राजस्थान पंचायती राज नियम 1996 (अध्याय 11 बजट, लेखा और लेखापरीक्षा) | Rajasthan Panchayati Raj Rules 1996 in Hindi (Chapter 11 Budget, Accounts and Audit)

 

Rajasthan Panchayati Raj Rules,1996 in Hindi 

राजस्थान पंचायती राज नियम, 1996
अध्याय 11
बजटलेखे और संपरीक्षा

193. बजट – बजट किसी भी वर्ष के लिए किसी भी पंचायती राज संस्था की प्राप्तियां और व्यय के प्राक्कलन का एक विवरण है।

194. बजट का तैयार किया जाना – (1) बजट प्राक्कलनपंचायत के लिए सचिव द्वारा पंचायत समिति के लिए विकास अधिकारी द्वारा और जिला परिषद् के लिए मुख्य कार्यपालक अधिकारी द्वारा तैयार किये जायेंगे। संबंधित पंचायती राज संस्था को सालाना बैठक में 15 फरवरी तक प्रस्तुत किये जायेंगे। किसी पंचायत के मामले में बजट ग्राम सभा के समक्ष भी रखा जावेगा जैसा कि अधिनियम की धारा 3 की उप – धारा (4) में उपबंधित हैं।

(2) बजट में प्रत्येक वित्तीय वर्ष के दौरान प्राप्तियों और व्यय का संभाव्य प्राक्कलन अन्तर्विष्ट होगा और अधिनियम की धारा 74 में उल्लिखित उपबन्धों के लिए व्यवस्था होगी और वह यथासंभव वास्तविकता के निकट और सही होनी चाहिए।

(3) लेखे के शीर्ष विशेष के अधीन प्राप्ति और व्यय के प्राक्कलनों में उपलब्ध करायी जाने वाली राशियां ऐसी होनी चाहिए जिनके वर्ष के दौरान युक्तियुक्त रूप से प्राप्त होने या व्यय किये जाने की आषा हो और उनमें उस वर्ष के दौरान की प्राप्तियां या बकायाओं के संदाय सम्मिलित होने चाहिए।

(4) बजट पंचायत के लिए विहित प्रपत्र संख्या 27 में और पंचायत समिति/जिला परिषद् के लिए प्रपत्र संख्या 28 में तैयार किया जावेगा।

195. बजट की अन्तर्वस्तु – (1) बजट में अन्य बातों के साथ – साथ निम्नलिखित के लिए भी पर्याप्त और उपयुक्त उपबन्ध अन्तविर्ष्ट होने चाहिए – 

(पंचाायती राज संस्था की बजट वर्ष की निधियों में आरम्भिक अतिशेष और प्राक्कलित आय,

(प्राक्कलित आय निम्नलिखित के लिए पृथक रूप से दर्शित होगी –

(i) स्वयं की आय से

(कर राजस्व

(गैर – कर राजस्वजैसे शुल्कशास्तियांमेलोंभूमि – वि क्रयभूमि के अस्थायी उपयोगकांजी हाउसचरागहोंजलाशयोंकृषि फार्मफलोद्यानोऔर हड्डी ठेकोंसे होने वाली आय तथा दुकानों और भवनों आदि से होने वाली किराये की आय।

(ii) राज्य सरकार से विभिन्न शीर्षों के अधीन सहायता अनुदान जैसे – भू – राजस्व में हिस्साअनुरक्षण अनुदानविकास अनुदानस्थापन अनुदानप्रोत्साहन अनुदानतुल्य हिस्साशिक्षाग्रामीण स्वच्छताआवासनउन्नत चूल्हाजल – प्रदाय और स्वच्छता तथा सामान्य प्रयोजनार्थ अनुदान,

(iii) ग्रामीण विकास संकर्म और नियोजन जनन के लिए ग्रामीण विकास अभिकरण के जरिये केन्द्रीय सरकार से होने वाली प्राप्तियां,

(अधिनियम और नियमों के अधीन स्थापन और उसके कर्तव्यों के निर्वहन पर प्रस्तावित व्ययप्राक्कलन – 

(विद्यमान व्यय के लिए और नये व्यय के लिए,

(नयी मदों के लिए विशेष कारण पृथक रूप से उपदर्शित करते हुएदिये जाने चाहिए,

(उधारों के सम्बन्ध में सभी दायित्वों का और प्रतिदायों आदि जैसी सभी अन्य प्रतिबद्धताओं का सम्यक् उनमोचन,

(कार्यकरण अतिशेष वर्ष के लिए स्वयं के आय की पा्रक्कलित प्राप्तियों का 20 प्रतिशत से कम  हो।

(2) बजट में निम्नलिखित भी अन्तर्विष्ट होंगे – 

(1) पिछले वर्ष के वास्तविक आंकडे उस वर्ष के मूल प्राक्कलनों की तुलना में,

(2) चालू वर्ष के पुनरीक्षत प्राक्कलन उस वर्ष के मूल पा्रक्कलनों की तुलना में और

(3) आगामी वर्ष के बजट प्राक्कलन चालू वर्ष के मूल या पुनरीक्षित प्राक्कलनों की तुलना में।

196. बजट कलेण्डर –  बजट प्राक्कलनों को तैयार करने और उनकी संवीक्षा करने में निम्मलिखित कार्यक्रम का सख्ती से अनुसरण किया जावेगा – 

(बजट को अंतिम रूप देने और संबंधित पंचायती राज संस्था द्वारा पारित करने के लिए अंतिम तारीख -15 फरवरी

(अधिनियम की धारा 74 को उप – धारा (4) में यथाउपबंधित अगले उच्च प्राधिकरण को प्रस्तुत करने की अंतिम तारीख – 28 फरवरी

(बजट प्राक्कलनों को स्वीकृति देने वाले प्राधिकारी द्वारा लौटाये जाने की अंतिम तारीख जेड20 मार्च।

197. बजट की मंजूरी – (1) अधिनियम की धारा 74 की उप – धारा (4) में उल्लिखित बातों के सिवाय स्वीकृति देने वाला प्राधिकारी निम्नलिखित की भी संवीक्षा करेगा – 

(1) बजट तैयार करने में नियम 194 तथा 195 में अन्तर्विष्ट का अनुसरण किया गया है।

(2) प्राप्ति करने और व्यय का प्राक्कलन सहीं है और बजट वर्ष के दौरान बकाया उधारो या होने वाले शोध्यों की वसूली के लिए उपबन्ध किया गया हैं।

(3) आबादी भूमि के विक्रय से प्राप्त आय स्थापन प्रभारों के लिए उपयोग में नही ली गयी हैं।

(4) पंचायत एवं विकास विभाग द्वारा समय – समय पर जारी की गयी सिफारिशों पर बजट तैयार करते समय सम्यक रूप से विचार किया गया हैं।

(5) पंचायत बजट में बाध्यकर प्रभारों के लिए उपबन्ध किया गया है जैसे स्वच्छताविद्युतजलगांवों की सड़केविद्यालय भवनों का रखरखाव और मरम्मत और विकास क्रिया कलाप आदि और पंचायत समितियों/जिला परिषदों के बजट में वेतन तथा भतोंआकस्मिकताओं विकास कार्य के साथ ही उधारोंयदि कोई होके प्रतिसंदाय के लिए भी उपबन्ध किया गया है।

(6) बजट वर्ष के और पूर्व के आंकडो के बीच भिन्नताओं को पर्याप्त रूप से स्पष्ट किया गया हैं।

(2) मंजूरी प्राधिकारी उपनियम (1) में उल्लिखित बिन्दुओं पर समाधान होने के पश्चात बजट को उपान्तरों के साथ या के बिनाजैसा भी वह ठीक समझे मंजूरी देगा।

(3) मंजूर किया गया बजट 20 मार्च या इसके पूर्व सम्बधित पंचायती राज संस्था को लौटा दिया जावेगा।

198. स्थापन के लिए प्राक्कलन –  पंचायत समिति और जिला परिषद भी स्थापन पर के व्यय के पृथक पृाथक प्राक्कलन निम्ललिखित को उपदर्शित करते हुए तैयार करेगी – 

(1) संवर्ग अनुसार स्वीकृत पद सं[यावेतन मान की दरमंहगाई भत्तावेतन वृ)ियां जो बजट वर्ष के दौरान देय होगी। (2) रिक्तीयों के कारण अधिसंभाव्य बचतें।

199. एक बजट शीर्ष से अन्य में पुनर्विनियोजन –  किसी वित्तीय वर्ष के लिए पारित बजट में एक शीर्ष के अधीन उपबंधित रकम कोनिम्नलिखित शर्तें के अध्यधीन रहते हुए पूर्ण रूप से या आंशिक रूप से किसी भी अन्य शीर्ष में अन्तरित किया जा सकेगा – 

(1) कि ऐसी सेवाओं या दायित्वों के लिए सम्यक प्रबन्ध किया जावे जिन्हें अधिनियम या तदधीन बनाये गये नियमों के अनुसार निष्पादितअनुरक्षित या संदत करना किसी पंचायती राज सस्ं था के लिए बाध्यकारी हैं।

(2) कि पंचायत ने पूर्व में मंजूर संकर्मे के उपयोग में  लिखे गये बजट को अव्ययित अतिशेषो के बदले मेवर्ष के दौरान नये संकर्म  के लिए अन्तरित करने हेतु ग्राम सभा का अनुमोदन प्राप्त कर लिया हैं।

(3) कि राज्य सरकार/केन्द्र सरकार से प्राप्त सहायता अनुदान को उन प्रायोजनों के लिए खर्च किया जायेजिनके लिए वह मंजूर किया है।

(4) कि एक मुख्य शीर्ष की रकम अन्य मुख्य शीर्ष में अन्तरित  की जावे।

200. बजटेतर व्यय की अनुज्ञा उपगत किया जाना – (1) कोई भी पंचायती राज संस्था मंजूरी प्राधिकारी की पूर्व अनुज्ञा के बिनामंजूर शुदा बजट में शामिल  की गयी किसी भी मद का या बजट आवंटन से अधिक व्यय उपगत नहीं करेगी। ऐसे व्यय के लिए अनुपूरकपुनरीक्षित बजट तैयार किया जा सकेगा।

(2) इस बात की सावधानी बरती जावेगी कि बजट सीमाओं का अतिक्रमण  हेा।

201. त्रैमासिक पुनर्विलोकन –  पंचायती राज संस्था प्रत्येक शीर्ष पर के बजट उपबंध और संचयी व्यय का एक त्रैमासिक विवरण तैयार करायेगी और उसे प्रतिवर्ष अप्रेलजुलाईअक्टूबर और जनवरी मास में आयेजित की जाने वाली बैठकों में भौतिक लक्ष्यों और उपलब्धियों के तथा व्यय की थीमी गति प्रतिषत यदि कोई होके कारणों के साथ रखेगी। 

राजस्व

202. राजस्व का निर्धारण और संग्रहण – (1) पंचायती राज संस्था के कार्यालय प्रधान का वह कर्तव्य होगा कि राजस्व तथा व्यय के लेखो का उचित रूप से रखा जाना सुनिश्चित हो।

(2) कार्यालय प्रधान राजस्वों की प्राप्ति और संग्रहण के लिए भी उत्तरदायी होगा। वह सुनिश्चित करेगा कि शोध्य सही – सही और नियमित रूप से निर्धारित संगृहित और निधि में तत्परतापूर्वक जमा किये गये हैं। तदनुसार वह उन समस्त स्त्रोतो से जहाँ से राजस्व प्राप्त होता हैवसूली की प्रगति के बारे में विवरणियां प्राप्त करने करने की व्यवस्था करेगा और उन्हें प्रपत्र संख्या में मांग और संग्रहण रजिस्टर में अंकित करवायेगा।

203. राजस्व की लीकेज पर नियंत्रण –  यह सुनिश्चित करने के लिए कि समस्त संगृहित राजस्व सहीं तौर पर लेखे में अंकित कर दिया गया हैं कि कोई भी लीकेज नहीं हैं। कार्यालय प्रधान यह देखेगा कि पर्याप्त नियन्त्रणों का प्रयोजन किया जाये और इस प्रयोजन के लिए प्राप्ति के लेखे के सांकेतिक निरीक्षण करा सकेगा।

204. राजस्व बकाया – पंचायती राज संस्था को देय कोई भी रकम बिना पर्याप्त कारणों के बकाया नहीं छोड़ी जायेगी और जहाँ ऐसे देय अवसूलीय प्रतीत होवहाँं अन्य समायोजनछूट मांग में जमा का उपलेखन के लिए साक्षम प्राधिकारी के आदेषबिना किसी परिहार्य विलम्ब के प्राप्त किये जाने आवश्यकहै।

205. वास्तविक वसूली के अनुसार जमा – कोई भी राशि राजस्व के रूप में तब तब जमा नहीं की जा सकेगी जब तक वह वास्तविक रूप से वसूल  कर ली गयी हो।

206. पीडीलेखे/बैंक या ड़ाकघर में जमा – (1) पंचायत कार्यालय में प्राप्त सभी रकमें डाकघर या बैक में जमा करायी जायेगी।

(2) पंचायत समिति/जिला परिषद् द्वारा प्राप्त सभी रकमें सरकारी उप कोषागारकोषागार में पी डीलेखे में जमा करायी जायेगी।

(3) राज्य सरकार से प्राप्त सभी अनुदान संबंधित जिला परिषद् के पीडीलेखे में त्रैमासिक आधार पर अन्तरित किये जायेगे।

(4) मुख्य कार्यपालक अधिकारी यह सुनिश्चित करेगा कि सम्बंधित पंचायतो/पंचायत समितियों का हिस्सा उनके लेखो में तत्परता से अंतरित किया जाये।

व्यय

207. धन का आहरण – धन निधि से तब तक आहरित नहीं किया जावेगा जब तक वह किसी भी नियम के अधीन व्यय का किसी मद पर या सक्षम प्राधिकारी के किसी विनिर्दिष्ट आदेश पर तत्काल संवितरण के लिए अपेक्षति  हो।

208. वित्तीय औचित्य का मानक – किसी भी पंचायती राज संस्था का कार्यालय प्रधान वित्तीय औचित्य के स्थापित मानकों से नियन्त्रित होना चाहिए और उसे वहीं सतर्कता बरतनी चाहिए जो कोई सामान्य प्रज्ञावान व्यक्ति अपने स्वयं के धन के व्यय के संबंध में बरतता है।

209. देयता का बजट उपबंध के बिना उपगत  किया जाना – कोई भी प्राधिकारी व्यय तब तक उपगत नहीं करेगा या किसी भी दायित्व में प्रवेश नही करेगा जब तक उसके लिए कोई बजट उपबन्ध  हो और व्यय सक्षम प्राधिकारी द्वारा मंजूर  किया गया हो।

210. व्यय का नियंत्रण – कार्यालय प्रधान को यह देखना हीं चाहिए कि  केवल कुल व्यय प्राधिकृत विनियोजन की सीमाओं के भीतर – भीतर रखा जाये अपितु यह भी कि आवंटित निधियों का व्यय संबंधित पंचायती राज संस्था के हित में और सेवा के लिए तथा उन प्रयोजनों पर किया जावे जिनके लिए उपबंध किया गया है। समुचित नियंत्रण बनाये रखने के लिए उसे व्यय प्रतिबद्धताओं और उपगत असंदत्त देयताओं की प्रगति से स्वयं को निकटतम रूप से अवगत बनाये रखना चाहिए।

211. निधियों का आहरण – (1) धन केवल चैंको के जरिये आहरित किया जायेगा। अन्य व्यक्तियों को 1,000/ –  रुपये से अधिक रकम का संदाय भी *[खाता प्राप्तकर्ता] चैक के जरिये ही किया जायेगा। पक्षकार सीधे बैंकखजानाउप – खजाना से संदाय अभिप्राप्त कर सकेगे। संबंधित बिल पर चैक संख्याऔर तारीख का निर्देश सदैव किया जायेगा ताकि एक ही बिल का दोहरा संदाय नहीं किया जा सकें।

*[राजपंचायती राज (संशोधननियम, 2011 द्वारा अंतः स्थापितराजपत्र भाग 4(दिनांक 16 .03 .2011 को 

प्रकाशित एवं प्रभावी] 

(2) कार्यालय प्रधान व्यक्तिशकेवल उतनी ही रकम चैक के जरिये आहरित करने के लिए उत्तरदायी होगा जो बैठक में सक्षम मंजूरी द्वारा प्राधिकृत किये गये बिलों में पारित की गयी है। किसी भी मामले में अधिक धन का आहरण नहीं होगा। परंतु जब कभी चैक पर संयुक्त हस्ताक्षर आवश्यकहो तथा सरपंचप्रधानप्रमुख के हस्ताक्षर प्राप्त करना दस दिन तक संभव ना हो परन्तु भुगतान करना अति आवश्यकहो तो सरपंच के स्थान पर विकास अधिकारीप्रधान के स्थान पर मुख्य कार्यपालक अधिकारी और प्रमुख के स्थान पर जिलाधीश चैक पर हस्ताखर करने हेतु अधिकृत होगे। परंतु ऐसे भुगतान के अति आवश्यक होने के बारे में लिखित कारण अधिलिखित किये जावेगे।

(3)  अनपेक्षित आकस्मिक व्यय के लिए स्थायी अग्रिम के रूप से अग्रदाय धन भी संबंधित पंचायती राज संसथा द्वारा धारा 64 की उप धारा (3) के अधीन प्राधिकृत किया जायेगा किन्तु वह सामान्यतनिम्नलिखित रूप से होना चाहिए

**[(पंचायत 10,000/- रुपये

(पंचायत समिति/परिषद् 25,000/ –  रुपये]

**[उपरोक्त राशिआकस्मिक आकस्मिक व्यय से संबंधित सामान्य वित्त और लेखा नियमों में उल्लिखित प्रावधानों के अलावानिर्माण कार्यों से संबंधित ऐसी मदों पर भी खर्च की जा सकती है, जिसके संबंध में भुगतान एकाउंट पेयी चेक द्वारा नहीं किया जा सकता हैलेकिन ऐसे सभी मामलों में एकाउंट पेयी चेक द्वारा भुगतान  करने के कारणों को संबंधित पंचायती राज संस्थान के संबंधित रिकॉर्ड में दर्ज किया जाएगा  उपरोक्त कारणों को दर्ज करने के बादए अग्रदाय राशि को वाहक चेक के माध्यम से निकाला जा सकता है।,

**[राजपंचायती राज (संशोधननियम, 2011 द्वारा प्रतिस्थापित
राजपत्र भाग 4(दिनांक 16 .03 .2011 को प्रकाशित एवं प्रभावी] 

 जिस व्यक्ति की अभिरक्षा के स्थायी अग्रिम है वह ऐसे अग्रिम की प्राप्ति की अभिस्वीकृति प्रत्येक वर्ष पहली अप्रेल को देगा।

(4) कार्यालय प्रधान मास के अंत में इस बात का भौतिक सत्यापन करेगा कि पर्याक्त सीमाओं के अधीन का कोई भी धन वापस पी.डीलेख/बैंक में जमा करा दिया गया है।

