प्राप्तियां |
29. |
कुल योग |
|||||||
12. |
कुल अनुदान |
|||||||||
कुल रु. |
कुल रु. |
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प्ररूप XVIII
[नियम 194(4) देखें]
[भाग (क)]
पंचायत समिति का बजट अनुमान…………जिला परिषद…………
प्राप्तियां |
व्यय |
|
||||||||
क्रमांक |
गत वर्ष का शीर्षवार स्वीकृत बजट |
पिछले वर्ष की वास्तविक आय |
वर्ष 20 की अनुमानित आय…………20…… |
क्रमांक |
व्यय का शीर्ष |
पिछले वर्ष का स्वीकृत बजट |
पिछले वर्ष का वास्तविक व्यय |
वर्ष 20 का अनुमानित व्यय…………20……. |
टिप्पणियां |
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1 |
2 |
3 |
4 |
5 |
6 |
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8 |
9 |
10 |
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1. |
प्रारंभिक शेष |
1. |
2515-सामान्य प्रशासन (ए) स्थापना की (III) अध्यक्ष का मानदेय |
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2. |
खुद की आय प्ररूप टैक्स (I) व्यापार, कॉलिंग, व्यवसाय और उद्योग (PS) |
|||||||||
3. |
गैर-कर राजस्व से स्वयं की आय |
2. |
2202-प्राथमिक शिक्षा |
|||||||
4. |
राज्य सरकार से सहायता अनुदान |
3. |
स्वयं की आय से व्यय (I) बैठकों में बैठने की फीस / जलपान |
|
||||||
4. |
2215-पानी की आपूर्ति और सफाई (I) वेतन |
|
||||||||
5. |
डीआरडीए के माध्यम से केंद्र सरकार से सहायता अनुदान |
5. |
2215 (योजना) ग्रामीण स्वच्छता कार्यक्रम (I) खपीL को घरेलू शौचालय आदि के लिए सब्सिडी। |
|
||||||
6. |
2810-ऊर्जा के गैर-पारंपरिक स्रोत |
|
||||||||
6. |
सार्वजनिक योगदान / दान |
7. |
2216-ग्रामीण आवास सहायता |
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||||||
7. |
ऋण, जमा और अग्रिम |
8. |
2211-परिवार कल्याण |
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||||||
9. |
राजमार्गों पर सड़क किनारे सुविधाओं का विकास |
|
||||||||
8. |
विविध (ब्याज आदि) |
10. |
ग्रामीण रोजगार एवं गरीख उपशमन योजना पर व्यय (I) इंदिरा आवास |
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||||||
9. |
कुल प्राप्तियां |
|
||||||||
10. |
कुल योग (शुरुआती शेष सहित) |
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1 1। |
(I) ग्रामीण आवास (II) दुकानों, बाजारों आदि के लिए ऋण । |
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12. |
कुल व्यय |
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||||||||
13. |
जमा शेष |
|
||||||||
14. |
कुल योग (समापन शेष सहित) |
|
||||||||
कुल रु, |
कुल रु, |
|
विकास अधिकारी/मुख्य कार्यकारी अधिकारी
प्ररूप XXVIII
[नियम 194(4) देखें]
भाग ख
निश्चित शुल्क का विस्तृत अनुमान अर्थात। अधिकारियों का वेतन एवं पंचायत की स्थापना
समिटी ……… |
जिला परिषद………… |
साल के लिए………………….. |
खाता शीर्ष |
क्रमिक संख्या |
नाम या संख्या |
पद |
न्यूनतम वेतनमान |
वेतन वृद्धि की दर |
अधिकतम वेतनमान |
1 |
2 |
3 |
4 |
5 |
6 |
7 |
मार्च को वास्तविक |
मार्च से फरवरी तक की अवधि के लिए प्रावधान की राशि |
अवधि के भीतर देय वेतन वृद्धि की तिथि |
वेतन वृद्धि की राशि |
कॉलम 9 और 11 का योग |
चालू वर्ष के लिए संशोधित अनुमान |
टिप्पणियां |
8 |
9 |
10 |
1 1 |
12 |
13 |
14 |
भाग ग
पंचायत समिति के वास्तविक व्यय को दर्शाने वाला विवरण…………
जिला परिषद ………वर्ष के लिए……
सिर |
मूल बजट |
वर्ष के दौरान परिवर्तन |
साल का अंतिम बजट |
वास्तविक |
बदलाव |
टिप्पणियां |
1 |
2 |
3 |
4 |
5 |
6 |
7 |
प्ररूप XXIX
[नियम 229 देखें]
रोकड़ बही
पंचायत…………समिति……जिला परिषद…………वर्ष
19. ……..19 …………………….
क्रमांक |
रगद/चेक/डीडी/चालान की संख्या और तारीख |
किससे प्राप्त |
विवरण |
लेजर ए / ग। नहीं। |
राशि |
लेखा शीर्ष पर वर्गीकरण |
|
नकद |
पोस्ट ऑफिसर/बैंक/ट्रेजरी |
||||||
1 |
2 |
3 |
4 |
5 |
6 |
7 |
8 |
भुगतान
क्रमांक |
वाउचर और तारीख |
किसको भुगतान किया |
विवरण |
लेजर ए / ग। नहीं। |
राशि |
लेखा शीर्ष पर वर्गीकरण |
|
नकद |
पोस्ट ऑफिसर/बैंक/ट्रेजरी |
||||||
1 |
2 |
3 |
4 |
5 |
6 |
7 |
8 |
प्ररूप XXX |
XXX . से |
[नियम 230 देखें] |
[नियम 230 देखें] |
काउंटर फ़ॉइल |
रगद |
……..पंचायत/पंचायत समिति जिला परिषद |
……..पंचायत/पंचायत समिति जिला परिषद |
बुक नं……. नहीं……….. |
बुक नं……. नहीं……….. |
श्री…………….. से प्राप्त |
श्री…………….. से प्राप्त |
मद संख्या विवरण अवधि भुगतान की मांग की राशि |
…………………… |
रजिस्टर करें |