[(5) पंचायती राज संस्था के कार्यालय प्रमुखसरपंचसचिवखजांची के लिए व्यक्तिगत रूप से उत्तरदायी होगायदि संबंधित पंचायती राज संस्थान में नकद शेष राशि महीने के अंत में ऊपर निर्धारित सीमा से अधिक है। ऐसे मामले मेंवे इस तरह की अतिरिक्त राशि पर 18% प्रतिवर्ष की दर से ब्याज का भुगतान करने के लिए संयुक्त रूप से उत्तरदायी होंगे। इस प्रकार देय ब्याज की राशि कार्यालय प्रमुखसरपंच एवं सचिवखजांची से समान रूप से वसूल की जायेगी।],

अधिसूचना संख्या एफ. 186(3 ) लेखा-परीक्षा-I97/ 186   दिनांक31.01 .2003] 

212 सानि./ राज्य बीमा/जीवन बीमा की कटोतियां आदि – (1) वेतन बिलों से भविश्य   निधिराज्य बीमा आयकरजीवन बीमे और गृह किराये की कटोतियों आदि के मुद्दे उचित कटोतियां करने का कर्तव्य बिल का आहरण करने वाले पर न्यागत होगा।

(2) कोई भी विकास अधिकारीकर्मचारियों के वेतनो से सानिराज्य बीमाजीवन बीमाआयकरकटौतियों के प्रति नगदी आहरित नहीं करेगा। वह वेतन बिलों के साथ – साथ निदेशकराज्य बीमा/सा..नि./आयकर अधिकारी जीवन बीमा निगम ष्शाखा के नाम से ऐसे चैक तैयार करवायेगा और मास के प्रथम सप्ताह के दौरान भेजेगा। संबंधित विकास अधिकारी को ऐसी प्रक्रिया के अतिक्रमण के लिए व्यक्तिशदायित्वाधीन ठहराया जायेगा।

213. सचिव की अनुपस्थिति में विकास अधिकारी की शक्तियां – पंचायत के मामले में सभी अधिनियम की धारा 64 की उप – धारा (5) के उपबंधों के अनुसार सरपंच और सचिव के संयुक्त हस्ताक्षर से आहरित किये जायेंगे अतसचिव की अनुपस्थिति या बीमारी या छुट्टी पर होने की स्थिति में उस पंचायत समिति के विकास अधिकारी को जिसकी अधिकारिता में ऐसी पंचायत आती हैतुरन्त और  अत्यावश्य  संदाय सुगम बनाने के लिए सरपंच के साथ – साथ उस पंचायत के चैकों पर हस्ताक्षर कर सकेगा।

214, पंचायती राज संस्थाओं का स्वयं की आय में से व्यय – (1) पंचायती राज संस्थाएं करोजुर्मानोफीसोऔर अपने व्ययनााधीन रखी गयी आस्तियों के जरिये जुटायी गयी अपनी आय से साधारण बैठक या स्थायी समिति के अनुमोदन से व्यय ऐसी सीमाओं के अनुसार उपगत कर सकेगी जो राज्य सरकार द्वारा समय – समय पर निधार्र  की जावे।

[टिप्पणी – वित्त (व्यय-1) विभाग की सहमति आई.डी. सं. 1701 दिनांक 15-6-1998 के अनुसरण में पंचायतों के द्वारा व्यय की सीमा प्रत्येक मामले में रु. 1.00 लाख निर्धारित की जाती है। आदेश क्रमांक एफ. 95/ (19)/7 लेखा/नि. आय / 13 दिनांक 1-1-1999 द्वारा प्रसारित] 

(2) स्वयं की आय में से व्यय वेतनभत्तो और आकस्मिकता के दायित्व की पूर्ति करने के पश्चात् हीं उपगत किया जायेगा।

(3) सभी व्यय अन्य प्रतिबद्धताओं और समाध्यासनों को हिसाब में लेने के पश्चात्स्वयं की आय निधियों की उपलब्धता के अध्यधीन रखते हुए किये जायेगे।

(4) शिक्षा उपकर से आय केवल शैक्षिक भवनों क्रिया कलापों पर ही खर्च की जायेगी किन्तु अन्य स्त्रोतो से स्वयं को होने वाली आय ऐसे भवनों/क्रियाकलापों पर भी खर्चे करना संभव होगा।

(5) कोई भी व्यय पंचायती राज संस्था की अधिकारिता के बाहर उपगत नहीं किया जायेगा।

(6) स्वंय की आय का प्राप्ति और व्यय के लिए वार्षिक बजट अनुमान तैयार किया जायेगा और संबंधित पंचायती राज संस्था से अनुमोदित कराया जायेगा।

(7) कोई भी व्यय स्वयं की आय की प्रत्याषा के आधार पर नहीं किया जायेगा। टिप्पणी

 जुलाई 2003 से पंचायत को अपनी निजी आय से 2 लारव तक व्यय करने की शक्ति दी जा चुकी है। 

215. कर्मचारियों को  अग्रिम – (1) कर्मचारियों को वाहन क्रय के लिये दिेये जाने वाले अग्रिमत्यौहारों के लिए दिये जाने वाले अग्रिम राज्य सरकार के कर्मचारियों पर समय – समय पर लागू होने वाले नियमं और शर्त द्वारा शासित होगे सिवाय तब के कि जब ऐसा अग्रिम स्वयं की आय में से मंजूर किया जाये। यदि इस प्रयोजन के लिए इनकी स्वंय की आय पर्याप्त  होतो अग्रिम एसे  अन्य स्त्रोतो से मंजूर किये जा सकेगें जो पंचायती राज संस्था में उपलब्ध हो। प्राप्त ब्याज को पंचायती राज संस्था की आय के रूप में माना जायेगा और उसकी निधि में जमा कराया जायेगा।

(2) संकर्मो या अन्य विनिर्दिष्ट प्रयोजनों के लिए दिये जाने वाले अग्रिमों को अधिकतम तीन मास के भीतर – भीतर समायोजित कराया जायेगा। ऐसा  होने पर वह अस्थायी गबन की कोटि में आवेगा और उपयोग में  लिया गया नकदी अभिलेख 18 प्रतिषत ब्याज वापस जमा कराया जायेगा।

216. उधार – (1) राज्य सरकार या केन्द्रीय या राज्य सरकार के किसी भी निगम द्वारा किसी पंचायती राज संस्था को मंजूर किया गया उधार निधि पर प्रथम प्रभार होगा और उधार की किष्ते नियत तारीख पर नियमित रूप से संदत्त की जायेगी ऐसा  करने पर राज्य सरकार संदेय सहायता – अनुदान में से शोध्य रकम का समायोजन कर सकेगी या धन को वसूल करने के लिए अन्य उपुयक्त कदम उठा सकेगी।

(2) पंचायती राज संस्थाएं पंचायती राज संस्थाओं के लिए वित्त निगम के निबंधनों और  शर्तो के अनुसारग्रामीण आवासदुकानों के सन्निर्माण और अन्य परियोजनाओं के लिए उधार अभिप्राप्त कर सकेगी और अपनी किस्तों का उपयोग और प्रतिसंदाय कर सकेगी। संबंधित पंचायती राज संस्थाएं उधार के लेखे रखने हेतु की गईं सेवाओं के लिये अभिकरण प्रभारों के रूप में एक प्रतिषत प्रभारित कर सकेगी।

(3) बकाया उधारों को पंचायत समितियों द्वारा वसूल किया जाना जारी रखा जायेगा। और राज्य सरकार के पास से सुसंगत राजस्व शीर्ष में जमा कराया जायेगा।

217. नमूने के हस्ताक्षर – विकास अधिकारी/प्रधान और मुख्य कार्यपालक अधिकारी/प्रमुख के नमूना हस्ताक्षर जिला कोषागार और संबंधित उप – कोषागार को भेजे जायेगें। पंचायत के मामले में सरपंच/सचिव के नमूना हस्ताक्षर उस बैंक/डाकघर को भेजे जायेगें जिसमें लेखे रखे जाते है।

218. चैक बुक – (1) कोषागार/उप – कोषागार या बैंक/डाकघर की चैक बुके कार्यालय प्रधान के प्रभार में रखी जायेगी। वे ताले में बंद रखी जायेगी।

(2) सभी चैंक बुके प्राप्त की जायेगिनी जायेगी और चैक बुक की प्रत्येक परत पर संबंधित पंचायती राज संस्था के नाम वाली रबड की मुहर सुभिन्नत लगायी जायेगी।

219. वेतन और भत्त्ेा – (1) अधिकारियों और कर्मचारीयों के वेतन और भत्ते तथा सदस्यों के मानदेय और भत्ते निधि के स्रोत पर द्वितीय भार होगे।

(2) किसी पंचायत राज संस्था के नियत तारीखों पर वेतन संदत करने में विफल रहने की दशा में राज्य सरकार नकद अतिशेषों पर रोक लगाने और ऐसी रकमों को निकालकर संदाय करने के लिए विकास अधिकारी को निर्देशदे सकेगी।

220. नियत तारीख –  अधिकारियों और कर्मचारियों द्वारा अर्जित वेतन और भत्ते आगामी माह के प्रथम कार्य दिवस पर संदाय के लिए देय हो जायेंगे।

221. संदायों की अभिस्वीकृति –  कार्यालय का प्रधान उसके द्वारा हताक्षरित किसी बिल/चैक पर निकाली गयी रकम के लिए वैयक्तिक रूप से उतरदायी हागा जब तक वह इसका संदाय  कर दे और  पाने वाले से उसके लिए विधि रूप से मान्य रसीद प्राप्त  करले।

222. स्थानान्तरण पर वेतन और अग्रिम –  स्थानान्तरणों पर वेतन और अग्रिमों के उपबन्धराज्य सरकार के कर्मचारियों पर समय समय पर लागू नियमों द्वारा शासित होगे।

223. अन्य प्रभार – (1) कार्यालय के प्रबन्ध के लिए उपगत समस्त आनुबंधिक और प्रकरण व्ययों की प्रकृति नमनीय और उतार – चढाव वाली हैं और उनमें मितव्ययिता करने के लिए पूरी सावधानी रखी जानी हैं। बिल का आहरण करने वाला अधिकारी यह देखने के लिए उतरदायी होगा कि बिल में सम्मिलित व्यय की मदें स्पष्ट आवश्यकता की है और कोई भी खरीद वस्तु उचित और उपयुक्त दरों पर प्राप्त की गयी है।

(2) अन्य प्रभारों के लिए अग्रिमों की आहरण में पाने वाले की रसीद सहित सम्यक रूप से समर्थित वाउचरों पर या फर्म या ठेकेदारों के प्रोफार्मा बिलों पर किया जाना चाहिए और अग्रिमों का आहरण तब तक अनुज्ञान नहीं किया जाना चाहिए जब तक कि किसी विशेष प्रकृति के व्यय की पूर्ति के लिए अपेक्षित  हो।

224. राजस्व का प्रतिदाय –  राजस्व के प्रतिदाय के लिए किसी भी मांग को स्वीकार करने के पूर्व रोकड बही में मूल जमा को अवश्य खोजना चाहिए और संबंधित रसीद भी साथ लगानी चाहिए और प्रतिदाय की प्रविष्टि इन दस्तावेजों में लाल स्याही से सुभिन्न रूप से की जानी चाहिए जिससे कि दूसरे दावे के विरूसुरक्षा की जा सकें। जहाँ कर या उपकर का प्रतिदाय किया जाये वहाँ मांग और संग्रहण रजिस्टर में प्रति – निर्देशभी किया जायेगा।

225. अतिसंदाय / गलत संदाय – (1) कार्यालय का प्रधान निधि में से लिये गये किसी भी अतिसंदाय कीचाहे वह सद्भावपूर्वक किया गया हैशीघ््रा वसूल करने के लिए उतरदायी है।

(2) यदि ऐसा संदाय किसी कपट के कारण किया गया है तो ऐसे व्यक्ति के विरूगलत रूप से कपट वंचित करने और धन प्राप्त करने के लिए पुलिस थाने में प्रथम सूचना रिपोर्ट भी दर्ज करवायी जायेगी।

226. कालातीत दावों का संदाय –  (1) वेतनयात्रा – भत्ते/चिकित्सा पुनर्भरण के तीन वर्ष के कालातीत दावों का संदाय कार्यालय के प्रधान द्वाराकनिष्ठ लेखाकार द्वारा पूर्व  –  जाँच किये जाने के पश्चात किया जायेगा।

(2) तीन वर्ष से अधिक के ऐसे सभी दावों के लिएजिला पारेषद के लेखाकार/सहायक लेखाधिकारी द्वारा पूर्व/जांच किये जाने के पश्चात मुख्य कार्यपालक अधिकारी की पूर्व – मंजूरी अपेक्षित होगीं।

परंतु यह तब जब कि

(दावे का औचित्य सिहो जावे

(वे आदेशऔर दस्तावेज उपलब्ध होजिन पर दावा आधारित है।

(उन पूर्व बिलों का निर्देशकिया जावे जब दावे का आहरण नहीं किया गया था।

(विलम्ब के कारण स्पष्ट किये जावे – 

(3) वर्ष तक के आकस्मिक दावों पर मुख्य कार्यपालक अधिकारी की पूर्व मंजूरी अपेक्षित होगी जबकि तीन वर्ष के पश्चात निदेशकगा्रमीण विकास एवं पंचायती राज की मंजूरी अपेक्षित होगी।

227. सामान्य वित्तीय एवं लेखा के अधीन प्रादेशिक अधिकारी और कार्यालय प्रधान की शक्तियां – (1) इन नियमों में विनिर्दिष्ट नहीं की गयीप्रादेषिक अधिकारी की वित्तीय शक्तियों का प्रयोगजिले में पदस्थापित कर्मचारियोंके संबंध में मुख्य कार्यपालक अधिकारी द्वारा सा.विएवं लेनिके अनुसार किया जावेगा।

(2) सा.वि.एवं ले.नि.के अनुसार इन नियमों में विनिर्दिष्ट नहीं की गयी कार्यालय के प्रधान की शक्तियों का प्रयोगपंचायत के लिए संरपचपंचायत समिति के लिए विकास अधिकारी और जिला परिषद के लिए मुख्य कार्यपालक अधिकारी द्वारा किया जावेगा। 

लेखों का रखा जाना

228. सभी नकद संव्यवहारों का लेखा जोखा दिया जाना –  ऐसे समस्त नकदसंव्यवहारों कोजिनमें पंचायत राज संस्था एक पक्षकार हैकिसी भी अपवाद के बिना लेखे में लिया जायेगा। लेखे रखे जाने में पारदर्शिता सुनिश्चित की जावेगी।

229. रोकड बही – (1) प्रत्येक पंचायती राज संस्था द्वारा धन की प्राप्ति और संदाय का अभिलेख रखने के लिए प्रपत्र संख्या29 में एक रोकड बही रखी जायेगी।

(2) सभी नकद संव्यवहारों कीज्यांेहीं वे किये जायेरोकड बही में पूर्ण प्रविष्टि की जायेगी और वह जांच के प्रतीक स्वरूप कार्यालय के प्रधान द्वारा अनुप्रमाणित की जायेगी।

(3) रोकड बही का नियमित रूप से समवरण किया जायेगा और कार्यालय का प्रधान प्रत्येक प्रविष्टि पर उसके सही होने के अभीष्ट स्वरूप आवश्यककरेगा।

(4) प्रत्येक मास के अंत में कार्यालय प्रधान को तिजोरी के नकद अतिशेष का रोकड बहीं के अतिशेष से सत्यापन करना चाहिए और निम्नलिखित आशय का हस्ताक्षरित और दिनांकित प्रमाण पत्र अभिलिखित करना चाहिए – 

‘‘प्रमाणित किया जाता है कि नकद अतिशेष की जांच कर ली गयी है और निम्नलिखित रूप में पाया गया हैं –  वास्तविक नकदी और रोकड बही के अतिशेषों के बीच अन्तर होने की दशा में उसका स्पष्टीकरण किया जायेगा।

(5) धन के किसी भी दुरूपयोग को रोकने के लिए वास्तविक नकद अतिशेष की आकस्मिक जांच भी मास में दो बार की जायेगी। (6) पंचायतविकास योजनाओं की निधियों के लिए एक पृथक रोकड बहीं भी रखेगी।

230. धन की रसीद – (1) जब धन कार्यालय में संगृहित या संदत किया जाये तो देने वाले को प्रपत्र संख्या30 में रसीद दी जायेगी।

(2) रसीद पर सचिव/रोकडिये द्वारा हस्ताक्षर किये जायेगंे।

(3)  रकम अंको और शब्दों दोनों मे लिखी जायेगी।

(4) कार्यालय प्रधान स्वयं का इस बात से समाधान करेगा कि रकम की रोकड बही में सही रूप से प्रविष्टि कर ली गयी है।

(5) खाली रसीद पुस्तकेंसुरक्षित अभिरक्षा में रखी जायेगी और रसीद पुस्तकों का समुचित लेखा रखा जायेगा।

231. रोकडिये की प्रतिभूति – (1) नकदी का प्रभारी व्यक्तिअपनी अभिरक्षा में संभाव्यतरखी जाने वाली नकदी की रकम की समतुल्य पर्याप्त और विधिमान्य प्रतिभूति देगा।

(2) प्रतिभूति विश्वस्तता बंधपत्र के रूप में होगी जिसे उसकी समाप्ति के लिए नियत तारीख के पूर्व स्वीकृत किया जायेगा।

(3) रोकडिये को राज्य सरकार द्वारा तदनुसार विहित दर पर भत्ता संदेय होगा।

232. डबल लॉक – (1) विश्वस्तता बंधपत्र की रकम के अधिक समस्त नकदी डबल लॉक व्यवस्था के अधीन लोहे की मजबूत तिजोरी में रखी जायेगी।

(2) एक ताले की सभी चाबियां एक व्यक्ति की अभिरक्षा में रखी जायेगी। अन्य तालों की चाबियां कार्यालय के प्रधान की अभिरक्षा में रखी जायेगी। तिजोरी को तब तक नही खोला जायेगा जब तक दोनों अभिरक्षक उपस्थित  हों।

233. नकदी की सुरक्षा –  जब रोकडिये के द्वारा बैक से कार्यालय या कार्यालय से बैंक तक अत्यधिक नकदी अतिशेष लाया जाये तो उसके साथ जाने आने के लिए पुलिस थाने से एक सुरक्षा गार्ड की व्यवस्था संदाय आधार पर की जा सकेगी।

234. दावों का प्रस्तुतिकरण – (1) संदाय के लिए समस्त दावे प्रपत्र 31 में तैयार किये जायेंगे और पंचायती राज संस्था के संबंधित कार्यालय मे प्रस्तुत किये जायेंगे जहाँ कार्यालय के प्रधान द्वारा उनकी जांच की जायेगी और वे पारित किये जायंेगे।