रु. (शब्दों में)……………………… |
………………………………………….. |
के वास्ते …………………….. |
शब्द में कुल …………………………… |
अवधि के लिए………………………. |
कार्यालय का प्रमुख |
कार्यालय का प्रमुख |
केशियर |
केशियर |
प्रपत्र XXXI
[नियम 234 देखें]
भुगतान के लिए दावा
बिल नंबर ………………. तारीख ……………… |
|||||||
कार्यालय उपयोगार्थ |
|||||||
रुपये का भुगतान करें। ………… मुनीम |
कार्यालय का प्रमुख दिनांक ………………… |
||||||
कैश बुक आइटम नंबर ………………… के माध्यम से ……………………… (तारीख) को भुगतान किया गया |
केशियर |
प्ररूप XXXII
[नियम 236 देखें]
सामान्य बहीखाता
पंचायत ……… |
पंचायत समिति………… |
जिला परिषद………… |
साल के लिए
दिनांक |
विवरण |
कैश बुक फोलियो नं। |
डॉ. राशि |
गआर राशि |
शेष राशि |
1 |
2 |
3 |
4 |
5 |
6 |
प्ररूप XXXIII
[नियम 237 देखें]
प्राप्त राजस्व का रजिस्टर
पंचायत ……… |
पंचायत समिति………… |
जिला परिषद………… |
क्रमांक |
कर प्रार्थना या किग अन्य व्यक्ति का नाम जिससे राशि वसूल की गई |
मासिक दर यदि कोई हो रु. |
गत वर्ष का बकाया |
वर्तमान मांग |
कुल कॉलम (4 और 5) रु. |
रगद संख्या और तारीख और रोकड़ बही पृष्ठ संख्या जहां राशि जमा की गई |
राशि रु. |
कुल संग्रह |
बट्टे खाते में डाली गई राशि रु. |
शेष 6- (9+10) रु. |
सचिव के आद्याक्षर |
1 |
2 |
3 |
4 |
5 |
6 |
7 |
8 |
9 |
10 |
1 1 |
12 |
प्रपत्र XXXIV
[नियम 239 देखें]
स्टॉक रजिस्टर
पंचायत ……… |
पंचायत समिति………… |
जिला परिषद………… |
साल के लिए…………
रगद |
||||||
क्रमांक |
खरीद की तारीख |
पूर्ण विवरण |
हाथ में संतुलन |
संख्या या मात्रा |
कुल |
लागत |
1 |
2 |
3 |
4 |
5 |
6 |
7 |
मुद्दा |
||||||
संदर्भ वाउचर नं। |
किसके लिए जारी किया गया है या किस उद्देश्य के लिए |
संख्या या जारी की गई मात्रा |
संतुलन |
मांगपत्र संख्या जारी करने का संदर्भ |
||
8 |
9 |
10 |
1 1 |
12 |
||
प्रपत्र XXXV
[नियम 239 देखें]
खातों का त्रैमासिक विवरण
पंचायत ……… |
पंचायत समिति………… |
जिला परिषद………… |
साल के लिए…………
राजस्व
खाता शीर्ष |
राजस्व के प्रधान प्रमुख |
वर्ष के लिए बजट शीर्ष अनुमान |
तिमाही के दौरान वास्तविक राजस्व |
तिमाही के अंत तक संचयी |
1 |
2 |
3 |
4 |
5 |
व्यय के बजट मद के अनुसार |
भुगतान
खाता शीर्ष |
व्यय का प्रधान प्रमुख |
वर्ष के लिए बजट शीर्ष अनुमान |
तिमाही के दौरान वास्तविक व्यय |
तिमाही के अंत तक संचयी योग |
1 |
2 |
3 |
4 |
5 |
व्यय के बजट मद के अनुसार |
प्रपत्र XXXVI
[नियम 246(1) देखें]
वर्ष के लिए वार्षिक लेखा का सार …………
पंचायत ……… |
पंचायत समिति………… |
जिला परिषद………… |
राजस्व
एकाउंट हेड नं. |
राजस्व के प्रधान प्रमुख |
बजट प्रावधान |
वास्तविक |
बचत (-) |
1 |
2 |
3 |
4 |
5 |
व्यय के बजट मद के अनुसार |
भुगतान
एकाउंट हेड नं. |
व्यय का प्रधान प्रमुख |
बजट प्रावधान |
वास्तविक |
बचत (-) |
1 |
2 |
3 |
4 |
5 |
व्यय के बजट मद के अनुसार |
प्रपत्र XXXVII
[नियम 246(2) देखें]
वर्ष के दौरान प्राप्त और खर्च किए गए सहायता अनुदान का विवरण…………
पंचायत ……… |
पंचायत समिति………… |
जिला परिषद………… |
अनु क्रमांक। |
विभाग |
योजना का नाम |
वर्ष के दौरान प्राप्त राशि |
वर्ष के दौरान खर्च की गई राशि |
पूर्णता प्रमाण पत्र आदि के बारे में विवरण। |
1 |
2 |
3 |
4 |
5 |
6 |
प्ररूप XXXVIII
[नियम 26(3) देखें]
वर्ष के दौरान …… से प्राप्त ऋणों और किए गए भुगतानों का विवरण
……
पंचायत ……… |
पंचायत समिति………… |
जिला परिषद………… |
अनु क्रमांक। |
उस विभाग का नाम जिससे ऋण संबंधित है |
संदर्भ संख्या और स्वीकृति की तिथि |
उद्देश्य जिसके लिए ऋण दिया गया था |
तारीखें जिनको ऋण प्राप्त हुआ था |
निश्चित किश्तों की संख्या |
प्राप्त रकम |
बकाया राशि, यदि कोई हो, सहित वर्ष के दौरान चुकौती के लिए देय राशि |
वास्तव में चुकाई गई राशि |
यदि सहायता अनुदान में से समायोजित किया जाता है तो बकाया किस्त का भुगतान नहीं किया जाता है। |
1 |
2 |
3 |
4 |
5 |
6 |
7 |
8 |
9 |
10 |
प्ररूप XXXIX
[नियम 246(4) देखें]
वर्ष के लिए कार्यों की सूची …………
पंचायत ……… |
पंचायत समिति………… |
जिला परिषद………… |
साल के लिए…………….
क्रमांक |
गांव का नाम |
कार्य का विवरण |
प्रारंभ होने की तिथि |
स्वीकृत राशि |
राशि खर्च |
अन्य विवरण चाहे विभागीय रूप से किया गया हो या अनुबंध के माध्यम से, पूरा होने की तिथि आदि। |
1 |
2 |
3 |
4 |
5 |
6 |
7 |
प्ररूप XL
[नियम 246(5) देखें]
संपत्ति और देनदारियों का विवरण
पंचायत ……… |
पंचायत समिति………… |
जिला परिषद………… |
साल के लिए…………….
देयताएं |
संपत्तियां |
||
सिर |
राशि |
सिर |
राशि |
1. जमा- |
1. ऋण (वसूली योग्य) |
||
(1) सरकारी कर्मचारी से जमानत राशि। |
………………… |
(1) कृषि |
………………………………………… |
कुल |
………. |
कुल |
………… |
2. राज्य को देय ऋण: |
2. अग्रिम: |
||
(1) कृषि |
(1) विविध अग्रिम |
……………………… |
|
कुल |
………. |
कुल |
………… |
3. अन्य ऋण |
3. निवेश |
||
4. देय बिल |
4. सहायता अनुदान |
||
5. अन-यूज्ड स्पेसिफिक |
5. ऋणों पर अर्जित ब्याज |
||
नकदी संतुलन:…………. |
|||
(1) हाथ में ………… |
|||
(2) पीडी खाते में ………… |
|||
कुल |
………… |
कुल |
………… |
कुल योग |
………. |
कुल योग |
………… |
प्ररूप XLI
[नियम 305 देखें]
चालक का लॉग बॉक
पंचायत …………… |
जिला परिषद………… |
वाहन संख्या…………
दिनांक |
समय समाप्त |
में |
से |
प्रति |
मार्ग |
यात्रा के प्रारंभ में केएम पठन |
यात्रा का विवरण यात्रा के अंत में किमी पढ़ना |
1 |
2 |
3 |
4 |
5 |
6 |
7 |
8 |
किमी . में तय की गई दूरी |
का उद्देश्य |
व्यक्तियों का नाम या ढोई गई वस्तुओं का विवरण |
यात्रा करने का अधिकार |
लीटर में पेट्रोल/डीजल |
लिटर में चिकनाई तेल की आपूर्ति |
||
9 |
10 |
1 1 |
12 |
13 |
14 |
||
उपयोगकर्ता के हस्ताक्षर |
प्रभावितों को वसूली, यदि कोई हो, दर |
राशि |
नियंत्रण अधिकारी के हस्ताक्षर |
टिप्पणियां |
|||
16 |
17 |
18 |
19 |
20 |
|||
प्ररूप XLII
[नियम 305 देखें]
स्टॉक रजिस्टर
पंचायत …………… |
जिला परिषद………… |
वाहन संख्या…………
दिनांक |
पेट्रोल/डीजल/पावर लाइन |
तेल |
पुर्जे और प्रतिस्थापन |
मरम्मत |
विविध |
खरीद मूल्य |
टिप्पणी |
1 |
2 |
3 |
4 |
5 |
6 |
7 |
8 |
XLIII से
[नियम 305 देखें]
वाहन के साथ उपकरणों और उपकरणों की सूची
पंचायत …………… |
जिला परिषद………… |
वाहन संख्या…………
अनु क्रमांक। |
उपकरण का नाम |
प्राप्त मात्रा |
प्राप्ति की तिथि |
चालक के हस्ताक्षर |
दिनांक जिस पर जाँच की गई |
नियंत्रण अधिकारी का प्रारंभिक |
1 |
2 |
3 |
4 |
5 |
6 |
7 |
प्ररूप XLIV
[नियम 328 देखें]
निरीक्षण/प्रतियां प्रदान करने के लिए आवेदनों का रजिस्टर
क्रमांक |
आवेदक का नाम और पता |
तिथि और आवेदन |
चाहे जरूरी हो या साधारण |
उस दस्तावेज़ का विवरण जिसकी प्रतियां/निरीक्षण मांगा गया है |
तलाशी शुल्क सहित भुगतान की जाने वाली राशि |
दिनांक और समय जिस पर निरीक्षण किया गया |
डाक द्वारा प्रतिलिपि/प्रेषण की आपूर्ति की तिथि |
प्रतिलिपि का निरीक्षण/प्राप्त करने वाले व्यक्ति के हस्ताक्षर |
टिप्पणी |
1 |
2 |
3 |
4 |
5 |
6 |
7 |
8 |
9 |
10 |
प्ररूप XLV
[नियम 353 देखें]
सामान्य बहीखाता
वार्षिक प्रशासन रिपोर्ट ….पंचायत ……..पंचायत समिति
……… का वर्ष
1. पंचायत समिति के अंतर्गत ग्राम एवं उसकी जनसंख्या का नाम
(i) गांवों का नाम |
जनसंख्या |
(ए) |
|
(ख) |
कुल……….. |
2. संबंधित पंचों और सरपंचों का विवरण।
अनुसूचित जाति |
अनुसूचित जनजाति |
अन्य ख/ग |
अन्य वर्ग |
कुल |
|||||
पुरुष |
महिला |
पुरुष |
महिला |
पुरुष |
महिला |
पुरुष |
महिला |
पुरुष |
महिला |
1 |
2 |
3 |
4 |
5 |
6 |
7 |
8 |
9 |
10 |
1. सर्वसम्मति से निर्वाचित
2. निर्वाचित चुनाव लड़ा
3. स्थापित पंचों का नाम |
कुल…………. |
4. पंचों और सरपंचों के खिलाफ रिट और अपील
5. उन पंचों के नाम जिनके कार्यालय राजस्थान पंचायती राज अधिनियम, 1994 की धारा 39 के तहत रिक्त घोषित किए गए हैं।
6. सरपंच या उप-सरपंच के नाम जिनका कार्यालय राजस्थान पंचायती राज अधिनियम, 1994 की धारा 41 के तहत रिक्त हो गया है।
7. क्या पंचायत के खिलाफ राजस्थान पंचायती राज की धारा 94 के तहत कोई कार्रवाई की गई है। अधिनियम, 1994।
8. बैठकों का विवरण :-
(I) ग्राम सभा बैठकों की कुल संख्या।
(द्वितीय) के लिए पंचायत की बैठकों की कुल संख्या।
(ए) विकास कार्य
(ख) प्रशासनिक मामले
कुल ए और ख
(III) अधूरे कोरम के कारण बैठक स्थगित।
(चतुर्थ) संकल्प सर्वसम्मति से पारित
(V) बहुमत से पारित प्रस्ताव।
9. कर्मचारियों के संबंध में विवरण:-
(एक सचिव: –
(मेरा बड़ा नाम है।
(द्वितीय) आयु।
(III) शैक्षिक योग्यता
(चतुर्थ) प्रशिक्षित या अप्रशिक्षित
(V) नियमित/अनुबंध पर।
(VI) पूर्णकालिक या अंशकालिक।
(VII) प्रति माह वेतन, यदि अनुबंध पर है
(VIII) क्या वह किग अन्य पंचायत में काम करता है, यदि हाँ, तो ऐग पंचायत का नाम बताएं
(ख) काइन हाउस/स्वच्छता आदि के लिए अन्य कर्मचारी/ठेकेदार।
(I) अन्य क्लर्क (नंबर)
(द्वितीय) चपराग (नंबर)।
(III) प्रकाश व्यवस्था के लिए कर्मचारी (नंबर)
(चतुर्थ) स्वच्छता (नंबर)
(V) देखो और वार्ड:
(ए) मानद (सं।)
(ख) अनुबंध पर (सं।)
(ग) पंचायत द्वारा कितने गांवों में ऐग व्यवस्था की गई है (नं।)
10. क्या पंचायत ने प्राकृतिक आपदाओं जैसे आग, बाढ़ आदि में कोई सहायता प्रदान की है?
(I) सुरक्षा दिए गए परिवारों की संख्या
(II) बचाई गई संपत्ति का अनुमानित मूल्य।
(III) गांव की संख्या जहां आग/भोजन हुआ
11. क्या पंचायत ने लोगों के उत्थान के लिए सामुदायिक कार्यों और कार्यों के लिए स्वैच्छिक श्रम बल का आयोजन किया है? यदि हाँ, तो दें:-
(I) भाग लेने वाले लोगों की संख्या
(II) समर्पित घंटों की संख्या।
(III) निष्पादित कार्यों का नाम
12. मेले और टोपी।
(I) पंचायत द्वारा आयोजित मेले और टोपियां (नं.)