(2) कोई संदाय – आदेशदेने वाला अधिकारी यह देखने के लिए व्यक्गित रूप  से उतरदायी है कि दावा हर प्रकार से पूर्ण और सही है और उसमेंकिये गये संदाय की प्रकृति के बारे मेंपर्याप्त सूचना है।

235. वाउचर – (1) धन के प्रत्येक संदाय के लिएनिधि का धन खर्च करने वाला अधिकारी दावे की पूर्ण और स्पष्ट विषिष्टियां और लेखों में समुचित वर्गीकरण के लिए आवश्यकसमस्त सूचना देने वाला वाउचर अभिप्राप्त करेगा।

(2) प्रत्येक वाउचर में या उसके साथउस व्यक्ति द्वारा संदाय किये जाने की अभिस्वीकृति होनी चाहिए जिसके द्वारा या जिसकी और  से दावा प्रस्तुत किया गया है।

(3) प्रत्येक वाउचर पररकम को शब्दों और अंको में विनिर्दिष्ट करते हुएकार्यालय प्रधान द्वारा संदाय – आदेश होना चाहिए।

(4) समस्त वाउचरो को क्रम से तारीखवार संख्यांकित किया जायेगा जो 1 अप्रेल से प्रारंभ होगी और वाउचरों के पार्श्व  में लाल स्याही से ‘‘संदत‘‘ अंकित किया या लिखा जाना चाहिए जिससे उनका दूसरी बार प्रयोग नहीं किया जा सके।

(5) कार्यालय का प्रधान रोकड बही में व्यय पक्ष के संदायों को सत्यापित करते समय वाउचरों पर भी आद्याक्षर करेगा।

(6) वाउचरों संपरीक्षा की लिए सुरक्षित अभिरक्षा में रखे जायेंगे और विहित कालावधि समाप्त हो जाने के पश्चात ही नष्ट किये जायेंगें।

236. खाता – (1) प्रत्येक पचायत राज संस्था मेनिधि मे से उपगत व्यय के विभिन्न शीर्षो के अधीन उपगत व्यय को दर्शित करने के लिए प्रपत्र संख्या32 में एक खाता रखा जायेगा।

(2) खाते मेंस्वीकृत बजट में उपबन्धित प्रत्येक व्यय – षीर्ष के लिए एक पृष्ठ या कुछ पृष्ठ आवंटित किये जायेगें और उसमें रोकड बही से नियमित रूप से प्रविष्टियां की जायेगी।

237. राजस्व रजिस्टर – (1) प्रत्येक पंचायती राज संस्था में प्रपत्र 33 में राजस्व प्राप्तियों का एक रजिस्टर भी उसमें समस्त करोंफीसों और अन्य आय के मद की प्राप्तियों को अभिलिखित करने के लिए रखा जायेगा।

(2) आय कर या फीस के प्रत्येक शीर्ष के लिए आवश्यकता के अनुसार पृथक पृष्ठ आवंटित किया या किये जायं और रोकड बही से नियमित रूप से प्रविष्टि की जायेगी।

238. लेखों का मिलान – (1) पंचायत सचिव का यह कर्तव्य होगा कि वह पंचायत अभिलेखों के आधार पर प्रत्येक मास बैंक/डाकघर पास बुकों से जमाओं और आहरणों का मिलान करें और यदि कोई भूलें होंतो उन्हें ठीक करें।

(2) पंचायत समिति और जिला परिषद के मामले में रोकडिया कोषागार/उप – कोषागार में के.पी.डीखातों का प्रत्येक माह मिलान करेगा। 

सामान

239. स्टॉक रजिस्टर – (1) प्रत्येक पंचायती राज संस्था द्वारा प्रपत्र 34 में एक स्टॉक रजिस्टर रखा जायेगा जिसमें संबंधित पंचायती राज संस्था के समस्त स्टॉक और अन्य जंगम सम्पतियों की प्राप्ति और निर्गम की प्रविष्टि की जायेगीं।

(2) सामान का लेखा प्रत्येक मद के लिए पृथक – पृथक रखा जायेगा। प्राप्ति पक्ष की और की प्रविष्टियां प्रदायक के बिल से सीधी की जायेगीसामान वास्तविक मांग – पत्र के अनुसार जारी किया जायेगा और सामान के निर्गम के लिए समुचित रसीद अभिपा्रप्त की जायेगी। उसकी स्टॉक रजिस्टर के निर्गम पक्ष में सही – सही प्रविष्टि की जायेगी।

240. सामान की अभिरक्षा – (1) सामान की अभिरक्षा से न्यस्त व्यक्ति उसकी सुरक्षा और उसे अच्छी स्थिति और उसे हानिनुकसान या धूप से संरक्षित करने के लिए उतरदायी होगा।

(2) वह  शीनोंटेलीफोनटंकण यंत्रोंफोटो प्रतिलिपिकूलरों और अन्य कार्यालय उपस्कर काउन्हें हर समय चालू स्थिति में रखने के लियेसमुचित और समयबद्ध अनुरक्षण सुनिश्चित करेगा।

241. छपने वाला सामान – (1) छपने वाले सामान और लेखन की सामग्री की वस्तुआंे के लिए प्रपत्र 34 में भी एक पृथक रजिस्टर रखा जायेगा।

(2) कार्यालय का प्रधान प्रत्येक कर्मचारी/अनुभाग के लिए लेखन सामग्री की वस्तुओं के निर्गम के लिए तिमाही मानदण्ड नियत करेगा। मानदण्ड इस प्रकार नियत किये जायेगें जिससे दुरूपयोग या अत्यधिक उपयोग से बचा जा सकें।

242. भौतिक सत्यापन – (1) सामान का भौतिक सत्यापन एक वर्ष में कम से कम एक बार किया जायेगा और ऐसा कर लेने के प्रतीक स्वरूप वह यह प्रमाण  –  पत्र अभिलिखित करेगा और वास्तव में पाये गये आधिक्यों/कमियों के लिए टिप्पणी अंकित करेगा।

(2) कार्यालय के प्रधान द्वाराकिन्ही भी भण्डार वस्तुओं का हानि की वसूली के लिए समुचित जांच के पश्चात उतरदायित्व नियत करते हुए समुचित कार्यवाही की जायेगी।

243. अनुपयोगी/बेकार/अधिशेष भण्डार वस्तुओं का व्ययन –  (1) कार्यालय का प्रधान भण्डार – वस्तुओं को बेकार/अनुपयोगी/अधिशेष घोषित करने के लिए एक सर्वेक्षण सूची तैयार करने हेतु तीन व्यक्तियों की एक समिति गठित करेगा जिसमें

एक व्यक्ति लेखा अनुभाग से होगा।

(2) अपलेखन की शक्तियां निम्नलिखित रूप में होंगी – 

(सरपंच विकास अधिकारी –  10,000 रूपये के बही मूल्य तक की भण्डार वस्तुएं।

(मुख्य कार्यपालक अधिकारी 20,000 रूपये के बही मूल्य तक की भण्डार – वस्तुएं।

(निदेशकग्रामीण विकास 50,000 रूपये तक।

(विकास आयुक्त –  दो लाख रूपये तक।

(3) ऐसी सभी भण्डार – वस्तुओं का व्ययन सक्षम मंजूरी के पश्चात नाषन/नीलामी द्वारा किया जायेगा और उनके आगमों को निधि में जमा किया जायेगा।

244. अनुपयोगी यानों का व्ययन –  (1) पंचायती राज संस्थाओं के यानों (जीपकारपिकअपटेक्टरमोटर साइकिलथ्री व्हीलरबुलडोजरको अनुपयोगी घोषित करने और नीलाम करने के लिए जिला परिषद स्तर पर एक समिति निम्नलिखित रूप से गठित की जायेगी – 

(मुख्य कार्यपलाक अधिकारी – अध्यक्ष

(जिला परिषद का लेखा अधिकारीसहायक लेखा अधिकारी – सदस्य

(जिला मुख्यालय पर पुलिस विभाग का एम.टी./परिवहन विभाग का मोटरयान निरीक्षक/जिला पूल मैकेनिक और सम्भागीय मुख्यालय पर राजकीय गैरेज का तकनीकी अधिकारी – सदस्य                    

(2) उक्त समिति यह सुनिश्चित करेगी कि यान ने निम्नलिखित रूप में विहित दूरी और अवधि पूरी कर ली है – 

यान का प्रकार           किलो मीटर (लाख)   कालावधि (वर्ष)

 1. मोटर साइकिल/        1.20                         7            

     थ्री व्हीलर

 2. हल्के मोटर यान        2.00                         8

 

 3. मध्यम मोटर यान       3.00                         10

 

 4. भारी मोटर यान        4.00                           10

 

 5. ट्रैक्टरबुलडोजर उपयोग के 20,000 घंटे        10

 (3) ऐसे यानों को अनुपयोगी घोषित नहीं किया जायेगा जो विहित दूरी और अवधि तो पूरी कर चुके है किंतु समिति की राय में उपयोग के लिए ठीक है।

(4) समिति के सदस्य यान को अनुपयोगी घोषित करने के पूर्व वास्तविक रूप से उसका निरीक्षण करेंगे और यह प्रमाणित करेंगे कि –

(यान ने विहित दूरी और अवधि पूरी कर ली है।

(यान की लाभप्रद मरम्मत संभव नही है और पेट्रेाल/डीजल के अत्यधिक उपभोग के कारण उसे चलाने से कोई लाभ नहीं है।

(पुर्जाे के प्रतिस्थापन में भारी व्यय होगा और यान को और चलाने से कोई लाभ नहीं होगा।    मुख्य कार्यपालक अधिकारीसमिति की सिफारिश पर अनुपयोगी यानों की नीलामी के लिए आदेश जारी करेगा।

(5) यदि यान ने विहित न्यूनतम दूरी या अवधि पूरी नहीं की हैया यान पिछले सात वर्षो से अप्रयुक्त पडा है या यान दुर्घटनाग्रस्त हो गया है और मरम्मत के बाद उपयोगी नहीं रहेगा तो समिति यह प्रमाणित करते हुए मामले की सिफारिश करेगी कि – 

(यान की लाभप्रद मरम्मत संभव नहीं है और चलाने से कोई लाभ नहीं है,

(पुर्जों के प्रतिस्थापन में भारी व्यय होगा और यान को और चलाने से कोई लाभ नही होगा।

(मरम्मत और पुर्जो के प्रतिस्थापन का कुल खर्च………. रूपये होगाजैसा कि मोटर गैरेज विभाग के सर्वेक्षक द्वारा प्रमाणित किया गया है।

ऐसे यानों को अनुपयोगी घोषित करने की शक्तियां विकास आयुक्त को होगी।

(6) अनुपयोगी यान जिला स्तर पर एक समिति द्वारा नीलाम किये जायेंगेजिसमें निम्नलिखित होंगे – 

(अपर कलक्टर (विकास),

(मुख्य कार्यपालक अधिकारी,

(कोषाधिकारी या जिला परिषद का लेखाधिकारी।

अपर जिला मजिस्टेट (विकासया मुख्य कार्यपालक अधिकारीजो भी वरिष्ठ होअध्यक्ष के रूप में कार्य करेगा परन्तु राज्य की संचित निधि से खरीदे गये यान संबंधित खण्डीय मुख्यायलों पर राज्य मोटर गैरेज के माध्यम से नीलाम किये जायेंगे।

(7) उप – नियम 6 में की समिति द्वारा नीलाम किये गये यानों के विक्रयागमों को संबंधित पंचायती राज संस्था निधि में जमा किया जावेगा और विक्रय कर को सरकारी खाते में जमा किया जायेगा। 

लेखें और विवरणियां

245. लेखों की त्रैमासिक विवरणी  –  आय और व्यय के लेखे का एक त्रैमासिक विवरण पंचायती राज संस्थाओं द्वारा प्रपत्र संख्या35 में तैयार किया जायेगा और अगले उच्चतर प्राधिकार को भेजा जायेगा। जूनसितम्बरदिसम्बर और मार्च को समाप्त होने वाली तिमाही के लिए तिमाही लेखेउस तिमाही केजिससे लेखे संबंधित हैअगले मास की 15 तारीख तक प्रेषित कर दिये जाने चाहिये। बाद में उपबन्धित आय और व्यय की सभी मदों का प्रगामी योगलेखे के ऐसे विवरण तैयार करते समय और अगले उच्चतर प्राधिकारी को आंकडे बताते समयलगाया जायेगा।

246. वार्षिक लेखों का सार – (1) वर्ष के अन्त में पंचायत/पंचायत समितिबजट के प्रत्येक शीर्ष के अधीन अपनी आय और व्यय दर्शित करते हुएप्रपत्र 36 में वार्षिक लेखों का सार तैयार करेगी और उसे आगामी एक मई तकजिला परिषद के माध्यम सेराज्य सरकार को भेजेंगी।

(2) वार्षिक लेखों के सार के साथप्रपत्र 37 मेंलेखों के विभिन्न शीर्ष के अधीन राज्य सरकार से सहायता अनुदानउपयोगिता प्रमाण – पत्रों द्वारा समर्थित उपगत व्यय का कार्यालय के प्रधान द्वारा हस्ताक्षरित विवरण होगा जिसमें स्पष्ट रूप से यह उल्लिखित किया जायेगा कि अनुदान विशिष्ट रूप से उद्देश्यों और प्रयोजनों के लिएजिनके लिए वह दिया गया थासम्पूर्णतया भागतखर्च किया गया हैजिसके लेखे समुचित रूप  से रखे गये है और सम्बद्ध वाउचर उसकी अभिरक्षा में है ।मुख्य कार्यपालक अधिकारी इन विवरणों की सूक्ष्म संवीक्षा करेगा और उनकोंअपनी टिप्पणियों सहितराज्य सरकार को  भेजेगाजिसकी एक प्रति संबन्धित पंचायत समितिपंचायत को भी दी जायेगी।

(3) प्रत्येक पंचायत समिति वार्षिक लेखेां के साथप्रपत्र संख्या 36 में बकाया ऋणों और रकम का विवरण भी संलग्न करेगी।

(4) वार्षिक लेखे के साथ विभिन्न स्कीमों के अधीन हाथ में लिये गये संकर्माें की एक सूची भी प्रपत्र 39 में यथा – उपंबधित व्यय की प्रगति सहितसंलग्न की जायेगी।

(5) वार्षिक लेखे  साथ प्रपत्र 40 में पंचायत/पंचायत समिति की शास्तियों और दायित्वों का विवरण भी होगा।

247. जिला परिषदों के लेखे और विवरणियां –  (1) प्रत्येक जिला परिषद आय और व्यय का त्रैमासिक विवरणनियम 245 में बताया गया हैतैयार करेगी और उसे राज्य सरकार को भेजेगी।

(2) इसी प्रकार प्रत्येक जिला परिषद आय और व्यय के वार्षिक लेखेजैसा कि नियम 246 में बताया गया हैतैयार करेगी और उनको 15 मई तक राज्य सरकार को भेजेगी।

संपरीक्षा

248, लेखों की संपरीक्षा – (1) पंचायती राज संस्थाओं के लेखों की संपरीक्षा राजस्थान स्थानीय निधि संपरीक्षा अधिनियम, 1954 और उक्त अधिनियम के अधीन बनाये गये राजस्थान स्थानीय निधि संपरीक्षा नियम, 1955 के उपवचनों से शासित होगी।

(2) लेखों की सांकेतिक संपरीक्षा भारत के नियंत्रक महालेखा परीक्षक की और  से भी की जा सकेगी।

249. संपरीक्षा के लिए व्यवस्थाएं –  सम्बंधित पंचायती राज संस्थासंपरीक्षक कोसंपरीक्षा करने के लिए उसका कार्यालय लगााने में समर्थ बनाने हेतुयुक्तियुक्त व्यवस्थाएं करेगी और संपरीक्षा के प्रयोजन के लिए समस्त अभिलेखविवरण आदि तैयार रखेगी और उन्हे ऐसी रीति से पेश करेगी जिसकी संपरीक्षा तंत्र द्वारा मांग की जाये।

250. वित्तीय विवरण का तैयार किया जाना –  पंचायती राज संस्था स्थानीय निधि संपरीक्षा नियम, 1955 द्वारा विहित वित्तीय विवरण और उस कालावधि के वास्तविक लेखे तैयार करेगी जिसके लिए संपरीक्षा की जानी है उन्हें तब पेश करेगी जब संपरीक्षा तंत्र द्वारा मांग की जाये।

251. संपरीक्षा रिपोर्ट –  निदेशकस्थानीय निधि संपरीक्षा की संपरीक्षा रिपोर्ट सम्बंधित पंचायती राज संस्था को भेजी जायेगी। पंचायतों की संपरीक्षा रिपोर्ट की एक प्रति संबंधित पंचायत समिति को भी भेजी जायेगी। इसी प्रकार पंचायत समितियों की संपरीक्षा रिपोर्ट की एक प्रति संबंधित जिला परिषद को भी भेजी जायेगी जो यह देखेगी कि संपरीक्षा तंत्र द्वारा बताई गई अनियमितताओं पर शीघ्रता से ध्यान दिया गया है और उनको परिशोधित किया गया है।

252. संपरीक्षा रिपोर्टो का अनुपालन –  (1) निदेशक , स्थानीय निधि संपरीक्षा द्वारा भेजी गई संपरीक्षा रिपोर्ट का अनुपालन राजस्थान स्थानीय निधि संपरीक्षा नियम, 1955 के नियम 28 में अधिकथित प्रक्रिया के अनुसार किया जायेगा।

(2) मुख्य कार्यपालक अधिकारी और मुख्य लेखाधिकारीजिला परिषद् प्रादेशिक मुख्यालयों पर पदस्थापित उप निदेशकस्थानीय निधि संपरीक्षा की उपस्थिति मेंसंपरीक्षा रिपोर्टों के अनुपालन की प्रगति का प्रत्येक तीन मास में पुनर्विलोकन करेंगे और अभियान चलाकर उनके अनुपालन के लिए सभी कदम उठायेंगे।

(3) मुख्य कार्यपालक अधिकारी गबनराजस्व की हानिअतिसंदायगलत संदाय आदि को उपदर्शित करने वाले क्षेत्रों का विनिर्दिष्ट रूप से पुनर्विलोकन करेगा और व्यतिक्रमियों के विरूद्ध विभागीय कार्यवाही या दाण्डिक कार्यवाहियां संस्थित करेगा।

(4) संपरीक्षा रिपोर्टों में बताई गई राजस्व हानि की वसूली के लिए मुख्य कार्यपालक अधिकारी और विकास अधिकारियों द्वारा सभी प्रयास किये जायेंगे।

253. अपलेखन –  (1) सभी धनीय हानियांअवसूलीय राजस्वउधारअग्रिम पंचायती राज संस्था द्वारा राज्य सरकार से पूर्व अनुमोदन से ही अपलिखित किये जायेंगे।