13. बेचे गए लघु बचत प्रमाणपत्रों की राशि।
14. क्या पंचायत को जीवन और साधारण खमा का व्यवसाय लग रहा है ? अगर हाँ तो :-
(I) खमित व्यक्तियों की संख्या।
(II) सामान्य खमा व्यवसाय की राशि सुरक्षित।
15. क्या अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के व्यक्तियों को आबादी भूमि नि:शुल्क आवंटित की गई है ? अगर हाँ तो :-
(I) परिवारों की संख्या जिन्हें आवंटित किया गया है।
(द्वितीय) वर्ग। गज भूमि आवंटित।
16. (I) क्या पंचायत डाक सेवाएं लेती है और प्रदान करती है।
(II) डाक सुविधा न होने वाले गांवों की संख्या।
17. प्रशिक्षण या अन्य शिविरों में भाग लेने वाले पंचों और सरपंचों की संख्या का भी उल्लेख है। शिविरों के)।
18. जब पंचायत के लेखों का अंकेक्षण किया गया (तारीख)।
19. उन अधिकारियों के नाम जिन्होंने पंचायत का निरीक्षण किया है।
अधिकारी का नाम |
दिनांक |
20. पंचायत द्वारा पारित उपनियमों का विवरण (प्रति संलग्न करें)।
भाग ‘ख‘
वर्ष के दौरान पंचायत की गतिविधियों की भौतिक प्रगति
(मैं) |
सामान्य कार्य:- |
इकाई |
(ए) मामले जिनमें प्राकृतिक आपदाओं में राहत जुटाई गई थी |
नहीं। |
|
(ख) मामले जिनमें सार्वजनिक संपत्तियों पर अतिक्रमण हटा दिया गया था। |
नहीं। |
|
(द्वितीय) |
प्रशासन के क्षेत्र में :- |
|
(ए) पंचायत अंचल में स्थित कितने गांवों के लिए विकास योजनाएं तैयार की गईं। |
नहीं। |
|
(ख) कितने गांवों में परिसरों को क्रमांकित किया गया था। |
नहीं। |
|
(III) |
कृषि विस्तार सहित कृषि:- |
|
(ए) क्या कोई बंजर भूमि विकसित की गई थी, कितनी? |
एकड़ |
|
(ख) कितने गांवों में चराई की भूमि का रखरखाव किया गया था? |
नहीं। |
|
(चतुर्थ) |
पशुपालन डेयरी और मुर्गी पालन |
|
(ए) कितने मामलों में मवेशियों के लिए चिकित्सा सुविधाएं प्रदान की जाती हैं |
नहीं। |
|
(ख) कृत्रिम गर्भाधान सेवा प्रदान की गई। |
नहीं। |
|
© स्टड बुल का रखरखाव। |
नहीं। |
|
(V) |
सामाजिक एवं कृषि वानिकी, लघु वनोपज, ईंधन एवं चारा:- |
|
(ए) कृषि के सुधार के लिए कितने मॉडल कृषि फार्म स्थापित किए गए थे। |
एकड़ |
|
(ख) गांव और जिला सड़कों के किनारे और इसके नियंत्रण में अन्य सार्वजनिक भूमि पर कितने पेड़ लगाए गए थे? |
नहीं। |
|
© गांव के जंगलों को उभारा। |
एकड़ |
|
(छठी) |
खादी, ग्राम एवं कुटीर उद्योग :- |
|
(ए) ग्रामोद्योग सहायता प्राप्त। |
नाम |
|
(ख) सहायता, ऋण और अग्रिम के रूप में कितनी राशि दी गई |
रु. |
|
(सातवीं) |
पेय जल:- |
|
(ए) पीने के पानी के कुओं, टैंकों और तालाबों का निर्माण, मरम्मत और रखरखाव। |
नहीं। |
|
(ख) जल प्रदूषण की रोकथाम और नियंत्रण। |
नहीं। |
|
© हैंडपंप और पंप और टैंक योजनाओं का रखरखाव। |
नहीं। |
|
(आठवीं) |
सड़कें, भवन पुलिया, पुल, घाट, जलमार्ग और संचार के अन्य साधन:- |
|
(ए) सार्वजनिक सड़कों का निर्माण, रखरखाव और मरम्मत। |
किमी. |
|
(ख) नालियों का निर्माण, रखरखाव और मरम्मत। |
मीटर की दूरी पर |
|
© बांधों का निर्माण, रखरखाव और मरम्मत। |
नहीं। |
|
(डी) पुलों/पुलियों का निर्माण, रखरखाव और मरम्मत। |
नहीं। |
|
(IX) |
सार्वजनिक सड़कों और अन्य स्थानों पर प्रकाश की व्यवस्था और रखरखाव सहित ग्रामीण विद्युतीकरण:- |
|
रोशनी के लिए लगाए गए नए लैंप |
नहीं। |
|
(X) |
शिक्षा (प्राथमिक):- |
|
प्राथमिक विद्यालयों में नामांकन एवं उपस्थिति की स्थिति- विद्यालय जाने वाले आयु वर्ग के प्रत्येक एक सौ लड़के-लड़कियों में से कितने लड़के-लड़कियों का नामांकन हुआ तथा ऐसे कितने बालक-बालिका विद्यालय जा रहे थे:- |
||
नामांकन , 15 अगस्त को: |
||
(1) लड़का |
नहीं। |
|
(2) लड़कियाँ |
नहीं। |
|
(ख) उपस्थिति, 1 मार्च को: |
||
(1) लड़के |
नहीं। |
|
(2) लड़कियाँ |
नहीं। |
|
(XI) |
सांस्कृति गतिविधियां:- |
|
(ए) अखाड़े क्लबों और मनोरंजन और खेलों के अन्य स्थानों की स्थापना और रखरखाव। |
नहीं। |
|
(ख) कला और संस्कृति के प्रचार के लिए थिएटरों की स्थापना और रखरखाव |
नहीं। |
|
© सार्वजनिक टेलीविजन और रेडियो-सेट स्थापित। |
नहीं। |
|
(बारहवीं) |
ग्रामीण स्वच्छता:- |
|
(ए) सार्वजनिक सड़कों, नालियों, टैंकों, कुओं और अन्य सार्वजनिक स्थानों की सफाई। |
नहीं। |
|
(ख) जलने और कब्रिस्तान के रखरखाव और विनियमन। |
नहीं। |
|
© ग्रामीण शौचालयों, सुविधा पार्कों, स्नान मंचों, सोख्ता गड्ढों आदि का निर्माण और रखरखाव। |
नहीं। |
|
(XIII) |
जन स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण :- |
|
कितने गांवों में संक्रामक रोग फैला और उनमें से कितने गांवों में इसकी रोकथाम के उपाय किए गए। |
नहीं। |
|
(XIV) |
मवेशी शेड, तालाब और गाड़ी स्टैंड का निर्माण और रखरखाव। |
|
(ए) मवेशी तालाबों की स्थापना और रखरखाव। |
नहीं। |
|
(ख) पशुओं को पानी की आपूर्ति के लिए कितने तालाबों की खुदाई, सफाई और रख-रखाव की व्यवस्था की गई थी। |
नहीं। |
|
(XV) |
सार्वजनिक पार्कों, खेल के मैदानों आदि का रखरखाव:- |
|
(ए) खेल के मैदानों का लेआउट और रखरखाव। |
नहीं। |
|
(ख) सार्वजनिक पार्कों का लेआउट और रखरखाव। |
नहीं। |
|
(XVI) |
कोई अन्य गतिविधि जो अधिनियम की पहली अनुसूची में वर्णित कार्यों को आगे बढ़ाने में है। |
भाग – ग
आय और व्यय विवरण
पंचायत ……… |
पंचायत समिति ………… |
जिला परिषद ………… |
वर्ष के लिए ……………
क्रमांक |
विवरण |
वर्ष के दौरान मूल्यांकित राशि |
राशि का एहसास |
कुल |
पिछले साल |
संतुलन |
व्यय |
||
पिछले वर्षों की शेष राशि से |
वर्तमान से |
वर्तमान साल |
कुल |
||||||
1 |
2 |
3 |
4 |
5 |
6 |
7 |
8 |
9 |
10 |
1 |
राजस्व शीर्ष |
1 |
व्यय प्रमुख पंच और सरपंच की स्थापना (ख) की (III) सरपंच का मानदेय/बैठक/भत्ते/बैठक में जलपान |
||||||
2. |
गैर-कर राजस्व से स्वयं की आय (I) फीस (ए) भूमि की बिक्री (चतुर्थ) जल जलाशय (ए) मत्स्य पालन (V) चराई के मैदान (ए) चराई शुल्क (VI) कृषि फार्म/बगीचे (ए) दुकानें और साइटें |
2. |
सार्वजनिक सड़कों, नालों, शौचालयों, सोख्ता गड्ढों का निर्माण |
||||||
3. |
भवनों का निर्माण (विद्यालय, औषधालय, आंगनबाडी आदि) |
||||||||
4. |
पेयजल आपूर्ति ( |
||||||||
5. |
नालों की सफाई और निर्माण आदि। (I) नालियां और सोख्ता गड्ढे |
||||||||
6. |
प्रकाश |
||||||||
7. |
जलने और दफनाने के मैदान |
||||||||
8. |
मवेशी पाउंड |
||||||||
3. |
राज्य सरकार से सहायता |
9. |
चिकित्सा राहत (टीकाकरण, परिवार कल्याण शिविर) |
||||||
10. |
मातृत्व एवं बाल कल्याण (आंगनवाड़ी केंद्र) |
||||||||
1 1। |
सार्वजनिक स्वास्थ्य (खमारियों की रोकथाम) |
||||||||
12. |
स्कूल भवनों सहित पंचायत में निहित सार्वजनिक भवनों का रखरखाव |
||||||||
13. |
प्राथमिक शिक्षा (I) स्कूलों का निर्माण |
||||||||
14. |
बूचड़खाने |
||||||||
4. |
डीआरडीए के माध्यम से केंद्र सरकार से सहायता अनुदान के लिए: (I) जवाहर रोजगार योजना |
15. |
ग्राम रक्षा |
||||||
16. |
कृषि और वानिकी का विकास |
||||||||
5. |
पंचायत समिति/जिला परिषद के माध्यम से सहायता अनुदान: |
17. |
जनगणना |
||||||
18. |
परिवार नियोजन |
||||||||
19. |
स्टड बुल का रखरखाव |
||||||||
20. |
पशुओं का प्रजनन और संरक्षण |
||||||||
21. |
ग्रामोद्योग |
||||||||
22. |
आग के लिए सहायता |
||||||||
6. |
राज्य सरकार/वित्तीय निगमों से ऋण |
23. |
लोगों का कल्याण (I) अखाड़ों/क्लबों का रखरखाव |
||||||
7. |
कुल प्राप्तियां |
24. |
जनोपयोगी कार्यों के अन्य कार्य |
||||||
8. |
कुल अनुदान |
25. |
विविध/लेखापरीक्षा शुल्क |
||||||
26. |
ऋण, जमा और अग्रिम |
||||||||
27. |
कुल व्यय |
||||||||
28. |
कुल योग |
प्ररूप XLVI
[नियम 354 देखें]
पंचायत समिति जिला परिषद की वार्षिक प्रशासन रिपोर्ट
1. संविधान और प्रबंधन: –
(1) क्या वर्ष के दौरान संबंधित पंचायती राज संस्था के अधिकार क्षेत्र में कोई परिवर्तन हुआ? आदेश की संख्या और तारीख का उद्धरण दें।
(2) उपलब्ध नVनतम जनगणना के आंकड़ों के अनुसार संबंधित पंचायती राज संस्थान की जनसंख्या कितनी है ?
(3) रिपोर्टिंग पंचायती राज संस्थाओं के अधिकार क्षेत्र में आने वाली पंचायती राज संस्थाओं के नाम दीजिए।
(4) संबंधित पंचायती राज संस्थानों की कुल ताकत कितनी है?
पंचायती समिति के लिए
गधे निर्वाचित सदस्य। |
राज्य विधान सभा के सदस्य जो पूर्ण या आंशिक रूप से पंचायत समिति क्षेत्र के निर्वाचन क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व करते हैं। |
पंचायत समिति के लिए
गधे निर्वाचित सदस्य |
निर्वाचन क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व करने वाले लोकसभा के सदस्य पूर्ण या आंशिक रूप से जिला परिषद क्षेत्र में शामिल होते हैं। |
राज्यसभा के सदस्य जिला परिषद क्षेत्र के भीतर निर्वाचक के रूप में पंजीकृत हैं। |
राज्य विधान सभा के सदस्य जो पूर्ण या आंशिक रूप से जिला परिषद क्षेत्र में शामिल निर्वाचन क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व करते हैं। |
(5) क्या वर्ष के दौरान अध्यक्ष या उपाध्यक्ष का कोई चुनाव हुआ था और क्या कोई चुनाV विवाद था?
(6) क्या किग अध्यक्ष/उप अध्यक्ष या सदस्य ने अपने पद से त्यागपत्र दिया है। यदि हां, तो त्यागपत्र देने वाले व्यक्तियों और ऐसे त्यागपत्र के कारणों का विवरण दें।
(7) यदि स्थायी समितियों का गठन किया गया था, तो उसका विवरण दें।
(8) क्या कोई अतिरिक्त स्थायी समिति गठित की गई थी? यदि हां, तो उसका विवरण दें।
(9) क्या उपाध्यक्ष के कार्यालय का प्रभारी उपाध्यक्ष था? यदि हां, तो किस अवधि के लिए ?
(10) क्या अध्यक्ष या उपसभापति के विरुद्ध कोई अविश्वास प्रस्ताव था।
2. बैठकें। – कितनी बैठकें हुई और कितनी बैठकें गणपूर्ति के अभाव में स्थगित कर दी गईं?
3. प्रबंधन। – (1) संबंधित पंचायती राज संस्था का कार्यालय कहाँ स्थित है ? यदि किराए पर लिया गया है, तो भुगतान की गई किराए की राशि क्या है? (2) क्या निर्धारित रजिस्टर और प्ररूप बनाए जाते हैं?
4. स्थापना। – (ठ) नियोजित कर्मचारियों की संख्या उनके वेतनमान के साथ बताएं।
संवर्ग |
स्वीकृत शक्ति |
वेतनमान |
रिक्त पद |
कार्रवाई की गई |
1 |
2 |
3 |
4 |
5 |
(2) क्या मौजूदा स्टाफ संबंधित पंचायती राज संस्थान पर डाले गए कर्तव्यों के कुशल निर्वहन के लिए पर्याप्त है? यदि नहीं, तो बढ़े हुए कर्मचारियों के अधिकार क्षेत्र को स्पष्ट करें (कर्मचारियों का विवरण दिया जाना आवश्यक है)
5. कर। – (1) संबंधित पंचायती राज संस्था द्वारा लगाए गए करों का विवरण दें।
6. लेखा और लेखा परीक्षा। – (1) क्या निर्धारित खाते रखे जाते हैं और प्राप्तियों और व्यय के खातों को बनाए रखा जाता है?