(2) उस दशा मेंजहाँं कोई हानि किसी भी सेवक से कपटकूट रचनागबनगम्भीर उपेक्षा के कारण हुई होजिससे अनु शासनिक कार्यवाही आवश्यक हो गयी हो या जो नियमों और प्रक्रिया में दोष के कारण हुई हो जिससे परिशोधन या संशोधन अपेक्षित होपंचायत समितिजिला परिषद् पहले ऐसे मामले का पुनर्विलोकन करेगी और ‘‘अपलेखन’’ के अनुमोदन के लिए राज्य सरकार को मामले की सिफारिश करने के पूर्व समुचित अनुशासनिक कार्यवाही करेगी।

(3) हानियों के ‘‘अपलेखन’’ की समस्त मंजूरियों की एक प्रति निदेशकस्थानीय निधि संपरीक्षा को भी प्रेषित की जायेगी।

254. प्रपत्र –  प्रपत्रों की अनुपलब्धता की दशा में पंचायती राज संस्थाओं के कार्यालय में उपयोग के लिए राज्य सरकार के समरूपी प्रपत्रों को अंगीकृत किया जा सकेगा।

255. अनुदेश जारी करने की राज्य सरकार की शक्ति – राज्य सरकार ऐसे अनुदेश जारी कर सकेगी जो इन नियमों के समुचित पालन के लिए समय – समय पर दिये जाने आवश्यक हो। 

अध्याय 11 
बजट, लेखे और संपरीक्षा 

193. बजट – बजट किसी भी वर्ष के लिए किसी भी पंचायती राज संस्था की प्राप्तियां और व्यय के प्राक्कलन का एक विवरण है। 

194. बजट का तैयार किया जाना – (1) बजट प्राक्कलन, पंचायत के लिए सचिव द्वारा पंचायत समिति के लिए विकास अधिकारी द्वारा और जिला परिषद् के लिए मुख्य कार्यपालक अधिकारी द्वारा तैयार किये जायेंगे। संबंधित पंचायती राज संस्था को सालाना बैठक में 15 फरवरी तक प्रस्तुत किये जायेंगे। किसी पंचायत के मामले में बजट ग्राम सभा के समक्ष भी रखा जावेगा जैसा कि अधिनियम की धारा 3 की उप-धारा (4) में उपबंधित हैं। 

(2) बजट में प्रत्येक वित्तीय वर्ष के दौरान प्राप्तियों और व्यय का संभाव्य प्राक्कलन अन्तर्विष्ट होगा और अधिनियम की धारा 74 में उल्लिखित उपबन्धों के लिए व्यवस्था होगी और वह यथासंभव वास्तविकता के निकट और सही होनी चाहिए। 

(3) लेखे के शीर्ष विशेष के अधीन प्राप्ति और व्यय के प्राक्कलनों में उपलब्ध करायी जाने वाली राशियां ऐसी होनी चाहिए जिनके वर्ष के दौरान युक्तियुक्त रूप से प्राप्त होने या व्यय किये जाने की आषा हो और उनमें उस वर्ष के दौरान की प्राप्तियां या बकायाओं के संदाय सम्मिलित होने चाहिए। 

(4) बजट पंचायत के लिए विहित प्रपत्र संख्या 27 में और पंचायत समिति/जिला परिषद् के लिए प्रपत्र संख्या 28 में तैयार किया जावेगा। 

195.बजट की अन्तर्वस्तु – (1) बजट में अन्य बातों के साथ-साथ निम्नलिखित के लिए भी पर्याप्त और उपयुक्त उपबन्ध अन्तविर्ष्ट होने चाहिए- 

(क) पंचाायती राज संस्था की बजट वर्ष की निधियों में आरम्भिक अतिशेष और प्राक्कलित आय, 

(ख) प्राक्कलित आय निम्नलिखित के लिए पृथक रूप से दर्शित होगीः 

(i) स्वयं की आय सेः 

(क) कर राजस्व 

(ख) गैर-कर राजस्व, जैसे शुल्क, शास्तियां, मेलों, भूमि-वि क्रय, भूमि के अस्थायी उपयोग, कांजी हाउस, चरागहों, जलाशयों, कृषि फार्म, फलोद्यानो, और हड्डी ठेकों, से होने वाली आय तथा दुकानों और भवनों आदि से होने वाली किराये की आय। 

(ii) राज्य सरकार से विभिन्न शीर्षों के अधीन सहायता अनुदान जैसे-भू-राजस्व में हिस्सा, अनुरक्षण अनुदान, विकास अनुदान, स्थापन अनुदान, प्रोत्साहन अनुदान, तुल्य हिस्सा, शिक्षा, ग्रामीण स्वच्छता, आवासन, उन्नत चूल्हा, जल-प्रदाय और स्वच्छता तथा सामान्य प्रयोजनार्थ अनुदान, 

(iii) ग्रामीण विकास संकर्म और नियोजन जनन के लिए ग्रामीण विकास अभिकरण के जरिये केन्द्रीय सरकार से होने वाली प्राप्तियां,

(ग) अधिनियम और नियमों के अधीन स्थापन और उसके कर्तव्यों के निर्वहन पर प्रस्तावित व्यय/प्राक्कलन- 

(क) विद्यमान व्यय के लिए और नये व्यय के लिए, 

(ख) नयी मदों के लिए विशेष कारण पृथक रूप से उपदर्शित करते हुए, दिये जाने चाहिए,

(घ) उधारों के सम्बन्ध में सभी दायित्वों का और प्रतिदायों आदि जैसी सभी अन्य प्रतिबद्धताओं का सम्यक् उनमोचन,

(ड) कार्यकरण अतिषेष वर्ष के लिए स्वयं के आय की पा्रक्कलित प्राप्तियों का 20 प्रतिषत से कम न हो। 

(2) बजट में निम्नलिखित भी अन्तर्विष्ट होंगे- 

(1) पिछले वर्ष के वास्तविक आंकडे उस वर्ष के मूल प्राक्कलनों की तुलना में, 

(2) चालू वर्ष के पुनरीक्षत प्राक्कलन उस वर्ष के मूल पा्रक्कलनों की तुलना में और 

(3) आगामी वर्ष के बजट प्राक्कलन चालू वर्ष के मूल या पुनरीक्षित प्राक्कलनों की तुलना में। 

196. बजट कलेण्डर – बजट प्राक्कलनों को तैयार करने और उनकी संवीक्षा करने में निम्मलिखित कार्यक्रम का सख्ती से अनुसरण किया जावेगा- 

(क) बजट को अंतिम रूप देने और संबंधित पंचायती राज संस्था द्वारा पारित करने के लिए अंतिम तारीख 15 फरवरी 

(ख) अधिनियम की धारा 74 को उप-धारा (4) में यथाउपबंधित अगले उच्च प्राधिकरण को प्रस्तुत करने की अंतिम तारीख 28 फरवरी 

(ग) बजट प्राक्कलनों को स्वीकृति देने वाले प्राधिकारी द्वारा लौटाये जाने की अंतिम तारीख 20 मार्च। 

197. बजट की मंजूरी – (1) अधिनियम की धारा 74 की उप-धारा (4) में उल्लिखित बातों के सिवाय स्वीकृति देने वाला प्राधिकारी निम्नलिखित की भी संवीक्षा करेगा- 

(1) बजट तैयार करने में नियम 194 तथा 195 में अन्तर्विष्ट का अनुसरण किया गया है। 

(2) प्राप्ति करने और व्यय का प्राक्कलन सहीं है और बजट वर्ष के दौरान बकाया उधारो या होने वाले शोध्यों की वसूली के लिए उपबन्ध किया गया हैं। 

(3) आबादी भूमि के विक्रय से प्राप्त आय स्थापन प्रभारों के लिए उपयोग में नही ली गयी हैं। 

(4) पंचायत एवं विकास विभाग द्वारा समय-समय पर जारी की गयी सिफारिशों पर बजट तैयार करते समय सम्यक रूप से विचार किया गया हैं। 

(5) पंचायत बजट में बाध्यकर प्रभारों के लिए उपबन्ध किया गया है जैसे स्वच्छता, विद्युत, जल, गांवों की सड़के, विद्यालय भवनों का रखरखाव और मरम्मत और विकास क्रिया कलाप आदि और पंचायत समितियों/जिला परिषदों के बजट में वेतन तथा भतों, आकस्मिकताओं विकास कार्य के साथ ही उधारों, यदि कोई हो, के प्रतिसंदाय के लिए भी उपबन्ध किया गया है। 

(6) बजट वर्ष के और पूर्व के आंकडो के बीच भिन्नताओं को पर्याप्त रूप से स्पष्ट किया गया हैं। 

(2) मंजूरी प्राधिकारी उपनियम (1) में उल्लिखित बिन्दुओं पर समाधान होने के पश्चात बजट को उपान्तरों के साथ या के बिना, जैसा 

भी वह ठीक समझे मंजूरी देगा। 

(3) मंजूर किया गया बजट 20 मार्च या इसके पूर्व सम्बधित पंचायती राज संस्था को लौटा दिया जावेगा। 

198. स्थापन के लिए प्राक्कलन – पंचायत समिति और जिला परिषद भी स्थापन पर के व्यय के पृथक पृाथक प्राक्कलन निम्ललिखित को उपदर्षित करते हुए तैयार करेगी- 

(1) संवर्ग अनुसार स्वीकृत पद संख्या, वेतन मान की दर, मंहगाई भत्ता, वेतन वृद्धियां जो बजट वर्ष के दौरान देय होगी। (2) रिक्तीयों के कारण अधिसंभाव्य बचतें। 

199. एक बजट शीर्ष से अन्य में पुनर्विनियोजन – किसी वित्तीय वर्ष के लिए पारित बजट में एक शीर्ष के अधीन उपबंधित रकम को, निम्नलिखित शर्तें के अध्यधीन रहते हुए पूर्ण रूप से या आंषिक रूप से किसी भी अन्य शीर्ष में अन्तरित किया जा सकेगा- 

(1) कि ऐसी सेवाओं या दायित्वों के लिए सम्यक प्रबन्ध किया जावे जिन्हें अधिनियम या तदधीन बनाये गये नियमों के अनुसार निष्पादित, अनुरक्षित या संदत करना किसी पंचायती राज सस्ं था के लिए बाध्यकारी हैं। 

(2) कि पंचायत ने पूर्व में मंजूर संकर्मे के उपयोग मंे न लिखे गये बजट को अव्ययित अतिषेषो के बदले मे, वर्ष के दौरान नये संकर्म ं के लिए अन्तरित करने हेतु ग्राम सभा का अनुमोदन प्राप्त कर लिया हैं। 

(3) कि राज्य सरकार/केन्द्र सरकार से प्राप्त सहायता अनुदान को उन प्रायोजनों के लिए खर्च किया जाये, जिनके लिए वह मंजूर किया है। 

(4) कि एक मुख्य शीर्ष की रकम अन्य मुख्य शीर्ष में अन्तरित न की जावे। 

200. बजटेतर व्यय की अनुज्ञा उपगत किया जाना – (1) कोई भी पंचायती राज संस्था मंजूरी प्राधिकारी की पूर्व अनुज्ञा के बिना, मंजूर शुदा बजट में शामिल न की गयी किसी भी मद का  या बजट आवंटन से अधिक व्यय उपगत नहीं करेगी। ऐसे व्यय के लिए अनुपूरक/ पुनरीक्षित बजट तैयार किया जा सकेगा। 

(2) इस बात की सावधानी बरती जावेगी कि बजट सीमाओं का अतिक्रमण न हेा। 

201. त्रैमासिक पुनर्विलोकन – पंचायती राज संस्था प्रत्येक शीर्ष पर के बजट उपबंध और संचयी व्यय का एक त्रैमासिक विवरण तैयार करायेगी और उसे प्रतिवर्ष अप्रेल, जुलाई, अक्टूबर और जनवरी मास में आयेजित की जाने वाली बैठकों में भौतिक लक्ष्यों और उपलब्धियों के तथा व्यय की थीमी गति प्रतिषत यदि कोई हो, के कारणों के साथ रखेगी। राजस्व 

202. राजस्व का निर्धारण और संग्रह – (1) पंचायती राज संस्था के कार्यालय प्रधान का वह कर्तव्य होगा कि राजस्व तथा व्यय के लेखो का उचित रूप से रखा जाना सुनिष्चित हो। 

(2) कार्यालय प्रधान राजस्वों की प्राप्ति और संग्रहण के लिए भी उत्तरदायी होगा। वह सुनिष्चित करेगा कि शोध्य सही-सही और नियमित रूप से निर्धारित संगृहित और निधि में तत्परतापूर्वक जमा किये गये हैं। तदनुसार वह उन समस्त स्त्रोतो से जहाँ ंसे राजस्व प्राप्त होता है, वसूली की प्रगति के बारे में विवरणियां प्राप्त करने करने की व्यवस्था करेगा और उन्हें प्रपत्र संख्या 6 में मांग और संग्रहण रजिस्टर में अंकित करवायेगा। 

203. राजस्व की लीकेज पर नियंत्र – यह सुनिष्चित करने के लिए कि समस्त संगृहित राजस्व सहीं तौर पर लेखे में अंकित कर दिया गया हैं कि कोई भी लीकेज नहीं हैं। कार्यालय प्रधान यह देखेगा कि पर्याप्त नियन्त्रणों का प्रयोजन किया जाये और इस प्रयोजन के लिए प्राप्ति के लेखे के सांकेतिक निरीक्षण करा सकेगा। 

204. राजस्व बकाया -पंचायती राज संस्था को देय कोई भी रकम बिना पर्याप्त कारणों के बकाया नहीं छोड़ी जायेगी और जहाँ ऐसे देय अवसूलीय प्रतीत हो, वहाँं अन्य समायोजन, छूट मांग में जमा का उपलेखन के लिए साक्षम प्राधिकारी के आदेष, बिना किसी परिहार्य विलम्ब के प्राप्त किये जाने आवश्यकहै। 

205. वास्तविक वसूली के अनुसार जमा-कोई भी राशि राजस्व के रूप में तब तब जमा नहीं की जा सकेगी जब तक वह वास्तविक रूप से वसूल न कर ली गयी हो। 

206. पी. डी. लेखे/बैंक या ड़ाकघर में जमा-(1) पंचायत कार्यालय में प्राप्त सभी रकमंे डाकघर या बैक में जमा करायी जायेगी। 

(2) पंचायत समिति/जिला परिषद् द्वारा प्राप्त सभी रकमें सरकारी उप कोषागार/कोषागार में पी डी, लेखे में जमा करायी जायेगी। 

(3) राज्य सरकार से प्राप्त सभी अनुदान संबंधित जिला परिषद् के पी, डी, लेखे में त्रैमासिक आधार पर अन्तरित किये जायेगे। 

(4) मुख्य कार्यपालक अधिकारी यह सुनिष्चित करेगा कि सम्बंधित पंचायतो/पंचायत समितियों का हिस्सा उनके लेखो में तत्परता से अंतरित किया जाये। 

व्यय 

207. धन का आहरण-धन निधि से तब तक आहरित नहीं किया जावेगा जब तक वह किसी भी नियम के अधीन व्यय का किसी मद पर या सक्षम प्राधिकारी के किसी विनिर्दिष्ट आदेष पर तत्काल संवितरण के लिए अपेक्षति न हो। 

208. वित्तीय औचित्य का मानक-किसी भी पंचायती राज संस्था का कार्यालय प्रधान वित्तीय औचित्य के स्थापित मानकों से नियन्त्रित होना चाहिए और उसे वहीं सतर्कता बरतनी चाहिए जो कोई सामान्य प्रज्ञावान व्यक्ति अपने स्वयं के धन के व्यय के संबंध में बरतता है। 

209. देयता का बजट उपबंध के बिना उपगत न किया जाना-कोई भी प्राधिकारी व्यय तब तक उपगत नहीं करेगा या किसी भी दायित्व में प्रवेष नहीें करेगा जब तक उसके लिए कोई बजट उपबन्ध न हो और व्यय सक्षम प्राधिकारी द्वारा मंजरू न किया गया हो। 

210. व्यय का नियंत्रण-कार्यालय प्रधान को यह देखना हीं चाहिए कि न केवल कुल व्यय प्राधिकृत विनियोजन की सीमाओं के भीतर-भीतर रखा जाये अपितु यह भी कि आवंटित निधियों का व्यय संबंधित पंचायती राज संस्था के हित में और सेवा के लिए तथा उन प्रयोजनों पर किया जावे जिनके लिए उपबंध किया गया है। समुचित नियंत्रण बनाये रखने के लिए उसे व्यय प्रतिबद्धताओं ओर उपगत असंदत्त देयताओं की प्रगति से स्वयं को निकटतम रूप से अवगत बनाये रखना चाहिए। 

211. निधियों का आहरण-(1) धन केवल चैंको के जरिये आहरित किया जायेगा। अन्य व्यक्तियों को 1,000/- रुपये से अधिक रकम का संदाय भी ख्खाता प्राप्तकर्ता,  चैंक के जरिये ही किया जायेगा। पक्षकार सीधे बैंक/खजाना/उप-खजाना से संदाय अभिप्राप्त कर सकेगे। संबंधित बिल पर चैक संख्या और तारीख का निर्देष सदैव किया जायेगा ताकि एक ही बिल का दोहरा संदाय नहीं किया जा सकें। 

(2) कार्यालय प्रधान व्यक्तिषः केवल उतनी ही रकम चैक के जरिये आहरित करने के लिए उत्तरदायी होगा जो बैठक में सक्षम मंजूरी 

द्वारा प्राधिकृत किये गये बिलों में पारित की गयी है। किसी भी मामले में अधिक धन का आहरण नहीं होगा। परंतु जब कभी चैक पर संयुक्त हस्ताक्षर आवश्यकहो तथा सरपंच, प्रधान, प्रमुख के हस्ताक्षर प्राप्त करना दस दिन तक संभव ना हो परन्तु भुगतान करना अति आवश्यकहो तो सरपंच के स्थान पर विकास अधिकारी, प्रधान के स्थान पर मुख्य कार्यपालक अधिकारी और प्रमुख के स्थान पर जिलाधीष चैक पर हस्ताखर करने हेतु अधिकृत होगे। परंतु ऐसे भुगतान के अति आवश्यकहोने के बारे में लिखित कारण अधिलिखित किये जावेगे। 

(3)  अनपेक्षित आकस्मिक व्यय के लिए स्थायी अग्रिम के रूप से अग्रदाय धन भी संबंधित पंचायती राज संसथा द्वारा धारा 64 की उप धारा (3) के अधीन प्राधिकृत किया जायेगा किन्तु वह सामान्यतः निम्नलिखित रूप से होना चाहिए 

(क) पंचायत 10ए000ध्. रुपये 

(ख) पंचायत समिति/परिषद् 25000/- रुपये

ख्उपरोक्त राशिए आकस्मिक आकस्मिक व्यय से संबंधित सामान्य वित्त और लेखा नियमों में उल्लिखित प्रावधानों के अलावाए निर्माण कार्यों से संबंधित ऐसी मदों पर भी खर्च की जा सकती हैए जिसके संबंध में भुगतान एकाउंट पेयी चेक द्वारा नहीं किया जा सकता हैए लेकिन ऐसे सभी मामलों में एकाउंट पेयी चेक द्वारा भुगतान न करने के कारणों को संबंधित पंचायती राज संस्थान के संबंधित रिकॉर्ड में दर्ज किया जाएगा। उपरोक्त कारणों को दर्ज करने के बादए अग्रदाय राशि को वाहक चेक के माध्यम से निकाला जा सकता है।,

 जिस व्यक्ति की अभिरक्षा के स्थायी अग्रिम है वह ऐसे अग्रिम की प्राप्ति की अभिस्वीकृति प्रत्येक वर्ष पहली अप्रेल को देगा। 

(4) कार्यालय प्रधान मास के अंत में इस बात का भौतिक सत्यापन करेगा कि पर्याक्त सीमाओं के अधीन का कोई भी धन वापस पी.डी. लेख/बैंक में जमा करा दिया गया है। 

ख्;5द्ध पंचायती राज संस्था के कार्यालय प्रमुखध्सरपंचध्सचिवध्खजांची के लिए व्यक्तिगत रूप से उत्तरदायी होगाए यदि संबंधित पंचायती राज संस्थान में नकद शेष राशि महीने के अंत में ऊपर निर्धारित सीमा से अधिक है। ऐसे मामले मेंए वे इस तरह की अतिरिक्त राशि पर 18ः प्रतिवर्ष की दर से ब्याज का भुगतान करने के लिए संयुक्त रूप से उत्तरदायी होंगे। इस प्रकार देय ब्याज की राशि कार्यालय प्रमुखध्सरपंच एवं सचिवध्कैशियर से समान रूप से वसूल की जायेगी।,

212 सा. भ. नि./राज्य बीमा/जीवन बीमा की कटोतियां आदि-(1) वेतन बिलों से भविष्य निधि, राज्य बीमा आयकर, जीवन बीमे और गृह किराये की कटोतियों आदि के मुद्दे उचित कटोतियां करने का कर्तव्य बिल का आहरण करने वाले पर न्यागत होगा। 

(2) कोई भी विकास अधिकारी, कर्मचारियों के वेतनो से सा, भ, नि, राज्य बीमा, जीवन बीमा, आयकर, कटौतियों के प्रति नगदी आहरित नहीं करेगा। वह वेतन बिलों के साथ-साथ निदेशक , राज्य बीमा/सा.भ.नि./आयकर अधिकारी जीवन बीमा निगम ष्शाखा के नाम से ऐसे चैक तैयार करवायेगा और मास के प्रथम सप्ताह के दौरान भेजेगा। संबंधित विकास अधिकारी को ऐसी प्रक्रिया के अतिक्रमण के लिए व्यक्तिषः दायित्वाधीन ठहराया जायेगा। 

213 सचिव की अनुपस्थिति में विकास अधिकारी की शक्तियां-पंचायत के मामले में सभी अधिनियम की धारा 64 की उप-धारा (5) के उपबंधों के अनुसार सरपंच और सचिव के संयुक्त हस्ताक्षर से आहरित किये जायेंगे अतः सचिव की अनुपस्थिति या बीमारी या छुट्टी पर होने की स्थिति में उस पंचायत समिति के विकास अधिकारी को जिसकी अधिकारिता में ऐसी पंचायत आती है, तुरन्त ओर अत्यावष्यक संदाय सुगम बनाने के लिए सरपंच के साथ-साथ उस पंचायत के चैकों पर हस्ताक्षर कर सकेगा। 

214 पंचायती राज संस्थाओं का स्वयं की आय में से व्यय- (1) पंचायती राज संस्थाएं करो, जुर्मानो, फीसो, और अपने व्ययनााधीन रखी गयी आस्तियों के जरिये जुटायी गयी अपनी आय से साधारण बैठक या स्थायी समिति के अनुमोदन से व्यय ऐसी सीमाओं के अनुसार उपगत कर सकेगी जो राज्य सरकार द्वारा समय-समय पर निधार्र त की जावे। ख्वित्त क्ष्व्यय .1 द्वविभाग की सहमति आइडी 1701 दिनांक 15.06.1998 के अनुसरण में पंचायतों द्वारा व्यय की सीमा प्रत्येक मामले में रुपये 1ए00ए000 निर्धारित की जाती है ,

(2) स्वयं की आय में से व्यय वेतन, भत्तो और आकस्मिकता के दायित्व की पूर्ति करने के पष्चात् हीं उपगत किया जायेगा। 

(3) सभी व्यय अन्य प्रतिबद्धताओं और समाध्यासनों को हिसाब में लेने के पष्चात्, स्वयं की आय निधियों की उपलब्धता के अध्यधीन रखते हुए किये जायेगे। 

(4) षिक्षा उपकर से आय केवल शैक्षिक भवनों क्रिया कलापों पर ही खर्च की जायेगी किन्तु अन्य स्त्रोतो से स्वयं को होने वाली आय ऐसे भवनों/क्रियाकलापों पर भी खर्चे करना संभव होगा। 

     (5) कोई भी व्यय पंचायती राज संस्था की अधिकारिता के बाहर उपगत नहीं किया जायेगा। 

(6) स्वंय की आय का प्राप्ति और व्यय के लिए वार्षिक बजट अनुमान तैयार किया जायेगा और संबंधित पंचायती राज संस्था से अनुमोदित कराया जायेगा। 

     (7) कोई भी व्यय स्वयं की आय की प्रत्याषा के आधार पर नहीं किया जायेगा। टिप्पणी 

 जुलाई 2003 से पंचायत को अपनी निजी आय से 2 लारव तक व्यय करने की शक्ति दी जा चुकी है।  

215. कर्मचारियों को  अग्रिम-(1) कर्मचारियों को वाहन क्रय के लिये दिेये जाने वाले अग्रिम, त्यौहारों के लिए दिये जाने वाले अग्रिम राज्य सरकार के कर्मचारियों पर समय-समय पर लागू होने वाले नियमं और शर्त द्वारा शासित होगे सिवाय तब के कि जब ऐसा अग्रिम स्वयं की आय में से मंजूर किया जाये। यदि इस प्रयोजन के लिए इनकी स्वंय की आय पर्याप्त न हो, तो अग्रिम एसे े अन्य स्त्रोतो से मंजूर किये जा सकेगें जो पंचायती राज संस्था में उपलब्ध हो। प्राप्त ब्याज को पंचायती राज संस्था की आय के रूप में माना जायेगा और उसकी निधि में जमा कराया जायेगा। 

(2) संकर्मो या अन्य विनिर्दिष्ट प्रयोजनों के लिए दिये जाने वाले अग्रिमों को अधिकतम तीन मास के भीतर-भीतर समायोजित कराया जायेगा। ऐसा न होने पर वह अस्थायी गबन की कोटि में आवेगा और उपयोग में न लिया गया नकदी अभिलेख 18 प्रतिषत ब्याज वापस जमा कराया जायेगा। 

216. उधार-(1) राज्य सरकार या केन्द्रीय या राज्य सरकार के किसी भी निगम द्वारा किसी पंचायती राज संस्था को मंजूर किया गया उधार निधि पर प्रथम प्रभार होगा और उधार की किष्ते नियत तारीख पर नियमित रूप से संदत्त की जायेगी ऐसा न करने पर राज्य सरकार संदेय सहायता-अनुदान में से शोध्य रकम का समायोजन कर सकेगी या धन को वसूल करने के लिए अन्य उपुयक्त कदम उठा सकेगी। 

(2) पंचायती राज संस्थाएं पंचायती राज संस्थाओं के लिए वित्त निगम के निबंधनों ओर शर्तो के अनुसार, ग्रामीण आवास, दुकानों के सन्निर्माण और अन्य परियोजनाओं के लिए उधार अभिप्राप्त कर सकेगी और अपनी किस्तों का उपयोग और प्रतिसंदाय कर सकेगी। संबंधित पंचायती राज संस्थाएं उधार के लेखे रखने हेतु की गईं सेवाओं के लिये अभिकरण प्रभारों के रूप में एक प्रतिषत प्रभारित कर सकेगी। 

(3) बकाया उधारों को पंचायत समितियों द्वारा वसूल किया जाना जारी रखा जायेगा। और राज्य सरकार के पास से सुसंगत राजस्व 

शीर्ष में जमा कराया जायेगा। 

217. नमूने के हस्ताक्षर-विकास अधिकारी/प्रधान और मुख्य कार्यपालक अधिकारी/प्रमुख के नमूना हस्ताक्षर जिला कोषागार और संबंधित उप-कोषागार को भेजे जायेगें। पंचायत के मामले में सरपंच/सचिव के नमूना हस्ताक्षर उस बैंक/डाकघर को भेजे जायेगें जिसमें लेखे रखे जाते है। 

218. चैक बुक- (1) कोषागार/उप-कोषागार या बैंक/डाकघर की चैक बुके कार्यालय प्रधान के प्रभार में रखी जायेगी। वे ताले मंे बंद रखी जायेगी। 

     (2) सभी चैंक बुके प्राप्त की जाये, गिनी जायेगी और चैक बुक की प्रत्येक परत पर संबंधित पंचायती राज संस्था के नाम वाली 

     रबड की मुहर सुभिन्नत लगायी जायेगी। 

219. वेतन और भत्त्ेा-(1) अधिकारियों और कर्मचारीयों के वेतन और भत्ते तथा सदस्यों के मानदेय और भत्ते निधि के स्रोत पर द्वितीय भार होगे। 

(2) किसी पंचायत राज संस्था के नियत तारीखों पर वेतन संदत करने में विफल रहने की दशा में राज्य सरकार नकद अतिषेषों पर रोक लगाने और ऐसी रकमों को निकालकर संदाय करने के लिए विकास अधिकारी को निर्देष दे सकेगी। 

220. नियत तारीख- अधिकारियों और कर्मचारियों द्वारा अर्जित वेतन और भत्ते आगामी माह के प्रथम कार्य दिवस पर संदाय के लिए देय हो जायेंगे। 

221. संदायों की अभिस्वीकृति- कार्यालय का प्रधान उसके द्वारा हताक्षरित किसी बिल/चैक पर निकाली गयी रकम के लिए वैयक्तिक रूप से उतरदायी हागा जब तक वह इसका संदाय न कर दे ओर पाने वाले से उसके लिए विधि रूप से मान्य रसीद प्राप्त न करले। 

222. स्थानान्तरण पर वेतन और अग्रिम- स्थानान्तरणों पर वेतन और अग्रिमों के उपबन्ध, राज्य सरकार के कर्मचारियों पर समय समय पर लागू नियमों द्वारा शासित होगे। 

223. अन्य प्रभार- (1) कार्यालय के प्रबन्ध के लिए उपगत समस्त आनुबंधिक और प्रकरण व्ययों की प्रकृति नमनीय और उतार-चढाव वाली हैं और उनमें मितव्ययिता करने के लिए पूरी सावधानी रखी जानी हैं। बिल का आहरण करने वाला अधिकारी यह देखने के लिए उतरदायी होगा कि बिल में सम्मिलित व्यय की मदें स्पष्ट आवष्यकता की है और कोई भी खरीद वस्तु उचित और उपयुक्त दरों पर प्राप्त की गयी है। 

(2) अन्य प्रभारों के लिए अग्रिमों की आहरण में पाने वाले की रसीद सहित सम्यक रूप से समर्थित वाउचरों पर या फर्म या ठेकेदारों के प्रोफार्मा बिलों पर किया जाना चाहिए और अग्रिमों का आहरण तब तक अनुज्ञान नहीं किया जाना चाहिए जब तक कि किसी विषेष प्रकृति के व्यय की पूर्ति के लिए अपेक्षित न हो। 

224. राजस्व का प्रतिदाय- राजस्व के प्रतिदाय के लिए किसी भी मांग को स्वीकार करने के पूर्व रोकड बही में मूल जमा को अवश्य खोजना चाहिए और संबंधित रसीद भी साथ लगानी चाहिए और प्रतिदाय की प्रविष्टि इन दस्तावेजों में लाल स्याही से सुभिन्न रूप से की जानी चाहिए जिससे कि दूसरे दावे के विरूद्ध सुरक्षा की जा सकें। जहाँ कर या उपकर का प्रतिदाय किया जाये वहाँ मांग और संग्रहण रजिस्टर में प्रति-निर्देष भी किया जायेगा। 

225. अतिसंदाय / सद्संदाय-(1) कार्यालय का प्रधान निधि में से लिये गये किसी भी अतिसंदाय की, चाहे वह सद्भावपूर्वक किया गया है, शीघ््रा वसूल करने के लिए उतरदायी है। 

(2) यदि ऐसा संदाय किसी कपट के कारण किया गया है तो ऐसे व्यक्ति के विरूद्ध गलत रूप से कपट वंचित करने और धन प्राप्त करने के लिए पुलिस थाने में प्रथम सूचना रिपोर्ट भी दर्ज करवायी जायेगी। 

226. कालातीत दावों का संदाय – (1) वेतन, यात्रा-भत्ते/चिकित्सा पुनर्भरण के तीन वर्ष के कालातीत दावों का संदाय कार्यालय के प्रधान द्वारा, कनिष्ठ लेखाकार द्वारा पूर्व – जाँच किये जाने के पश्चात किया जायेगा। 

(2) तीन वर्ष से अधिक के ऐसे सभी दावों के लिए, जिला पारेषद के लेखाकार/सहायक लेखाधिकारी द्वारा पूर्व/जांच किये जाने के पश्चात मुख्य कार्यपालक अधिकारी की पूर्व-मंजूरी अपेक्षित होगीं। 

परंतु यह तब जब कि 

(क) दावे का औचित्य सिद्ध हो जावे 

(ख) वे आदेष और दस्तावेज उपलब्ध हो, जिन पर दावा आधारित है। 

(ग) उन पूर्व बिलों का निर्देष किया जावे जब दावे का आहरण नहीं किया गया था। 

(घ) विलम्ब के कारण स्पष्ट किये जावे- 

(3) वर्ष तक के आकस्मिक दावों पर मुख्य कार्यपालक अधिकारी की पूर्व मंजूरी अपेक्षित होगी जबकि तीन वर्ष के पश्चात निदेशक , गा्रमीण विकास एवं पंचायती राज की मंजूरी अपेक्षित होगी। 

227. सामान्य वित्तीय एवं लेखा के अधीन प्रादेशिक अधिकारी और कार्यालय प्रधान की शक्तियां – (1) इन नियमों में विनिर्दिष्ट नहीं की गयी, प्रादेषिक अधिकारी की वित्तीय शक्तियों का प्रयोग, जिले में पदस्थापित कर्मचारियोंके संबंध में मुख्य कार्यपालक अधिकारी द्वारा सा.वि. एवं ले. नि. के अनुसार किया जावेगा। 

(2) सा.वि.एवं ले.नि.के अनुसार इन नियमों में विनिर्दिष्ट नहीं की गयी कार्यालय के प्रधान की शक्तियों का प्रयोग, पंचायत के लिए संरपच, पंचायत समिति के लिए विकास अधिकारी और जिला परिषद के लिए मुख्य कार्यपालक अधिकारी द्वारा किया जावेगा। लेखों का रखा जाना 

228. सभी नकद संव्यवहारों का लेखा जोखा दिया जाना- ऐसे समस्त नकद, संव्यवहारों को, जिनमें पंचायत राज संस्था एक पक्षकार है, किसी भी अपवाद के बिना लेखे में लिया जायेगा। लेखे रखे जाने में पारदर्षिता सुनिष्चित की जावेगी। 

229. रोकड बही- (1) प्रत्येक पंचायती राज संस्था द्वारा धन की प्राप्ति और संदाय का अभिलेख रखने के लिए प्रपत्र संख्या 29 में एक रोकड बही रखी जायेगी। 

(2) सभी नकद संव्यवहारों की, ज्यांेहीं वे किये जाये, रोकड बही में पूर्ण प्रविष्टि की जायेगी और वह जांच के प्रतीक स्वरूप कार्यालय के प्रधान द्वारा अनुप्रमाणित की जायेगी। 

(3) रोकड बही का नियमित रूप से समवरण किया जायेगा और कार्यालय का प्रधान प्रत्येक विद्धि दर ही होने के अभीष्ट स्वरूप आवश्यककरेगा। 

(4) प्रत्येक मास के अंत में कार्यालय प्रधान को तिजोरी के नकद अतिषेष का रोकड बहीं के अतिषेष से सत्यापन करना चाहिए और निम्नलिखित आषय का हस्ताक्षरित और दिनांकित प्रमाण पत्र अभिलिखित करना चाहिए- 

‘‘प्रमाणित किया जाता है कि नकद अतिषेष की जांच कर ली गयी है और निम्नलिखित रूप में पाया गया हैं- वास्तविक नकदी और रोकड बही के अतिषेषों के बीच अन्तर होने की दशा में उसका स्पष्टीकरण किया जायेगा। 

(5) धन के किसी भी दुरूपयोग को रोकने के लिए वास्तविक नकद अतिषेष की आकस्मिक जांच भी मास में दो बार की जायेगी। (6) पंचायत, विकास योजनाओं की निधियों के लिए एक पृथक रोकड बहीं भी रखेगी। 

230. धन की रसीद-(1) जब धन कार्यालय में संगृहित या संदत किया जाये तो देने वाले को प्रपत्र संख्या 30 में रसीद दी जायेगी। 

(2) रसीद पर सचिव/रोकडिये द्वारा हस्ताक्षर किये जायेगंे। 

(3)  रकम अंको और शब्दों दोनों मे लिखी जायेगी। 

(4) कार्यालय प्रधान स्वयं का इस बात से समाधान करेगा कि रकम की रोकड बही में सही रूप से प्रविष्टि कर ली गयी है। 

(5) खाली रसीद पुस्तकें, सुरक्षित अभिरक्षा में रखी जायेगी और रसीद पुस्तकों का समुचित लेखा रखा जायेगा। 

231. रोकडिये की प्रतिभूति-(1) नकदी का प्रभारी व्यक्ति, अपनी अभिरक्षा में संभाव्यतः रखी जाने वाली नकदी की रकम की समतुल्य पर्याप्त और विधिमान्य प्रतिभूति देगा। 

(2) प्रतिभूति विष्वस्तता बंधपत्र के रूप में होगी जिसे उसकी समाप्ति के लिए नियत तारीख के पूर्व स्वीकृत किया जायेगा। 

(3) रोकडिये को राज्य सरकार द्वारा तदनुसार विहित दर पर भत्ता संदेय होगा। 

232. डबल लॉक-(1) विष्वस्तता बंधपत्र की रकम के अधिक समस्त नकदी डबल लॉक व्यवस्था के अधीन लोहे की मजबूत तिजोरी में रखी जायेगी। 

(2) एक ताले की सभी चाबियां एक व्यक्ति की अभिरक्षा मंे रखी जायेगी। अन्य तालों की चाबियां कार्यालय के प्रधान की अभिरक्षा में रखी जायेगी। तिजोरी को तब तक नही खोला जायेगा जब तक दोनों अभिरक्षक उपस्थित न हों। 