(2) खातों की लेखापरीक्षा कब की गई थी?
(3) ऑडिट रिपोर्ट किस तारीख को प्राप्त हुई थी?
(4) क्या एक पूर्ण अनुपालन रिपोर्ट निदेशक, स्थानीय निधि लेखा परीक्षा विभाग को भेज दी गई है?
(5) ऐग कौन ग अनियमितताएँ हैं जिनका अनुपालन नहीं किया गया है?
(6) लेखापरीक्षा रिपोर्ट में दिखाए गए अधिक भुगतान और हानियों की मात्रा क्या थी?
(7) क्या अधिक भुगतान की वसूली कर ली गई है ?
(8) पंचायती राज संस्था कोष को हुई अच्छी हानि के लिए क्या कार्यवाही की गयी है ?
7. सामान्य। – (1) क्या पंचायती राज संस्था को भंग कर दिया गया था ? यदि हां, तो अवधि बताएं।
(2) क्या कोई अवसर था जब राज्य सरकार ने धारा के तहत शक्तियों का प्रयोग किया था। 92, 93, 97 या 100? यदि हां, तो विवरण दें।
8. अन्य महत्वपूर्ण गतिविधियाँ। – पंचायती राज संस्था की ऐग विभिन्न महत्वपूर्ण गतिविधियों का आवश्यक विवरण सहित विवरण जो रिपोर्टाधीन वर्ष के दौरान अधिनियम की प्रासंगिक अनुसूची में उल्लिखित इसके कार्यों के संदर्भ में इसके प्रदर्शन की सही तस्वीर दे सकता है।
प्ररूप XLVII
[नियम 358 देखें]
पंचायत समिति के सदस्यों के सेवा संघ और पंचायत समिति और जिला परिषद सेवा के सदस्यों के जिला संघ की मान्यता के लिए आवेदन पत्र
संघ का नाम…………
पता ……………………………
दिनांक ………… के दिन …….. 20 ……………
1. आवेदन उन व्यक्तियों द्वारा किया जाता है जिनके नाम नीचे दिए गए हैं:
2. सेवा संघ का नाम जिसकी ओर से आवेदन किया गया है :
3. सेवा संघ के प्रधान कार्यालय का पता जिस पर सभी संचार और नोटिस को संबोधित किया जा सकता है
4………….सेवा संघ …………… की तारीख ……… को अस्तित्व में आया।
5. सेवा संघ में पंचायत समिति और ………… की श्रेणी के जिला परिषद सेवक शामिल हैं जो विभिन्न पंचायत समिति और जिला परिषदों में कार्यरत हैं। उक्त पंचायत समितियों और जिला परिषदों में नियोजित व्यक्तियों में से राज्य और ……… के सदस्य हैं।
6. सेवा संघ के नियमों की तीन प्रतियां संलग्न हैं :
नोट – इसमें दी गई तालिका I में नियमों और उनकी सामग्री के बारे में जानकारी है और तालिका 11 में समय-समय पर नियमों में किए गए परिवर्तनों को दर्शाया गया है।
7. तालिका III में सेवा संघ के पदाधिकारियों की सूची इसके साथ संलग्न है।
8. हमें सेवा संघ द्वारा इसकी ओर से संकल्प द्वारा यह आवेदन करने के लिए विधिवत अधिकृत किया गया है।
नहीं…………दिनांक………………
हस्ताक्षर |
पेशा |
पता |
1. |
||
2. |
||
3. |
||
4. |
||
5. |
||
6. |
||
7. |
||
8. |
||
9. |
||
10. |
||
1 1। |
कॉलम 1 में विस्तृत कई मामलों के लिए नियम बनाने वाले प्रावधानों की संख्या नीचे कॉलम 2 में दी गई है:
मामला |
नियम की संख्या |
(1) |
(2) |
1. सेवा संघ का नाम। |
……… |
2. जिन उद्देश्यों के लिए सेवा संघ की स्थापना की गई है। |
……… |
3. उद्देश्य जिसके लिए सेवा संघ के जनरल का उपयोग किया जाएगा। |
……… |
4. सदस्यों की सूची का रखरखाव। |
……… |
5. प्रवेश या साधारण सदस्य। |
……… |
6. शर्त जिसके तहत सदस्य नियमों के तहत लाभ के हकदार हैं। |
……… |
7. मानद सदस्यों का प्रवेश। |
……… |
8. वह रीति जिससे नियमों में संशोधन किया जा सकता है। |
……… |
9. कार्यपालिका के सदस्यों और सेवा संघ के अन्य पदाधिकारियों की नियुक्ति या हटाने का तरीका। |
……… |
10. बैठकें आयोजित करने का तरीका। |
……… |
11. निधियों की सुरक्षित अभिरक्षा। |
……… |
12. खातों की वार्षिक लेखापरीक्षा। |
……… |
13. पदाधिकारियों एवं सदस्यों द्वारा लेखा पुस्तकों के निरीक्षण की सुविधा। |
……… |
14 वह रीति जिससे सेवा संघ भंग किया जा सकता है |
……… |
तालिका I
सेवा संघ के नियम
टेबल-II
सेवा संघ के नियमों में किया गया परिवर्तन |
||
नियमों की क्रम संख्या |
नियमों में बदलाव |
बदलाव के कारण |
(1) |
(2) |
(3) |
……… |
……… |
……… |
दिनांक………… |
(हस्ताक्षरित) |
तालिका III
पदाधिकारियों की सूची
सेवा का नाम |
……………………………………… |
||
नाम |
उम्र |
पता |
पेशा |
दिनांक………………………. |
(हस्ताक्षरित) |
||
ग्रामीण विकास एवं पंचायती राज विभाग
मान्यता का प्रमाण पत्र
राजस्थान राज्य सरकार राजस्थान पंचायती राज नियम, 1996 के नियम 363 के अनुसरण में उक्त नियमों के प्रयोजन के लिए संघ/संघ को एतद्द्वारा मान्यता प्रदान करती है।
जगह……………………..
दिनांक…………………..
निदेशक ग्रामीण विकास एवं पंचायती राज
[प्ररूप XLVIII]
(नियम 173क देखें)
आबादी भूमि के उपयोग में परिवर्तन के लिए आवेदन
1. आवेदक का नाम…………………………………….. .
2. आवेदक का पता……………………………….. ….
3. भूमि का विवरण जिसके भूमि उपयोग में परिवर्तन वांछित है
(ए) ……………………… पर स्थित है
(गाँव में स्थान को इंगित करने के लिए गाँव का नक्शा संलग्न करें और प्रस्तावित भूमि उपयोग योजना भी संलग्न करें)
(ख) खसरा/प्लॉट संख्या …………………………… …. (आबादी भूमि के चारों किनारों के सभी विशिष्टताओं के विवरण वाले खसरा/भूखंड योजना के साथ-साथ साइट योजना संलग्न करें)
(ग) आबादी भूमि का पट्टा संलग्न करें और उस प्राधिकारी या निकाय के नाम का उल्लेख करें जिसके द्वारा इसे जारी किया गया था।
(डी) क्या आबादी भूमि के संबंध में न्यायालय या अन्य सक्षम प्राधिकारी में कोई विवाद या मुकदमा लंबित है जिसके लिए उपयोग में परिवर्तन की मांग की गई है ……………… …….. (यदि कोई हो तो पूर्ण विवरण दें)
(e) क्या भूमि के संबंध में किग न्यायालय या अन्य प्राधिकारी का कोई स्थगन आदेश है? यदि कोई? उसका पूरा ब्योरा दें और ऐसे आदेश की प्रति भी संलग्न करें। …….
(च) आबादी भूमि का वर्तमान अनुमेय उपयोग ………………
(छ) आबादी भूमि के उपयोग में वांछित परिवर्तन (पूरा विवरण दें)………
(ज) आबादी भूमि के उपयोग में परिवर्तन की मांग करने के कारण…………….
4. यदि आबादी भूमि के उपयोग में परिवर्तन के लिए कोई आवेदन, जिसके लिए अब आवेदन किया गया है, पहले भी किया गया था? यदि हां, तो उसका विवरण दें और उस पर पारित आदेश की प्रति भी संलग्न करें।
5. भूमि के शीर्षक के बारे में विवरण दें (जैसे कि फ्री होल्ड, लीज होल्ड, पट्टाधारी या अन्यथा वैध धारक) – [दस्तावेजों की सही प्रतियां संलग्न करें] ……………… ……………………. ….‘……
6. आवेदन शुल्क- भुगतान किए गए शुल्क का विवरण दें- (जिस रगद से आवेदन शुल्क का भुगतान किया जाता है उसकी फोटो प्रति संलग्न करें)
दिनांक ……………………………….. |
आवेदक के हस्ताक्षर |
जगह……………………………….. |
(आवेदक का नाम) आवेदक का पता |
रगद
भूमि उपयोग परिवर्तन के लिए आवेदक श्री…………………… का आवेदन ………… को प्राप्त हुआ। ……………(दिनांक)।
के हस्ताक्षर और मुहर
आवेदन पर निर्णय लेने में सक्षम अधिकारी/प्राधिकरण के कार्यालय में
[प्ररूप XLIX]
[देखें नियम 173क (10)(13)]
राजस्थान पंचायती राज अधिनियम, 1994 की धारा 107क के तहत भूमि के उपयोग में परिवर्तन की अनुमति।
कोई फ़ाइल नहीं। ……………………………….. |
स्थान …………… दिनांक …………… |
जबकि आवेदक श्री……. ……..पंचायत…………तहगल…………जिला……. ने उपयोग परिवर्तन के लिए आवेदन दायर किया है सम्मान, वार्ड में स्थित आबादी भूमि पंचायत अंचल में आने वाले ग्रामों की संख्या………तहगल…………जिला……. माप ………… वर्ग। गमा और क्षेत्र से बंधे हुए मीटर, जैसा कि संलग्न साइट योजना में विस्तार से वर्णित है, जैसा कि लाल रंग में दिखाया गया है, जैसा कि लाल रंग में दिखाया गया है, सभी मौजूदा स्थितियों और बाधाओं के अधीन, उक्त भूमि में अधिकार, शीर्षक और ब्याज का दावा करके, उपरोक्त उद्धृत भूमि से जुड़ी सुगमताएं। और राजस्थान पंचायती राज अधिनियम, 1994 (1994 का अधिनियम संख्या 13) की धारा 107क में निहित प्रावधानों और उसके तहत बनाए गए नियमों को लागू करके भूमि के उपयोग में परिवर्तन की अनुमति देने के लिए प्रार्थना करना और अपनी प्रार्थना के समर्थन में आवश्यक दस्तावेज प्रस्तुत किए हैं। भूमि के उपयोग में परिवर्तन।
अतः मैंने राजस्थान पंचायती राज अधिनियम, 1994 की धारा 107क के तहत राज्य सरकार द्वारा अधिकृत अधिकारी/प्राधिकरण के रूप में उनके अनुरोध/प्रार्थना पर विचार किया है। प्ररूप XLVIII में आवेदन में और मैं आवेदक द्वारा प्रस्तुत दस्तावेजों के अवलोकन और जांच के बाद संतुष्ट हूं कि उनका अनुरोध उचित है और भूमि के उपयोग के वांछित परिवर्तन की अनुमति दी जा सकती है और आवेदक को उपयोग में वांछित परिवर्तन करने की अनुमति है आबादी भूमि का बशर्ते आवेदक इस आदेश की तारीख से तीस दिनों के भीतर भूमि उपयोग के परिवर्तन शुल्क जमा करता है।
जगह …………….. |
अधिकारी |
हस्ताक्षर |
दिनांक……………….. |
गल |
राज्य सरकार द्वारा प्राधिकृत अधिकारी/प्राधिकरण का नाम एवं पदनाम |
[प्ररूप L]
[देखें नियम 173क(14)]
पंचायत …………………….