233. नकदी की सुरक्षा- जब रोकडिये के द्वारा बैक से कार्यालय या कार्यालय से बैंक तक अत्यधिक नकदी अतिषेष लाया जाये तो उसके साथ जाने आने के लिए पुलिस थाने से एक सुरक्षा गार्ड की व्यवस्था संदाय आधार पर की जा सकेगी। 

234. दावों का प्रस्तुतिकरण-(1) संदाय के लिए समस्त दावे प्रपत्र 31 में तैयार किये जायेंगे और पंचायती राज संस्था के संबंधित कार्यालय मे प्रस्तुत किये जायेंगे जहाँ कार्यालय के प्रधान द्वारा उनकी जांच की जायेगी और वे पारित किये जायंेगे। 

(2) कोई संदाय-आदेष देने वाला अधिकारी यह देखने के लिए व्यक्गित रूप  से उतरदायी है कि दावा हर प्रकार से पूर्ण और सही है और उसमें, किये गये संदाय की प्रकृति के बारे में, पर्याप्त सूचना है। 

235. वाउचर-(1) धन के प्रत्येक संदाय के लिए, निधि का धन खर्च करने वाला अधिकारी दावे की पूर्ण और स्पष्ट विषिष्टियां और लेखों में समुचित वर्गीकरण के लिए आवश्यकसमस्त सूचना देने वाला वाउचर अभिप्राप्त करेगा। 

(2) प्रत्येक वाउचर में या उसके साथ, उस व्यक्ति द्वारा संदाय किये जाने की अभिस्वीकृति होनी चाहिए जिसके द्वारा या जिसकी ओर से दावा प्रस्तुत किया गया है। 

(3) प्रत्येक वाउचर पर, रकम को शब्दों और अंको में विनिर्दिष्ट करते हुए, कार्यालय प्रधान द्वारा संदाय-आदेष होना चाहिए। 

(4) समस्त वाउचरो को क्रम से तारीखवार संख्यांकित किया जायेगा जो 1 अप्रेल से प्रारंभ होगी और वाउचरों के पार्ष्व में लाल स्याही से ‘‘संदत‘‘ अंकित किया या लिखा जाना चाहिए जिससे उनका दूसरी बार प्रयोग नहीं किया जा सके। 

(5) कार्यालय का प्रधान रोकड बही में व्यय पक्ष के संदायों को सत्यापित करते समय वाउचरों पर भी आद्याक्षर करेगा। 

(6) वाउचरों संपरीक्षा की लिए सुरक्षित अभिरक्षा में रखे जायेंगे और विहित कालावधि समाप्त हो जाने के पश्चात ही नष्ट किये जायेंगें। 

236. खाता-(1) प्रत्येक पचायत राज संस्था मे, निधि मे से उपगत व्यय के विभिन्न शीर्षो के अधीन उपगत व्यय को दर्षित करने के लिए प्रपत्र संख्या 32 में एक खाता रखा जायेगा। 

(2) खाते में, स्वीकृत बजट में उपबन्धित प्रत्येक व्यय-षीर्ष के लिए एक पृष्ठ या कुछ पृष्ठ आवंटित किये जायेगें और उसमें रोकड बही से नियमित रूप से प्रविष्टियां की जायेगी। 

237. राजस्व रजिस्टर-(1) प्रत्येक पंचायती राज संस्था में प्रपत्र 33 में राजस्व प्राप्तियों का एक रजिस्टर भी उसमें समस्त करों, फीसों और अन्य आय के मद की प्राप्तियों को अभिलिखित करने के लिए रखा जायेगा। 

(2) आय कर या फीस के प्रत्येक शीर्ष के लिए आवष्यकता के अनुसार पृथक पृष्ठ आवंटित किया या किये जायं और रोकड बही से नियमित रूप से प्रविष्टि की जायेगी। 

238. लेखों का मिलान-(1) पंचायत सचिव का यह कर्तव्य होगा कि वह पंचायत अभिलेखों के आधार पर प्रत्येक मास बैंक/डाकघर पास बुकों से जमाओं और आहरणों का मिलान करें और यदि कोई भूलें हों, तो उन्हें ठीक करें। 

(2) पंचायत समिति और जिला परिषद के मामले में रोकडिया कोषागार/उप-कोषागार में के.पी.डी. खातों का प्रत्येक माह मिलान करेगा। सामान 

239. स्टॉक रजिस्टर-(1) प्रत्येक पंचायती राज संस्था द्वारा प्रपत्र 34 में एक स्टॉक रजिस्टर रखा जायेगा जिसमें संबंधित पंचायती राज संस्था के समस्त स्टॉक और अन्य जंगम सम्पतियों की प्राप्ति और निर्गम की प्रविष्टि की जायेगीं। 

(2) सामान का लेखा प्रत्येक मद के लिए पृथक-पृथक रखा जायेगा। प्राप्ति पक्ष की और की प्रविष्टियां प्रदायक के बिल से सीधी की जायेगी, सामान वास्तविक मांग-पत्र के अनुसार जारी किया जायेगा और सामान के निर्गम के लिए समुचित रसीद अभिपा्रप्त की जायेगी। उसकी स्टॉक रजिस्टर के निर्गम पक्ष में सही-सही प्रविष्टि की जायेगी। 

240. सामान की अभिरक्षा – (1) सामान की अभिरक्षा से न्यस्त व्यक्ति उसकी सुरक्षा और उसे अच्छी स्थिति और उसे हानि, नुकसान या धूप से संरक्षित करने के लिए उतरदायी होगा। 

(2) वह मषीनों, टेलीफोन, टंकण यंत्रों, फोटो प्रतिलिपि, कूलरों और अन्य कार्यालय उपस्कर का, उन्हें हर समय चालू स्थिति में रखने के लिये, समुचित और समयबद्ध अनुरक्षण सुनिष्चित करेगा। 

241. छपने वाला सामान – (1) छपने वाले सामान और लेखन की सामग्री की वस्तुआंे के लिए प्रपत्र 34 में भी एक पृथक रजिस्टर रखा जायेगा। 

(2) कार्यालय का प्रधान प्रत्येक कर्मचारी/अनुभाग के लिए लेखन सामग्री की वस्तुओं के निर्गम के लिए तिमाही मानदण्ड नियत करेगा। मानदण्ड इस प्रकार नियत किये जायेगें जिससे दुरूपयोग या अत्यधिक उपयोग से बचा जा सकें। 

242. भौतिक सत्यापन – (1) सामान का भौतिक सत्यापन एक वर्ष में कम से कम एक बार किया जायेगा और ऐसा कर लेने के प्रतीक स्वरूप वह यह प्रमाण – पत्र अभिलिखित करेगा और वास्तव में पाये गये आधिक्यों/कमियों के लिए टिप्पणी अंकित करेगा। 

(2) कार्यालय के प्रधान द्वारा, किन्ही भी भण्डार वस्तुओं का हानि की वसूली के लिए समुचित जांच के पश्चात उतरदायित्व नियत करते हुए समुचित कार्यवाही की जायेगी। 

243. अनुपयोगी/बेकार/अधिशेष भण्डार वस्तुओं का व्ययन – (1) कार्यालय का प्रधान भण्डार-वस्तुओं को बेकार/अनुपयोगी/अधिषेष घोषित करने के लिए एक सर्वेक्षण सूची तैयार करने हेतु तीन व्यक्तियों की एक समिति गठित करेगा जिसमें 

एक व्यक्ति लेखा अनुभाग से होगा। 

(2) अपलेखन की शक्तियां निम्नलिखित रूप में होंगी- 

(क) सरपंच विकास अधिकारी- 10,000 रूपये के बही मूल्य तक की भण्डार वस्तुएं। 

(ख) मुख्य कार्यपालक अधिकारी 20,000 रूपये के बही मूल्य तक की भण्डार-वस्तुएं। 

(ग) निदेशक , ग्रामीण विकास 50,000 रूपये तक। 

(घ) विकास आयुक्त- दो लाख रूपये तक। 

(3) ऐसी सभी भण्डार-वस्तुओं का व्ययन सक्षम मंजूरी के पश्चात नाषन/नीलामी द्वारा किया जायेगा और उनके आगमों को निधि में जमा किया जायेगा। 

244. अनुपयोगी यानों का व्ययन – (1) पंचायती राज संस्थाओं के यानों (जीप, कार, पिकअप, टेक्टर, मोटर साइकिल, थ्री व्हीलर, बुलडोजर) को अनुपयोगी घोषित करने और नीलाम करने के लिए जिला परिषद स्तर पर एक समिति निम्नलिखित रूप से गठित की जायेगीः- 

(क) मुख्य कार्यपलाक अधिकारी                   अध्यक्ष 

(ख) जिला परिषद का लेखा अधिकारी/ सहायक लेखा अधिकारी     सदस्य 

(ग)  जिला मुख्यालय पर पुलिस विभाग का एम.टी.ओ/परिवहन विभाग 

    का मोटरयान निरीक्षक/जिला पूल मैकेनिक और सम्भागीय मुख्यालय 

    पर राजकीय गैरेज का तकनीकी अधिकारी।                           सदस्य

(2) उक्त समिति यह सुनिष्चित करेगी कि यान ने निम्नलिखित रूप में विहित दूरी और अवधि पूरी कर ली हैः- 

यान का प्रकार  किलो मीटर (लाख)   कालावधि (वर्ष) 

 1. मोटर साइकिल/ थ्री व्हीलर        1.20          7 

 2. हल्के मोटर यान        2.00          8 

 3. मध्यम मोटर यान        3.00              10 

 4. भारी मोटर यान        4.00          10 

 5. ट्रैक्टर/बुलडोजर  उपयोग के 20,000 घंटे          10 


(3) ऐसे यानों को अनुपयोगी घोषित नहीं किया जायेगा जो विहित दूरी और अवधि तो पूरी कर चुके है किंतु समिति की राय में उपयोग के लिए ठीक है। 

(4) समिति के सदस्य यान को अनुपयोगी घोषित करने के पूर्व वास्तविक रूप से उसका निरीक्षण करेंगे और यह प्रमाणित करेंगे कि- (क) यान ने विहित दूरी और अवधि पूरी कर ली है। 

(ख) यान की लाभप्रद मरम्तत संभव नही है और पेट्रेाल/डीजल के अत्यधिक उपभोग के कारण उसे चलाने से कोई लाभ नहीं है। 

(ग) पुर्जाे के प्रतिस्थापन में भारी व्यय होगा और यान को और चलाने से कोई लाभ नहीं होगा।    मुख्य कार्यपालक अधिकारी, समिति की सिफारिश पर अनुपयोगी यानों की नीलामी के लिए आदेष जारी करेगा। 

(5) यदि यान ने विहित न्यूनतम दूरी या अवधि पूरी नहीं की है, या यान पिछले सात वर्षो से अप्रयुक्त पडा है या यान दुर्घटनाग्रस्त हो गया है और मरम्मत के बाद उपयोगी नहीं रहेगा तो समिति यह प्रमाणित करते हुए मामले की सिफारिश करेगी कि- 

(क) यान की लाभप्रद मरम्मत संभव नहीं है और चलाने से कोई लाभ नहीं है, 

(ख) पुर्जों क प्रतिस्थापन में भारी व्यय होगा और यान को और चलाने से कोई लाभ नही होगा। 

(ग) मरम्मत और पुर्जो के प्रतिस्थापन का कुल खर्च………………………… रूपये होगा, जैसा कि मोटर गैरेज विभाग के सर्वेक्षक द्वारा प्रमाणित किया गया है। 

ऐसे यानों को अनुपयोगी घोषित करने की शक्तियां विकास आयुक्त को होगी। 

(6) अनुपयोगी यान जिला स्तर पर एक समिति द्वारा नीलाम किये जायेंगे, जिसमें निम्नलिखित होंगेः- 

(क) अपर कलक्टर (विकास) 

(ख) मुख्य कार्यपालक अधिकारी 

(ग) कोषाधिकारी या जिला परिषद का लेखाधिकारी। 

अपर जिला मजिस्टेट (विकास) या मुख्य कार्यपालक अधिकारी, जो भी वरिष्ठ हो, अध्यक्ष के रूप में कार्य करेगाः परन्तु राज्य की संचित निधि से खरीदे गये यान संबंधित खण्डीय मुख्यायलों पर राज्य मोटर गैरेज के माध्यम से नीलाम किये जायेंगे। 

(7) उप-नियम 6 में की समिति द्वारा नीलाम किये गये यानों के विक्रयागमों को संबंधित पंचायती राज संस्था निधि में जमा किया जावेगा और विक्रय कर को सरकारी खाते में जमा किया जायेगा। लेखें और विवरणियां 

245. लेखों की त्रैमासिक विवरणी – आय और व्यय के लेखे का एक त्रैमासिक विवरण पंचायती राज संस्थाओं द्वारा प्रपत्र संख्या 35 में तैयार किया जायेगा और अगले उच्चतर प्राधिकार को भेजा जायेगा। जून, सितम्बर, दिसम्बर और मार्च को समाप्त होने वाली तिमाही के लिए तिमाही लेखे, उस तिमाही के, जिससे लेखे संबंधित है, अगले मास की 15 तारीख तक प्रेषित कर दिये जाने चाहिये। बाद में उपबन्धित आय और व्यय की सभी मदों का प्रगामी योग, लेखे के ऐसे विवरण तैयार करते समय और अगले उच्चतर प्राधिकारी को आंकडे बताते समय, लगाया जायेगा। 

246. वार्षिक लेखों का सार – (1) वर्ष के अन्त में पंचायत/पंचायत समिति, बजट के प्रत्येक शीर्ष के अधीन अपनी आय और व्यय दर्शित करते हुए, प्रपत्र 36 में वार्षिक लेखों का सार तैयार करेगी और उसे आगामी एक मई तक, जिला परिषद के माध्यम से, राज्य सरकार को भेजेंगी। 

(2) वार्षिक लेखों के सार के साथ, प्रपत्र 37 में, लेखों के विभिन्न शीर्ष के अधीन राज्य सरकार से सहायता अनुदान, उपयोगिता प्रमाण-पत्रों द्वारा समर्थित उपगत व्यय का कार्यालय के प्रधान द्वारा हस्ताक्षरित विवरण होगा जिसमें स्पष्ट रूप से यह उल्लिखित किया जायेगा कि अनुदान विशिष्ट रूप से उद्देश्यों और प्रयोजनों के लिए, जिनके लिए वह दिया गया था, सम्पूर्णतः या भागतः खर्च किया गया है, जिसके लेखे समुचित रूप  से रखे गये है और सम्बद्ध वाउचर उसकी अभिरक्षा में है ।मुख्य कार्यपालक अधिकारी इन विवरणों की सूक्ष्म संवीक्षा करेगा और उनकों, अपनी टिप्पणियों सहित, राज्य सरकार को  भेजेगा, जिसकी एक प्रति संबन्धित पंचायत समिति/ पंचायत को भी दी जायेगी। 

(3) प्रत्येक पंचायत समिति वार्षिक लेखेां के साथ, प्रपत्र संख्या 36 में बकाया ऋणों और रकम का विवरण भी संलग्न करेगी। 

(4) वार्षिक लेखे के साथ विभिन्न स्कीमों के अधीन हाथ में लिये गये संकर्माें की एक सूची भी प्रपत्र 39 में यथा-उपंबधित व्यय की प्रगति सहित, संलग्न की जायेगी। 

(5) वार्षिक लेखे क साथ प्रपत्र 40 में पंचायत/पंचायत समिति की शास्तियों और दायित्वों का विवरण भी होगा। 

247. जिला परिषदों के लेखे और विवरणियां – (1) प्रत्येक जिला परिषद आय और व्यय का त्रैमासिक विवरण, नियम 245 में बताया गया है, तैयार करेगी और उसे राज्य सरकार को भेजेगी।

(2) इसी प्रकार प्रत्येक जिला परिषद आय और व्यय के वार्षिक लेखे, जैसा कि नियम 246 में बताया गया है, तैयार करेगी और उनको 15 मई तक राज्य सरकार को भेजेगी। 

संपरीक्षा 

248 लेखों की संपरीक्षा(1) पंचायती राज संस्थाओं के लेखों की संपरीक्षा राजस्थान स्थानीय निधि संपरीक्षा अधिनियम, 1954 और उक्त अधिनियम के अधीन बनाये गये राजस्थान स्थानीय निधि संपरीक्षा नियम, 1955 के उपवचनों से शासित होगी। 

(2) लेखों की सांकेतिक संपरीक्षा भारत के नियंत्रक महालेखा परीक्षक की ओर से भी की जा सकेगी। 

249. संपरीक्षा के लिए व्यवस्थाएं – सम्बंधित पंचायती राज संस्था, संपरीक्षक को, संपरीक्षा करने के लिए उसका कार्यालय लगााने में समर्थ बनाने हेतु, युक्तियुक्त व्यवस्थाएं करेगी और संपरीक्षा के प्रयोजन के लिए समस्त अभिलेख, विवरण आदि तैयार रखेगी और उन्हे ऐसी रीति से पेश करेगी जिसकी संपरीक्षा तंत्र द्वारा मांग की जाये। 

250. वित्तीय विवरण का तैयार किया जाना – पंचायती राज संस्था स्थानीय निधि संपरीक्षा नियम, 1955 द्वारा विहित वित्तीय विवरण और उस कालावधि के वास्तविक लेखे तैयार करेगी जिसके लिए संपरीक्षा की जानी है उन्हें तब पेश करेगी जब संपरीक्षा तंत्र द्वारा मांग की जाये। 

251. संपरीक्षा रिपोर्ट – निदेशक, स्थानीय निधि संपरीक्षा की संपरीक्षा रिपोर्ट सम्बंधित पंचायती राज संस्था को भेजी जायेगी। पंचायतों की संपरीक्षा रिपोर्ट की एक प्रति संबंधित पंचायत समिति को भी भेजी जायेगी। इसी प्रकार पंचायत समितियों की संपरीक्षा रिपोर्ट की एक प्रति संबंधित जिला परिषद को भी भेजी जायेगी जो यह देखेगी कि संपरीक्षा तंत्र द्वारा बताई गई अनियमितताओं पर शीघ्रता से ध्यान दिया गया है और उनको परिशोधित किया गया है। 

252. संपरीक्षा रिपोर्टो का अनुपालन – (1) निदेशक , स्थानीय निधि संपरीक्षा द्वारा भेजी गई संपरीक्षा रिपोर्ट का अनुपालन राजस्थान स्थानीय निधि संपरीक्षा नियम, 1955 के नियम 28 में अधिकथित प्रक्रिया के अनुसार किया जायेगा। 

(2) मुख्य कार्यपालक अधिकारी और मुख्य लेखाधिकारी, जिला परिषद् प्रादेशिक मुख्यालयों पर पदस्थापित उप निदेशक , स्थानीय निधि संपरीक्षा की उपस्थिति में, संपरीक्षा रिपोर्टों के अनुपालन की प्रगति का प्रत्येक तीन मास में पुनर्विलोकन करेंगे और अभियान चलाकर उनके अनुपालन के लिए सभी कदम उठायेंगे। 