लीज डीड
यह अनुबंध इस दिन दो हजार ………… और …….. राजस्थान के राज्यपाल के खच किया जाता है (बाद में पट्टेदार के रूप में जाना जाता है) ) एक भाग और श्री/श्रीमती……………………………. एस/ओ, डब्ल्यू/ओ। ……………………………………… का वृद्ध निवाग गांव………………….तहगल……………..जिला……. दूसरे भाग का ………… (बाद में पट्टेदार कहा जाता है)।
पंचायती राज अधिनियम, 1994 की धारा 107क और उसके तहत बनाए गए नियमों के तहत आबादी भूमि के उपयोग के परिवर्तन के लिए पट्टेदार को आवेदन किया है और परिवर्तन के लिए अनुमति देने का अनुरोध किया है। आबादी भूमि का उपयोग
अब यह अनुबंध इस बात का गवाह है कि पट्टेदार और पट्टेदार के खच ……………… (विवरण दें) को निष्पादित पूर्व लीज डीड के अधिक्रमण में और रुपये की राशि के भूमि शुल्क के उपयोग के परिवर्तन की राशि के विचार में। (रुपये…………केवल) पट्टेदार द्वारा भुगतान किया गया (जिसे पट्टाकर्ता स्वीकार करता है) और पहले लीज डीड के निष्पादन के समय पहले भुगतान की गई राशि उक्त लीज डीड के लिए प्रतिफल के रूप में अब अधिक्रमण की मांग की गई है, पट्टेदार अपने या अपने उत्तराधिकारियों, निष्पादकों और प्रशासकों के लिए और निम्नलिखित तरीके से पट्टेदार के साथ अनुबंधों को असाइन करता है, अर्थात: –
(ए) पट्टेदार समय-समय पर पट्टेदार द्वारा लगाए गए सभी करों, शुल्कों, उपकरों आदि का भुगतान कानून के अनुसार भूमि या उस पर बनाए गए भवनों के संबंध में करेगा;
(ख) पट्टेदार लेआउट योजना से किग भी तरह से विचलित नहीं होगा और न ही प्रासंगिक समय पर लागू कानून के अनुसार पट्टेदार की अनुमति के बिना उप-विभाजन, समामेलन या अन्यथा भूखंड के आकार में परिवर्तन नहीं करेगा;
(ग) जब कभी आबादी भूमि में पट्टेदार का शीर्षक, जो इस अनुबंध की विषय वस्तु है, किग भी तरीके से स्थानांतरित किया जाता है, तो अंतरिती यहां निहित सभी अनुबंधों और शर्तों से बाध्य होगा और उसके लिए सभी मामलों में उत्तरदायी होगा;
(डी) पट्टेदार कानून के अनुसार पट्टेदार की अनुमति के बिना और वह भी भूमि के आवश्यक परिवर्तन का भुगतान करके …………… प्रयोजनों के लिए आबादी भूमि का उपयोग करेगा और अन्य उद्देश्यों के लिए नहीं कानून द्वारा निर्दिष्ट शुल्क का उपयोग करें;।
(ई) पट्टादाता द्वारा प्रयोग की जाने वाली सभी शक्तियों का प्रयोग उसके द्वारा अधिकृत अधिकारियों/प्राधिकारियों द्वारा कानून के अनुसार किया जा सकता है;
(च) यह पट्टा राजस्थान पंचायती राज अधिनियम, 1994 की धारा 107क और उसके अधीन बनाए गए नियमों के तहत प्रदान किया जा रहा है; तथा
(छ) इस पट्टे में अभिव्यक्ति “पट्टेदार” और अभिव्यक्ति “पट्टेदार” यहां पहले इस्तेमाल की गई है, जहां संदर्भ ऐसा मानता है, पट्टेदार के मामले में उत्तराधिकारी, समनुदेशित और पट्टेदार के मामले में, उसके उत्तराधिकारी, निष्पादक, प्रशासकों, कानूनी प्रतिनिधियों और व्यक्ति या व्यक्तियों, जिनमें पट्टे के हित एतद्द्वारा सृजित हैं, कुछ समय के लिए समनुदेशन या अन्यथा द्वारा निहित होंगे।
जिसके साक्षी में श्री………………….. की ओर से, आदेश या निर्देश द्वारा और अधिकार द्वारा पट्टादाता के कानून के तहत अपना हाथ श्री/श्रीमती पट्टेदार ने निर्धारित किया है उसके हाथ में ऊपर लिखा हुआ दिन और वर्ष निर्धारित किया है।
साइन किया हुआ ……………
पट्टेदार
साक्षी:
1- ………………………….
2- ………………………….
राज्यपाल (पट्टेदार) द्वारा बनाए गए कानून के तहत अधिकार/निर्देश द्वारा राज्यपाल के लिए और उसकी ओर से
द्वारा हस्ताक्षर किए …………………………..
पट्टादाता
साक्षी:
1- ………………………….
2- ………………………….
[प्ररूप LI]
[देखें नियम 173-ख (1)]
भूखंडों के उप-विभाजन या पुनर्गठन की अनुमति के लिए आवेदन।
प्रति
(अधिकारी का पद)/प्राधिकरण
……………………अधिकार
…………………………………..
महोदय,
मैं/हम एतद्द्वारा राजस्थान पंचायती राज नियम, 1996 के नियम 3-ख के तहत मोहल्ला/गांव के वार्ड के आबादी क्षेत्र में स्थित भूमि के उप-विभाजन या पुनर्गठन के लिए अनुमति का अनुरोध करते हैं। मैं/हम इसके साथ निम्नलिखित दस्तावेज संलग्न करते हैं:-
(i) स्वामित्व/पट्टेदार का स्वामित्व विलेख…………………………………………(ऐसे दस्तावेजों की सही प्रतियां विधिवत संलग्न करें राजपत्रित अधिकारी द्वारा सत्यापित)
(ii) नियम 173-ख . के तहत आवश्यक जानकारी के साथ साइट प्लान (4 प्रतियां)
(iii) शुल्क और शुल्क जमा करने के प्रमाण के रूप में रगद की फोटो प्रति।
दिनांक ……………………………….. |
आवेदक के हस्ताक्षर |
जगह……………….. |
(आवेदक का नाम) आवेदक का पता |
[प्ररूप LII]
[देखें नियम 173-ख(10)(12)]
प्लाट के उपखण्ड/पुनर्गठन की अनुमति
जबकि आवेदक श्री/श्रीमती ………………… …..पता………स्थान…….गाँव…………पंचायत……… ………… जिला ………………………………….. पंचायत अंचल में पड़ने वाले ग्राम के वार्ड संख्या………… में स्थित आबादी भूमि के उपखण्ड/पुनर्गठन हेतु आवेदन पत्र …….. द्वारा प्रस्तुत किया गया है। ……… तहगल ……… जिला …. माप …………… (वर्ग मीटर) [पूरा विवरण दें उप-विभाजन के मामले में भूखंड का और पुनर्गठन के मामले में प्रत्येक पार्सल या भूखंड का विवरण दें] गमाओं और क्षेत्रों के अनुसार संलग्न साइट योजना में वर्णित पड़ोस क्षेत्र के साथ-साथ ………… में दिखाया गया है। रंग, सभी मौजूदा शर्तों और बाधाओं के अधीन, पूर्वोक्त भूमि से जुड़े सुखभोग और भूखंड के उपखंड/पुनर्गठन के लिए प्रार्थना के समर्थन में आवश्यक दस्तावेज जमा किए हैं।
जहां मैं राजस्थान पंचायत राज अधिनियम की धारा 107-ख के तहत राज्य सरकार द्वारा अधिकृत अधिकारी/प्राधिकरण के रूप में …………… के रूप में , 1994 (1994 का अधिनियम संख्या 13) ने प्ररूप LI में दायर आवेदन में इस अनुरोध पर विचार किया है और मैं आवेदक द्वारा प्रस्तुत दस्तावेजों के अवलोकन और जांच के बाद संतुष्ट हूं कि उप-विभाजन/भूखंड के पुनर्गठन के लिए उनका अनुरोध उचित है और अनुमति दी गई है और इसलिए आवेदक को भूखंड/भूखंडों को उप-विभाजित/पुनर्गठन करने की अनुमति है और उन्होंने रगद संख्या ……………… दिनांक के माध्यम से इसके लिए आवश्यक शुल्क जमा कर दिया है। राजस्थान पंचायती राज के नियम 173-डी में विनिर्दिष्ट दर के अनुसार ………….. में पंचायत नियम, 1996। उपखण्ड/पुनर्गठन की योजना विधिवत प्रमाणित इसके साथ संलग्न है।
जगह……………….. |
हस्ताक्षर |
दिनांक……………….. |
राज्य सरकार द्वारा अधिकृत अधिकारी/प्राधिकरण का नाम और पदनाम |
[प्ररूप LIII]
(नियम 173छ देखें)
पंचायत का नाम………………
आबादी भूमि का रजिस्टर
अनु क्रमांक। |
वार्ड संख्या |
मकान/भूखंड संख्या या भूखंड का स्थान |
गमा के निशान (वर्ग मीटर में आकार के साथ।) |
पट्टेदार के रूप में या अन्यथा द्वारा कब्जा कर लिया गया |
अन्य सूचना |