(3) मुख्य कार्यपालक अधिकारी गबन, राजस्व की हानि, अतिसंदाय, गलत संदाय आदि को उपदर्शित करने वाले क्षेत्रों का विनिर्दिष्ट रूप से पुनर्विलोकन करेगा और व्यतिक्रमियों के विरूद्ध विभागीय कार्यवाही या दाण्डिक कार्यवाहियां संस्थित करेगा। 

(4) संपरीक्षा रिपोर्टों में बताई गई राजस्व हानि की वसूली के लिए मुख्य कार्यपालक अधिकारी और विकास अधिकारियों द्वारा सभी प्रयास किये जायेंगे। 

253. अपलेखन – (1) सभी धनीय हानियां, अवसूलीय राजस्व, उधार, अग्रिम पंचायती राज संस्था द्वारा राज्य सरकार से पूर्व अनुमोदन से ही अपलिखित किये जायेंगे। 

(2) उस दशा में, जहाँं कोई हानि किसी भी सेवक से कपट, कूट रचना, गबन, गम्भीर उपेक्षा के कारण हुई हो, जिससे अनु शासनिक कार्यवाही आवश्यक हो गयी हो या जो नियमों और प्रक्रिया में  दोष के कारण हुई हो जिससे परिशोधन या संशोधन अपेक्षित हो, पंचायत समिति/ जिला परिषद् पहले ऐसे मामले का पुनर्विलोकन करेगी और ‘‘अपलेखन’’ के अनुमोदन के लिए राज्य सरकार को मामले की सिफारिश करने के पूर्व समुचित अनुशासनिक कार्यवाही करेगी। 

(3) हानियों के ‘‘अपलेखन’’ की समस्त मंजूरियों की एक प्रति निदेशक , स्थानीय निधि संपरीक्षा को भी प्रेषित की जायेगी। 

254. प्रपत्र – प्रपत्रों की अनुपलब्धता की दशा में पंचायती राज संस्थाओं के कार्यालय में उपयोग के लिए राज्य सरकार के समरूपी प्रपत्रों को अंगीकृत किया जा सकेगा। 

255. अनुदेश जारी करने की राज्य सरकार की शक्ति -राज्य सरकार ऐसे अनुदेश जारी कर सकेगी जो इन नियमों के समुचित पालन के लिए समय-समय पर दिये जाने आवश्यक हो। 

 

 (5) कोई भी व्यय पंचायती राज संस्था की अधिकारिता के बाहर उपगत नहीं किया जायेगा। 

(6) स्वंय की आय का प्राप्ति और व्यय के लिए वार्षिक बजट अनुमान तैयार किया जायेगा और संबंधित पंचायती राज संस्था से अनुमोदित कराया जायेगा। 

     (7) कोई भी व्यय स्वयं की आय की प्रत्याषा के आधार पर नहीं किया जायेगा। टिप्पणी 

 जुलाई 2003 से पंचायत को अपनी निजी आय से 2 लारव तक व्यय करने की शक्ति दी जा चुकी है।  

215. कर्मचारियों को  अग्रिम – (1) कर्मचारियों को वाहन क्रय के लिये दिेये जाने वाले अग्रिम, त्यौहारों के लिए दिये जाने वाले अग्रिम राज्य सरकार के कर्मचारियों पर समय – समय पर लागू होने वाले नियमं और शर्त द्वारा शासित होगे सिवाय तब के कि जब ऐसा अग्रिम स्वयं की आय में से मंजूर किया जाये। यदि इस प्रयोजन के लिए इनकी स्वंय की आय पर्याप्त न हो, तो अग्रिम एसे े अन्य स्त्रोतो से मंजूर किये जा सकेगें जो पंचायती राज संस्था में उपलब्ध हो। प्राप्त ब्याज को पंचायती राज संस्था की आय के रूप में माना जायेगा और उसकी निधि में जमा कराया जायेगा। 

(2) संकर्मो या अन्य विनिर्दिष्ट प्रयोजनों के लिए दिये जाने वाले अग्रिमों को अधिकतम तीन मास के भीतर – भीतर समायोजित कराया जायेगा। ऐसा न होने पर वह अस्थायी गबन की कोटि में आवेगा और उपयोग में न लिया गया नकदी अभिलेख 18 प्रतिषत ब्याज वापस जमा कराया जायेगा। 

216. उधार – (1) राज्य सरकार या केन्द्रीय या राज्य सरकार के किसी भी निगम द्वारा किसी पंचायती राज संस्था को मंजूर किया गया उधार निधि पर प्रथम प्रभार होगा और उधार की किष्ते नियत तारीख पर नियमित रूप से संदत्त की जायेगी ऐसा न करने पर राज्य सरकार संदेय सहायता – अनुदान में से शोध्य रकम का समायोजन कर सकेगी या धन को वसूल करने के लिए अन्य उपुयक्त कदम उठा सकेगी। 

(2) पंचायती राज संस्थाएं पंचायती राज संस्थाओं के लिए वित्त निगम के निबंधनों ओर शर्तो के अनुसार, ग्रामीण आवास, दुकानों के सन्निर्माण और अन्य परियोजनाओं के लिए उधार अभिप्राप्त कर सकेगी और अपनी किस्तों का उपयोग और प्रतिसंदाय कर सकेगी। संबंधित पंचायती राज संस्थाएं उधार के लेखे रखने हेतु की गईं सेवाओं के लिये अभिकरण प्रभारों के रूप में एक प्रतिषत प्रभारित कर सकेगी। 

(3) बकाया उधारों को पंचायत समितियों द्वारा वसूल किया जाना जारी रखा जायेगा। और राज्य सरकार के पास से सुसंगत राजस्व 

शीर्ष में जमा कराया जायेगा। 

217. नमूने के हस्ताक्षर – विकास अधिकारी/प्रधान और मु[य कार्यपालक अधिकारी/प्रमुख के नमूना हस्ताक्षर जिला कोषागार और संबंधित उप – कोषागार को भेजे जायेगें। पंचायत के मामले में सरपंच/सचिव के नमूना हस्ताक्षर उस बैंक/डाकघर को भेजे जायेगें जिसमें लेखे रखे जाते है। 

218. चैक बुक –  (1) कोषागार/उप – कोषागार या बैंक/डाकघर की चैक बुके कार्यालय प्रधान के प्रभार में रखी जायेगी। वे ताले में बंद रखी जायेगी। 

     (2) सभी चैंक बुके प्राप्त की जाये, गिनी जायेगी और चैक बुक की प्रत्येक परत पर संबंधित पंचायती राज संस्था के नाम वाली 

     रबड की मुहर सुभिन्नत लगायी जायेगी। 

219. वेतन और भत्त्ेा – (1) अधिकारियों और कर्मचारीयों के वेतन और भत्ते तथा सदस्यों के मानदेय और भत्ते निधि के स्रोत पर द्वितीय भार होगे। 

(2) किसी पंचायत राज संस्था के नियत तारीखों पर वेतन संदत करने में विफल रहने की दशा में राज्य सरकार नकद अतिशेषों पर रोक लगाने और ऐसी रकमों को निकालकर संदाय करने के लिए विकास अधिकारी को निर्देशदे सकेगी। 

220. नियत तारीख –  अधिकारियों और कर्मचारियों द्वारा अर्जित वेतन और भत्ते आगामी माह के प्रथम कार्य दिवस पर संदाय के लिए देय हो जायेंगे। 

221. संदायों की अभिस्वीकृति –  कार्यालय का प्रधान उसके द्वारा हताक्षरित किसी बिल/चैक पर निकाली गयी रकम के लिए वैयक्तिक रूप से उतरदायी हागा जब तक वह इसका संदाय न कर दे ओर पाने वाले से उसके लिए विधि रूप से मान्य रसीद प्राप्त न करले। 

222. स्थानान्तरण पर वेतन और अग्रिम –  स्थानान्तरणों पर वेतन और अग्रिमों के उपबन्ध, राज्य सरकार के कर्मचारियों पर समय समय पर लागू नियमों द्वारा शासित होगे। 

223. अन्य प्रभार –  (1) कार्यालय के प्रबन्ध के लिए उपगत समस्त आनुबंधिक और प्रकरण व्ययों की प्रकृति नमनीय और उतार – चढाव वाली हैं और उनमें मितव्ययिता करने के लिए पूरी सावधानी रखी जानी हैं। बिल का आहरण करने वाला अधिकारी यह देखने के लिए उतरदायी होगा कि बिल में सम्मिलित व्यय की मदें स्पष्ट आवश्यकता की है और कोई भी खरीद वस्तु उचित और उपयुक्त दरों पर प्राप्त की गयी है। 

(2) अन्य प्रभारों के लिए अग्रिमों की आहरण में पाने वाले की रसीद सहित सम्यक रूप से समर्थित वाउचरों पर या फर्म या ठेकेदारों के प्रोफार्मा बिलों पर किया जाना चाहिए और अग्रिमों का आहरण तब तक अनुज्ञान नहीं किया जाना चाहिए जब तक कि किसी विशेष प्रकृति के व्यय की पूर्ति के लिए अपेक्षित न हो। 

224. राजस्व का प्रतिदाय –  राजस्व के प्रतिदाय के लिए किसी भी मांग को स्वीकार करने के पूर्व रोकड बही में मूल जमा को अवश्य खोजना चाहिए और संबंधित रसीद भी साथ लगानी चाहिए और प्रतिदाय की प्रविष्टि इन दस्तावेजों में लाल स्याही से सुभिन्न रूप से की जानी चाहिए जिससे कि दूसरे दावे के विरू) सुरक्षा की जा सकें। जहाँ कर या उपकर का प्रतिदाय किया जाये वहाँ मांग और संग्रहण रजिस्टर में प्रति – निर्देशभी किया जायेगा। 

225. अतिसंदाय / सद्संदाय – (1) कार्यालय का प्रधान निधि में से लिये गये किसी भी अतिसंदाय की, चाहे वह सद्भावपूर्वक किया गया है, शीघ््रा वसूल करने के लिए उतरदायी है। 

(2) यदि ऐसा संदाय किसी कपट के कारण किया गया है तो ऐसे व्यक्ति के विरू) गलत रूप से कपट वंचित करने और धन प्राप्त करने के लिए पुलिस थाने में प्रथम सूचना रिपोर्ट भी दर्ज करवायी जायेगी। 

226. कालातीत दावों का संदाय  –  (1) वेतन, यात्रा – भत्ते/चिकित्सा पुनर्भरण के तीन वर्ष के कालातीत दावों का संदाय कार्यालय के प्रधान द्वारा, कनिष्ठ लेखाकार द्वारा पूर्व  –  जाँच किये जाने के पश्चात किया जायेगा। 

(2) तीन वर्ष से अधिक के ऐसे सभी दावों के लिए, जिला पारेषद के लेखाकार/सहायक लेखाधिकारी द्वारा पूर्व/जांच किये जाने के पश्चात मु[य कार्यपालक अधिकारी की पूर्व – मंजूरी अपेक्षित होगीं। 

परंतु यह तब जब कि 

(क) दावे का औचित्य सि) हो जावे 

(ख) वे आदेशऔर दस्तावेज उपलब्ध हो, जिन पर दावा आधारित है। 

(ग) उन पूर्व बिलों का निर्देशकिया जावे जब दावे का आहरण नहीं किया गया था। 

(घ) विलम्ब के कारण स्पष्ट किये जावे –  

(3) वर्ष तक के आकस्मिक दावों पर मु[य कार्यपालक अधिकारी की पूर्व मंजूरी अपेक्षित होगी जबकि तीन वर्ष के पश्चात निदेशक , गा्रमीण विकास एवं पंचायती राज की मंजूरी अपेक्षित होगी। 

227. सामान्य वित्तीय एवं लेखा के अधीन प्रादेशिक अधिकारी और कार्यालय प्रधान की शक्तियां  –  (1) इन नियमों में विनिर्दिष्ट नहीं की गयी, प्रादेषिक अधिकारी की वित्तीय शक्तियों का प्रयोग, जिले में पदस्थापित कर्मचारियोंके संबंध में मु[य कार्यपालक अधिकारी द्वारा सा.वि. एवं ले. नि. के अनुसार किया जावेगा। 

(2) सा.वि.एवं ले.नि.के अनुसार इन नियमों में विनिर्दिष्ट नहीं की गयी कार्यालय के प्रधान की शक्तियों का प्रयोग, पंचायत के लिए संरपच, पंचायत समिति के लिए विकास अधिकारी और जिला परिषद के लिए मु[य कार्यपालक अधिकारी द्वारा किया जावेगा। लेखों का रखा जाना 

228. सभी नकद संव्यवहारों का लेखा जोखा दिया जाना –  ऐसे समस्त नकद, संव्यवहारों को, जिनमें पंचायत राज संस्था एक पक्षकार है, किसी भी अपवाद के बिना लेखे में लिया जायेगा। लेखे रखे जाने में पारदर्शिता सुनिश्चित की जावेगी। 

229. रोकड बही –  (1) प्रत्येक पंचायती राज संस्था द्वारा धन की प्राप्ति और संदाय का अभिलेख रखने के लिए प्रपत्र सं[या 29 में एक रोकड बही रखी जायेगी। 

(2) सभी नकद संव्यवहारों की, ज्यांेहीं वे किये जाये, रोकड बही में पूर्ण प्रविष्टि की जायेगी और वह जांच के प्रतीक स्वरूप कार्यालय के प्रधान द्वारा अनुप्रमाणित की जायेगी। 

(3) रोकड बही का नियमित रूप से समवरण किया जायेगा और कार्यालय का प्रधान प्रत्येक वि)ि दर ही होने के अभीष्ट स्वरूप आवश्यककरेगा। 

(4) प्रत्येक मास के अंत में कार्यालय प्रधान को तिजोरी के नकद अतिशेष का रोकड बहीं के अतिशेष से सत्यापन करना चाहिए और निम्नलिखित आशय  का हस्ताक्षरित और दिनांकित प्रमाण पत्र अभिलिखित करना चाहिए –  

‘‘प्रमाणित किया जाता है कि नकद अतिशेष की जांच कर ली गयी है और निम्नलिखित रूप में पाया गया हैं –  वास्तविक नकदी और रोकड बही के अतिशेषों के बीच अन्तर होने की दशा में उसका स्पष्टीकरण किया जायेगा। 

(5) धन के किसी भी दुरूपयोग को रोकने के लिए वास्तविक नकद अतिशेष की आकस्मिक जांच भी मास में दो बार की जायेगी। (6) पंचायत, विकास योजनाओं की निधियों के लिए एक पृथक रोकड बहीं भी रखेगी। 

230. धन की रसीद – (1) जब धन कार्यालय में संगृहित या संदत किया जाये तो देने वाले को प्रपत्र सं[या 30 में रसीद दी जायेगी। 

(2) रसीद पर सचिव/रोकडिये द्वारा हस्ताक्षर किये जायेगंे। 

(3)  रकम अंको और शब्दों दोनों मे लिखी जायेगी। 

(4) कार्यालय प्रधान स्वयं का इस बात से समाधान करेगा कि रकम की रोकड बही में सही रूप से प्रविष्टि कर ली गयी है। 

(5) खाली रसीद पुस्तकें, सुरक्षित अभिरक्षा में रखी जायेगी और रसीद पुस्तकों का समुचित लेखा रखा जायेगा। 

231. रोकडिये की प्रतिभूति – (1) नकदी का प्रभारी व्यक्ति, अपनी अभिरक्षा में संभाव्यत% रखी जाने वाली नकदी की रकम की समतुल्य पर्याप्त और विधिमान्य प्रतिभूति देगा। 

(2) प्रतिभूति विश्वस्तता बंधपत्र के रूप में होगी जिसे उसकी समाप्ति के लिए नियत तारीख के पूर्व स्वीकृत किया जायेगा। 

(3) रोकडिये को राज्य सरकार द्वारा तदनुसार विहित दर पर भत्ता संदेय होगा। 

232. डबल लॉक – (1) विश्वस्तता बंधपत्र की रकम के अधिक समस्त नकदी डबल लॉक व्यवस्था के अधीन लोहे की मजबूत तिजोरी में रखी जायेगी। 

(2) एक ताले की सभी चाबियां एक व्यक्ति की अभिरक्षा में रखी जायेगी। अन्य तालों की चाबियां कार्यालय के प्रधान की अभिरक्षा में रखी जायेगी। तिजोरी को तब तक नही खोला जायेगा जब तक दोनों अभिरक्षक उपस्थित न हों। 

233. नकदी की सुरक्षा –  जब रोकडिये के द्वारा बैक से कार्यालय या कार्यालय से बैंक तक अत्यधिक नकदी अतिशेष लाया जाये तो उसके साथ जाने आने के लिए पुलिस थाने से एक सुरक्षा गार्ड की व्यवस्था संदाय आधार पर की जा सकेगी। 

234. दावों का प्रस्तुतिकरण – (1) संदाय के लिए समस्त दावे प्रपत्र 31 में तैयार किये जायेंगे और पंचायती राज संस्था के संबंधित कार्यालय मे प्रस्तुत किये जायेंगे जहाँ कार्यालय के प्रधान द्वारा उनकी जांच की जायेगी और वे पारित किये जायंेगे। 

(2) कोई संदाय – आदेशदेने वाला अधिकारी यह देखने के लिए व्यक्गित रूप  से उतरदायी है कि दावा हर प्रकार से पूर्ण और सही है और उसमें, किये गये संदाय की प्रकृति के बारे में, पर्याप्त सूचना है। 

235. वाउचर – (1) धन के प्रत्येक संदाय के लिए, निधि का धन खर्च करने वाला अधिकारी दावे की पूर्ण और स्पष्ट विषिष्टियां और लेखों में समुचित वर्गीकरण के लिए आवश्यकसमस्त सूचना देने वाला वाउचर अभिप्राप्त करेगा। 

(2) प्रत्येक वाउचर में या उसके साथ, उस व्यक्ति द्वारा संदाय किये जाने की अभिस्वीकृति होनी चाहिए जिसके द्वारा या जिसकी ओर से दावा प्रस्तुत किया गया है। 

(3) प्रत्येक वाउचर पर, रकम को शब्दों और अंको में विनिर्दिष्ट करते हुए, कार्यालय प्रधान द्वारा संदाय – आदेशहोना चाहिए। 

(4) समस्त वाउचरो को क्रम से तारीखवार सं[यांकित किया जायेगा जो 1 अप्रेल से प्रारंभ होगी और वाउचरों के पार्श्व  में लाल स्याही से ‘‘संदत‘‘ अंकित किया या लिखा जाना चाहिए जिससे उनका दूसरी बार प्रयोग नहीं किया जा सके। 

(5) कार्यालय का प्रधान रोकड बही में व्यय पक्ष के संदायों को सत्यापित करते समय वाउचरों पर भी आद्याक्षर करेगा। 

(6) वाउचरों संपरीक्षा की लिए सुरक्षित अभिरक्षा में रखे जायेंगे और विहित कालावधि समाप्त हो जाने के पश्चात ही नष्ट किये जायेंगें। 

236. खाता – (1) प्रत्येक पचायत राज संस्था मे, निधि मे से उपगत व्यय के विभिन्न शीर्षो के अधीन उपगत व्यय को दर्शित करने के लिए प्रपत्र सं[या 32 में एक खाता रखा जायेगा। 

(2) खाते में, स्वीकृत बजट में उपबन्धित प्रत्येक व्यय – षीर्ष के लिए एक पृष्ठ या कुछ पृष्ठ आवंटित किये जायेगें और उसमें रोकड बही से नियमित रूप से प्रविष्टियां की जायेगी। 

237. राजस्व रजिस्टर – (1) प्रत्येक पंचायती राज संस्था में प्रपत्र 33 में राजस्व प्राप्तियों का एक रजिस्टर भी उसमें समस्त करों, फीसों और अन्य आय के मद की प्राप्तियों को अभिलिखित करने के लिए रखा जायेगा। 

(2) आय कर या फीस के प्रत्येक शीर्ष के लिए आवश्यकता के अनुसार पृथक पृष्ठ आवंटित किया या किये जायं और रोकड बही से नियमित रूप से प्रविष्टि की जायेगी। 

238. लेखों का मिलान – (1) पंचायत सचिव का यह कर्तव्य होगा कि वह पंचायत अभिलेखों के आधार पर प्रत्येक मास बैंक/डाकघर पास बुकों से जमाओं और आहरणों का मिलान करें और यदि कोई भूलें हों, तो उन्हें ठीक करें। 

(2) पंचायत समिति और जिला परिषद के मामले में रोकडिया कोषागार/उप – कोषागार में के.पी.डी. खातों का प्रत्येक माह मिलान करेगा। सामान 

239. स्टॉक रजिस्टर – (1) प्रत्येक पंचायती राज संस्था द्वारा प्रपत्र 34 में एक स्टॉक रजिस्टर रखा जायेगा जिसमें संबंधित पंचायती राज संस्था के समस्त स्टॉक और अन्य जंगम सम्पतियों की प्राप्ति और निर्गम की प्रविष्टि की जायेगीं। 

(2) सामान का लेखा प्रत्येक मद के लिए पृथक – पृथक रखा जायेगा। प्राप्ति पक्ष की और की प्रविष्टियां प्रदायक के बिल से सीधी की जायेगी, सामान वास्तविक मांग – पत्र के अनुसार जारी किया जायेगा और सामान के निर्गम के लिए समुचित रसीद अभिपा्रप्त की जायेगी। उसकी स्टॉक रजिस्टर के निर्गम पक्ष में सही – सही प्रविष्टि की जायेगी। 

240. सामान की अभिरक्षा  –  (1) सामान की अभिरक्षा से न्यस्त व्यक्ति उसकी सुरक्षा और उसे अच्छी स्थिति और उसे हानि, नुकसान या धूप से संरक्षित करने के लिए उतरदायी होगा। 

(2) वह मषीनों, टेलीफोन, टंकण यंत्रों, फोटो प्रतिलिपि, कूलरों और अन्य कार्यालय उपस्कर का, उन्हें हर समय चालू स्थिति में रखने के लिये, समुचित और समयबद्ध अनुरक्षण सुनिश्चित करेगा। 

241. छपने वाला सामान  –  (1) छपने वाले सामान और लेखन की सामग्री की वस्तुआंे के लिए प्रपत्र 34 में भी एक पृथक रजिस्टर रखा जायेगा। 

(2) कार्यालय का प्रधान प्रत्येक कर्मचारी/अनुभाग के लिए लेखन सामग्री की वस्तुओं के निर्गम के लिए तिमाही मानदण्ड नियत करेगा। मानदण्ड इस प्रकार नियत किये जायेगें जिससे दुरूपयोग या अत्यधिक उपयोग से बचा जा सकें। 

242. भौतिक सत्यापन  –  (1) सामान का भौतिक सत्यापन एक वर्ष में कम से कम एक बार किया जायेगा और ऐसा कर लेने के प्रतीक स्वरूप वह यह प्रमाण  –  पत्र अभिलिखित करेगा और वास्तव में पाये गये आधिक्यों/कमियों के लिए टिप्पणी अंकित करेगा। 

(2) कार्यालय के प्रधान द्वारा, किन्ही भी भण्डार वस्तुओं का हानि की वसूली के लिए समुचित जांच के पश्चात उतरदायित्व नियत करते हुए समुचित कार्यवाही की जायेगी। 

243. अनुपयोगी/बेकार/अधिशेष भण्डार वस्तुओं का व्ययन  –  (1) कार्यालय का प्रधान भण्डार – वस्तुओं को बेकार/अनुपयोगी/अधिशेष घोषित करने के लिए एक सर्वेक्षण सूची तैयार करने हेतु तीन व्यक्तियों की एक समिति गठित करेगा जिसमें 

एक व्यक्ति लेखा अनुभाग से होगा। 

(2) अपलेखन की शक्तियां निम्नलिखित रूप में होंगी –  

(क) सरपंच विकास अधिकारी –  10,000 रूपये के बही मूल्य तक की भण्डार वस्तुएं। 

(ख) मुख्य कार्यपालक अधिकारी 20,000 रूपये के बही मूल्य तक की भण्डार – वस्तुएं। 

(ग) निदेशक , ग्रामीण विकास 50,000 रूपये तक। 

(घ) विकास आयुक्त –  दो लाख रूपये तक। 

(3) ऐसी सभी भण्डार – वस्तुओं का व्ययन सक्षम मंजूरी के पश्चात नाषन/नीलामी द्वारा किया जायेगा और उनके आगमों को निधि में जमा किया जायेगा। 

244. अनुपयोगी यानों का व्ययन  –  (1) पंचायती राज संस्थाओं के यानों (जीप, कार, पिकअप, टेक्टर, मोटर साइकिल, थ्री व्हीलर, बुलडोजर) को अनुपयोगी घोषित करने और नीलाम करने के लिए जिला परिषद स्तर पर एक समिति निम्नलिखित रूप से गठित की जायेगी –  

(क) मुख्य कार्यपलाक अधिकारी – अध्यक्ष 

(ख) जिला परिषद का लेखा अधिकारी/ सहायक लेखा अधिकारी – सदस्य 

(ग)  जिला मुख्यालय पर पुलिस विभाग का एम.टी.ओ/परिवहन विभाग 

का मोटरयान निरीक्षक/ जिला पूल मैकेनिक और सम्भागीय मुख्यालय 

    पर राजकीय गैरेज का तकनीकी अधिकारी – सदस्य

(2) उक्त समिति यह सुनिश्चित करेगी कि यान ने निम्नलिखित रूप में विहित दूरी और अवधि पूरी कर ली है –  

यान का प्रकार  किलो मीटर (लाख)   कालावधि (वर्ष) 

 1. मोटर साइकिल/ थ्री व्हीलर – 1.20      7 

 2. हल्के मोटर यान – 2.00                     8 

 3. मध्यम मोटर यान – 3.00                   10 

 4. भारी मोटर यान – 4.00                      10 

 5. ट्रैक्टर/बुलडोजर – उपयोग के 20,000 घंटे     10 

(3) ऐसे यानों को अनुपयोगी घोषित नहीं किया जायेगा जो विहित दूरी और अवधि तो पूरी कर चुके है किंतु समिति की राय में उपयोग के लिए ठीक है। 

(4) समिति के सदस्य यान को अनुपयोगी घोषित करने के पूर्व वास्तविक रूप से उसका निरीक्षण करेंगे और यह प्रमाणित करेंगे कि –  (क) यान ने विहित दूरी और अवधि पूरी कर ली है। 

(ख) यान की लाभप्रद मरम्मत संभव नही है और पेट्रेाल/ डीजल के अत्यधिक उपभोग के कारण उसे चलाने से कोई लाभ नहीं है। 

(ग) पुर्जाे के प्रतिस्थापन में भारी व्यय होगा और यान को और चलाने से कोई लाभ नहीं होगा। मुख्य कार्यपालक अधिकारी, समिति की सिफारिश पर अनुपयोगी यानों की नीलामी के लिए आदेश जारी करेगा। 

(5) यदि यान ने विहित न्यूनतम दूरी या अवधि पूरी नहीं की है, या यान पिछले सात वर्षो से अप्रयुक्त पडा है या यान दुर्घटनाग्रस्त हो गया है और मरम्मत के बाद उपयोगी नहीं रहेगा तो समिति यह प्रमाणित करते हुए मामले की सिफारिश करेगी कि –  

(क) यान की लाभप्रद मरम्मत संभव नहीं है और चलाने से कोई लाभ नहीं है, 

(ख) पुर्जों क प्रतिस्थापन में भारी व्यय होगा और यान को और चलाने से कोई लाभ नही होगा। 

(ग) मरम्मत और पुर्जो के प्रतिस्थापन का कुल खर्च……….. रूपये होगा, जैसा कि मोटर गैरेज विभाग के सर्वेक्षक द्वारा प्रमाणित किया गया है। 

ऐसे यानों को अनुपयोगी घोषित करने की शक्तियां विकास आयुक्त को होगी। 

(6) अनुपयोगी यान जिला स्तर पर एक समिति द्वारा नीलाम किये जायेंगे, जिसमें निम्नलिखित होंगे –  

(क) अपर कलक्टर (विकास), 

(ख) मुख्य कार्यपालक अधिकारी, 

(ग) कोषाधिकारी या जिला परिषद का लेखाधिकारी। 

अपर जिला मजिस्टेट (विकास) या मुख्य कार्यपालक अधिकारी, जो भी वरिष्ठ हो, अध्यक्ष के रूप में कार्य करेगा परन्तु राज्य की संचित निधि से खरीदे गये यान संबंधित खण्डीय मुख्यायलों पर राज्य मोटर गैरेज के माध्यम से नीलाम किये जायेंगे। 

(7) उप – नियम 6 में की समिति द्वारा नीलाम किये गये यानों के विक्रयागमों को संबंधित पंचायती राज संस्था निधि में जमा किया जावेगा और विक्रय कर को सरकारी खाते में जमा किया जायेगा। 

लेखें और विवरणियां 

245. लेखों की त्रैमासिक विवरणी  –  आय और व्यय के लेखे का एक त्रैमासिक विवरण पंचायती राज संस्थाओं द्वारा प्रपत्र सं[या 35 में तैयार किया जायेगा और अगले उच्चतर प्राधिकार को भेजा जायेगा। जून, सितम्बर, दिसम्बर और मार्च को समाप्त होने वाली तिमाही के लिए तिमाही लेखे, उस तिमाही के, जिससे लेखे संबंधित है, अगले मास की 15 तारीख तक प्रेषित कर दिये जाने चाहिये। बाद में उपबन्धित आय और व्यय की सभी मदों का प्रगामी योग, लेखे के ऐसे विवरण तैयार करते समय और अगले उच्चतर प्राधिकारी को आंकडे बताते समय, लगाया जायेगा। 

246. वार्षिक लेखों का सार  –  (1) वर्ष के अन्त में पंचायत/पंचायत समिति, बजट के प्रत्येक शीर्ष के अधीन अपनी आय और व्यय दर्शित करते हुए, प्रपत्र 36 में वार्षिक लेखों का सार तैयार करेगी और उसे आगामी एक मई तक, जिला परिषद के माध्यम से, राज्य सरकार को भेजेंगी। 

(2) वार्षिक लेखों के सार के साथ, प्रपत्र 37 में, लेखों के विभिन्न शीर्ष के अधीन राज्य सरकार से सहायता अनुदान, उपयोगिता प्रमाण – पत्रों द्वारा समर्थित उपगत व्यय का कार्यालय के प्रधान द्वारा हस्ताक्षरित विवरण होगा जिसमें स्पष्ट रूप से यह उल्लिखित किया जायेगा कि अनुदान विशिष्ट रूप से उद्देश्यों और प्रयोजनों के लिए, जिनके लिए वह दिया गया था, सम्पूर्णत: या भागत: खर्च किया गया है, जिसके लेखे समुचित रूप  से रखे गये है और सम्बद्ध वाउचर उसकी अभिरक्षा में है । मुख्यकार्यपालक अधिकारी इन विवरणों की सूक्ष्म संवीक्षा करेगा और उनकों, अपनी टिप्पणियों सहित, राज्य सरकार को  भेजेगा, जिसकी एक प्रति संबन्धित पंचायत समिति/ पंचायत को भी दी जायेगी। 

(3) प्रत्येक पंचायत समिति वार्षिक लेखेां के साथ, प्रपत्र  संख्या  36 में बकाया ऋणों और रकम का विवरण भी संलग्न करेगी। 

(4) वार्षिक लेखे के साथ विभिन्न स्कीमों के अधीन हाथ में लिये गये संकर्माें की एक सूची भी प्रपत्र 39 में यथा – उपंबधित व्यय की प्रगति सहित, संलग्न की जायेगी। 

(5) वार्षिक लेखे के  साथ प्रपत्र 40 में पंचायत/पंचायत समिति की शास्तियों और दायित्वों का विवरण भी होगा। 

[(6) समस्त पंचायती राज संस्थाएं प्ररूप -36 (क) में वित्त पर डाटा बेस का संधारण करेंगी]

247. जिला परिषदों के लेखे और विवरणियां  –  (1) प्रत्येक जिला परिषद आय और व्यय का त्रैमासिक विवरण, नियम 245 में बताया गया है, तैयार करेगी और उसे राज्य सरकार को भेजेगी।

(2) इसी प्रकार प्रत्येक जिला परिषद आय और व्यय के वार्षिक लेखे, जैसा कि नियम 246 में बताया गया है, तैयार करेगी और उनको 15 मई तक राज्य सरकार को भेजेगी। 

संपरीक्षा 

248 लेखों की संपरीक्षा – (1) पंचायती राज संस्थाओं के लेखों की संपरीक्षा राजस्थान स्थानीय निधि संपरीक्षा अधिनियम, 1954 और उक्त अधिनियम के अधीन बनाये गये राजस्थान स्थानीय निधि संपरीक्षा नियम, 1955 के उपवचनों से शासित होगी। 

(2) लेखों की सांकेतिक संपरीक्षा भारत के नियंत्रक महालेखा परीक्षक की ओर से भी की जा सकेगी। 

249. संपरीक्षा के लिए व्यवस्थाएं  –  सम्बंधित पंचायती राज संस्था, संपरीक्षक को, संपरीक्षा करने के लिए उसका कार्यालय लगााने में समर्थ बनाने हेतु, युक्तियुक्त व्यवस्थाएं करेगी और संपरीक्षा के प्रयोजन के लिए समस्त अभिलेख, विवरण आदि तैयार रखेगी और उन्हे ऐसी रीति से पेश करेगी जिसकी संपरीक्षा तंत्र द्वारा मांग की जाये। 

250. वित्तीय विवरण का तैयार किया जाना  –  पंचायती राज संस्था स्थानीय निधि संपरीक्षा नियम, 1955 द्वारा विहित वित्तीय विवरण और उस कालावधि के वास्तविक लेखे तैयार करेगी जिसके लिए संपरीक्षा की जानी है उन्हें तब पेश करेगी जब संपरीक्षा तंत्र द्वारा मांग की जाये। 

251. संपरीक्षा रिपोर्ट  –  निदेशक, स्थानीय निधि संपरीक्षा की संपरीक्षा रिपोर्ट सम्बंधित पंचायती राज संस्था को भेजी जायेगी। पंचायतों की संपरीक्षा रिपोर्ट की एक प्रति संबंधित पंचायत समिति को भी भेजी जायेगी। इसी प्रकार पंचायत समितियों की संपरीक्षा रिपोर्ट की एक प्रति संबंधित जिला परिषद को भी भेजी जायेगी जो यह देखेगी कि संपरीक्षा तंत्र द्वारा बताई गई अनियमितताओं पर शीघ्रता से ध्यान दिया गया है और उनको परिशोधित किया गया है। 

252. संपरीक्षा रिपोर्टो का अनुपालन  –  (1) निदेशक , स्थानीय निधि संपरीक्षा द्वारा भेजी गई संपरीक्षा रिपोर्ट का अनुपालन राजस्थान स्थानीय निधि संपरीक्षा नियम, 1955 के नियम 28 में अधिकथित प्रक्रिया के अनुसार किया जायेगा। 

(2) मुख्य कार्यपालक अधिकारी और मुख्य लेखाधिकारी, जिला परिषद् प्रादेशिक मुख्यालयों पर पदस्थापित उप निदेशक , स्थानीय निधि संपरीक्षा की उपस्थिति में, संपरीक्षा रिपोर्टों के अनुपालन की प्रगति का प्रत्येक तीन मास में पुनर्विलोकन करेंगे और अभियान चलाकर उनके अनुपालन के लिए सभी कदम उठायेंगे। 

(3) मुख्य कार्यपालक अधिकारी गबन, राजस्व की हानि, अतिसंदाय, गलत संदाय आदि को उपदर्शित करने वाले क्षेत्रों का विनिर्दिष्ट रूप से पुनर्विलोकन करेगा और व्यतिक्रमियों के विरू) विभागीय कार्यवाही या दाण्डिक कार्यवाहियां संस्थित करेगा। 

(4) संपरीक्षा रिपोर्टों में बताई गई राजस्व हानि की वसूली के लिए मुख्य कार्यपालक अधिकारी और विकास अधिकारियों द्वारा सभी प्रयास किये जायेंगे। 

253. अपलेखन  –  (1) सभी धनीय हानियां, अवसूलीय राजस्व, उधार, अग्रिम पंचायती राज संस्था द्वारा राज्य सरकार से पूर्व अनुमोदन से ही अपलिखित किये जायेंगे। 

(2) उस दशा में, जहाँं कोई हानि किसी भी सेवक से कपट, कूट रचना, गबन, गम्भीर उपेक्षा के कारण हुई हो, जिससे अनु शासनिक कार्यवाही आवश्यक हो गयी हो या जो नियमों और प्रक्रिया में  दोष के कारण हुई हो जिससे परिशोधन या संशोधन अपेक्षित हो, पंचायत समिति/ जिला परिषद् पहले ऐसे मामले का पुनर्विलोकन करेगी और ‘‘अपलेखन’’ के अनुमोदन के लिए राज्य सरकार को मामले की सिफारिश करने के पूर्व समुचित अनुशासनिक कार्यवाही करेगी। 

(3) हानियों के ‘‘अपलेखन’’ की समस्त मंजूरियों की एक प्रति निदेशक , स्थानीय निधि संपरीक्षा को भी प्रेषित की जायेगी। 

254. प्रपत्र  –  प्रपत्रों की अनुपलब्धता की दशा में पंचायती राज संस्थाओं के कार्यालय में उपयोग के लिए राज्य सरकार के समरूपी प्रपत्रों को अंगीकृत किया जा सकेगा। 

255. अनुदेश जारी करने की राज्य सरकार की शक्ति  – राज्य सरकार ऐसे अनुदेश जारी कर सकेगी जो इन नियमों के समुचित पालन के लिए समय – समय पर दिये जाने आवश्यक हो। 

 


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